गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

अमीरों के बकरे न बनो? जनता के जवाबदेह हो! - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'













 1993 में ओस्लो में बिशप एरोफ्लोट और नेलसन मंडेला के साथ लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

नेता और बकरे नहीं बनें  ?
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
नेता बकरे बने हुए,
तमाशा दिखा रहे यहाँ,
विदेश में मूर्ति बना,
स्वांग एकता के भरे।
विपक्ष-पक्ष के निंदकों के,
काटते गले रहे,
प्रेस और संसद में
विपक्ष को गालियाँ दे रहे?

प्रजातंत्र नहीं वहाँ,
जहाँ संवादहीनता रहे,
जहाँ पक्ष-विपक्ष साथ-साथ
विचार विमर्श नहीं करे।
गरीग और गरीब हुए,
सड़क पर अपराध बढ़ रहे
सुप्रीम कोट की गुहार को सरकार,
खुले आम अनसुनी करे।
बिना रायशुमारी के,
नाम शहर के बदल रहे?

देश की प्रतिष्ठा दाँव पर,
प्रधान बिन बुलाये विदेश जा रहे,
न संसद से सलाह से?
न जनता को बता रहे?
कौन साथ विदेश में,
साथ कौन किस भेष में?
क्यों हम और आप से प्रधान जी छिपा रहे?

सत्ता में जब प्रधान नहीं रहेंगे,
कहेंगे; हमें परेशान न करो?
जनता, नहीं सहेगी तानाशाही,
अब बस करो- अब बस करो?

गर जनता की न सुनी,
जनता नहीं बचायेगी।
सौहाद्र बिगाड़ रही ताकतें,
प्रतिबंधित जब हो जायेंगी।
कितने भी गाल फुलाओगे,
कभी न कुछ कर पाओगे।
जनता को जहाँ सताओगे,
फिर शान्ति कहाँ से पाओगे?

स्वदेश के कारीगर मरे
महा-अमीर लूटते रहे
गाँव में स्कूल नहीं,
अस्पताल में दवा नहीं।
हजारों बच्चों के अपहरण हो रहे
सरकार को पता नहीं?

यह गाँधी का देश है,
अपराधी खुलेआम धूमते,
चहुओर असमानता बढ़ रही
कुछ तो तुम जवाब दो।

शपथ लोकतंत्र की खाकर,
यदि पूरा नहीं  कर सको।
संभाल नहीं सकते देश को,
दफा हो, इस्तीफा दो?
जनता पुकारती
जवाब दो -जवाब दो ।

अमीरों के बकरे न बनो?
जनता के जवाबदेह हो!
जिसने तुम्हें चुना यहाँ,
उसके खैरखाह हो।

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