गुरुवार, 17 जुलाई 2025

ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Poem - Suresh Chandra Shukla

 ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता

सुरेश चन्द्र शुक्ल  'शरद आलोक'


ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता,
राष्ट्रद्रोही सत्ता पर बैठे,
जनता पर बमबारी करके,
लोकतंत्र का क़त्ल कर रहे हैं।

अपने-अपने देश लूटकर,
व्यापारियों को मालामाल कर रहे हैं।
कॉरपोरेट के क़ब्ज़े में मीडिया,
लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं।

क्या सत्ता में बैठे लोग राष्ट्रद्रोही हो गए हैं?
क्या वे विदेशी ताक़तों के ग़ुलाम बन गए हैं?
कौन इन्हें बेनकाब करेगा?
अब तो देश के दुश्मन आम हो गए हैं।

हम पर युद्ध थोपने की तैयारी है,
सत्ताधारी शोर मचा रहे हैं।
लोकतंत्र को धता बताकर,
प्रखर आवाज़ों को दबा रहे हैं।

भारत में क्यों कायर पैदा होते हैं,
जो सत्ता में पहुँचते ही चुप हो जाते हैं?
जब नेतृत्व ही अक्षम है,
तो विदेश और आंतरिक नीति विफल ही होगी।

दूर देशों में बैठे प्रवासी,
जैसे पिंजरे में बंद परिंदे बोलते हैं।
न खुलकर बोलते हैं,
सिर्फ लोकतंत्र के टूटने को देखते हैं।

हर रोज़ मरकर कब तक
हम अन्यायों से लड़ पाएंगे?
बीरबल की खिचड़ी पकाते रहेंगे,
या प्रवासी बनकर काँव-काँव करते जाएंगे?

अगर सत्य जानकर भी न जागे,
तो सत्ता हमें ग़ाज़ा जैसा बना देगी।
लोकतंत्र में चुनकर सत्ता में आए,
पर क्या वे मुसोलिनी-हिटलर बन जाएंगे?

सोमवार, 14 जुलाई 2025

कविता के राजकुमार डॉ. अजय प्रसून - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 कविता के राजकुमार डॉ. अजय प्रसून 

सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, Norway 


अजय प्रसून जी की एक गजल है जिसे मैं प्रायः गुनगुनाता था.
"ओठों पर आये मंद-मंद हास की तरह।
यादों को गाते जाएंगे इतिहास की तरह।
सबसे पहले मैं डॉ. राहुल मिश्र जी का आभारी हूँ कि उन्होंने डॉ. अजय प्रसून पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का निर्णय लिया जिसके लिए मैं डॉ. राहुल मिश्र जी को साधुवाद भी देता हूँ।

साहित्यकार के रूप में अंतरराष्ट्रीय छवि की बुनियाद 
आज जो भी मेरी साहित्यकार के रूप में आज जो अंतरराष्ट्रीय छवि है उस पर यह बचपन और युवा समय का काफी प्रभाव है और बुनियाद रखी गयी जिसमें अजय प्रसून मित्र साहित्यकार का भी सहयोग मिला है।

इसके आलावा मेरी रचना प्रक्रिया और प्रोत्साहन देने वालों में मेरे सहयोगी रहे हैं मेरे पिताजी डॉ. बृजमोहन शुक्ल, गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कालेज ऐशबाग  में प्रधानाचार्य स्व. डॉ. दुर्गाशंकर मिश्र, श्री शिवशंकर मिश्र,  मेरे रिश्तेदार अवधी  के प्रसिद्ध कवि-नाटककार रमई काका (चंद्र भूषण त्रिवेदी), स्वतन्त्र भारत के संपादक अशोक जी, शिवसिंह सरोज जी और बचनेश त्रिपाठी जी, क्रन्तिकारी आदरणीय दुर्गा भाभी, रामकृष्ण  खत्री, गंगाधर गुप्ता  और समाज सेवी और सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापकद्वय  श्रीमती भारती गांधी और श्री जगदीश गांधी जी का।

अजय प्रसून पहले  हेल्थ स्क्वायर, सिटी स्टेशन के पास लखनऊ में रहते थे और बाद में त्रिवेणी नगर में रहने लगे।  हेल्थ स्क्वायर में स्थित घर में उनके पिताजी, माताजी और बच्चों से बातचीत होती थी।  अनेक यादें हैं।

जनसंख्या विभाग में नौकरी के साथ-साथ डॉ. अजय प्रसून चिकित्सक भी हैं। उन्होंने होम्योपैथी से डिप्लोमा किया था। अवकाश प्राप्त के बाद वह चिकित्सा की क्लीनिक चलाने लगे थे।  मैं नार्वे से काफी दिनों बाद जब अजय प्रसून जी की याद आयी, होली का दिन था मैं उनके हेल्थ स्क्वायर में स्थित घर गया।  वहां लोगों ने बताया, " शायर साहेब, वह तो यहाँ से चले गए और  महफ़िल वीरान हो गयी।  एक पड़ोसी ने बताया कि  वह त्रिवेणी नगर, लखनऊ में बस गए हैं।  मैंने भी कोलम्बस की तरह निर्णय लिया और बिना पते के पूछ-पूछ कर खोज ही लिया।
 
एक दिन जोरदार वर्षा हो रही थे पानी गिर रहा था और उनके घर पहुँच गया। हम दोनों बहुत खुश हुए। अनेक यादें हैं साथ-साथ की।  आपको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में डॉ. विनोद चंद्र पांडेय जी के निदेशक रहते बहुत पहले सम्मान मिला था जो गर्व की बात है।  बिना किसी की परवाह किये निराला की तरह मस्त अजय जी ने जो स्थान बनाया है वह उनके अभिनन्दन ग्रन्थ छपने के बाद उसका विस्तार होगा जो उनको सही स्थान दिलाएगा।  

यहाँ मैं यह बताता चलूँ  कि मेरे प्रिय साहित्यकार मित्र  डॉ. अजय प्रसून जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। जो इनसे एक बार मिल लेता था हमेशा के लिए जुड़ जाता था यह मेरा अनुभव है।

कविता की कर्मशाला
डॉ अजय प्रसून एक लोकप्रिय कवि और स्वयं कविता की कर्मशाला हैं। क्योंकि अनगिनत कवियों  (युवा कवि और कवियित्री) ने अजय प्रसून के पास आकर अपनी कविता को या तो निखारा और मंच पाया।  कवि को क्या चाहिए मंच।  यह मंच कविता पाठ का भी रहा और प्रकाशन का भी जो अजय प्रसून जी ने अनगिनत कवियों को दिलवाया।  
साहित्य में अ आंदोलन  
अ से अनेक लेखकों ने आंदोलन चलाये। डॉ. अजय प्रसून ने अनागत आंदोलन चलाया और अनगिनत लोगों को जोड़ा।   
कहानी में मेरे मित्र स्व. प्रो. गंगा प्रसाद 'विमल' जी (शिक्षाविद और साहित्यकार) ने अकहानी आंदोलन चलाया तो कविता में अकविता आंदोलन चलाया मेरे एक अन्य मित्र कवि  डॉ. जगदीश चतुर्वेदी जी ने।  इन दोनों साहित्यकारों के साथ मैनें देश विदेश की यात्रा की और कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया।  इनमें यू. के. (ब्रिटेन में लन्दन, मैनचेस्टर, बर्मिंगम और यॉर्क) प्रमुख हैं।  जब देहरादून में राहुल सांकृतायन जी की जन्मशती मनाई गयी थी तब डॉ. गंगा प्रसाद विमल जी और सांकृत्यायन जी की पत्नी आदरणीय कमला  सांकृत्यायन, वीरेंद्र सक्सेना जी साथ थे।  इस कार्यक्रम में मुझे ले जाने का श्रेय कादम्बिनी और साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक और उपन्यासकार आदरणीय राजेन्द्र अवस्थी जी को जाता है। देहरादून में डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी, डॉ. सुधा पांडेय जी मिले।  डॉ. सुधा पांडेय जी हमारे कार्यक्रम में नार्वे भी आ चुकी हैं उनसे  पुनः मिलना हुआ।  प्रसिद्ध साहित्यकार  शशि प्रभा शास्त्री जी के घर गए और हमारे साथ थे आदरणीय पूर्व कुलपति अनुज कुमार धान और उनकी पत्नी रांची विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष हिंदी डॉ. मंजू ज्योत्स्ना जी। 

