वे पाप यहाँ करते है, जनता उनको धोती है
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ये बड़े-बड़े व्यवसायी,
शासन करते हैं पूरा।
देसी-विदेशी मुद्रायें,
ले जनता का धन सारा।।
देते राजनैतिज्ञ को रिश्वत,
फिर खुद कर खा जाते हैं..
जनता सब ओर पिसती है,
नोट -बन्दी कर जाते हैं.
जो खुद मनमानी करते,
दूजों को पढ़ा पहाड़ा।
मनमानी यहाँ कमाते,
नहीं देते कर न भाड़ा।।
क्यों घटी विदेशी मुद्रा,
अपने बैंकों खाते में.
जो टैक्स नहीं देते है?
विदेशों में ले जाते हैं.
आभार प्रवासी तेरा,
बैंको में खाते खोले,
इसी लिये विदेशी मुद्रा
के संकट हैं अनबोले..
कितने डानी दानी हैं,
क्यों कर माफ़ करते हैं.
चुनाव में चन्दा देकर,
राजा का घर भरते हैं..
वे पाप यहाँ करते है,
जनता उनको धोती है.
वायदे में फंस जाती,
मत देकर वह रोती है.
जितने टी वी चैनल हैं,
मिल जाते सबमें बाबा।
बिन सिरपैर बात करते,
ये बेचें काशी काबा।।
आओ श्रमदान करें हम,
स्व अपने मार्ग बनायें।
स्वच्छ नीति पर्यावरण,
जल-वायु साफ़ कर जायें।।
हम सड़क बनायें चौड़ी,
फुटपात नहीं हम घेरें।।
अपनी मोटर-कारों को,
पार्किंग में सदा लगायें।
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