मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

मौन स्वीकृति सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 मौन स्वीकृति

सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 

 प्रभू ऐसा क्यों होता है 
 जब अपना दिल नहीं पिघलता है? 
 जेल में विश्व गुरु रहते हैं। 
क्या अपराधी शासन करते हैं? 

निर्दोष अस्वस्थ, विकलांग समाज सेवी से 
महाबली क्यों डरते हैं। 
 साईं बाबा, स्टेन स्वामी तुम्हें नमन। 
समाज सेवी का क्यों हो रहा दमन, 
 कि देने होंगे उनको प्राण। 
कायरता होती नहीं राम बाण? 

 न्याय व्यवस्था को लकवा मार जाता है। 
बेटा माँ के मरने पर कंधा नहीं दे पाता है। 
जो सच्ची सेवा और शिक्षा देता था, 
क्यों शासन उनसे डर जाता है।

 सत्य अहिंसा, गाँधीवाद को 
वापस अगर न लाएंगे। 
तब जेल में शिक्षक विकलांग कैदी 
 बेइलाज मर जायेंगे। 

 हम दुनिया में कैसे विश्व गुरु हैं, 
अपने विकलांग निर्दोष शिक्षक 
जी एन साईं बाबा को 
 दस साल जेल में रखते हैं। 

 शिक्षक निर्दोष बरी हो जाता है।
 विद्यार्थी सड़कों पर रोता है। 
देश मौन क्यों रहता है। 
फिर जग हम पर हँसता है। 

 विकलांग को प्रताड़ित करने की बात सुन 
 हमारा मन काँप जाता है। 
एक दो व्यक्तियों की गलती को 
 पूरी व्यवस्था को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। 
 निर्दोष विकलांग समाज के लिये लड़ता है। 

 मीडिया और सुधी जनता उसकी 
सहायता क्यों नहीं करती है? 
जैसे वह अपनी परछाईं से डरती है। 
संवेदनशीलता की भी हद होती है। 

 एक-एक जवाब जनता के पास है। 
बस उसे अपनी ताकत का नहीं एहसास है। 
जैसे एक समय हनुमान जी को नहीं मालुम था 
 कि वह उड़ सकते हैं? 

 मौन स्वीकृति से हमें उबरना है। 
संविधान की रक्षा करना है।

 सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 
22.10.24


प्रभू ऐ

रविवार, 15 सितंबर 2024

नार्वे में हिन्दी दिवस मनाया गया - सुरेशचन्द्र शुक्ल

 विदेशों में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो. निर्मला एस. मौर्य (पूर्व कुलपति, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर) ने कहा कि हिन्दी हमारी अस्मिता की पहचान है।  हिन्दी में सभी सभी वे गुण हैं जो राष्ट्र भाषा में होने चाहिए। हमारी नयी शिक्षा नीति आ गयी है। प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने आगे कहा कि जैसे ही नयी शिक्षा नीति आयी थी 2020 में,  कोविड  का समय था मैं जब वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में मैं जैसे ही कुलपति बनी , मैंने तुरंत नयी शिक्षा नीति लागू की, जिसका असर आसानी से देखा जा सकता है। 

 “विदेशों में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है विदेशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है। हिन्दी के पाठक बढ़ रहे हैं। विभिन्न प्रदेशों के भारतीय जब आपस में मिलते हैं तो वे हिन्दी में बात करते हैं। विदेशों में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है।”  यह विचार व्यक्त किए ओस्लो नार्वे में स्पाइल-दर्पण पत्रिका के संपादक एवं अग्रणी प्रवासी साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने अपने व्याख्यान में कहा। 
कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रमिला कौशिक ने वाणी वंदना से किया। 

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं प्रो. निर्मला एस. मौर्य, अध्यक्षता कर रहे थे प्रो. अर्जुन पाण्डेय तथा विशिष्ट अतिथि थे: डॉ. हरी सिंह पाल जी, डॉ. राकेश कुमार, प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’, प्रो. के. पंकज, और टेकू वासवानी जी।
 
डॉ. हरी सिंह पाल जी ने नागरी लिपि का महत्त्व बताया और आग्रह किया कि हम सभी को नागरी लिपि अपनानी चाहिए।
डॉ. राकेश कुमार जयपुर ने क्रेडेंट यू ट्यूब चैनल में साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों के साक्षात्कार लेते हैं डियर साहित्यकार के कार्यक्रम में और सिनेमा में हिन्दी के महत्वपूर्ण योगदान को अद्वितीय बताया तथा कहा कि  हिन्दी दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। 
उत्तराखंड विश्व विद्यालय के विभागाध्यक्ष हिंदी और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ हरिद्वार ने हिन्दी के सांस्कृतिक महत्व की व्याख्या करते हुए अपनी रचना सुनाई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पर्यावरणविद एवं अवधी रचनाकार डॉ. अर्जुन पाण्डेय जी ने कहा प्रवासी साहित्यकारों ने हिन्दी की बहुत सेवा की है।  उन्होंने अपनी नयी पुस्तक 'माटी का चन्दन' पुस्तक का अवलोकन कराया। डॉ. अर्जुन पाण्डेय जी ने सभी रचनाकारों को धन्यवाद देते हुए उनकी रचनाओं की व्याख्या की।

अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन 
 कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख थे: 
विदेश से: प्रो. हरनेक सिंह गिल लन्दन एवं गुरु शर्मा स्कॉटलैंड ब्रिटेन, नीरजा शुक्ला कनाडा, डॉ. राम बाबू गौतम अमेरिका, टेकू वासवानी मस्कट और सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ओस्लो नार्वे ने काव्य पाठ किया। 

भारत से:  डॉ. हरी सिंह पाल, बबिता यादव एवं प्रमिला कौशिक दिल्ली, डॉ. राकेश कुमार एवं नवल किशोर शर्मा जयपुर, डॉ. सुषमा सौम्या एवं डॉ. मंजू शुक्ला लखनऊ, डॉ. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ हरिद्वार, डॉ. दिव्या मिश्रा रीवा, डॉ. पूनम मिश्र सुलतानपुर, बलराम कुमार मणि त्रिपाठी कबीर नगर, जे. पी. चंदेल मुरादाबाद, डॉ. मोहन लाल जट चंडीगढ़, सुवर्णा जाधव पुणे, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद और डॉ. अर्जुन पाण्डेय अमेठी ने काव्य पाठ किया। 

डॉ. मंजू शुक्ला जी ने अपनी नयी पुस्तक का अवलोकन कराते  हुए सूचना दी कि उनकी पुस्तक का लोकार्पण 1 अक्टूबर को लखनऊ में होगा।

कार्यक्रम का आयोजन भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने किया था। 




सोमवार, 9 सितंबर 2024

सिनेमा के बाल गीतों पर डिजिटल गोष्ठी - डा. संजीव कुमार (वामा)

 सिनेमा के बाल गीतों का बालमन पर प्रभाव पर डिजिटल गोष्ठी

08.09.24 कल शाम इस विषय पर एक आनलाइन संगोष्ठी जूम मीट पर आयोजित हुई और इसमें भाग लेने का अवसर मुझे भी मिला।
भोपाल से लता अग्रवाल जी ने लोरी गीतों पर बहुत ही सुंदर बातें कही और वो तो पुराणों तक से लोरी ढूँढ लायी। उन्हें सुनकर मैं चमत्कृत हो गई। कितना गहन शोध किया था उन्होंने।
गाजियाबाद से रजनीकान्त शुक्ल ने साहिर लुधियानवी के बाल गीतों पर बात की। साहिर मेरे सबसे पसंदीदा शायर हैं और उन पर तो कितनी ही देर सुना जा सकता है। आह! समय का कम होना बहुत खला।
कार्यक्रम की संचालक विमला भंडारी जी ने भी प्रदीप और आनंद बख्शी साहब के गीतों पर बात की और कई बार वो भाव विह्वल भी हुई। ख़ासकर "ए मेरे वतन के लोगों" गीत का ज़िक्र करते हुए वो बहुत भावुक थीं।
अपनी बात क्या कहूँ! मैं वहाँ सबसे छोटी थी तो सबने बहुत स्नेह दिया। मैंने एनीमेशन फ़िल्मों पर उनके गीतों की बात की।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. संजीव कुमार ने बहुत से गीतों का ज़िक्र किया और कुछ गीत गाये भी। साथ ही फिल्मी बाल गीतों के संकलन को प्रकाशित करने का निर्णय लिया उन्होंने। उनका मत था कि गीतों और साहित्य के बीच लक्ष्मण रेखा नहीं खींची होनी चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में कई विद्वानों ने अपने विचार साझा किए। एक विचार जो साझा हुआ वो ये कि साहित्य को फ़िल्मी गीतों से दूरी नहीं बनानी चाहिए। ये भी प्रश्न उठा कि क्या गीत साहित्यिक नहीं होते हैं? सभी सुधीजन इतने उत्साहित थे कि ऐसे कई बिंदु कार्यक्रम में शामिल हो गये।

नॉर्वे से शरद आलोक जी का उत्साह संक्रामक है
नॉर्वे से सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' जी ने पूरे उत्साह से अपनी अगली भारत यात्रा में एक बैठक बना कर कुछ बाल गीतों पर टेली फ़िल्म बनाने की योजना भी बना डाली। उनका उत्साह संक्रामक है।
कुल मिलाकर, गोष्ठी बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक रही। मुझे इसका हिस्सा बनाने के लिए बहुत आभार विमला जी। (वामा)

- हेमा बिष्ट

सुरेश चन्द्र शुक्ल की कथा ‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ पर परिचर्चा

