बेलगाम राजा के अच्छे दिन
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
हाँ अच्छे दिन आ गये हैं.
दरवाजा बंद कर लो,
नेता जी आ रहे हैं माँगने वोट ?
जीतने के बाद न जाने क्या निकालेंगे खोट?
नोटबन्दी कर निकलवाए थे
गरीबों की बचत-मुसीबत के नोट!
कब मुझ भिखारी से छीन लें कटोरा,
मेरे बचे खुचे कपड़े, सदरी और लंगोट?
ईज्जत बचाने के लिए
पत्ते कम पड़ गए हैं?
जब से जंगल कट रहे हैं?
विरोधियों को जेल में बंद करने की
परम्परा पुरानी है.
महात्मा गांधी के जन्म के मनाये हैं 150 साल?
गाँधी के हत्यारों के प्रसंशकों को संसद
देशभक्त को जेल भेजनी की बारी है,
बेलगाम राजा और तुगलगी फरमान जारी है.
आज उनकी कल हमारी बारी है.
सूर्य अस्त हो गया है,
अन्धेरा छा गया है
बादल घिर गए हैं,
कैसे गरज रहे हैं.
जनता खामोश है,
सत्ता मदहोश है
तूफ़ान के पहले का सन्नाटा रोष है?
जब से खलियान जल रहे हैं
किसान आत्मह्त्या कर रहे हैं.
धीरज धरो अच्छे दिन आ रहे हैं.
चिदंबरम और फारुख अब्दुला को
संसद में आने से रहे हैं
रोक,
जिन्होंने देश में जनतंत्र को बचाया था.
खुद के केस माफ़ करके घूम रहे हैं बेटोक?
बोये थे गुलाब पर क्यों बबूल उग रहे हैं
क्या अच्छे दिन आ रहे हैं?
जो सांसद सच कह रहे हैं,
उन्हें मार्शल बेइज्जत कर रहे हैं
लाचार स्पीकार क्यों मजबूर है
बेलगाम राजा का जी हुजूर है
अधिकांश सांसद गूंगे के गुड़ हैं,
दिव्यांग से ज्यादा देख नहीं पाते हैं?
नहीं देखने को मजबूर हैं?
पारदर्शिता ख़त्म हो गयी है,
जनता के शासन से
जनता की समस्या को बेदखल कर गये हैं
अच्छे दिन आ गये हैं?
सांसद बेचारा नया है
क्यों गिरगिट सा रंग बढ़ाने को लाचार
जानबूझ कर गूँगा हो जाये यदि सांसद
उसको है धिक्कार
कैसी लाचारी कैसा शिष्टाचार
अपनी जिम्मेदारी से भागना
जनता से धोखा और अपने जमीर की ह्त्या?
भ्रष्ट नेताओं के ऊपर हो रहे केस ख़त्म
जनता के ऊपर आर्थिक समस्या के बड़े हो रहे जख्म।
जिन्होंने जनतंत्र को बचाया था
वही अब लग रहे हैं बेलगाम राज को खोट?
ताकत का नशा
साम्प्रदायिक न बन जाये
यह डर है?
राष्ट्रभक्त के नाम पर
साम्प्रदायिकता फैलाकर
जनता को लड़ाकर
विदेशी शासक की तरह
स्वदेशी कपड़ों में अंग्रेज हो गये हैं
अच्छे दिन आ गये हैं?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें