सोमवार, 28 नवंबर 2016

संवाद बहुत जरूरी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो

आज भारतीय दूतावास ओस्लो में भारतीय संविधान दिवस मना रहे हैं  दो दिन बाद. असल में 26 नवम्बर को यह दिवस था.
आज फेसबुक पर अभिव्यक्ति के नाम पर भारतीय पोस्टों में अक्सर असहिष्णुता दिखाई देती है. एक दूसरे  विचारों को सहने और व्यक्त करने के तरीके से लगता है कि अभी हम राजनैतिक शिक्षित नहीं है, खासकर कैसे अपनी बात रखें कि दूसरे की बात को एक सीमा तक तर्क संगत होने पर समाहित करते या उसे शामिल करते हुए जोड़ें।  ना कि संवाद तोड़ें।  महात्मा  गांधी जी से सीख सकते हैं  संवाद करना।  नेलसन मंडेला से सीखें संवाद करना और हिंसात्मक रवैये को छोड़कर अहिंसात्मक तरीके से व्यवहार करना सीखना। दूसरे के द्वारा भेदभाव करने पर भी हम उसे जोड़ना या उसके विचारों को जोड़ना नहीं भूलें। हमको किसी प्रकार के भी पड़ोसी के लिए तैयार रहना चाहिये.
जब मैं कविता लिख रहा हूँ तो तीन वर्षीय अरूरा क्लीटन नामक अपने बोडीकोली नस्ल के कुत्ते के मिमियाने पर कह कर जा रही है मैं जाकर उसे समझाकर आती हूँ. वह कुत्ते के पास जाती है और नार्वेजीय भाषा में कहती है (वार स्थिल्ले  Vær stille. (चुप रहो). वह देख रही है कि मैं लिख रहा हूँ. अतः मुझे शान्ति चाहिये। तीन वर्षीय अरूरा कितनी  समझदार है.

बुझी ना जब मरीचिकी प्यास,
बताओ उस अमृत का मोल.
छू ना  सके जब दिल का कोण,
कब संबंधों की गांठें खोल..

यह मेरा नहीं,  तेरा सही,
रहा ना  मन में आज विवेक।
अपने  सुखों के कारण आज,
संवाद कहाँ जब  उठे विरोध,

जहाँ क्रोध कैसी वह शान्ति,
पास रहकर  दे पाये  साथ.
वायु में घुली खुशबू  के बीच,
भूमि पर महकता  हरसिंगार। .

शहीद मूर्ति जहाँ पर आज,
इलाहाबाद  अमर इतिहास,
लड़ते  पहुंचे कंपनी बाग़
देश को करवाने आजाद,

बहस करते थे तब दो वीर,
कहते कुछ और करते और.
बदलते पाला ऐसे आज
थाल के बैगन बन सिरमौर।।

हांकते मिल जाते चहुओर,
फैलाते कूड़ा सभी  ओर.
अनुशासन हीन यातायात  
प्राण देते सड़कों पर लोग. .

आज जब प्रतिष्ठित कवियित्री बहन सरिता शर्मा जी अपनी फेस बुक पर लिखती हैं तो समझ में आता है,
"देखती हूँ कि फेसबुक पर लगभग 90 प्रतिशत पोस्ट राजनैतिक, धार्मिक अंधविश्वास ( कॉमेंट करो 2 सेकंड में कुछ अच्छा होगा टाइप) या सांप्रदायिक कट्टरता से जुड़ी आ रही हैं। निराशा होती है इससे। यहां लोगों को जोड़ने के बजाय गुटबन्दी, मूल्यों के क्षरण और तोड़ने की मानसिकता वाले लोग और पोस्ट्स हावी हो गए हैं। समझ में नहीं आता कि क्या करना चाहिये।"

आज की यही है नियति अधीर,
घूस  से बने  अव्वल संस्थान।।
शिक्षा राष्ट्रीयकरण करके,
समान  शिक्षा हो भारत  देश..   

यदि सुधी पाठक अपने विचार लिखते हैं तो लेखक से एक आत्मीय रिश्ता बनता है और होता है स्वस्थ संवाद जहाँ आलोचक और अध्यापक या आदर्श पुलिस और सैनिक भी रास्ता नहें रोक पाते लेख और प्रिय पाठक के वैचारिक मिलान से. धन्यवाद।
आपका दिन मंगलमय हो
ओस्लो, नार्वे, 28.11.16
speil.nett@gmail.com

रविवार, 27 नवंबर 2016

मेरी इन साल पहली क्रिसमस पार्टी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, 27.11.16


भारत का संविधान दिवस 26 नवम्बर और मेरी पहली  क्रिसमस पार्टी 
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 
बीच में बैठी कथाकार स्तीएन 
1-कल शनिवार तारीख 26 नवम्बर 2016 थी.  इस दिन भारतीय संविधान लागू किया गया था.

2-कल ओस्लो में लेखकों की बैठक में सम्मिलित होकर मुझे बहुत अच्छा लगा.  बैठक के बाद क्रिसमस पार्टी थी जिसमें अपने पुराने कवि मित्र आर्ने रूस्ते Arne Ruste से मिला।
आर्ने रूस्ते Arne Ruste पहले नार्वेजीय लेखक सेंटर के अध्यक्ष रह चुके हैं.
 हम दोनों अनेक बार मिले और साथ-साथ अपनी कवितायें एक मंच से पढ़ीं और अनेक साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल हुये।
जब वह नार्वेजीय लेखक सेंटर (Norsk Forfattersentrum) अध्यक्ष थे  तब हम दो बार  सहमत नहीं हुए थे. हमारे अपने-अपने तर्क थे.  तब अनेक बार बातचीत और  पत्राचार के बाद सहमत हुये थे.
यदि भारत में इस तरह हम असहमत होते तो लोग दुश्मन समझ सकते थे क्योकि अनेक मामलों में भारत में लेखक और उनकी संस्थायें आलोचकों से दूरी बनायी रखती हैं. मेरा विचार है कि कंस्ट्रक्टिव (स्वस्थ) आलोचना हमेशा सही होती है.

हम भले ही विचारों में मतभेद या अलग-अलग विचाओं के हो सकते हिआँ पर साथ बातचीत कर सकते हैं संवाद बहुत जरूरी है.

दूरी बनाये रखने और लड़ने झगड़ने से सत्य को कभी असत्य नहीं साबित किया जा सकता।
समय से ध्यान देने से  बल्कि अनेकों बार असत्य को छापने से रोक जा सकता है.
सूरज हमेशा पूरब से निकलता है.  यदि कोई कहता है और लिखता है कि सूरज पश्चिम से निकलता है तो गलत है कोई विशवास नहीं कर सकता।
असमंजस की स्थिति में जानकार लोगों से पूछ लेना चाहिये।

एक भारतीय लेखक नार्वे आये. उन्होंने वापस जाकर लिखा कि नार्वे में 6 महीने लगातार दिन रहता है और 6 महीने लगातार रात रहती है. मैंने उन्हें बताया कि जो आपने लिखा वह गलत है. वह गुस्सा हो गये. सत्य यह है कि नार्वे में उत्तर भागों में जहाँ ध्रुवीय रेखा होकर गुजरती हैं वहां दो महीन सूरज नहीं डूबता। केवल दो महीने वह भी गर्मी के महीनों में। इसलिए नार्वे को आधीरात के सूरज वाला देश कहते हैं.

कल मेरी बातचीत     से हुई उन्होंने बताया की नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस  नायपॉल से वह कई बार मिले हैं. नोबेल पुरस्कार विजेता से भी उन्होंने लंबा संवाद किया है.
इसके बाद उत्तरी नार्वे की कहानीकार लेहिक्का से भी बातचीत हुई दोबार आ मिलने का वायदा हम लोगों ने किया।





शनिवार, 26 नवंबर 2016

निक्की हाले Nikki Haley गर्व है तुम पर - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

निक्की हाले कितनी मासूम लगती हो तुम
जैसे निकीता
तुममे और निकीता में आयु का अंतर है
तुम एक कोने पर हो निक्की
और निकीता दूसरे कोने पर.
तुम अमेरिका में हो और निकीता नार्वे में.
जैसे तुम मेरे लिए दक्षिणी ध्रुव हो तो निकीता उत्तरी ध्रुव।

राजनीति के इतिहास में तुम कितनी हो महत्वपूर्ण
विशेषकर मेरे लिए, मेरी मातृभूमि के लिए.
काश तुम भी मेरे विचारों को छू सको,
जान सको एक प्रवासी विदेशी लेखक का दर्द।

तुम मुझे वैसे ही लगती  हो जैसे यू के की बीना गिल.
जो यूरोपीय संसद में करती थीं ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व।
तुमसे पहले मैं स्मरण करता हूँ उन भारतीय मूल के लोगों को
जिनसे मैं प्रवासी दिवस में मिला था
वे थे अपने-अपने नये  देश  में
सांसद, मंत्री  और प्रधानमंत्री।

जानती हो निक्की वीरेंद्र शर्मा को?
वह भी हैं हमारे सच्चे प्रतिनिधि हैं ।
बेशक हमने उन्हें नहीं दिया वह सामाजिक सम्मान,
जिसके वह अधिकारी थे.
मैं ढूढ़ता रहा था उनको विश्व हिंदी सम्मलेन  (सन 1999)में,
पर वे न मिले थे.
धन्यवाद लन्दन की जनता को,
ईस्ट ईलिंग की जनता को,
जिन्होंने चुना उनको दशकों मेयर और सांसद.

हम करना चाहते हैं
निक्की तुम्हारा और वीरेंद्र शर्मा का अभिनन्दन।
जहाँ की जनता ने बनाया है मुझे सेवक और पाठकों ने बनाया है लेखक।
तुम मेरा यह पत्र जरूर पढ़ना।
हो सके तो ओस्लो जरूर आना लेखक गोष्ठी में,
जहाँ याद करता हूँ दुनिया भर के चिंतक,
लेखकों और राजनीतिज्ञों को.

suresh@shukla.no
Postbox 31, Veitvet
0518 - Oslo
Norway

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

उत्तरी डकोटा घायल सोफिया- -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla

उत्तरी डकोटा (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका) में घायल सोफिया 
                                                      Sophia Wilansky from North Dacota (USA.)
     -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla

उत्तरी डकोटा  की सोफिया हो गयी है घायल।
पुलिस ने पानी की बौछार, आँसू गैस और ग्रेनेट से
रोक दी है प्रदर्शनकारियों की अभिव्यक्ति की आजादी।

आदिवासियों के पवित्र स्थान में
मिसौरी Missouri नदी के नीचे से बिछाई जाएगी तेल की पाइप
उनके पीने का पानी हो जाएगा दूषित,

कहाँ जायें आदिवासी,
अपना हक़ मांगने जब वे गये प्रदर्शन करने
बहुत से लोग हुये घायल
सोफिया भी उसमें थी एक.
कर रही अपने चीथड़े हुए हाथ का इलाज।

क्या पर्यावरण के दूषित होने पर
क्या गारंटी है स्वस्थ रहने की.
जब हम सब कुछ सहेंगे मौन
कहे जाएंगे अपराधी
यदि अन्याय सहा और आवाज नहीं उठायी
तो क्या समय कर देगा माफ़?

सोफिया हम तुम्हारे साथ है
लिख रहें हैं तुम्हारा दर्द
ताकि सभी समझ सकें
कि घाव में नमक पड़ने से अधिक होने लगती है टीस,
कब तक पिसेगी जनता अन्याय के पाटों के बीच. 

रविवार, 20 नवंबर 2016

अगर तरक्की करनी है 
तो कतार में लगना होगा
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

समय आदि और अंत है.  
समय की परिधि अनन्त है।
जो समय मुट्ठी में बाँधे ,
समय का असली सन्त  है।।

हर पग बढ़ने की आशा.
आशायें पूरी होती हैं।
अनमोल रतन-खानें हैं,
यह भारत की धरती है.

संस्कार जहाँ सीखे हैं,
स्वर्ग सा देश हमारा।
जहाँ बहे  प्रेम की धारा ,
वह भारत देश हमारा।।

दावत खाने आयी है,  
एक  पीढ़ी लिए उदासी।
प्रयत्न नहीं किया जिसने,
पीढ़ी रह जाती प्यासी।।   

पत्तल का दौर नहीं है।
बदला है आज ज़माना।
कतार में लगना होगा , 
यदि हमको दावत खाना।। 

नयी सदी की  करवट है,  
सबको है कदम बढ़ाना।
सबको कुछ-कुछ बोना है
मिलकर सब फसल कटाना।। 

आ साथ चले नव युग में,
अब साथ  पड़ेगाआना. 
एक नहीं, सब आ जाओ, 
यह नयी  सदी का गाना।। 

करोड़ अब आगे आये,
तुम उनका स्वागत  करना।।
लाखों के हैं देश यहाँ, 
उनका पल-पल है बढ़ना।।

शुरुआत नयी है भैया,
सबको लेकर है चलना।।
अगर जुगनुओं से सीखें,
आंधी पानी में जलना।।

अब देश पुकारे हमको ,
धन जमा नहीं रखना है. . 
कितने सालों तक सोये,  
कुछ तो इलाज करना है. 

जब देश  बढ़ रहा आगे,
छुक-छुक हो गाड़ी जैसे। 
अब वायुयान के आगे, 
बैल नहीं चाहें गाड़ी।।

सब लगे कतार बैंक में,
चा-पानी उन्हें पिलाओं।
सेवा में लगे युवाओं,
कुछ अपना फर्ज निभाओ।। 

पैदल का समय नहीं है,
डाटा का युग हावी है. 
आज कुछ  तो गति बढाओ
युवाओं का युग भावी है। 

मगरमच्छ मार न पाये,
सूखा नदिया का पानी।
मछली का दोष नहीं है,
न मछली, न मैला पानी।।

शनिवार, 19 नवंबर 2016

वे पाप यहाँ करते है, जनता उनको धोती है - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, 19.11.16

वे पाप यहाँ  करते  है, जनता उनको धोती है 

- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 
ये  बड़े-बड़े व्यवसायी,
शासन करते हैं पूरा। 
देसी-विदेशी मुद्रायें,
ले जनता का धन सारा।।
देते राजनैतिज्ञ को रिश्वत,
फिर खुद कर खा जाते हैं.. 
जनता सब ओर पिसती है,
नोट -बन्दी कर जाते हैं. 
जो खुद मनमानी करते,
दूजों को पढ़ा  पहाड़ा। 
मनमानी यहाँ कमाते,
नहीं देते कर न भाड़ा।।
क्यों घटी विदेशी मुद्रा,
अपने बैंकों खाते में. 
जो टैक्स नहीं देते है?
विदेशों  में ले जाते हैं. 
आभार प्रवासी तेरा,
बैंको में  खाते खोले
इसी लिये विदेशी मुद्रा 
के संकट हैं अनबोले..  
कितने डानी दानी हैं,
क्यों कर माफ़ करते हैं. 
चुनाव में चन्दा देकर,
राजा का घर भरते हैं.. 
वे पाप यहाँ  करते  है,
जनता उनको धोती है. 
वायदे में फंस जाती,
मत देकर वह रोती है. 
जितने टी वी चैनल हैं,
मिल जाते सबमें बाबा। 
बिन सिरपैर  बात करते,
ये बेचें काशी काबा।। 
आओ श्रमदान करें हम,
स्व अपने मार्ग बनायें।
स्वच्छ नीति पर्यावरण,
जल-वायु साफ़  कर जायें। 
हम सड़क बनायें चौड़ी,
फुटपात नहीं हम घेरें।।
अपनी मोटर-कारों को,
पार्किंग  में सदा लगायें।

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

श्रीमती इंदिरा गाँधी जी की सौवें जन्मदिन -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ओस्लो, नार्वे Indira Gandhi 110 year. -Suresh Chandra Shukla

श्रीमती इंदिरा गाँधी जी की सौवें जन्मदिन -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ओस्लो, नार्वे 


आज 19 नवम्बर को श्रीमती इंदिरा गाँधी जी की सौवें जन्मदिन पर स्मरण करते हैं. Gratulerer med Indira Gandhis 100. fødselsdag. Jeg fikk møte henne to ganger ene ganger i Lucknow i India og andre ganger i Olso. मुझे भारत के अनेक प्रधानमंत्रियों से मिलने का अवसर मिला जिनमें श्रीमती इंदिरा गांधी, अटलबिहारी बाजपेयी जी, गुजराल जी, चंद्रशेखर जी, राजीव गांधी जी, नरसिम्हा राव जी और श्री नरेंद्र मोदी जी (मोदी जी से भारतीय प्रवासी दिवस जयपुर में मुख्यमंत्री के रूप में हुई है) से हुई थी.

बुधवार, 16 नवंबर 2016

B S N V PG college, Lucknow - बी एस एन वी, पी जी कालेज लखनऊ. - Suresh Chandra Shukla

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  की कलम से 
Det var rørende å være æresgjest på min Høyskole (B.S.N.V P.G. College) som ligger i min barndomsby Lucknow i India. Jeg har utdannet her for Bachlor grad. 
मुझे बहुत सुखद अनुभूति हुई जब मैं अपने प्रिय बी एस एन वी, पी जी कालेज में अतिथि बनकर गया। यहाँ से बहुत अंतरंग स्मृतियाँ जुड़ी हैं. चर्चित कवि और नाटककार शेक्शपियर पर व्याख्यानमाला थी. जिसका श्रेय डॉ शोभा बाजपेयी जी को जाता है, जो एक अच्छी साहित्यकार और अंग्रेजी विभाग में विभागाध्यक्ष हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।
मेरी प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ में हुई. 
मैंने हाई स्कूल गोपीनाथ लक्ष्मण दास रस्तोगी इंटर कालेज, ऐशबाग लखनऊ से  किया जो ऐशबाग रामलीला मैदान और ऐशबाग ईदगाह के समीप स्थित है. पिछले महीने (सितंबर.अक्टूबर २०१६) भारत यात्रा में मैं अपने एक मित्र सुरेंद्र कुमार से मिला जो मेरे साथ कक्षा पांच से लेकर हाई स्कूल (दसवीं) तक पढ़ा है.  ओम प्रकाश जिनकेसाथ हाईस्कूल पास किया है. यहाँ डॉ दुर्गा शंकर मिश्र, श्री लालमणि मिश्र, सुदर्शन सिंह, राघव जी, श्री के डी  मिश्र, श्री रामशंकर अवस्थी, श्री सनाढ्य जी की स्मृतियाँ आज भी मेरे पास संजोई हुई हैं. यहाँ मैं विज्ञान परिषद् में लाइब्रेरियन, सांस्कृतिक परिषद् में मंत्री और साहित्य परिषद् में उपाध्यक्ष चुना गया था.   

इंटरमीडियट की शिक्षा प्राप्त की डी  ए वी इंटर कालेज से जो लखनऊ के मध्य में बहुत अच्छे क्षेत्र में बसा है. जिसके पड़ोस में आर्य नगर, मोती नगर, नेहरू नगर और राजेन्द्र नगर आदि मोहल्ले बसे हुए हैं. यहाँ मेरे मोहाली में रहने वाले श्री वीरेंद्र प्रताप सिंह (जीजा जी), श्री रमेश अवस्थी, श्री उमादत्त त्रिवेदी और दिनेश मिश्र अध्यापक थे. यहाँ मैं क्षात्रसंघ की राजनीति में भी सम्मिलित हुआ और यहाँ क्षात्रसंघ के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में प्रत्याशी था. 

लखनऊ में जहाँ मेरा बचपन बीता वह है पुरानी लेबर कालोनी ऐशबाग, लखनऊ , यहाँ से यदि मैं विधानसभा जाना हो तो  डी ए वी कालेज, नाक हिंडोला चौराहा, बांसमण्डी चौराहा, हुसैनगंज चौराहा, आकाशवाणी भवन और विधान सभा  मुड़े हुए पंहुचा जा सकता है. 

बी एस एन वी, पी जी कालेज  लिए मुझे एक बार हुसैनगंज चौराहे से मुड़ना पड़ता है और जगदीश गांधी के सिटी मोंटेसरी स्कूल के प्रधान कार्यालय (१२ स्टेशन रोड ) होते हुए  मैं अधिकतर अपने मित्र रमेश कुमार के साथ जाता था. 

मैंने बी ए पास किया बी एस एन वी, पी जी कालेज  से । यहाँ से बहुत अंतरंग स्मृतियाँ जुड़ी हैं. 

लखनऊ में चारबाग रेलवे स्टेशन के पास स्थित शिक्षा संस्थानों ने  इस क्षेत्र को ख़ास बना दिया है. जिसमें  बाल विद्या मंदिर, बी एस एन वी, पी जी कालेज, जय नारायण पी जी कालेज और बी एस एन वी महिला कालेज प्रमुख हैं.  

तुम मेरे मन आँगन में, कुछ बीज नये बो जाना (एक कविता) सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

तुम मेरे मन आँगन में, कुछ बीज नये बो जाना  (एक कविता)



सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 

जो छूटा दर था मेरा 
फिर उसने नहीं बुलाया। 
छू छू कर उस माटी को,  
मस्तक में उसे लगाया।।

जो समय सदा मेरा था,
इतिहास बना जाता है । 
आशा के  घन केशों सा,
बिन बरसे ही जाता है।।  

जो छिपी हुई गाथायें, 
मन के अंतस्थल में। 
प्रमाण कहाँ दूँ उनको,
जो है कोरे कागज़ में.. 

पथ में,विश्राम गृहों में 
कुछ राही मिल जाते हैं.
वे बिछड़ भले जाते हों,
यादों  में रह जाते हैं. 

तुमको आमंत्रण मेरा,
कुछ पल साथ बिताना।। 
तुम मेरे मन आँगन में, 
कुछ बीज नये बो जाना।। 

सुई-धागे में पिरोया 
मैं ऐसा हार नहीं हूँ. 
जो बीच राह में छोड़े 
मैं ऐसा साथ नहीं हूँ. . 