 नार्वे से डिजिटल मंच पर सुरेश चन्द्र शुक्ल की कथा ‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ पर परिचर्चा एवं अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तेज स्वरूप त्रिवेदी संगीत नाटक अकादमी दिल्ली, विशिष्ट अतिथि डॉ. राकेश कुमार जयपुर एवं प्रो. के. पंकज पूर्व विभागाध्यक्ष पूर्णिया विश्वविद्यालय थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. नमिता आर्य पुणे ने किया।
‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ कहानी पर परिचर्चा में
डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी, शशि पाराशर, डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड और डॉ. राकेश कुमार आदि ने कहा कि
‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ एक सशक्त व्यंग्य कथा है जो पुस्तक विमोचन और उत्सवों में दिखावे पर चुटीले प्रहार करती है। कथा मनोरंजक है जो पाठकों और श्रोताओं को गुदगुदाती है।
कार्यक्रम में लघुकथाओं और कविताओं का पाठ देश-विदेश के रचनाकारों ने किया जिसमें
विदेश से: रचना पाठ करने वाले डॉ. ऋतु ननन पांडेय नीदरलैंड, डॉ. शिप्रा शिल्पी जर्मनी, नीरजा शुक्ला कनाडा एवं सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ नार्वे ने काव्य पाठ किया।
भारत से: शशि पाराशर एवं डॉ. रजनीकान्त शुक्ल दिल्ली, हरे राम बाजपेयी इंदौर, डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड, प्रो. के पंकज पूर्णिया, प्रो. नमिता आर्य पुणे, डॉ. राकेश कुमार एवं नवल किशोर जयपुर, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद, डॉ. करुणा पांडेय लखनऊ ने काव्य पाठ किया।
अंत में हरेराम बाजपेयी ने सभी को गणेश चतुर्थी की बधाई दी और ऐसे आयोजन को महत्वपूर्ण बताया।
कार्यक्रम का आयोजन किया था भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने।
- संगीता शुक्ला, ओस्लो, नार्वे से

सोमवार, 2 सितंबर 2024

कुहासा छट रहा है - सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘ शरद आलोक’

 कुहासा छट रहा है 

 सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘ शरद आलोक’

कुहासा छट रहा है 
रोशनी बढ़ रही है
 
जंगल की आग में 
सब कुछ जल गया है।
घोंसले जल गए हैं,
चूजे जल गए हैं।
 
मणिपुर में तबाही 
सैकड़ों चर्च जला दिए हैं।
खंडहरों में राख में 
कुछ चिंगारियां बच गयी हैं।

देश है जिसके हवाले,
वह बिक गया है।
लोकतंत्र से उसका 
भरोसा उठ गया है।

फासीवादी ताकतें 
सत्ता में आ गयी हैं।
जहाँ -तहाँ देखो  
मॉब लिंचिंग हो रही है।

जिन्हें जेल में होना चाहिए 
वह सत्ता चला रहे हैं।
घर के दीपकों से 
अपना घर जला रहे हैं।

सुनसान जलते जंगल में 
कुछ इंसान बच गए हैं। 
ईमान जल रहा है, 
उसको बुझा रहे हैं।

गाजा में नरसंहार?
अस्पताल जल रहे है।
बच्चों के स्कूल जल रहे,
शरणार्थी शिविर जल रहे हैं। 

इजराइल में सेना क्यों 
अपना घर जला रही है?
पलिस्तीनी को कहते भाई,
उन्हीं को मिटा रही हैं।

युद्ध-जुल्म से जिनकी 
दुकानें चल रही हैं।
खतरनाक शस्त्रों की,
मिसाइलें चल रही हैं।

युद्ध में दोनों ओर से,
गोलियाँ चल रही हैं।
गाँधी की सोच वालों की 
शांति वार्तायें चल रही हैं।

मानवता बड़ा मजहब,
मानवता जहाँ है घायल।
मानवता बड़ा मजहब, 
शांति की बड़ी कायल।

मणिपुर से कश्मीर तक 
शांति के लिए दीपक जला रहे हैं।
कुहासा कभी छटेगा? 
शांति बहाल होगी।
02.09.24

सोमवार, 26 अगस्त 2024

नार्वे Norway में जन्माष्टमी पर अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन

 नार्वे में जन्माष्टमी पर अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न

कार्यक्रम का आयोजन भारतीय-नार्वे जीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने किया। 
मुख्य अतिथि प्रो. निर्मला एस. मौर्य, विशिष्ट अतिथि थे प्रो. हरनेक सिंह गिल और प्रो. के पंकज और अध्यक्षता की सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ तथा सभी ने जन्माष्टमी  पर शुभकामनायें दीं। 

अपने वक्तव्य में कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थी पूर्व कुलपति निर्मला एस. मौर्य वाराणसी ने शुभकामनायें दीं और कहा भक्ति और आसक्ति से तो  यशोदा और राधा ने उन्हें बांधा।  सूरदास, नन्ददास, मीरा बाई  और अब्दुल रहीम खानखाना 'रसखान' जैसे अनेक रचनाकारों ने कृष्ण लीला और भक्ति से अपना साहित्य अजर अमर बना लिया। 

अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने कहा कि कृष्ण लोकनायक हैं। राधे-राधे जपो तो कृष्ण चले आयेंगे।  उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध समालोचक  प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा के अनुसार कृष्ण ने सहस्रों वर्षों पूर्व लोकतंत्र की स्थापना की। कृष्ण की प्रत्येक लीला में मर्म और आशय है। अंधकार में प्रकाश लाते हैं कृष्ण। 

डॉ. आकांक्षा मिश्रा रायपुर ने अपनी स्वरचित सद्य प्रकाशित पुस्तक काफी की महक का परिचय दिया और रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त किए।

अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन: 
कवि सम्मेलन की शुरुआत निराला जी की स्वरस्वती वंदना से सस्वर प्रस्तुत किया प्रमिला कौशिक ने। 
विदेश से
सर्वश्री प्रो. हरनेक सिंह गिल लंदन एवं डॉ. जय वर्मा नाटिंघम ब्रिटेन, डॉ. राम बाबू गौतम न्यू जर्सी अमेरिका, नीरजा शुक्ला कनाडा और गुरु शर्मा एवं सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ नार्वे थे।
भारत से  
सर्वप्रथम स्व. विप्लव जी की कविता का और अपनी रचनाओं का पाठ किया डॉ. सुषमा सौम्या लखनऊ, प्रो. नमिता आर्य पुणे, डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी कबीर नगर, शशि पाराशर एवं प्रमिला कौशिक दिल्ली, पर्यावरणविद्  डॉ. अर्जुन पाण्डेय अमेठी, जलयोद्धा आर्य शेखर प्रयागराज, डॉ. आकांक्षा मिश्रा रायपुर, प्रो. के. पंकज पूर्णिया ने। 

जन्माष्टमी देश - विदेश में मनायी जाती है और यह सद्भाव का त्योहार है। दुनिया में जहाँ -जहाँ भारतीय हैं वहाँ -वहाँ मनाया जाता है।  घरों और मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती है। 
कीर्तन, भजन और कवि सम्मेलन आदि आयोजित किए जाते हैं।  जन्माष्टमी देश - विदेश में मनायी जाती है और यह सद्भाव का त्योहार है। 
गीता का संदेश और कृष्ण लीला की कथायें पूरी दुनिया में मशहूर है।

   - माया भारती, ओस्लो नार्वे से 

सोमवार, 12 अगस्त 2024

आज नहीं जागे तो, तुम्हें कल रोना पड़ेगा - सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

 आज नहीं जागे तो, तुम्हें  कल रोना पड़ेगा

सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

असमंजस में दुनिया प्रतीक्षारत है,

कोई रोक सका न समय का रथ है। 
द्वन्दों में दुनिया क्यों उलझी हुई है, 
वह समय से जो हारा शरणागत है।

अंधियारे से उजाले तक जा रहे हैं लोग,
प्रधान को बचाने में देश डुबा रहे हैं लोग।
कारपोरेटर फँसे, क्यों बी जे पी डरी हुई, 
क्या बी जे पी का पैसा लगा, पूछ रहे लोग?

देश के बाजार में विदेशों का पैसा लगा,
प्रधान शामिल है,  स्तीफा माँग रहे हैं लोग।
प्रधान, कारपोरेटर की जाँच नहीं होती?
देश बचाना है अगर, सड़कों पर उतरो लोग।

विपक्ष देश की आवाज बन आइना दिखा रहा,
विपक्षी नेता फँसाने लगे, सरकार  के लोग।
मौन आज घर पर बैठ, तमाशा देख रहे हैं,
जिस डाल पर बैठे उसे क्यों काट रहे लोग?

आज नहीं जागे तो, तुम्हें  कल रोना पड़ेगा,
चिड़िया चुग गई खेत तो सब खोना पड़ेगा।
जब तक डरोगे, तुम्हें तानाशाह डरायेंगे,
रोका न लुटेरों को, देश खोखला करेगा।
 12.08.24


नार्वे में तुलसी जयंती मनायी गयी: सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

 नार्वे में तुलसी जयंती मनायी गयी: 