अनागत कविता आंदोलन के जनक
अब बात करते हैं अ  अनागत कविता आंदोलन के जनक हम सबके प्रिय डॉ. अजय प्रसून जी की।  
अ से अगीत का आंदोलन चलाने  वाले प्रिय मित्र स्व. रंग डॉ. रंगनाथ मिश्र 'सत्य' जी का जिक्र भी जरुरी है जो राजाजीपुरम लखनऊ में बस गए थे, जहाँ गाँव किसान के संपादक शिवराम पांडेय जी रहते हैं।  सत्य जी भी  अजय प्रसून जी की तरह कवि गोष्ठियों का आयोजन करते थे। 

स्व. आदरणीय गया प्रसाद तिवारी मानस, डॉ. शिवशंकर मिश्र एवं दयाशंकर  मिश्र जी राजेंद्र नगर लखनऊ में रहते थे और समय -समय पर कवि गोष्ठियां आयोजित करते थे तब मैं पंद्रह - सोलह वर्ष का था। इनकी गोष्ठियों की सूचना अखबार में पढ़कर जाता था।  परिचय बहुत बाद में हुआ।  स्व. आदरणीय गया प्रसाद तिवारी मानस जी के पुत्र पत्रकारिता के बहुत बड़े विद्वान प्रो. डॉ. संतोष तिवारी जी से मुलाकात अभी विधायक निवास के बाहर  राजेंद्र नगर पर स्थित पंडित जी की चाय की दूकान में चार महीने पूर्व हुई थी उस समय मेरे साथ थे हिमांशु कॉल जी। 

'युग के आँसू' चर्चित हुई 
जहाँ तक मुझे स्मरण है कि सन् 1974-1975 में  मेरी मुलाकात अजय प्रसून से हुई थी।  यह मुलाकात 1975 में बढ़ी स्व. श्री  उमादत्त त्रिवेदी जी के घर में हुई थी।  वह डी ए वी इंटर कॉलेज में मेरे कक्षा अध्यापक थे।  
स्व. श्री  उमादत्त त्रिवेदी जी ने अजय प्रसून जी की पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक था 'युग के आँसू' जो बहुत चर्चित हुई।  

ये वही स्व. उमादत्त त्रिवेदी जी हैं जो राजनैतिक पार्टी भाजपा के चर्चित प्रवक्ता श्री सुधांशु त्रिवेदी जी के पिताजी हैं।  जब मेरी शादी 1977 में हुई तब आदरणीय उमादत्त त्रिवेदी जी की पत्नी और पूर्व प्रधानाचार्य हनुमान प्रसाद रस्तोगी इंटर कालेज की प्रधानाचार्या श्रीमती प्रियंवदा त्रिवेदी जी का रिश्ते में मौसिया लगने लगा।  
जब भी भारत जाता हूँ  हनुमान प्रसाद रस्तोगी इंटर कालेज लखनऊ से मेरा अच्छा सम्बन्ध रहा है अतः वहां अनेक कार्यक्रमों में जाता रहता हूँ जहाँ प्रसिद्ध कवियित्री श्रीमती सुमन दुबे जी भी प्राध्यापक हैं।

अभी चार महीने पूर्व दिल्ली में श्री सुधांशु त्रिवेदी जी से जी से जब मुलाकात हुई तब पुरानी यादें ताजी हो गयीं।  
उन्होंने बताया था कि उन्हें स्मरण है जब हम उनके घर पिताजी और माताजी से मिलने जाया करते थे।

डी ए वी कालेज में मेरे अध्यापकों स्व. रमेश चंद्र अवस्थी जी जिनकी शक्ल  जवाहर लाल नेहरू जी की तरह थी।   र मेश चंद्र अवस्थी जी जवाहर लाल नेहरू जी  की तरह वेशभूषा रखते थे, उन्होंने डी ए वी कालेज की पत्रिका में मेरी कविता 'ले चल पंछी दूर गगन में' को स्थान दिया।  स्व. श्री देवेंद्र मिश्र  विद्यालय के  छात्रसंघ के अध्यापक संचालक थे।  यहाँ मेरी मुलाकात स्व. वचनेश त्रिपाठी से हुई जो तरुण भारत समाचार पत्र के संपादक थे जो राजेंद्र नगर, लखनऊ से छपता था।  अजय प्रसून जी की पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक था 'युग के आँसू' जो बहुत चर्चित हुई। 

कम आयु में ही अजय प्रसून जी लखनऊ में अपने से बड़े और समकक्ष कवियों में कवि-गजलकार के रूप में अच्छी छवि बना चुके थे।  मेरा भी पहला काव्य संग्रह 1975  में छपकर आया था।  

 मैं यही कामना करता हूँ डॉ. अजय प्रसून जी पर अभिनन्दन ग्रन्थ साहित्य में मील का पत्थर बने।  वह शतायु हों और स्वस्थ रहें।  डॉ. राहुल मिश्रा और अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन टीम को हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनायें।


शुभकामनाओं सहित,
सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',
अध्यक्ष, भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम,
सम्पादक, स्पाइल-दर्पण (ओस्लो से प्रकाशित द्विभाषी- द्वैमासिक पत्रिका)
संस्थापक, वैश्विका साप्ताहिक लखनऊ
यूरोप संपादक, देशबंधु राष्ट्रीय समाचार पत्र, नई दिल्ली
Post Box 31, Veitvet, 0518 Oslo, Norway 
मोबाइल: + 47 -90070318, 
केवल वॉट्सऐप: +91-88 00 51 64 79

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

स्ट्रा / (नली वाली सींक) से सत्तू पी रहा है - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 चुनाव आयोग स्ट्रा से सत्तू पी रहा है 

सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

उसके पास मतदाता सूची है,
फिर भी मतदाताओं से क्यों
दस्तावेज माँग रहा है।

कर्तव्य भूल गया चुनाव आयोग,
तानाशाह बन गया है,
वह क्यों तय करेगा कि
कौन चुनाव आयोग से मिलेगा?

लोकतन्त्र को नहीं डुबा सकेगा चुनाव आयोग।
जनता सहिष्णु है, कायर नहीं।
जो जनता किसी को सत्ता पर बिठा सकती है
तो भ्रष्ट सत्ता को हटा सकती है।
काठ की हांडी बार -बार नहीं चढ़ती।

जनता से बड़ा हो गया है चुनाव आयोग
विपक्ष से बातचीत में सौहद्र भूल गया है।

देश में बहुत से कुपोषित बच्चे 
भूखे मर रहे हैं।
हमारे नेता विदेश में
सम्मान की भीख माँग रहे हैं।
हमारे प्रवासी वापस
हथकड़ी में आ रहे हैं।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल
ओस्लो, 03.07.25

सोमवार, 30 जून 2025

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. कृष्णाजी 11 जून 25 को नहीं रहे - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. कृष्णाजी नहीं रहे

- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’



जन्म:14.11-1967 - मृत्यु:11.06-2025

मित्रों आपके साथ एक दुःखद सूचना साझा कर रहा हूँ कि
हम सबके प्रिय प्रो. कृष्णाजी श्रीवास्तव नहीं रहे। डॉ. कृष्णा जी का लम्बी बीमारी के बाद बुधवार 11 जून को तड़के उनका आकस्मिक निधन हो गया।
उनका अंतिम संस्कार भैंसा कुंड, लखनऊ में किया गया. लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के प्रोफेसर वाई पी सिंह ने बताया कि आलमबाग सुजानपुरा के निवासी डॉ. कृष्णा जी श्रीवास्तव की सेवा 2029 तक थी
जो लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं कार्य परिषद् के सदस्य थे। उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं और शोध कराये।

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर पवन अग्रवाल के अनुसार,
"डॉ. कृष्णा जी बड़े कर्मठ और अच्छे अध्यापक थे। रंगमंच के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता थी। वह निरंतर विभागीय सहयोगियों, क्षेत्रों के साथ सौहाद्र बनाये रखते थे। उनकी मृदुभाषिता , सहजता और कर्मठता सदैव अनुकरणीय रहेगी।
उनके निधन से हम सभी हतप्रभ हैं ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करें और परिजन को इस गहन दुःख सहन करने का संबल प्रदान करें।"

