शबाना आजमी की मां शौकत कैफी को श्रद्धांजलि - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
22 नवम्बर की शाम को शौकत कैफी का निधन
जावेद ने अमेरिका से ही सास को श्रद्धांजलि दी है
22 नवम्बर की शाम को शौकत कैफी का निधन
प्रसिद्द कलाकार शबाना आजमी की मां और लेखक, शायर जावेद अख्तर की सास शौकत कैफी का निधनहो गया है। मुंबई में शुक्रवार शाम करीब 5 बजे अंतिम सांस ली। शनिवार दोपहर उनको सुपुर्द-ए-खाक किया गया। बदकिस्मती यह है कि कैफी के दामाद जावेद अख्तर अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सके। वे मुंबई में नहीं, बल्कि अमेरिका में हैं। अपना दर्द बयां करते हुए जावेद ने अमेरिका से ही सास को श्रद्धांजलि दी है।
- मुझे बेटे से बढ़कर चाहने वाली शौकत जी का इंतकाल मेरे देश में हो
गया है और मैं सात समंदर पार लॉस एंजेलिस में हूं। मेरे साथ कितनी विकट
स्थिति है कि मैं तो उनको सुपुर्द-ए-खाक किए जाने तक भी नहीं पहुंच पाऊंगा।
उनके जाने से मैं बेहद दुखी तो हूं। साथ ही उनको लेकर कई बातें मेरे जेहन
में आ रही हैं। मेरी और शबाना की शादी उनके बिना हो ही नहीं पातीं। एक वे
ही थीं, जिन्होंने इस मामले में मेरी काफी मदद की थी।
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उनके चले जाने से लेखकों के
प्रगतिशील आंदोलन का जो पूरा कबीला था, कृश्न चंदर से लेकर राजिंदर सिंह
बेदी, जां निसार अख्तर और इस्मत चुग़ताई का, उसका आखिरी स्तंभ भी ढह गया
है। प्रोग्रेसिव राइटर्स का पूरा ग्रुप, जिन्होंने फिल्मों में काम करने से
लेकर कविताएं, शॉर्ट स्टोरीज, नॉवेल्स वगैरह लिखे। अलग-अलग जगह बोले। उन
तमाम लोगों में मेरी सास आखिरी थीं। अब वह पूरा ग्रुप खत्म हो गया।
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मुझसे उनका मां-बेटे का रिश्ता था।
सास-दामाद का नहीं था। हमारी जिंदगी अब एकदम से बदल जाएगी। क्योंकि बहुत
दिनों से वे हमारे साथ रह रही थीं। हमें उनकी आदत है। पूरी जिंदगी उन्होंने
पृथ्वी थिएटर और इप्टा में काम किया। बड़े-बड़े अवॉर्ड्स उन्हें मिले।
थिएटर की मानी हुई अदाकारा थीं।
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उनकी किताब 'याद की रहगुजर' उनकी
वह दास्तान है, जिसमें उनके शौहर उर्दू के मशहूर शायर और नगमा-निगार कैफ़ी
आज़मी, बेटी शबाना आज़मी और बेटे बाबा आजमी के खूबसूरत और दिलचस्प किस्से
हैं। इसमें प्रगतिशील लेखक आंदोलन से जुड़े कवियों और लेखकों का जिक्र है।
ऊंचे सामाजिक मूल्यों के लिए संघर्ष करने वाले किरदार हैं। वह किताब बहुत
लोकप्रिय हुई। वह मराठी, गुजराती से लेकर जापानी और इंग्लिश तक में
ट्रांसलेट हुई है। वह किताब प्रोग्रेसिव और इप्टा के मूवमेंट के बारे में
एक पूरा इनसाइडर व्यू है।
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फिल्मों में उन्होंने जितना भी काम
किया, वह बहुत ही अच्छा है। 'गर्म हवा' में जो रोल उन्होंने किया, उसकी
तारीफ प्रख्यात फिल्मकार सत्यजित रे तक ने यह कहकर की थी कि 'साहब ये देखिए
काम तो यह होता है।' वे थिएटर की क्वीन थीं। स्टेज पर खड़ी हो जाती थीं तो
बाकी लोग केवल सुनते ही रह जाते थे। कैफी साहब के घर में तो आए दिन पार्टी
हुआ करती थी। फेस्टिवल हुआ करते थे। कभी होली मनाई तो कभी दिवाली। क्रिसमस
मनता था। ईद मनती थी। इन सब का अरेंजमेंट वे ही करती थीं। वे अपने आप में
पूरा कल्चर और जीने का एक ढंग थीं।'
(जैसा कि अमित कर्ण से अपने जज्बात साझा किए।)
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