जो कहकर नहीं निभाते
तुम उनका साथ न करना।
जिनको मिथ्या में जीना,
उनको धोखे में रहना।

जो बार-बार घीसू से,
आंसू हैं सदा बहाते। 
तब भाग्य रूठती उनसे,
मिल जाते भीख माँगते।। 

जिनका घरबार नहीं है,
उनके दिल में कोठी है. 
सोने वाले भूखे हैं।
मेरे घर में रोटी है।।

जो स्वांग सदा रचते हैं,
तुम उनपर न खो जाना।
हरसिंगार के फूलों सा 
महकना और महकाना।।

सन्दर्भ नये गढ़ने को
हम साथ छोड़ जाते हैं,  
पानी सा लिखा मिटाकर।
रेत अंजुरी में लाते हैं ।।

हिम गल-गलकर बन जाती,
अनगिनत प्रेम लघु नदियाँ। 
जो बीज दबे धरती में
अंकुर सी निकली कलियाँ।

सोमवार, 14 नवंबर 2016

प्रतिष्ठा/ रौब  (लघु कथा) - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'  14.11.16 Oslo, Norway



गुड्डी ने कहा, " मम्मी! पापा आ गये ." 
क्या बात है. दाल में कुछ काला लग रहा है. मैं सोचने लगी आखिर वह शर्मा जी के घर पार्टी में गए थे . और ये पार्टी से देर रात तक आते हैं. आज इतनी जल्दी। खैर मैंने पूछा ,
"मैंने कहा क्या बात हो गयी, आज आप पार्टी से जल्दी क्यों आ गये . उलटे पैर क्यों लौट आये हो."
"अरे कुछ नहीं बेगम, शराब की दूकान ने ५०० के और हजार के नोट लेने जो बंद कर दिये।"  
"अरे तुम्हें कौन पैसे देने थे वह तो शर्मा जी के यहाँ पार्टी है उन्होंने कोई इंतजाम नहीं किया।"  मैंने पूछा।
"हाँ-हाँ, मैं शर्मा जी की पार्टी की ही बात कर रहा हूँ. भला हो शर्मा जी की बीवी का जो उन्होंने शर्मा जी की आँख से बचाकर पांच सौ-और हजार के इतने नोट जमा किये कि लखपति हो गयीं। पर भगवान् को और ही मंजूर था. जब से पता चला कि पुराने नोट बंद हो गये हैं, शर्मा जी की बीवी बीमार हो गयीं। उन्हें सदमा लग गया. पोल खुलने से उनकी ईमानदारी पर शर्मा जी शक करने लगे हैं." 

"बैंक वाले ढाई लाख रूपये तक पुराने नोट जमा कर रहे हैं." मैंने अपने पतिदेव से कहा.
"अरे भाई, दहेज़ का सारा रुपया भी तो उनके घर में रखा है. शर्मा जी कहते थे बेटे मनीष की शादी में लिया दहेज़  बेटी पिंकी की शादी जब होगी तब दे देंगे।"
"हाँ बात तो गंभीर है. पर अपनी माँ और पिता के नाम भी ढाई-ढाई लाख जमा कर सकते हैं."

"बहुत खूब कहती हो भाग्यवान! मिसेज शर्मा तो अपनी सास को देखे मुंह तो सुहाती नहीं हैं और अब उनके नाम से लाखों रुपया जमा करना पड़ेगा। यही तो बीमारी की जड़ है." मेरे पति ने मेरी ओर देखकर आगे पूछा, "अरे भाग्यवान तुमने कितने पाँच  सौ और हजार के नोट बचा रखे हैं?"
"क्या बात कर रहे हो? तुम मुझे देते ही कितने थे?" मैंने सच्चाई बताते हुए अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही थी। 
"अरे भाग्यवान, कुछ तो बताओ? 
"कसम से मेरे पास केवल तीन हजार बचाये थे सो बैंक से बदलकर ले आयी हूँ. घर में कितना खर्च होता है. जानते हो  मैंने बैंक के एकाउंटेंट से कहा बेटा! तुम तो ऐसे काम कर रहे हो जैसे सीमा पर सैनिक कर रहे हैं। " मैंने सफाई दी और मैं सोचती रही. जब लोंगो को पता चलेगा मैंने तीन हजार ही बचाये तो मोहल्ले में नाक कट जायेगी।
"सुनो जी, पड़ोस के सभी लोग सुना रहे हैं कि किसी ने चार लाख बचाये किसी ने दस लाख एकत्र किये। और मैंने केवल तीन हजार।" मैंने रद्दी के नोटनुमा गड्डियों की तरफ इशारा करते हुए कहा, इस बोरे (थैले) को आग लगाकर गली के बाहर छोड़ना है." मैंने कहा. 
"इसमें क्या  है? " उन्होंने पूछा।
" इस थैले में  रद्दी की नोटनुमा गड्डियां है. अरे भाई हमारी नाक कट जायेगी जब लोगों को पता चलेगा कि हमारे पास नोट नहीं हैं. इसी लिए मैंने रद्दी काटकर पूरे दिन भर की मेहनत के बाद नोटनुमा गड्डियाँ बनायी हैं. ताकि इज्जत रह जाये। ताकि लोग समझें कि हमारे पास इतने नोट थे कि आग लगाने की नौबत आ गयी."

उन्होंने बोरी देखी और फिर मेरी ओर आश्चर्य से देखा। कुछ ठहर कर बोले,
"तुम हो तो बुद्धिमान। चलो इसे लाग लगाकर आता हूँ." वह कहकर घर से बोरी लेकर गली से निकले। सभी की नजर मेरे पति के हाथ में पकडे हुए बोरे पर लगी थी. एक कह रहा था,
" सर्दी आ गयी है ये नोट अब आग तापने के काम आयेंगे।"  लोग  इधर -उधर  देखते रहे पर कोई पास नहीं आया.  बुरे वक्त के लिए लोगों ने नोट छिपा कर रखे थे अब पुराने नोटों का ही बुरा समय आ गया।

जैसे ही मेरे पति बोरी को जलाकर आये हैं. लोग कहने लगे, मुरारी बाबू और मेरा नाम लेकर उनकी पत्नी (विमला)  ने गृहस्ती अच्छी संभाली थी. कितने संपन्न हैं ये लोग.
मुझे लगा कि समाज में रौब बढ़ गया है। इतने नोट थे कि इन्हें जलाने पड़े।
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पता 
Grevlingveien 2 G
0595  Oslo
Norway

रविवार, 13 नवंबर 2016

नोटबंदी का व्यापक स्वागत

नोटबंदी का व्यापक स्वागत 

मैं भारत के प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसले का स्वागत करता हूँ. सुरेश चंद्र शुक्ल ने भी किया भारत में नोटबंदी का स्वागत इससे भारत में महंगाई में काबू लगाने और काल धन रोकने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने वायदा किया की ३० दिसंबर तक सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने तथा यूरोपीय यूनियन ने भारत में ५०० और १००० रूपये के नोट बंद करने का स्वागत किया है.
 यूरोपीय संघ ने कालेधन और महंगाई पर रोक लगाने के लिए पांच सौ और एक हजार रुपए के पुराने नोट को बंद करने के भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया है।
  

भारत में नोटबंदी : किसको फायदा किसको नुकसान? -सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो


भारत में नोटबंदी :  किसको फायदा किसको नुकसान?

-सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो

बैंकों में अब तक जमा हुए 2,00,000 करोड़ .क्या अर्थ-व्यवस्था अच्छी होगी?  
500 के 50 लाख नोट छपे पर आम आदमी से दूर हैं।  
कई बैंक दो-तीन घंटे में ही खाली हो रहे हैं। 
जो लोग कतार में आगे पहुँच भी गये वह अपना ही रुपया निकालने में असमर्थ हैं?  
विपक्ष इसे अघोषित इमरजेंसी कह रहा है और आम आदमी चार घंटे की पंक्ति में कैसे लगेगा यदि वह बीमार, बुजुर्ग और बैंक से बहुत दूर रहता है।  
खैर जो भी हो हर शहर और गाँव में लोग नोटबंदी से परेशान नजर आ रहे हैं ऐसे समाचार मिल रहे हैं। लगता है कोई बड़ा उद्योगपति इसकी चपेट में नहीं आया और न ही कोई बड़े नेता और सेलिब्रेती बैंक की पंक्ति में दिखाई दे रहा है। चार पाँच दिन में स्थिति का जायजा मिलेगा कि स्थित किस तरफ करवट लेगी। पेट्रोल पंप में बढ़ी बिक्री का बढ़ा हुआ फायदा किसको-किसको मिलेगा। लोग बात करने लगे हैं।
अभी भी सर्वदलीय बैठक से दूर हैं हमारे राजनैतिज्ञ, क्यों और क्या इसकी जरूरत है या नहीं। यह आने वाला वक्त बताएगा कि परिस्थित्यों का ऊंठ किस तरफ करवट बदलेगा? इंतजार कीजिये। हम प्रतीक्षा करने और कराने में सभी से आगे हैं।


दाल नहीं गलने का ज्यादा मलाल- Suresh Chandra Shukla

 बैंकों में अब तक जमा हुए ₹2,00,000 करोड़

नया बदलाव आया है जो जारी रहेगा -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 

पहले लोग गंगा नदी में सिक्के फेंकते थे अब हजार और पांच सौ के नॉट चढ़ा रहे हैं.



मित्रों नमस्कार। नोटबंदी: बैंकों में अब तक जमा हुए ₹2,00,000 करोड़ .अर्थ-व्यवस्था अच्छी होगी। छप गए 500 के 50 लाख नोट, दूर होगी कमी!
यह तर्कसंगत है कि दाल मंहगी होने का वास्तव में लोगों को गम कम है, पर दाल नहीं  गलने का ज्यादा मलाल है। भारत में कृपया आप सभी तैयार हो जाइये, आने वाले समय में सभी को जिनकी कोई भी आय है टैक्स या घोषणा फार्म भरकर जमा करना होगा। यदि ऐसा हुआ तो आज की स्थिति लाभप्रद रहेगी और बैंक और मजबूत होंगे क्योकि ग्राहक बढ्ने से कार्य और गुणवत्ता भी बढ़ेगी।



जानिये पुराने नोटों का क्या करेगा रिजर्व बैंक आफ इंडिया 
मोदी सरकार ने 500 और 1000 के नोटों को बैन कर दिया है जिसके बाद से ही सभी बैंकों और पोस्ट ऑफिस के जरिए वापस लेना शुरू कर दिया है। देश भर में लोग बैंकों, सरकारी संस्थानों और रेलवे स्टेशनों पर बड़े पैमाने में पुराने नोट वापस कर रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि RBI समय-समय पर जो पुराने नोट वापस लेता है उनका क्या किया जाता है और इस बार भी वापस लिए गए इन 500 और 1000 के नोटों का क्या होने वाला है। 
पुराने नोटों को ठिकाने लगाने में जुटा RBI 
आपको बता दें कि नोट बैन होने के अगले दिन से ही मार्केट से पुराने नोट बड़ी संख्या में RBI के पास पहुंचने लगे हैं। उधर RBI ने भी इस पुराने नोटों को ठिकाने लगाने के कम को शुरू कर दिया है। केंद्रीय बैंक के अधिकारियों की माने तो ये काम पहले ही शुरू किया जा चुका है और इसे जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। बता दें कि RBI के मुताबिक मार्च 2016 में देश में 15,707 मिलियन 500 रुपये के नोट प्रचलन में थे जबकि 1000 रुपये के नोटों की संख्या 6,326 मिलियन थी जो जल्द ही वापस बैंक के पास पहुंच जाएगी। 
जानिए क्या किया जाता है नोटों का
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक RBI इन नोटों को रिसाइक्लिंग नहीं करता क्योंकि ये संभव ही नहीं है। ऐसे में सबसे पहले इनकी श्रेडिंग की जाएगी और फिर इन्हें पिघलाकर कोयले की ईंटें तैयार की जाएंगी। जी हां, आप सही सुन रहे हैं इन नोटों से ईटें तैयार की जाएंगी जो सरकारी कॉन्ट्रैक्टर्स में बांट दी जाएंगी। आपको बता दें कि इन ईटों का इस्तेमाल लैंड फिलिंग, सड़कों के गड्ढे भरने और कहीं-कहीं तो सड़कें बनाने के लिए भी किया जाएगा। 
Det kan være lysere økonomiske system i fremtiden i India. 
Etter stenge sedler (500 OG 1000) ble en stor forandring og litt forvirring fordi alle i India har ikke bank konto og har ikke tilgang i banken på grunn av i de fleste langsbygdene har vi ikke bank eller postkontor. Det kan være lysere i fremtiden. 