आधुनिक भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित के अनुसार, " मेरे प्रिय शिष्य और सहयोगी कृष्णा जी हिन्दी विभाग में लगभग 35 वर्ष पूर्व  व्यावहारिक रंगमंच के सहायक रूप में आए थे। इस पाठ्यक्रम को चलाने में उन्होंने बहुत मदद की थी।"

कई महीनों से वह बीमार थे और इलाज करा रहे थे। उनकी बहन जी से समाचार मिल जाते थे।
एक अच्छे रंगकर्मी, मृदुभाषी मित्र की कमी को भरा नहीं जा सकता।

लखनऊ में जब भी फिल्माचार्य आनन्द शर्मा के निर्देशन में मेरे स्वरचित नाटक मंचित होते थे तब वह देखने ज़रूर आते थे। उनसे लखनऊ में रंगमंच और फिल्मी हस्तियों की भूमिका पर बहुत विचार होता था।

लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अलावा उनके साथ पत्रकारिता विभाग में भी प्रो. कृष्णाजी श्रीवास्तव के साथ प्रो. मुकुल श्रीवास्तव जी से मिलने जाता था जो पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष थे।

डॉ. कृष्णा जी के निर्देशन में मेरी (सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' की ) कहानियों पर शोधार्थी पूनम ने शोध किया था। उनके साथ विश्वविद्यालय, स्टेडियम और हजरतगंज में चाय पीने जाते थे। मेरा सपना है कि हमारा लखनऊ में निजी - सार्वजानिक थिएटर हों जहाँ रंगकर्मियों का मिलने और मंचन करने की सुविधा हो।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
11 जून 25 को (30.06.25 को प्रकाशित)

शुक्रवार, 27 जून 2025

फिर एक हादसा होना चाहिए - सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे

फिर एक हादसा होना चाहिए

    सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे 

कुछ नहीं रहा तेरी सियासत में,

अब तुमको स्तीफा देना चहिये।

सियासत से चिपकना है तुमको

फिर एक हादसा होना चाहिए।


यदि जीवन में सब नहीं मिलता,

तब प्रयास जारी रहना चाहिए।

तुमपर कोई हमला नहीं करता,

खुद पर हमला कराना चाहिए।


असफलता के दौर में तुमको,

विरोधी स्वर दबाना चाहिए?

अपने पाप  छिपाने के लिए,

नेहरू को गाली देना चाहिए।


आजादी में योगदान न सही,

देश को गुलाम बनाना चाहिए।

ले  लिया है हमने अथाह चंदा,

सबको गुलाम बनना चाहिए।


ओस्लो, २७.०६. २५ 

गुरुवार, 26 जून 2025

कितने गाज़ा - सुरेश चंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla

कितने गाज़ा 

 - सुरेश चंद्र शुक्ल 


कितने गाजा, मणिपुर जल रहे,

राजनीति के संत छल रहे। 

सत्य अहिंसा वाली सत्ता, 

बन जाये बर्रैया का छत्ता। 

 

अब न और सताओ जी,

अब तो लोकतंत्र बचाओ जी।


पचास साल पहले आपातकाल था 

घोषित पर निंदनीय बहुत था।

कितना बड़ा झूठ या सच है,

एक दशक से अघोषित आपातकाल है । 


राजनीति में थाली के बैगन,

आज काले तो कल उजले हैं।

लोकतंत्र का चाहे गला घुटे,

सब कठपुतली के पुतले हैं। 


भुखमरी और गरीबी में अव्वल,

जैसे वेंटिलेटर पर नैतिकता है?

बेरोजगारी, शिक्षा, मँहगाई 

आवाज पर पहरा, लोकतन्त्र है?


जहाँ न्यायालय आशा का दीपक, 

चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है।

हेट स्पीच -फेक न्यूज तंत्र बड़े,

जनता का हौंसला बड़ा है।


अक्षम जहाँ राज्य करते हों,

किसके हाथों की कठपुतली हैं।

कर्तव्यों का बोध नहीं है 

अधिकारों की माँग बढ़ी है।


यहाँ-वहां सब ओर थूकते,

देहरी, गलियाँ भवन भले हो।

तालाब, मार्ग, पार्क भले हो,

अतिक्रमण करते नहीं थकते हैं।


उद्द्योगपति से चंदा लेकर, 

सत्ता में आ उनके एजेंट बने हैं।

हवाई अड्डे, बंदरगाह, खानें बाटें,

कैसे ठेकेदार बने हैं। 


देश की रक्षा का सौदा कौड़ी के भाव,

क्या बहुत बड़ा अपराध किया है?

जनता से कैसा प्यार किया है,

उसे जन्म से ही कर्जदार किया है।


अब बहुत हुआ अब जाओ जी,

सब मिलकर लोकतंत्र बचाओ जी।

( ओस्लो, 26.06.25)






बुधवार, 18 जून 2025

नार्वे में लेखक सेमिनार - सुरेश चंद्र शुक्ल


नार्वे में लेखक सेमिनार 
सुरेश चंद्र शुक्ल कृत दीप  जो बुझते नहीं और 
शशि स्वरूप पराशर कृत तुम्हारा दुशाला का विमोचन

भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक द्वारा आयोजित लेखक सेमिनार में इंडिया नेटबुक्स द्वारा प्रकाशित सुरेश चंद्र शुक्ल कृत दीप  जो बुझते नहीं और शशि स्वरूप पराशर कृत तुम्हारा दुशाला का विमोचन संपन्न हुआ।


 


 



सोमवार, 9 जून 2025

राहुल गाँधी : मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं!

 वैश्विका में: ( 18.06.25)

मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं!

राहुल गाँधी, लोकसभा में विपक्ष के नेता


मैंने तीन फरवरी को संसद में दिए अपने भाषण और उसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पिछले साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया को लेकर चिंता जाहिर की थी. देश में हुए चुनावों को लेकर मैंने पहले भी संदेह जताया है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हर चुनाव में और हर जगह धांधली होती है, लेकिन जो हुआ है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. मैं छोटी-मोटी गड़बड़ियों की नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय संस्थानों पर कब्जा करके बड़े पैमाने पर की जा रही धांधलियों की बात कर रहा हूं.

पहले के चुनावों में कुछ अजीब चीजें होती थीं, लेकिन 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पूरी तरह से विचित्र था. इसमें इतनी भयंकर धांधली हुई है कि सब कुछ छुपाने की तमाम कोशिशों के बावजूद भी गड़बड़ी के स्पष्ट सबूत दिखते हैं. यदि गैर-आधिकारिक जानकारियों को न भी देखा जाए, तब भी केवल आधिकारिक आंकड़ों से ही गड़बड़ियों का पूरा खेल सामने आ जाता है.

पहला चरण-अम्पायर तय करने वाली समिति में हेराफेरी
चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 के द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि चुनाव आयुक्त प्रभावी रूप से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री द्वारा 2:1 के बहुमत से चुने जाएं, जिससे तीसरे सदस्य, विपक्ष के नेता के वोट को अप्रभावी किया जा सके. यानी जिन लोगों को चुनाव लड़ना है, वही अम्पायर भी तय कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर उनकी जगह चयन समिति में एक कैबिनेट मंत्री को लाने का फैसला गले से नहीं उतरता. सोचिए, महत्वपूर्ण समिति से एक निष्पक्ष निर्णायक को हटाकर कोई अपनी पसंद का सदस्य क्यों लाना चाहेगा? जैसे ही आप खुद से यह सवाल पूछेंगे, आपको जवाब मिल जाएगा.

दूसरा चरण - फर्जी मतदाताओं के साथ मतदाता सूची मैं वृद्धि
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी. पांच साल बाद, मई 2024 के लोकसभा
चुनावों में यह संख्या बढ़कर 9.29 करोड़ हुई. लेकिन उसके सिर्फ पांच महीने बाद, नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 9.70 करोड़ हो गई. यानी पांच साल में 31 लाख की मामूली वृद्धि, वहीं सिर्फ पांच महीनों में 41 लाख की जबरदस्त बढ़ोत्तरी! पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 9.70 करोड़ पहुंचना असाधारण है, क्योंकि यह सरकार के खुद के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र के वयस्कों की कुल आबादी, 9.54 करोड़ से भी अधिक है.

तीसरा चरण फर्जी मतदाता जोड़ने के बाद, मतदान प्रतिशत भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाना
ज्यादातर मतदाताओं और ऑब्जर्वर्स के लिए महाराष्ट्र में मतदान का दिन बिल्कुल सामान्य था. बाकी जगहों की तरह ही, लोगों ने पंक्तिबद्ध होकर मतदान किया और घर चले गए. जो लोग शाम 5 बजे तक मतदान केंद्रों के अंदर पहुंच चुके थे, उन्हें मतदान करने की अनुमति थी. कहीं से भी किसी मतदान केंद्र पर ज्यादा भीड़ या लंबी कतारों की कोई खबर नहीं आई. लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार, मतदान का दिन कहीं अधिक नाटकीय था. शाम 5 बजे तक मतदान प्रतिशत 58.22 था. हालांकि, मतदान खत्म होने के बाद भी मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ता ही रहा. अगली सुबह जो आखिरी आंकड़ा सामने आया, वह 66.05% था. यानी 7.83% की अचानक बढ़ोत्तरी हुई, जो कि करीब 76 लाख वोटों के बराबर है. वोट प्रतिशत में इस तरह की बढ़ोत्तरी महाराष्ट्र के पहले के किसी भी विधानसभा चुनाव से कहीं ज्यादा थी.
(संलग्न तालिका देखें).
वर्ष प्रोविजनल अंतिम अंतर (%)
मतदान (%) मतदान (%)
2009 60.00 59.50 -0.50
2014 62.00 63.08 1.08
2019 60.46 61.10 0.64
2024 58.22 66.05 7.83

चौथा चरण- चुनिंदा जगहों पर फर्जी वोटिंग ने बीजेपी को ब्रैडमैन बना दिया
इनके अलावा भी कई और गड़बड़ियां हैं. महाराष्ट्र में करीब 1 लाख बूथ हैं, लेकिन नए मतदाता ज्यादातर सिर्फ 12,000 बूथों पर ही जोड़े गए. ये बूथ उन 85 विधानसभा के थे, जहां भाजपा का पिछले लोकसभा चुनाव में बुरा प्रदर्शन था. मतलब हर बूथ में शाम 5 बजे के बाद औसतन 600 लोगों ने वोट डाला. अगर मान लें कि हर व्यक्ति को वोट डालने में एक मिनट भी लगता है, तब भी मतदान की प्रक्रिया 10 घंटे तक और जारी रहनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कहीं नहीं हुआ। ऐसे में सवाल यह है कि ये अतिरिक्त वोट आखिर डाले कैसे गए? जाहिर है कि, इन 85 सीटों में से ज्यादातर पर एनडीए ने जीत दर्ज की.
चुनाव आयोग ने मतदाताओं की इस बढ़ोत्तरी को 'युवाओं की भागीदारी का स्वागत योग्य ट्रेंड' बताया. लेकिन यह 'ट्रेंड' सिर्फ उन्हीं 12,000 बूथों तक सीमित रहा, बाकी 88,000 बूथों में नहीं। यदि यह मामला गंभीर नहीं होता, तो इसे एक शानदार चुटकुला समझकर हंसा जा सकता था.
कामठी विधानसभा इस धांधली की एक अच्छी केस स्टडी है. वर्ष 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वहां 1.36 लाख वोट मिले, जबकि बीजेपी को 1.19 लाख. 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर लगभग उतने ही, 1.34 लाख वोट मिले. लेकिन बीजेपी के वोट अचानक बढ़कर 1.75 लाख हो गए. यानी 56,000 वोटों की सीधी बढ़ोत्तरी. उन्हें यह बढ़त उन 35,000 नए मतदाताओं के कारण मिली जिन्हें इन दोनों चुनावों के बीच कामठी में जोड़ा गया था. ऐसा लगता है कि जिन लोगों ने लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाला था और जो नए मतदाता जुड़े, उनमें से लगभग सभी चुंबकीय ढंग से भाजपा की ओर खिंचते चले गए. इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वोट को आकर्षित करने वाला चुंबक कमल के आकार का था.
ऊपर चर्चा किए गए चार तरीकों को अपनाकर बीजेपी ने 2024 के विधानसभा चुनाव में जिन 149 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से 132 जीत लीं, यानी 89% की स्ट्राइक रेट. यह अब तक के किसी भी चुनाव में उसका सबसे बेहतर प्रदर्शन था. जबकि सिर्फ 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की स्ट्राइक रेट मात्र 32% थी.

पांचवां चरण - सबूतों को छुपाने की कोशिश
चुनाव आयोग ने विपक्ष के हर सवाल का जवाब या तो चुप्पी से दिया या फिर आक्रामक रवैया अपनाकर. उसने 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की फोटो सहित मतदाता सूची सार्वजनिक करने की मांग को सीधे खारिज कर दिया है. इससे भी गंभीर बात यह है कि विधानसभा चुनाव के ठीक एक महीने बाद, जब एक उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज साझा करने का निर्देश दिया, तो केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से सलाह लेने के बाद निर्वाचनों के संचालन नियम, 1961 की धारा 93(2) (a) में बदलाव कर दिया. इस बदलाव के जरिये सीसीटीवी और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस तक पहुंच को सीमित कर दिया गया है. यह बदलाव और इसका समय दोनों ही अपने आप में बहुत कुछ बयां करते हैं. हाल ही में एक जैसे या डुप्लीकेट ईपीआईसी नंबर सामने आने के बाद फर्जी मतदाताओं को लेकर चिंताएं और गहरी हो गई हैं. हालांकि असली तस्वीर तो शायद इससे भी ज्यादा गंभीर है.
मतदाता सूची और सीसीटीवी फुटेज लोकतंत्र को मजबूत करने के औजार हैं, न कि ताले में बंद करके रखे जाने वाले सजावटी सामान. वो भी खासकर तब, जब लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ हो रहा हो. देश के लोगों का अधिकार है कि उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि किसी भी रिकॉर्ड को नष्ट नहीं किया गया है और आगे भी ऐसा नहीं किया जाएगा. कई जगह यह आशंका जाहिर की जा रही है कि अगर रिकॉर्डस की जांच की जाए तो जानबूझकर कुछ मतदाताओं के नाम सूची से हटाने या मतदान केंद्र बदले जाने जैसी धांधली सामने आ सकती हैं. ये भी संदेह है कि इस तरह की चुनावी धांधली कोई एक बार की नहीं, बल्कि कई सालों से चलती आ रही है. इसमें कोई शक नहीं कि रिकॉर्डस की गहराई से जांच की जाए तो न सिर्फ पूरे धोखाधड़ी के तरीके का पता चल सकता है, बल्कि ये भी सामने आ सकता है कि इसमें किन-किन लोगों की भूमिका थी. लेकिन दुख की बात ये है कि विपक्ष और जनता, दोनों को हर कदम पर इन रिकॉर्डस तक पहुंचने से रोका जा रहा है.
यह समझना कठिन नहीं है कि महाराष्ट्र में नवंबर 2024 के चुनाव में इस हद तक धांधली क्यों की गई लेकिन चुनाव में धांधली मैच फिक्सिंग की तरह होती है. भले ही टीम मैच फिक्स करके एक खेल जीत जाए, लेकिन इससे संस्थाओं की साख और जनता के भरोसे का जो नुकसान होता है, उसे फिर से बहाल नहीं किया जा सकता.
मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं!

शनिवार, 7 जून 2025

आज ना जागे तो देर हो जायेगी Poem-Suresh Chandra Shukla

 आज ना जागे तो देर हो जायेगी 

                     - सुरेश चन्द्र शुक्ल, 07.06.25


लोकतंत्र में सरकार विपक्ष के जवाब दे।
प्रेस कांफ्रेंस कर हर रोज हिसाब दे।

संवाद के बिना स्वतंत्रता अधूरी है। 
हेट स्पीच, फेक न्यूज नफरत बढ़ाते हैं।

सवाल से कभी सरकार नहीं भागे।
जनता के बीच मजबूत करे लोकतंत्र।

सत्ता लोकतंत्र में कभी स्थाई नहीं होती, 
पारदर्शिता के बिना कभी न्याय नहीं होता।

राष्ट्रीय गोदी मीडिया दलाली जब करे
निष्पक्ष नहीं तो लोकतंत्र की हत्त्या करे? 

सरकार जब विपक्ष के सवालों का  जवाब नहीं देती।
वह शासन नहीं चला सकती, स्तीफा क्यों नहीं देती?
 
केंद्र सरकार राहुल के सवाल का जवाब दे।
सत्ताधारी पार्टी विपक्ष को गलियां बंद करे।

ट्रंप ने कहा, सरेंडर, नरेन्दर! 
और तुम जैसे भूमिगत हो गए?

सच्चाई से मत डरो, तुम मौन क्यों  प्रधान।
विपक्ष के सवालों का क्यों नहीं लिया संज्ञान?

कुटिल चाणक्य बहुत राष्ट्र भक्त था।
राष्ट्र के नाम पर लगता जैसे कलंक हो गए?

देश के हवाई-अड्डे, पोर्ट, खानें, राष्ट्र सम्पति 
क्यों अपने कार्पोरेटर दोस्त को दिया?

राहुल ने जब संसद में चिटठा खोल दिया,
संसद-कार्यवाही से क्यों अडानी नाम हटा दिया।


सांप्रदायिक संगठन खूब  धन कमा रहे।
नफरत भर युवाओं  को  दंगाई बना रहे।

तुम क्रूर, राष्ट्र विरुद्ध क्यों हो गए हो?
किसका दबाव पड़  रहा संसद में बताओ?


आज नयी तकनीक से कुछ नहीं छुपे?
कब्र में भी आदमी हो, कभी नहीं बचे।

कुकर्मों की अगर खुल जाती पोल।
देश में सजा, व विदेश में मखोल। 

लोकतंत्र में सवाल व संवाद जरुरी है।
यदि असफल रहे तो स्तीफा जरुरी है।

मित्र के लिए, संसद से बिना अनुमति के 
देश की संपत्ति बेचना क्यों मजबूरी?
कौन विदेशी शक्ति तुम्हें धमका रही, 
बताना बहुत जरुरी?

कोई जितने अपराध करे,  अब नहीं छिपेगा?
छोड़ो सब अपराध, संसद में माफ़ी मांगों यार!

सत्ता से दो त्याग पत्र, यदि 
प्रायश्चित नहीं करोगे?
कितने गुप्त बनाए व्यापार,
नहीं छुपा पाओगे?

राष्ट्र के विरुद्ध किए समझौते भेद खुलेंगे।
किसी के राज नहीं छिपेंगे,
जनता को जब पता चलेगा तो 
उनके व्यापार  नहीं फलेंगे?

आज ना जागे तो देर हो जायेगी।
निरंकुश सत्ता, तानाशाह बन जाएगी।

      - सुरेश चन्द्र शुक्ल,
             07.06.25

सोमवार, 26 मई 2025

प्रवास की पहली उड़ान (नार्वे से कहानी) - सुरेश चंद्र शुक्ल

 प्रवास की पहली उड़ान 

सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, Norway

अम्मा!  बाबू जी (पिताजी) अभी घर नहीं आये हैं। उनके नेता अस्पताल, आई सी यू में भर्ती हैं। बाबू जी ड्राइवर हैं। मालिक अस्पताल में हैं। क्यों नहीं बाबू जी घर आ जाते

कमला ने माँ से कहा।

बाबू जी अपने मालिक को छोड़कर नहीं आने वाले। ठीक भी है। मालिक का न कोई आगे है न कोई पीछे, बाबू जी जो नेताजी के ड्राइवर हैं, कैसे अपने नेता को आई सी यू में छोड़कर चले जायें,

 माँ राधा ने जवाब दिया ।

 

कमला ने अपनी माँ राधा से संवाद जारी रखा,
अम्मा देखो, अखबार आज किन खबरों से भरा है, ‘रक्त में सिंदूर’ जो आत्म हत्या, कायरता का प्रतीक है। और ‘विज्ञापन में सिंदूर’ देश की सम्पत्ति को पोस्टर प्रदूषण में बर्बाद का प्रतीक बन गया है’, जो देश में देशवासियों में चिंता का विषय है।

 

अम्मा! देखो ना दो दिन हो गये, बाबू जी अभी भी घर नहीं आए हैं। नेता जी अस्पताल में अंतिम सांसें गिन रहे हैं। मेरे पिताजी (बाबू जी) तो नेता जी के ड्राइवर हैं। लोग कह रहे हैं। कि बाबू जी को पुलिस गिरफ़्तार करके ले गई है।  वे बाबू जी से पता लगाना चाहते हैं कि आई सी यू में साँसे गिन रहे बाबू जी और कौन सी हकीकत जनता को बताना चाहते हैं, ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके।

 

बेटी, कमला परेशान न हो। बाबू जी को कुछ नहीं होगा। बाबू जी के साथ राजनीतिक कैदी सा व्यवहार होगा। उसमें बुराई क्या है।  लोकतंत्र बचाने के लिए किसी- न किसी को तो आगे आना होगा।

 

अम्मा!  मुझे। डर  लग  रहा  है।  अगर बाबू जी को कुछ हो गया तो?

 

बेटी कमला बिलकुल परेशान मत हो। बस डरना ही नहीं है। अगर हम डर गये तो धीरे-धीरे हमारे लोकतांत्रिक अधिकार छिनते जायेंगे। 

 

अम्मा  तुम किस मिट्टी की बनी हो। आज जिन्हें आवाज उठाना चाहिए घरों में दुबके पड़े हैं। जैसे डर का करोना आ गया हो। अम्मा!  मुझे जोर की भूख लगी है।

 

आ बेटी, मैं  तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी।  चाय बनाकर लायी हूँ। पहले चाय पी लोकहकर मेज पर दो कप चाय लेकर आयी और बैठ गयी।

 

कमला कुर्सी पर बैठ गई और चाय के प्याले से चाय सुड़कते हुए कहा

अम्मा, चाय बहुत स्वादिष्ट बनी है, मजा आ गया।

 

बेटी, तू मेरी और पिताजी की चिंता न कर। तू बता तेरा अमरीकी यूनिवर्सिटी में एडमिशन हो गया था। तेरा काल लेटर भी आ गया है, उसकी तैयारी कर।

 

अम्मा मेरी हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में शीर्ष नेता/ सरकार ने रोक लगा दी है कि विदेशी स्टूडेंट अब नहीं पढ़ सकेंगे। पर मेरे पास कोई ऐसा पत्र तो नहीं आया।

 

इन नेताओं की सभी बातों पर भरोसा मत किया कर। ये सनकी नेता उजूल-फजूल कहते रहते हैं", कहकर आगे राधा ने बात जारी रखी,

आज हम सब सनकी ट्रंप जैसों के समय में उनके राज्य में जीने को मजबूर हैं। जहाँ न्याय और सत्य के लिए विरोध करने वाले को गिद्ध मीडिया नोचता है, लोकतंत्र वधू की ईज्जत को तार-तार करने में सरकारी एजेंसियाँ लगी हैं। 

 सनकी राजा मदारी और अंधभक्त जमूरे की तरह तमाशाई बने हैं। सच्चाई से अन्याय का विरोध करने वाले विपक्षी नेता आई सी यू में रहने के बावजूद छापे और सरकारी एफ आई आर से परेशान हैं।

 

अम्मा! यह बताओ, जहाँ आतंकी हमला होता है  वहाँ कोई सिपाही नहीं था और आज विपक्ष का नेता जो आई सी यू (अस्पताल) में भरती है उसके वार्ड के बाहर  सरकारी एजेंसी और पुलिस वालों की फौज़ लगी है। आई सी यू का मरीज नेता कैसे भाग जायेगा जो शायद अंतिम सांसे गिन रहा है, कमला ने पूछा।

 

माँ राधा ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा,

नेता जी ने ही तेरे अमेरिका में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की फीस के लिए लोन लिया है। तुम्हारे पिता को भाई की तरह मानते हैं। तू यहाँ पढ़ाई में अव्वल रही इसकी वजह से तेरा प्रवेश हो गया। शुक्र मना कि तेरा वीज़ा भी लग गया। वरना अमेरिकी प्रेसिडेंट तो विदेशी स्टूडेंट के अमेरिका में रोक लगाने की बात कह रहे हैं।

 

कमला ने जवाब दिया,

अम्मा, मैं तुम्हें यहाँ इस हालत में छोड़कर जाने वाली नहीं हूँ।

 

राधा ने तंज कसते हुए नेताओं की भाषा में कहा,

एक सौ चालीस करोड़ भारतीय हैं हमारे साथ। तुम चिंता न करो। देख तेरा अमेरिका जाने का एयर टिकट कोरियर-डाक से आ गया है। मैंने उसे खोलकर देखा और तेरी दराज में रख दिया है। तेरे जाने की तैयारी में भी लग गयी।

