A poem in hindi by Suresh Chandra Shukla, Oslo
जो शक्ति के न साथ है,
है निशाने पर है वही.
गीतकार चुपचाप क्यों
चापलूसी आना नहीं।
देश छोड़ विदेश में हैं,
उनका ध्यान तो नहीं
जो देशभक्त आज है
क्यों काटते सजा वही?
सत्य का विरोध कर रही
राजशक्ति अपने गर्व में.
सदा नहीं रहा पाले में.
खुशी भी अपने पर्व में..
कल अर्जुनों को चक्रव्यूह,
बांधकर क्या खड़े हुए,
गले का फंदा नहीं बनो,
आज अपने गले ना हो?
निर्धनों की संपत्ति के.
ये पूंजीपति गुलाम हैं,
इस प्रेमनगरी में सभी,
छल-कपट, श्याम-राम हैं,
जनता के कारण ही अब
जिनके साथ अमीरी हैं,
घमंडी का सर नीचा हो,
वह समय भी जरूरी है..
जो शक्ति के न साथ है,
है निशाने पर है वही.
गीतकार चुपचाप क्यों
चापलूसी आना नहीं।
देश छोड़ विदेश में हैं,
उनका ध्यान तो नहीं
जो देशभक्त आज है
क्यों काटते सजा वही?
सत्य का विरोध कर रही
राजशक्ति अपने गर्व में.
सदा नहीं रहा पाले में.
खुशी भी अपने पर्व में..
कल अर्जुनों को चक्रव्यूह,
बांधकर क्या खड़े हुए,
गले का फंदा नहीं बनो,
आज अपने गले ना हो?
निर्धनों की संपत्ति के.
ये पूंजीपति गुलाम हैं,
इस प्रेमनगरी में सभी,
छल-कपट, श्याम-राम हैं,
जनता के कारण ही अब
जिनके साथ अमीरी हैं,
घमंडी का सर नीचा हो,
वह समय भी जरूरी है..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें