गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

नींव के पत्थर बनो - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Oslo,

नींव के पत्थर बनो
 सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 28.02.2019

चाँदनी फ़ैली दिखी है, जहाँ तक दृष्टि गयी है,
बर्फ की इन घाटियों में, चाँद जब दिखता नहीं है.
इगलुओं में मोमबत्ती, रोशनी देती नयी है.
आज कुछ तो अनमनी है, शीत से अपनी ठनी है।
राह के कंकड़ चुनो,
नींव के पत्थर बनो।
तेनसेंग ने कहा, एवरेस्ट के शिखर चढ़कर,
ऊपर ,हम खड़े थे, पर नीचे सारा जहाँ था.
शिखर पर चढ़कर सदा, नीचे सब दिखता जहाँ है.
हिलेरी का साथ सबको, आज अब मिलता कहाँ है।
राह काँटे की चुनो,
नींव के पत्थर बनो।
इंग्लिश चैनल पार कर, एक तैराक ने कहा था.
लहर के धपेड़ों ने हमारा, मार्ग रोका और खोला।
डूबने का भय नहीं, तब हौंसलों ने मन खखोला।
बिना पंखों भरी उड़ाने, संकल्प तराजू में तौला।
समय के संगी बनो.
नींव के पत्थर बनो।





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