 

कमला ने दराज से टिकट निकाला और फूली नहीं समायी और उसने अपनी माँ को बाहों से भरकर गले लगाया और बताया,

अम्मा!  तीन दिन बाद मेरी फ्लाइट है। 

 

कमला कुछ आगे कहती कि माँ राधा ने जवाब दिया,

मैंने तेरी अटैची में भागवत गीता, रामायण रख दी है। साथ ही चाय की पत्ती। तुझे आसाम की चाय पसंद है न। रास्ते के लिए तेरी पसंद के आलू के पराठे योगेश की पत्नी दिल्ली में बना देगी। योगेश एयरपोर्ट पर लोडर का काम करता है। जहाज में पता नहीं कैसा खाना मिले।

 

कमला की आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गये।  उसने कहा,

अम्मा!  तुम कितनी अच्छी हो। मैं अपनी सहेलियों को बुला लेती हूँ। उनसे मिल लूँगी। 

 

राधा ने जवाब दिया,

तुम्हारे पास समय नहीं है। आजकल तो तुम जब चाहो फेस टाइम पर मोबाइल से बात कर सकती हो। तेजी से तैयारी करो। एक महीने का अमेरिका लिए यहाँ से ही प्रीपेड इंटरनेट, फोन आदि का इंतज़ाम आज ही कर लो। यह तो अच्छा है कि नेता जी की भतीजी भी विदेश में पढ़ती है, उससे भी तुझे मदद मिल जायेगी।

 

कमला ने माँ से कहा,

अम्मा!  अमेरिका में प्रवेश और फीस जमा होने के बाद वहाँ से भी सारी जानकारी आयी थी कि किस बात का ध्यान रखना है और किस बात का ध्यान नहीं रखना है।

 

कल सुबह की रेल से ही सुबह दिल्ली के लिए निकल जा। ताऊ जी का बेटा योगेश इन्दिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट में लोडर है। उसी के घर रुक जाना।  तेरी टिकट देखने के बाद  मैंने योगेश और उसकी पत्नी से बात कर ली है। 

अच्छा हुआ तुमने वीजा के लिए आवेदन के पहले स्वास्थ संबंधी सभी आवश्यकतायें पूरी कर ली सारे टीके लगवा लिए थे।  देखना, तुम्हारा अप टू डेट रहना सदा काम आयेगा।

 

आज सभी जागरूक लोग आत्मनिर्भर और समय और स्थिति के हिसाब से अपडेट रहते हैं। आज समय की भी  यही आवश्यकता है। 

 

कमला ने अपनी माँ राधा से पूछा,

अम्मा जाने के पहले नेताजी और पिताजी से मिल लूँ।

 

माँ ने कहा,

बिलकुल नहीं। कहीं तुम्हें पूछताछ के लिए रोक लिया तो मुश्किल हो जायेगी। भगवान का नाम लो, सभी के बारे में शुभ-शुभ सोचो। सारे बिजली, फोन, बीमा आदि की फाइल संभाल कर रख दो और अपना यूनिवर्सिटी और जरुरी नंबर, एयर टिकट की कापी आदि आज ही कराकर रख दो।

 

समय बीतते देर नहीं लगती।  कमला रेल से दिल्ली और दिल्ली में हवाईअड्डे पर टिकट खिड़की से बुकिंग की अटैची जमा की और हैंड बैग और पीठ के थैले में लैपटॉप और पराठे लेकर सुरक्षा जाँच के बाद अमेरिका जाने वाले जहाज पर सवार हो गई है। माँ को जहाज में सवार होने की सूचना देकर फोन को एयरमोड पर कर लिया है। 

 

कितनी भाग्यशाली है वह कि उसे हॉर्वर्ड में पढ़ाई के लिए प्रवेश मिला है। अफवाह है  कि अमेरिकी प्रेसीडेंट के पुत्र को हॉर्वर्ड में प्रवेश नहीं मिला है इसीलिए उसने उस विश्वविद्यालय की आर्थिक मदद बंद करने के आदेश दिये हैं।  वह सोचती है कि अच्छा है कि वह कभी वाट्सऐप यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ी अर्थात् वह फेकन्यूज़, अफवाह और उलटे-गलत समाचारों से बची रही। वही समय पढ़ाई और अपने तथा परिवार की देखरेख में लगाया। 

वह एक खिलाड़ी की तरह आगामी भविष्य के एक-एक घंटे का सक्रिय प्रयोग करेगी।  

 

माँ राधा ने आसमान पर नजर डाली।  एक जहाज आसमान पर उड़ रहा था और वह संतुष्ट है कि उसकी बेटी ने अपने प्रवास की नयी उड़ान भरी है।

speil.nett@gmail.com

Address: Suresh Chandra Shukla, Vollebekkveien 2 L, 0598 – Oslo, Norway

मंगलवार, 20 मई 2025

आखिरी कदम से पहले (कहानी) - सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 नार्वे से कहानी 

आखिरी कदम से पहले 
- सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 

सैलानियों और यहाँ के निवासियों का दिन रात आबाद रहने वाला ओस्लो में कार्ल युहान गाता (मार्ग)।
कार्ल युहान गाता (मार्ग) एक ओर सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन जो दोम शिर्के  (स्टेट चर्च), पार्लियामेंट, नेशनल थिएटर होता हुआ दूसरी ओर राज महल तक जाता है। 
कार्ल युहान गाता (मार्ग) के मध्य में  एक ओर पार्लियामेंट स्थित है और दूसरी ओर पास में स्थित प्रसिद्ध ग्रांड होटल है।  पार्लियामेंट के सामने आइद्स्वोल प्लेस पर  आये दिन यहाँ देश-विदेश की समस्याओं के लिए लोग प्रदर्शन करने आते हैं।  नार्वे के किसानों, गाजा में नरसंहार के खिलाफ, अध्यापकों और पत्रकारों की  सभाएं हो चुकी थीं।  कहा भी गया है कि लोकतंत्र और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमको हर घंटे जागते रहना चाहिए और प्रयास करते रहना चाहिए।  बिना प्रयास के और संघर्ष के कुछ नहीं मिलता।  यह भी प्रचलित है कि माँ छोटे बच्चे के रोने और चिल्लाने पर उसे दूध पिलाती है या भोजन कराती है।

आज पार्लियामेंट के सामने आइद्स्वोल प्लेस पर लोग एकत्र हो रहे हैं।  थोड़ी देर में देखते ही देखते भीड़ एक सभा में बदल गयी है।  गाजा में नरसंहार, उक्रेन में युद्ध, कई देशों में सूखा पड़ने से भुखमरी आदि अनेक त्रासदियां मानवता के आगे सुरसा राक्षसी जैसे मुँह खोले कड़ी हैं। 

पता चला कि इस भीड़ में सबसे ज्यादा रंग बिरंगे वस्त्रों में दूर से ही दिख जाने वाले भारतीय मूल के लोग एकत्र हुए हुए हैं।  भारत में पहलगाँव, जम्मू एवं कश्मीर में आतंकी हमले के बाद विदेशों में प्रवासियों में रोष है। नार्वे के पार्लियामेंट के सामने बहुत लोग एकत्र हो गए हैं। कुछ बैनर हवा में लहरा रहे थे। दुनिया से आतंक बंद हो, आतंकवाद मुर्दाबाद, दोषियों को सजा मिले।  निर्दोष लोगों को न्याय मिले।  रोहन इस सभा का नेतृत्व कर रहा था। 
इस सभा में रोमानिया से आये रोमा महिलायें हाथ में ग्लास लिए और पत्रिकाएं पकड़े भीख के लिए ग्लास सामने करके याचना करती नजर आ रही हैं।  रोमा लोग हजार साल पहले भारत से घूमते-घूमते आये थे। आज ये यूरोप के नागरिक हैं।  गरीबी के कारण ये रोमा तीन महीने के  लिए विकसित देशों में भीख मांगते, अपनी स्वनिर्मित  हस्तकला बेचते हैं।  अभी भी रोमा लोग भारतीय परिधान और संस्कृति अपनाये हुए हैं। 
 क्या यह लोकतंत्र का सबसे अच्छा उदाहरण नहीं कि जहाँ मांगने वाला भी बिना रोक टोक के पार्लियामेंट के सामने सभाओं में आ जा सके और भीख मांग सके।  कुछ दिनों पहले की बात है कि जब पार्लियामेंट के सामने एकत्र सभा को पार्लियामेंट के अध्यक्ष सम्बोधित कर रहे थे, तब एक रोमा महिला बिना रोक टोक उनके आगे ग्लास आगे बढ़ाकर भीख माँग रही थी।  ये रोमा भी क्या करें इन्होंने अपनी भारतीय संस्कृति अपनाये रखी,  समय और देशकाल के साथ नहीं बदले, शिक्षा नहीं प्राप्त की तब दूसरे देशों में घूम -घूम कर किसी तरह गुजारा करते हैं।

