मुझे अपनी डायरी लिखनी चाहिये।
मुझे आलोचक और प्रेमचंद पर विशद साहित्य लिखने वाले कमल किशोर गोयनका जी ने
कहा था की मुझे अपनी डायरी लिखनी चाहिये। अतः जो कुछ स्मरण है और चाह रहा
हूँ लिख रहा हूँ.
कल शनिवार था, ५ अक्टूबर २०१३, ओस्लो में मौसम बहुत खूबसूरत था. दिन सामान्य था कवितामय था तो एक विवाहोत्सव में जाना था.
मेरे घर के पीछे मित्रो स्टेशन वाइतवेत है जो इस क्षेत्र का भी नाम है.
. मैट्रो से सेंटर गया. मैंने अकेले एक परिक्रमा की ओस्लो सेंटर की. नगर के
मध्य में अनेक कार्यक्रम आयोजित थे. फोल्केतहूस 'ओस्लो कांफ्रेंस सेंटर'
में विभिन्न परिधान पहने सैकड़ों सुन्दर और विचित्र भेष-भूषा में आकर्षक
युगल, ग्रुप आदि जा रहे थे एक विशाल कार्यक्रम में.
काव्य संध्या
शाम छ: बजे स्तोवनेर, ओस्लो में स्थित फोस्सुमगोर में एक काव्यसंध्या थी.
कार्यक्रम १८:४० पर शुरू हुआ चालीस मिनट देरी से. लगभग तीस लोग उपस्थित
थे. वहां मैंने अपनी तीन नार्वेजीय कवितायें सुनायी साथ ही लोगों को एक
हिन्दी कविता भी सुनायी जिससे लोगों को हिन्दी-उर्दू का भी आनन्द मिले।
डैनियल और प्रीती के विवाह के रिसेप्शन/प्रीत भोज में
बड़ा अच्छा लगता है जब किसी उस व्यक्ति की शादी में शामिल होना जिसे
आपने जन्म से लेकर विवाह तक देखा हो तो बात और होती है. कल वहां पर मैंने
उस युवती के विवाह पर अपनी एक कविता लिखी और आशीर्वाद रूप सुनायी। यह युवती
और कोई नहीं चरणजीत और अंजू की बेटी है जो कभी विवाह के पूर्व चरणजीत
(चन्नी) वाइतवेत, ओस्लो में जहाँ मैं रहता हूँ उसी के पास रहते थे.
डैनियल और प्रीती की जोड़ी को दिया अपनी बेटी संगीता और माया भारती के साथ जाकर दिया आशीर्वाद!
चित्र विहीन बचपन
यदि मैं अपने बचपन पर निगाह डालता हूँ तो मेरा बचपन एक तरह चित्र विहीन रहा
है. कक्षा तीन में पढता था तब सहपाठियों के साथ एक सामूहिक चित्र
खींचा गया था. वह भी पैसे के अभाव में नहीं ले सका था. परन्तु जब हाईस्कूल
में आया तब से चित्र का शौक ही ऐसा हुआ की चित्र की धीरे-धीरे कमी दूर हो
गयी.क्योकि पढाई के साथ-साथ मैं रेलवे के मालडिब्बे और सवारी डिब्बे कारखाने में काम करने लगा था.
बल्कि अभी कुछ वर्षों से ऐसा हुआ है कि वहुत से समृद्ध (पैसे से
समृद्ध) लोगों के पास अपने मृत्यु प्राप्त करने वाले व्यक्ति के चित्र नहीं
थे अतः उन्होंने मेरा सहयोग लिया और मुझसे अपने दिवंगत लोगों के चित्र प्राप्त किये जो मैंने अनेक अवसरों पर लिए थे. आदमी मना
नहीं कर पाता।
बड़ी विडंबना है. एक कविता साझा कर रहा हूँ:
एक कविता
"मृत्यु प्रमाण पत्र,
इन्हीं से मिलने हैं बीमा का धन, सुपुत्र!
धन की खबर कभी उनको दी ही नहीं
जिनके थे वे हकदार कुपुत्र!
लड़की का बराबर हक़ है अपने माता-पिता की छोड़ी जायजाद में?
बेटों को भी नहीं बक्शते, हट्टे खट्टे, मुश्टंडे,
स्त्री विमर्श और दलित विमर्श के ठेकेदार अमीर विचित्र! "
दलित- स्त्री विमर्श
मैंने
दो अध्यापन करने वाले दलित विद्वानों के घर पर बालकों को कार्य करते देखा
तो हैरान हो गया. क्या बाल मजदूरी कराना अच्छा है? क्या अच्छा है,
मेरे पूछने पर भी उन्हें साथ बैठने और चाय पीने की पेशकश ठुकरा देना।
उन्हें हमारे साहित्य में दलित, स्त्री विमर्श कम दीखता है शायद उन्होंने
स्वयम जातिवादी चश्में पहन रखें हैं जो आज तर्कसंगत नहीं है.
दुनिया कहाँ से कहाँ तरक्की कर आगे बढ़ रही है और हम अभी भी दकियानूसी ख्यालों में जकड़े हैं? और कब तक?
ऐसा
ही जब मैंने मेरठ में डा महेश दिवाकर जी के साथ श्री सिसौदिया जी के निवास
पर सफाई कर्मचारी को कुर्सी देने का आग्रह किया तो वहां उन्हें कोई दिक्कत
नहीं हुई, उन्हें बैठाया और चाय पिलाई, और बताया कि ये तो इनका घर है
चाहे जब चाय पी सकती हैं और चाय पीती भी रहती हैं.
गंज
बासौदा में श्री संजीव कुमार जैन के महाविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालय
आयोग के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय सम्मलेन में जिसका विषय था कि 'हिन्दी
उपन्यासों में भूमंडलीकरण' वहां मैं भी एक सत्र में मुख्या वक्ता था. इसका
जिक्र इस लिए कर रहा हूँ की दो बातें कहनी हैं. एक सेमीनार में स्त्री
विमर्श को लेकर मेरा नार्वे के सन्दर्भ में वक्तव्य और कमलेश्वर के
उपन्यासों 'समुद्र में खोया आदमी' और 'कितने पाकिस्तान' पर मेरा
आलोचनात्मक वक्तव्य.
सेमीनार के बाद दूसरी बात तब की है जब मैं अपने
मित्र राजेन्द्र रघुवंशी जी के साथ उनके सम्बन्धियों के घर गंज बासौदा में
ही उनके निवास पर गया तो लगा कि किसी पुराने जमीदार के घर पर आ गया हूँ.
आवाभगत के बाद बाहर देखा कि तीन महिला सफाईकर्मी झाड़ू लगा रही थीं. उस समय
जो परिचर्चा हुई उसी से जन्मी मेरी कविता 'पर्यावरण की देवी' जो कविता
संग्रह 'गंगा से ग्लोमा' में संग्रहित है.
परिचर्चा जारी रहेगी। . . . . . . आगामी पोस्ट में देखिये!