ओस्लो, 12 अगस्त भारतीय- नार्वेजीय सांस्कृतिक फोरम द्वारा तुलसी जयंती पर आभाषी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कवि गोष्ठी आयोजित की गयी,जो सुरेशचन्द्र शुक्ल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।
सुरेशचन्द्र शुक्ल द्वारा हनुमान चालीसा, गुरु वंदना, राम जन्म तथा जपजी का अनुवाद नार्वेजीय भाषा में किया है और इब्सेन के नाटकों एवं नार्विजन लोककथाओं,कविताओं का अनुवाद हिन्दी में किया है,जिस पर उन्होंने विधिवत प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि तेज स्वरूप त्रिवेदी संगीत-नाटक अकादमी दिल्ली एवं प्रो. निर्मला एस. मौर्य (पूर्व कुलपति, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, उ. प्र.) थे। मुख्य वक्ताओं में प्रो. पवन अग्रवाल लखनऊ विश्वविद्यालय, प्रो. हरिशंकर मिश्र, लखनऊ, प्रो.शैलेंद्र कुमार शर्मा कुलनुशासक एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, श्री हरेराम बाजपेयी इन्दौर, आदि थे। 
प्रो.पवन अग्रवाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि जनमानस के लोकनायक, आदर्शवादी व्यवस्था एवं मर्यादा स्थापित करने वाले थे राम। 
अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन
सभी कवियों ने बहुत अच्छी रचनायें पढ़ीं और जिसे सभी ने पसंद किया।
अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भारत से डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद, डॉ. सुषमा सौम्या, डॉ. कुँवर वीर सिंह मार्तण्ड संपादक साहित्य त्रिवेणी मासिक, डॉ. करुणा पाण्डेय, अखिलेश कुमार निगम डी जी पी लखनऊ, डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी कबीर नगर, डॉ. अर्जुन पाण्डेय अमेठी, डॉ. दिग्विजय शर्मा आगरा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा, डॉ. अमिता आर्य पुणे, शशि पाराशर, अशोक एवं प्रमिला कौशिक तथा विनीता रानी बिन्नी दिल्ली ने काव्यपाठ किया। विदेश से प्रो हरनेक सिंह गिल लंदन, ब्रिटेन, डॉ. राम बाबू गौतम न्यू जर्सी अमेरिका, डॉ. ऋतु ननन पाण्डेय नीदरलैंड, नीरजा शुक्ला कनाडा एवं नार्वे से प्रकाशित हिन्दी पत्रिका स्पाइल-दर्पण के संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ओस्लो, नार्वे ने काव्य पाठ किया और गोस्वामी तुलसी दास जी के साहित्य से जुड़े अनुभव साझा किए। संगोष्ठी के अंत में भगवान राम को वैश्विक बताते हुए अवधी साहित्यकार एवं पर्यावरणविद् डॉ.अर्जुन पाण्डेय द्वारा आभाषी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित सभी के प्रति आभार व्यक्त किया गया।

आयोजक: 
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
संपादक, स्पाइल-दर्पण 

सोमवार, 24 जून 2024

संसद से गाँधी की मूर्ति हटी..ओ भारतवासी सांसद सावधान - सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

 संसद से गाँधी की मूर्ति हटी,

कम हुआ संसद का स्वाभिमान

ओ  भारतवासी  सांसद सावधान।
मिलकर बचाओ अपना संविधान।
संसद से गाँधी की मूर्ति हटी,
कम हुआ संसद का स्वाभिमान।

भगवा को अयोध्या नकार चुकी,
सफेद, लाल टोपी वालों के राम।
सड़कों, खलियानों, कारखानों में,
बिन थके श्रम करें श्रमिक किसान।

जो सरकार मॉबलिंचिंग में शामिल,
जड़ से हटायेंगे, जन-जन के राम।
मन्दिर से निकले सड़कों पर राम।
सड़क-संसद तक बचाते संविधान।

अतिपूँजीवादी! अब होश में आओ,
देश की सम्पत्ति अब वापस सौंपो।
इलेक्टोरोल बाण्ड ना काम आयेंगे,
सत्ता-दलाल न तुम्हें बचाने आयेंगे। 

करोड़ों बच्चों से स्कूल छीन लिया।
जनधन को मिलकर सब लूट चले,
धर्म के नाम पर सरकार नहीं चले,
लूट में तुम अंग्रेजों के बाप निकले।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

24.06.24

गुरुवार, 13 जून 2024

सुरेशचंद्र शुक्ल' शरद आलोक' कृत 'जन मन के गांधी' की समीक्षा: डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी

 समीक्षा: डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी 

समय की आवाज है सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक' कृत काव्यसंग्रह 'जन मन के गांधी'