रोहन ओस्लो में टैक्सी चलाता है।  भारतीयों की इस सभा में रोहन ने सम्बोधित किया,
"यह समय आपस में लड़ने का नहीं है।  धोखे से कोई भी आज दूसरों के लिए महाभारत में वर्णित लाक्षागृह बनाएगा तो वह ही उसमें जल जायेगा।  आज की तकनीकि से सभी कुछ पता चल जाता है कि आग किसने लगाईं है।  भारत शांतिप्रिय देश है।  भारत ने हमेशा दुनिया को शान्ति का सन्देश दिया है।  विश्व बंधुत्व का सन्देश हमारी रग-रग में भरा हुआ है।  वासुदेव कुटुंभ्कम, यानी पूरी दुनिया हमारा परिवार है।  पड़ोसी भूखा, बीमार या किसी कष्ट में है तो दूसरा पड़ोसी  चैन से नहीं रह सकता।  हम पड़ोसी नहीं बदल सकते।  हाँ हम अच्छा व्यवहार और सद्भावपूर्ण व्यवहार रख सकते हैं।  यहाँ देखो जहाँ नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड और डेनमार्क आपस में कितने जुड़े हैं।  इन देशों के नागरिक एक दूसरे के देश में बिना किसी रोकटोक के आ-जा सकते हैं। नौकरी और व्यापार कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं।  पर आतंकियों को सजा मिलनी चाहिए।  दुनिया से आतंक बंद हो, आतंकवाद मुर्दाबाद, दोषियों को सजा मिले।  निर्दोष लोगों को न्याय मिले।"
बीच में लोग नारे भी लगाते जा रहे थे जो कानों में अभी भी गूँज रहे थे।

रोहन वही प्रवासी भारतीय है जिसने भारत में किसान आंदोलन के समर्थन में ओस्लो, नार्वे में तीन सौ टैक्सियों को धीमी गति से चलाकर जाम लगाया था, पर पूरा प्रदर्शन शांतिपूर्ण था। 

प्रदर्शन सभा समाप्त होने के बाद, रोहन पार्लियामेन्ट के सामने से होता हुआ पार्किंग पर अपनी टैक्सी लेने आया तभी उसकी मुलाकात एक पाकिस्तान मूल के टैक्सी चालक सलीम से हुई। उसने भी आतंकी हमले की कड़ी निंदा की और ईश्वर से मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए दुआ की। 
"यार हम भी कब तक आपस में लड़ते रहेंगे", सलीम ने कहा। 

"हाँ, सलीम! देखो यहां हम सभी आपस में मिलजुल कर कितने प्यार से रहते हैं।" कहकर रोहन ने एक गहरी साँस ली। 
सलीम ने अपनी टैक्सी से बाहर निकलते हुए जवाब में कहा, 
"मैं जानता और मानता हूँ कि हमारे मुल्क पाकिस्तान में गरीबी है  और शासन सेना के हाथ में है।  सेना ही सरकार चलाती और बनाती है। भ्रष्टा चार   भ्र्ष्टाचार /करप्शन के चलते सेना खुद सम्पति और पैसा बाँट लेती है और अधिकतर जनता गरीब की गरीब रहती है।  चार पैसे के लिए, कभी धर्म के नाम पर भड़काकर दंगे फसाद कराना मुश्किल नहीं है।  लोग बहकावे में आ जाते हैं।"

रोहन ने कहा,  
"बंधु!  हमारी संस्कृति एक है, भाषा एक है, कल्चर एक है, फिर भी लड़ते रहते हैं।  यहाँ सभी साथ मिलकर रहते हैं, यहाँ से सीखना चाहिए। नफरत और हेट (घृणा) स्पीच के लिए इस मुल्क में कोई जगह नहीं है।" 
सलीम के मन में विचारों का गुबार फूट पड़ा। वह एक दार्शनिक सा कहने लगा,
"हम दोनों एक कौम हैं। गरीबी के कारण और मुगलों को अपनी संख्या बढ़ानी थी उन्होंने गरीब लोगों को लालच देकर मुस्लिम बनवा दिया।  लोग अपनी मर्जी से भी धर्म परिवर्तन करते हैं, अभी भारत में भी सभी आजाद हैं।  मैंने सुना है बहुत से लोग भारत में अभी शांति और भेदभाव से बचने के लिए  भी धर्म परिवर्तित कर रहे हैं, बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म अपना रहे हैं। 
हमारे मुल्कों में डेमोक्रेसी चाहिये। सेना जनता पर शासन नहीं कर सकती। वह पड़ोसी देशों में और अपने देशों में भी आतंकवादी हरकतें करती है। जो पहलगाँव में हुआ बहुत बुरा हुआ।  जो गाजा में हो रहा है, वह भी बहुत बुरा हुआ। भगवान से मनाओ कि हमारे देशों में डेमोक्रेसी हो जाये। भारत हमारा बड़ा भाई है। हमारी संस्कृति एक है। भारत की पूरी दुनिया में सुनी जाती है।"

"भारत में भी बहुत कुछ अच्छा नहीं चल रहा। प्रमुख मीडिया भी नफरत फ़ैलाने और फेक न्यूज के प्रचार-प्रसार में कम नहीं है।  विपक्षी दलों के नेताओं से अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है, जो डेमोक्रेसी में ठीक नहीं है। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। जनता किसी को सत्ता में बिठाती है तो उसे सत्ता से हटा भी देती है,  वह भी खून खराबे के बिना,"  रोहन ने कहा।

सलीम ने कहा, 
"मेरे प्यारे मित्र रोहन! भारत दूसरे मुल्कों से भी सहायता लेकर पाकिस्तान में डेमोक्रेसी के लिए पहल करे, मदद करे तो वहाँ डेमोक्रेसी हो सकती है। सेना की ज़्यादतियाँ खत्म हो जायेंगी। आतंकवाद भी ख़त्म हो जायेगा। 
जब सच्ची डेमोक्रेसी होगी, हम अपनी सरकार का चुनाव कर सकेंगे।"

रोहन ने एक राजनैतिक दलील दी, 
"हाँ, देखो नार्वे में कितनी डेमोक्रेसी है।  यहाँ सत्ता  पक्ष और विपक्ष कोई हो मानवता और देश को सर्वोपरि समझते हैं। यहाँ विपक्ष के नेता को यूरोप समुदाय संगठन में और नाटो का चीफ बनाने के लिए यहाँ की सरकार भेजती हैं। एक हम हैं कि विपक्ष और विरोधियों के खिलाफ गंदे हमले करते हैं, नफरत फैलाते है।  संसद में ही नेता सभापति तक अपने कर्तव्य का सही व्यवहार नहीं करते?"  
 