शनिवार, 12 नवंबर 2016

वेबदुनिया में प्रकाशित समाचार -नार्वे के शरद आलोक नार्वे में पुरस्कृत

वेबदुनिया में प्रकाशित समाचार -नार्वे के शरद आलोक नार्वे में पुरस्कृत
http://hindi.webdunia.com/nri-news/shard-alok-department-of-culture-116111000059_1.html
http://hindi.webdunia.com/nri-news/shard-alok-department-of-culture-116111000059_1.html

बुधवार, 9 नवंबर 2016

बचत की पोल खोली मोदी सरकार ने - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla

गृहणियों के बचत की पोल खोली मोदी सरकार ने 

                 सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

५०० और १००० रूपये के नोटों को ८ नवम्बर २०१६  को प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद बंद किया गया.  बिना किसी पूर्व  सूचना के इससे जनता अपनी जरूरत को पूरा करने  का पूर्व इंतजाम नहीं कर पायी। और परिणाम स्वरूप जनता के गुल्लकों और भारतीय गृहणियों के द्वारा बहुत मुश्किल से मुसीबत के समय के लिए घर परिवार से छिपाकर रखी जाने वाली अर्थ व्यवस्था की पोल खुली।  इससे कहीं खुशिया मिली तो कहीं पति-पत्नी और परिवारजनों में झड़प और कहासुनी हुई. इससे यह जरूर होगा लोग (डरकर या सहम कर) बैंकों में पैसे जमा करना शुरू करेंगे।  यह बात ध्यान देने वाली है कि गरीबों को कितनी बार पास में बैंकों की सुविधा न होने से कि चित फंड और कोऑपरेटिव के नाम पर ठगी के कारण अनेकों बार चित फंड, लालाओं के पास पैसा जमा करने और उधार लेने से दीवालिया बनना पड़ा है. 

वर्तमान सरकार के इस फैसले से हालांकि आम जनता को कोई परेशानी नहीं थी पर उसे सूचना न दिया जाने से  जनता और आम आदमियों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़  रहा है. पहले जब मोरारजी देसाई की सरकार में जब एक हजार, पांच हजार और दस हजार रूपये के नोट  बंद किये गए थे तब पूर्व सूचना दी गयी थी.  

यह तो वक्त बतायेगा की इसका क्या असर आने वाले कम समय में और ज्यादा समय (अल्पकालीन और दीर्घकालीन) में  अर्थव्यवस्था पर क्या असर पडेगा।  हर सरकार की यह भी जिम्मेदारी होती है कि देश की अर्थ व्यवस्था को कैसे बेहतर करने के लिए और उसके लिए कौन से उपाय करे.  

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

Speil स्पाइल-दर्पण का नया अंक 3 - 2016 published from Oslo, Norway

 Speil स्पाइल-दर्पण का नया अंक ३ -२०१६ 
नार्वे से प्रकाशित पत्रिका Speil स्पाइल-दर्पण
https://drive.google.com/file/d/0B-Yr4tfxYfDnOWVQY0xBTFVfOXpHMWJVMFl6MzI4cTJtV0Q4/view?usp=sharing

शनिवार, 5 नवंबर 2016

ओस्लो में धूमधाम से मनाई गयी पटेल जयन्ती सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla

ओस्लो में धूमधाम से मनाई गयी पटेल जयन्ती
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो नार्वे से. 


भारतीय दूतावास ओस्लो में 4 नवम्बर को  भारत के पहले गृहमंत्री बल्लभ भाई पटेल की जयन्ती मनाई गयी.
पटेल जी का जन्म 31 अक्टूबर 1875 नादीदाद, भारत में हुआ था. आपकी मृत्यु 15  दिसंबर 1950 को मुम्बई में हुई थी.
"वह एक लौह पुरुष थे. महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के प्रिय सरदार बल्लभ भाई पटेल जी की जब मृत्यु हुई तब उनके बैंक एकाउंट में 200 रूपये मात्र थे." यह विचार व्यक्त किये नार्वे में भारत के नए राजदूत देबराज प्रधान जी ने. इस अवसर पर पटेल जी के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र दिखाया गया. इस अवसर पर महामहिम राजदूत प्रधान जी को  नार्वे से गत  28 वर्षों से प्रकाशित होने वाली हिंदी -नार्वेजीय भाषा की द्वैमासिक पत्रिका इसके संपादक और लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक ने भेंट की.

ओस्लो में 4 नवम्बर 2016 एक ख़ास दिन. - Suresh Chandra Shukla

ओस्लो में 4 नवम्बर एक ख़ास दिन. 
हेलस्फीर, ओस्लो में शोक सभा और श्री योगेश को अंतिम विदाई  

ओस्लो में ठंडी हवा चल रही थी. रात को गिरी मामूली बर्फ अब भी पेड़ की छाया में खड़ी कारों की छत पर  देखा जा सकता था. हेसफ़ीर, ओस्लो के अंतिम संस्कार वाले चर्च में  सन्नाटा छाया था. चर्च के बड़े कापेल (हाल) में योगेश का पार्थिव शरीर खुले ताबूत में रखा हुआ था उनके मित्र और पंडित जी अपना शोक व्यक्त कर रहे थे और अंतिम विदाई पर महत्वपूर्ण बातें बता रहे थे. सरदार प्रगट सिंह ने बताया कि उनकी मुलाकात श्री योगेश से १५ दिनों पहले हुई थी और सभी कुछ ठीक था.  इन्दर खोसला जी ने बताया कि योगेश जी का सम्बन्ध उनके गाँव से रहा है. 
उन्हें फूल अर्पित कर लोगों ने उनके अंतिम दर्शन किये।  पहले स्वीडन में फिर ओस्लो, नार्वे में बसे योगेश लखनपाल को कल मित्रों और परिवारजनों ने भावभीनी विदाई दी. 
५७ वर्षीय योगेश जी को कल ४ नवम्बर को अंतिम विदाई देने संबंधी देश विदेश से आये थे. 
योगेश लखनपाल अपने पीछे अपनी पत्नी, बेटी और  दो बेटों को छोड़ गए हैं. 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

शरद आलोक की कलम से - Suresh Chandra Shukla, Olso, 04.11.16

शरद आलोक की कलम से -suresh chandra shukla
speil.nett@gmail.com

My self (Suresh Chandra Shukla) and Ila Gandhi grand datter of Mahatma Gandhi in South Afrika

ख़ुदकुशी एक बुझदिली वाला ख्याल है. 
मेरे भारत में रहने वाले मित्र के बेटे ने खुदकुशी का प्रयास किया था मैं उसे देखने निजी अस्पताल में गया था. तब मैंने अपने मित्र से कहा था कि अब आप अपने बेटे का ख्याल ज्यादा रखना और स्वयम हाल-चाल पूछते रहना। पर उसके प्रेम विवाह करने पर मेरा मित्र कुछ नाखुश रहता था और काम सम्बन्ध रखता था जबकि मेरे मित्र ने प्रेमविवाह खुद किया था. 
बाद में पता चला कि मित्र का युवा बेटा बीमारी में भी अपने कष्ट छिपाता रहा और एक दिन युवावस्था में ही चल बसा. मुझे उसकी मृत्यु का बहुत दुःख है. मैंने उससे कहा था कि ख़ुदकुशी एक बुझदिली वाला ख्याल है. ये विचार कितने सार्थक हैं:
प्रयास करते पकडे़ जाने पर तो सजा है, आप क्यों विफल हुए यह आपकी कमजोरी है, इतनी कमजोर मन शक्ति वाले को खुला छोड़ना समाज के लिए खतरनाक हो सकता है, जो मरने के प्रयास में विफल हो गया वह जीवन में कैसे सफल होगा, इसलिए आप को कुछ समय सुधार गृह यानी जेल रखना अनिवार्य है.
या फिर उससे सभी एक सा व्यवहार करें, स्नेह दें पर सख्त रहें अपने निर्णय पर क्योकि ऐसे लोग झूठ बोलकर उधार लेना और आत्महत्या का नाटक करके सहयोग मांगने की आदत पड़ जाती है. ऐसे में दूसरे को जो उसे नहीं जानता गंभीर नाटक या आत्महत्या का बुझदिली प्रयास को नहीं जान पाता। 
इन विचारों को अपराध साहित्य का हिस्सा समझ कर ही पढ़ें और कुछ नहीं। 

बिन मांगे मोती मिले 

मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि आप किसी की भी परेशानी देखकर द्रवित होते हैं जबकि वह व्यक्ति न तो आपसे फ़रियाद करता हैं न ही सहायता प्राप्त करने के बाद आपका ध्यान।  
मैंने पाया है और अनुभव किया है कि चाहे मुसीबत में किसी की सहायता करो या आजीवन थोड़ी-थोड़ी सहायता करो  पर अचानक कोई थोड़ी देर के लिए आता है उसकी ज्यादा सहायता एक बार करके आपको बहुत पीछे छोड़ने का असफल प्रयास करता है. ऐसे लोगों के ठोस मित्र नहीं होते क्योकि वह कभी किसी की मुसीबत में सहायता नहीं करते और जब वे फंसते हैं तो दूसरे भी उनसे दूर भागते हैं.
मेरे कुछ सम्बन्धियों को पुलिस पकड़ कर ले गयी थी मुझे फोन किया गया मैंने बहुत से सम्बन्धियों के अलावा उनसे भी संपर्क किया जो एक बार सहायता करने वालों में हैं पर खुद फंसने की स्थिति में नहीं।  पर मजे की बात यह है कि मैं उनके प्रिय लोगों में नहीं हूँ जिनकी मैंने बहुत मुसीबत में सहायता की थी.

मांगे मिले न भीख 
कुछ मामले में यह सच है की आपको मांगने पर भी सहायता नहीं मिलती बेशक आप उनकी सहायता खुद कर चुके हों. एक तो ऐसे व्यक्ति को आपपर विशवास नहीं होता क्योकि वह कभी विशवास नहीं करता कि जो आजतक सहायता करता था वह सहायता मांगने वाला या भिखारी कैसे हो सकता है और यह भी सोचता है की जैसे उसने उधर नहीं चुकाया तो यह पूर्व दानदाता उधार कैसे चुकायेगा।

आत्महत्या को बढ़ावा बनाम घटिया राजनीति 
आज आत्महत्या पर घिनौनी राजनीति हो रही है और ऐसे बयान दिए जा रहे हैं जो स्वीकार्य नहीं होने चाहिये।
आत्‍महत्‍या को अब तक पाप समझा जाता था लेकिन अब इसे शहीद कहा जा रहा, करोड़ रू0 दिये जा रहे हैं तो है क्‍या आत्‍महत्‍या की प्रवत्ति को बड़ावा नहीं मिलेगा।
ऐसी घटिया राजनीति करने वाले खुद मुख्यमंत्री सलीखे लोग हैं. राम बचाये ऐसे नेताओं के बयानों से.