साहित्य समाज का दर्पण है,कवि जन मन की भावनाओं का चितेरा है। गांधी के इस देश मे जहां आजादी की लड़ाई मे महात्मा गांधी बैरिस्टर होकर मे जनता के बीच आम जन बन कर रहे,एक धोती मे जीवन काटा जनसमस्याओं से अवगत होते हुए.. सत्याग्रह किया। सत्ता के विरुद्ध आम जनता की भावनाओं के अनुरुप आवाज उठाते रहे। उसी देश मे वर्तमान समय मे सत्ता के सिंहासन पर बैठे हुए लोग.. दिन भर कपड़े बदलते हैं.. महंगे से महंगे वस्त्र पहनते है,लक्जरी गाड़ियो पर चलते है और किसानो, महिलाओं,बुद्धिजीवियौ पर कहर ढाते है। कवि ऐसे राजनीतिज्ञों को धिक्कारता हुआ.. आम जन की आवाज को उठाता है। गांधी की पीड़ा को दर्शाता है.. *जन मन के गांधी* नामक पुस्तक मे कवि शरद आलोक ने आम जन की भावनाओं को नई कविताओ मे ढाला है‌। पुस्तक मे कुल 77कविताये हैं,जो राजनैतिक व्यंग्य के रूप मे पुस्तक मे प्रतिष्ठित हैं।
नार्वे मे रहकर भी भारतीय मूल के इस कवि की सम्यक दृष्टि भारत के लोगो और सत्तासीनों पर टिकी हुई है। जनता की आवाज..ही *जन मन के गांधी* मे मुखर हुआ है‌। कवि ने शोषण के शिकार किसानों,श्रमिको वंचितो की त्रासदी को व्यक्त किया है। लेखक का मानना है कि लोकतंत्र मे संवेदनशीलता बहुत जरुरी है। जब तक हम आम लोगो की पीड़ा का अनुभव नहीं करेंगे,उसका समाधान नहीं ढूंढ़ सकेंगे। भूमिका मे स्वयं लिखते हैं..बच्चों की शिक्षाभोजन,छत,इलाज और सामाजिक सुरक्षा लोक तंत्र मे देश की जिम्मेदारी होती है। उनके अभिभावकों के प्रति भी एक जिम्मेदारी बनती है,जिसे नैतिकता और ईमानदारी से निभाया जाना चाहिए। लेखक का उद्देश्य पाठको को जागरुक करना है,सच से साक्षात्कार कराना है। गांधी का सपना ..सर्वधर्म समभाव,समानता,न्याय और समान भागीदारी आवश्यक है। संविधाश हमारा निर्देशक है। प्रारंभ मे ओस्लो के जन जीवन की चर्चा है जहां 'दिन को ओले मध्यरात्रि मे सूरज ..महज कुछ समय के लिए डूबता है फिर उदय होजाता है।

एक बात है,कवि की लेखनी हर मुद्दो पर अनवरत चली है,महज एक साल कै भीतर मात्र नौ माह मे लिखी ये कवितायें क्रांति का विगुल फूंकती दिखाई देती हैं। कवि कहता है.." देश मे 80करोड़ लोग
योग नहीं करते।
योग के बारे मे नहीं सोचते।
सुबह से रात तक
मजदूरी और उसकी तलाश करते हैं।"
लेखक को पीड़ा होती है... जब वह महिला खिलाडियो की यौन उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाने पर उन पर ही कहर ढाई जाती है। वह कहता है-
"भारत मे जाति और धार्मिक हिंसा की आवाज
यौन उत्पीड़न महिला पहलवानो की आवाज
दलित मुस्लिम अल्पसंख्यक और पत्र कारो पर
सरकारी जुल्म भारत मे चढ़ कर बोल रहा।"

कवि धार्मिक उन्माद बढ़ाने और शासन के द्वारा कानून हाथ मे लिए जाने को निंदनीय बताया है-
"जब से धार्मिक उन्माद बढ़ा है,
शासन ने कानून हाथ मे लिया है।
न्यायपालिका की अवहेलना पर
सरकार को जब सजा नहीं होती,
सत्ता बेलगाम होजाती है।
और तब जनहित कार्यो से नहीं,
बल्कि पुलिस,ईडी,सीबीआई के दुरुपयोग
उत्पीड़न सै जनता को डराती है"
- विभाजन कारी बुलडोजर

कवि को प्रधान मंत्री द्वारा विपक्षी सांसदो की खिल्लिया उड़ाना बुरा लगता है,उनकी आवाज की अनदेखी नही की जानी चाहिए-
"देश की नांव में
छेद पर छेद होरहे।
संसद मे प्रधानमंत्री
विपक्षियों का अपमान कर रहे।
सांसद ताली बजाकर
खिल्ली उड़ा रहै।"
- नेता डुबा रहे

लोकतंत्र के चारो स्तंभ स्वतंत्र और निष्पक्ष हों तो लोकतंत्र सुरक्षित रह पाता है,ऐसा कवि का मानना है-
"न्याय पालिका,चुनाव आयोग
और मीडिया झुका हुख है।
इसीलिए लोकतंत्र का मानो
गला घुटा हुआ है।"- अर्द्धसत्य
लेखक का मानना है कि सत्याग्रह ही देश को बचा सकता है-
"केवल सत्याग्रह ही देश को बचायेगा।
हर क्षेत्र मे संगठित हो लड़ेंगे।"
-हवा के खिलाफ गांधी
मणिपुर मे नारी के नग्न कर घुमाये जाने और अहिंसक प्रदर्शन कारियो की गिरफ्तारी पर कवि तड़प उठता है-
" मणिपुर जल रहा है लोकतंत्र बचाओ।
मणिपुर मे मानवाधिकार शांति लाओ।
कानून का राज्य चूर चूर हुआ है।
सरकार का विश्वास दूर हुआ है।"
-मणिपुर जल रहा ,लोकतंत्र बचाओ
बरैली और लखनऊ की स्मृतियां कवि के हृदय मे जगह बना लेती है- 'बरेली मे भीगी सारी गली' 'लखनऊ मे सुबह' ऐसी ही रचनाएं हैं।
"जिससे स्वच्छ पानी
स्नेह भी मिला भरपूर है‌।
हमारे प्यारे लखनऊ की
मेहमान नवाजी मशहूर है।"
- लखनऊ मे सुबह
कोरोना काल की स्मृतियां कवि को कुरेदती हैं,जिन झुग्गी झोपड़ियो का अतिक्रमण सरकार ने हटाया,वही अंतिम क्रिया कराने मे काम आए-
"जिसको किया बेघर
वही काम आई‌
अतिक्रमण भवन के मालिक को
रिक्शे पर लाद कर श्मशान पर
उसकी चिता को आग लगाकर
दी अंतिम विदाई।"
-'कोरोना काल मे अतिक्रमण'
कवि को किसान आंदोलन,महिला पहलवानो के आरोप की अनसूनी करना,मणिपुर के शर्मनाक कांड पर चुपी साध लेने वाले प्रधान मंत्री अनफिट लगते हैं,वे तानाशाही की तरफ बढ़ते नजर आते हैं। यथा-
"यह पहले अनफिट पीएम है।
क्या आगे भी अनफिट आएंगे?
जिनका देश विदेश मे नाम घटा
लोकतंत्र मे तानाशाह बन जाएंगे।"
- 'अनफिट प्रधानमंत्री'
कवि जनमन के गांधी का एक बार फिर आह्वान करता है-
"गांधी सुबाष फिर आओ तुम
सड़को पर देश बचाओ तुम।
सत्य अहिंसा के बल पर
लोकतंत्र बहाल कराओ तुम।"
- 'जनमन के गांधी हो,शांतिदूत बनजाओ तुम'
- इलेक्टोरल बांड के नाम पर धन उगाही.. भ्रष्टाचार की कोटि मे है। कवि सीधे चोट करता है-
"- चंदे के बदले धंधे की पोल खुल गई।
गारंटी वाले चेहरे पर हवाई उड़ रही।
भ्रष्टाचार मे प्रधानमंत्री बेनकाब होगए,
भ्रष्टाचार मे उन्हें जेल कहीं जाना न पड़े?"
-'भ्रष्टाचार मे कही जेल न जाना पड़े'
लोकतंत्र की रक्षा के लिए कवि चिंतित होकर देश वासियो से आह्वान करता है-
"देश के लोगो ! देश बिकने न दो,
लोकतंत्र बचाओ इसे मिटने न दो।
ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार बन गई!
देश को गुलाम फिर से होने न दो।"
- 'देश के लोगो देश बिकने न दो
- कवि शरद आलोक की दृष्टि रचनात्मक दिशा मे भी है',पहला प्यार वतन से करो' शीर्षक कविता मे उन्होंने इस बात का संकेत किया है।
-
इस प्रकार कवि शरद आलोक ने "कल पर मत छोड़ो" कविता के आह्वान के साथ लोकतंत्र की रक्षा के लिए,समस्त देश वासियो से जुट जाने की अपील की है। इस तरह जनमन के गांधी काव्यसंग्रह मे कवि की व्यापक दृष्टि नजर आई है। प्रवासी भारतीयो को भी जगाने के साथ इन्होंने देशवासियो से सतत जनजागरण का संदेश दिया है

रविवार, 9 जून 2024

तीसरी बार अनफिट प्रधान - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 तीसरी बार अनफिट प्रधान

 - सुरेश चन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक'

लोकतंत्र के मन्दिर की,
जिसने कम की आन बान।
लोकतंत्र की यही शान,
तीसरी बार अनफिट प्रधान।

ईमानदारी से कोसों है दूर,
गरीब-असहाय जनता मजबूर।
भ्रष्ट आचरण गन्दी जबान,
है बेईमान अनफिट प्रधान।

संविधान की शपथ लेकर,
लोकतंत्र का करें अपमान।
अन्याय से जनता परेशान
तीसरी बार अनफिट प्रधान।

देश का भविष्य क्या होगा,
लगाना मुश्किल है अनुमान।
मुजरा कर सरकार चलाना
होगा कितना यह आसान। 

09.06.24

सोमवार, 3 जून 2024

4 जून 2024 को एक और विभाजन - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 भारतीय चुनाव पर मेरी आखिरी कविता:

4 जून 2024 को एक और विभाजन
- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
1947 को देश का हुआ था विभाजन
भौगोलिक और सांप्रदायिक विभाजन।
भावनात्मक आधार पर जो बचा खुचा था
वह बटवारा क्या 4 जून 24 को हो रहा है
उसके नायक हैं
भैंस, मंगलसूत्र और मुजरा कहने वाले।
ये नया बटवारा है:
ये आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक।
यह बटवारा है देश में रहते हुए
नागरिकों का बटवारा।
यह बहुत ख़तरनाक है।
अमेरिका में ट्रम्प को सजा सुनाई जा रही है।
यह सजा 20 साल तक हो सकती है।
भारत में क्या होगा,
यह सोंचकर काँप जाता हूँ।
ऐसा लगता है मानो
इस देश को किसी बड़ी अनहोनी के लिए
तैयार किया जा रहा है।
लोकतंत्र को बचाने का सवाल और चिंता
जनता में मुखर है
4 जून के फ़ैसले में कितनी चिन्तायें हैं:
धाँधली, अतिरिक्त मतदान, ई वी एम
और शक के घेरे में है
अविश्वसनीय चुनाव आयोग?
जनता का फैसला आया
जनता जीत गई तो
क्या शक्ति (पावर) का बदलाव
आसानी से होगा।
यही सोच कर जनता 3 जून को
सो गई और रात में नींद के बीच में
जागकर करवट बदल रही है।
क्या 4 जून को सरकार बदल रही है?
अंधभक्तों के हाथों में निकली
उन्माद की तलवारें क्या म्यान में चली जायेंगी?
लोकतंत्र बच जायेगा।
चुनाव में मतदान के कर्तव्य के बाद
उसकी रक्षा का कर्तव्य सर चढ़कर बोलेगा।
सत्ता बदल जाएगी,
जनता की सरकार आ जाएगी।
03.06.24

मंगलवार, 5 मार्च 2024

जो परिवार के नाम पर कलंक है, वह परिभाषा बता रहा है - suresh chandra shukla


नार्वे से प्रवासी कविता 

जो परिवार के नाम नाम पर कलंक है 

वह परिभाषा बता रहा है.

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

जो परिवार के नाम कलंक है,   

वह परिभाषा बता रहा है,

सत्ता की ताकत से 

देश को गुमराह कर रहा  है।


जो देश को लुटाता रहा ,

कहता है कि वह बेघर है.

अपने मित्रों को देश के पोर्ट, खानें 

सौंपता रहा कहता है कि मैं फ़क़ीर हूँ 

दस लाख का सूट बदलता रहा 

कह रहा है कि मैं गरीब हूँ।

 

तुम केवल प्रधानमंत्री हो,

भ्रस्टाचार के आरोप तुम पर हैं,

आंदोलन में किसानों की मौत के 

एक बड़े जिम्मेदार हो।

 

राष्ट्र की सम्पत्ति और शक्ति का 

करते रहे दुरूपयोग। 

पूर्वजों को गरियाते रहे 

उनसे बराबरी करने के लिए, 

पर तुम कीचड़ में पत्थर फेकते रहे,

छीटों के लिए दूसरों को जिम्मेदार बता रहे हो?


एलेक्ट्रोरल बॉन्ड में पायी रकम छिपा रहे हो 

जो कुछ घंटों में आन लाइन हो जाता?

अपने दोस्त के बेटे की शादी में 

कानूनों को ताक में रखकर रातोरात 

जामनगर को अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाया।


सच बताना कि तुम चुनाव के लिए योग्य हो?

शक्ति, अंधभक्ति और दौलत के जोर पर 

मर्दानगी दिखा रहे हो उस जनता को , 

जनता से मर्दानगी दिखाना 

जैसे  सूरज को दिया दिखाना है।


अमीरों के एजेन्ट  दिखते हो तुम।

शीशा साफ़ करके दोबारा  अपनी शक्ल देखो 

यदि अपना चेहरा दागदार लगे तो, 

शीशा तोड़ने या विपक्ष को गरियाने से 

तुम्हारा चेहरा साफ़ नहीं होगा।


तुम राष्ट्र के नहीं हुए,

परिवार के नहीं हुए,

अपने धर्म के नहीं हुए,

अपनी पत्नी और माँ के नहीं हुए ,

पत्नी छोड़ दिया, 

माँ की मृत्यु पर सर और दाढ़ी नहीं मुड़ाया?


शीशे में अपना मुँह देखकर 

विपक्ष और शीशे को दोष देते रहे।

अपने ही कर्मों से हुए नापाक,

देश के बच्चे स्कूल को तरस रहे,

उन पैसों से अपनी सेल्फी प्वाइंट, 

झूठे विज्ञापनों में 

अपनी दागदार तस्वीर छपवा रहे हो।


तुम्ही बताओ:

मोहम्मद खालिद और आजम खान 

तुमसे बेहतर हैं? 

एक निर्दोष है लोकतंत्र के लिए जेल में? 

दूसरा तुम्हारा राजनैतिक प्रतिद्वंदी,

तुम्हारी घृणा से जेल में है क्या?