सलीम ने कहा,
"भारत में डेमोक्रेसी है, स्वतंत्रता है।  तुम्हारे ख्यालात बहुत अच्छे हैं।  तुम चुनाव क्यों नहीं लड़ते?  बेशक पाकिस्तान में नार्वे जैसी तो डेमोक्रेसी तो नहीं हो सकती, पर डेमोक्रेसी में कोई भूखा नहीं मरेगा सभी को आंटा तो मिलेगा। लोग रोटी तो बनाकर खा सकेंगे। भारत हमारी मदद करे कि  हमारे मुल्क में भी सही डेमोक्रेसी हो। "
  
रोहन ने आगे कहा "आओ काफी पीते हैं सामने वाले रेस्टोरेंट में" 
दोनों रेस्टोरेंट में चले जाते हैं और सामने एक बड़ा शीशा लगा है। 
दोनों शीशे के सामने आते हैं तभी रोहन अपने मित्र सलीम से कहता है,
"देखो सलीम! आओ शीशे में देखो।  हमारी और तुम्हारी शक्ल में क्या अंतर है? हमारी शक्लें एक जैसी मिलती दिखाई देती हैं। कोई अन्तर दिखता है।" 

"हाँ, बंधु! बिलकुल सही", रोहन ने कहा।

 दोनों मित्र एक दूसरे के गले लगते हैं और एक खाली मेज के दोनों ओर पड़ी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। जब दो मित्रों की चाय काफी पर चर्चा  शुरू होती है, तो कितनी देर चर्चा चलेगी पूर्व अनुमान लगाना कठिन है। सौहाद्रपूर्ण वातावरण है। रेस्टोरेंट में संगीत की मधुर धुन बज रही है। 

सलीम ने कहा,
"पहले तो भारत एक मुल्क था।  दोनों धर्मों के कट्टरपंथियों को क्या सूझा कि देश का बटवारा हो गया।  महात्मा गांधी जी की नहीं सुनी।  गाँधी जी ने कहा था कि बटवारा उनकी लाश पर होगा।  सभी पर गाँधी जी का प्रभाव था, पर उनकी बात नहीं माने।  मानो अंग्रेज पहले से सोच कर रखे थे कि इन्हें एक नहीं रहने देना है।"

रोहन ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,
"अंग्रेजों के बारे में यह कहावत प्रसिद्ध  है,  डिवाइड एन्ड रूल/ बाँटो और राज्य करो।  अब लोग समझने लगे हैं। नयी पीढ़ी नया सोचती है। वह दुनिया के साथ चलना चाहती है। वह शिक्षा चाहती है। वह नौकरी चाहती है। शान्ति चाहती है। अच्छे शहरी की तरह जीना चाहती है।"   

सलीम ने गहरी सांस ली और अतीत की बातें करने लगा,
"जानते हो रोहन!  मेरे दादा लखनऊ के हैं।  वह लखनऊ में ठाठ से अपना ताँगा चलाते थे।  तांगे की सवारी भी किसी नवाबी सवारी से कम नहीं थी। वह लखनऊ में ठाठ से ताँगा चलाते थे।  वह अपने तांगे की तारीफ़ करते थकते नहीं थे।  तांगे में कढ़ी हुई झालर, बटवारे  के समय अच्छी नौकरी का लालच दिया गया।  उन्हें सब्जबाग दिखाया गया था।  कट्टरवादी धार्मिक नेताओं के बहकावे में आ गये।  मेरे दादा जी को  हमेशा दोयम नागरिक की तरह देखा गया।  वह लखनऊ की बहुत याद करते हैं।"  
दादा जी की स्मृतियों को साझा करते हुए सलीम ने अपनी बात जारी रखी। 
"मेरा दादा लखनऊ के दशहरी आम की कलम के पौधे बेसुमार यहाँ  मंगवाकर बहुत से आम के बाग़ आबाद किये।  
जब वह बटवारे के समय आये थे तब वह लखनऊ से पानदान और न जाने क्या-क्या लाये थे।"

"अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत", कहकर रोहन ने सलीम को सांत्वना दी। 
 
"काश दादा जी ने बटवारे के समय एक बार और सोचा होता, अपने  आखिरी कदम से पहले विचार किया होता तो आज उनसे उनका मुल्क भारत और शहर लखनऊ नहीं छूटता, ", कहकर सलीम उदास हो गया था।
अक्सर हम आवेश में कोई ऐसा कदम उठा लेते हैं तो पछताना पड़ता है।  आखिरी कदम से पहले एक बार पुनर्विचार करें तो शायद अनेक आने वाली विपदाओं को रोका जा सकता है।

दोनों ने एक दूसरे को धन्यवाद दिया।  दोनों मित्रों को टैक्सी चलानी है। चाय पीकर दोनों अलग हुए। अपनी-अपनी टैक्सी लेकर निकल पड़े सवारी की तलाश में।
संवाद बहुत जरूरी है।  यही मात्र साधन है जुड़ने और जोड़ने का।
"हा दे ब्रा (नमस्ते)।"
"खुदा हाफिज।" 
"हार दे ब्रा (अलविदा)"
"नमस्ते, फिर मिलेंगे।"

Oslo, 20.05.2025

मंगलवार, 13 मई 2025

आँखियों के खरोखे में -सुरेश चंद्र शुक्ल

 आँखियों के खरोखे में 

सुरेश चंद्र शुक्ल 

ओस्लो, नार्वे 

एक 

दिलासा दे रहे हैं अमलतास।

खिलखिलाते रहे हैं अमलतास।

झालरें ज्यों छू रही आकाश,

झूमरों से झूलते अमलतास। 


कभी पूरी हो न सकी वह आस,

प्रेम कहीं हो ज्ञान का  इतिहास।

तपती जेठ ग्रीष्म रथ पर सवार,

हाथ पीले कर रही अमलतास।


धू धू कर धधक कर

अमलतास खिल जाते हैं।

आँगन में पीले सफ़ेद 

हरसिंगार बिछ जाते हैं।


हरसिंगार महकता बगिया में,

चाँदनी साथ खिलती थी। 

भू से चुन चुनकर लाता,

फिर प्रिय को देने जाता। 


सुदर्शन, बेला और चमेली,

गुलाब सदा हँसता था 

रातरानी की महक से 

पथिक भी रुकता था. 


दो 

कबूतर का आँख बंद गुटर गूँ,

पंछी का आँगन में  चहचहचहाना।

तब बयार का द्वार खटखटाना, 

सुराही सी याद तेरी आना।


पहरा दे, द्वार पर सो रही माँ,

छोटे घर में  लाज  ही दीवार।

बयार बैरन प्रिय खटखटाती,

आँख लगी है कौन खोले द्वार।   


आकाश से आँगन उतरे पंछी,

सूप से अनाज बछोर रही माँ। 

फुदक कर  दाना चुग रही चिड़िया, 

आज हमारी अँगुली पकड़े माँ। 


ओस्लो, 13.05.25 




गुरुवार, 2 जनवरी 2025

जीवन तुम खुशहाल हो - Suresh Chandra Shukla

जीवन तुम खुशहाल हो 

श्रम, धैर्य सजगता कमाल हो, 
चाह जिसकी करें वह साथ हो
ईमानदारी में कभी न रुकें कदम,
उद्देश्य के लिए समर्पित भाव हो।

हौंसले सदा बुलंद उसी के हैं,
काँटों से भी जो दोस्ती कर सके। 
कठिन सफ़र भी कट जायेगा, 
सुख-दुख में अगर कोई साथ हो।

स्वप्न देखने का बस ख़्याल हो।
ज्ञान और कला तुम्हारे साथ हो। 
रुकावटें बता रहीं बढ़ रहे कदम,
जीवन क्या खूब बेमिसाल हो।

01.01.25  Suresh Chandra Shukla 

सेलीना के नाम पत्र Brev til Selina - Suresh Chandra Shukla

सेलीना  के नाम पत्र Brev til Selina

मेरी पौत्री तुम बेमिसाल हो।

निश्छल, सरल तुम कमाल हो।
चिंता में खोये जो भी तुमसे मिले,
भूल जाये सब कुछ देर के लिए।
सबका मिले तुम्हें आशीष,
नमन करो झुकाकर शीश।
करो सभी को नमन
जीवन है एक चमन। 

खुश रहो, खेलो कूदो
शांति से रहो।
संस्कार को करो ग्रहण 
जीवन है एक चमन। 
चिड़ियों की तरह चहको 
तुम! स्कूल, आँगन घर।
रोओ, हँसो रहो अपने में मगन।
छुओ तुम नन्ही अँगुलियों से गगन।

नया साल मंगलमय हो।

सुरेश चन्द्र शुक्ल (बाबा)
ओस्लो, 31.12.24 

जीवन तुम बेमिसाल हो - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 जीवन तुम बेमिसाल हो - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

श्रम, धैर्य सजगता कमाल हो, 
चाह जिसकी करें वह साथ हो
ईमानदारी में कभी न रुकें कदम,
उद्देश्य के लिए समर्पित भाव हो।

हौंसले सदा बुलंद उसी के हैं,
काँटों से भी जो दोस्ती कर सके। 
कठिन सफ़र भी कट जायेगा, 
सुख-दुख कोई कोई साथ हो।

स्वप्न देखने का बस ख़्याल हो।
ज्ञान और कला तुम्हारे साथ हो। 
रुकावटें बता रहीं बढ़ रहे कदम,
जीवन क्या खूब बेमिसाल हो।
28.12.24 Suresh Shukla