शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
रविवार, 25 दिसंबर 2016
मेरे पिताजी डॉ बृजमोहन लाल का सपना पूरा होता दिख रहा है - सुरेश चंद्र शुक्ला Suresh Chandra Shukla, Oslo
मेरे पिताजी डॉ बृजमोहन लाल का सपना पूरा होता दिख रहा है
- सुरेश चंद्र शुक्ला
मेरे पिताजी डॉ बृजमोहन लाल शुक्ल रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर थे. वह पार्ट टाइम बहुत वर्षों तक गांधी मेडिकल हाल, मवैया लखनऊ में कम दाम पर तथा निशुल्क मिली जुली चिकित्सा की सेवा करते थे. उनका सपना था कि उनका एक बेटा यदि डाक्टर बने तो दोबारा लखनऊ, उ प्र, लखनऊ में एक क्लिनिक खोले और चिकित्सा की सेवा करे. उनके परिवार में अनेक डाक्टर बने पर अब यह सपना पूरा होता दिख रहा है. आशा है कि है यह सपना 2017 में लखनऊ वासियों और सरकार के सहयोग से पूरा होगा। एक चित्र ऊला अनुपम चित्र में हंगरी में चिकित्सा की डिग्री अपने विश्वविद्यालय में डिग्री प्राप्त करने के बाद अपने परिवार के साथ.
Min far Mr. B. M. Shukla var registert medical prectishner (en måte prktiserende lege), men han arbeidet i en jernbane fabrikk i Lucknow i India. Han hadde drøm om å åpne en klinikk i Lucknow i India som vil hjelpe folk første hjelp og generelle legevakten for vanlige folk. Da jeg var i Ungern på min søn Ola Anupams diplom utdeling, ble jeg glad og trodde at drømmen ble fulfylt.
Og i år 2017 ved hjelp av delstatsregjering. Tiden vil vise. Takk. Et bilde etter diplomutdeling i Ungarn.
Poem about Narendra Modi and Rahul Gandhi -by Suresh Chandra Shukla मोदी जी या राहुल, नेता दोनों खरे हैं । जो हरे-हरे थे, वे नोट जल रहे हैं.--सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
मोदी जी या राहुल, नेता दोनों खरे हैं ।
जो हरे-हरे थे, वे नोट जल रहे हैं.--सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
इस वर्ष की विदाई,
वह शुभ घड़ी आयी। नव वर्ष है चुनौती,
वह साथ लिए आयी।
नोटबंदी आयी ऐसे,
खुल गयी पोल भाई।
काले और उजले में
सब बाँटते मलाई।
कुछ की खुली कलई,
कुछ के बंद खाते।
सब कुछ देख रहे हैं
यह साल जाते-जाते।।
हजार हुए हैं खारिज
पांच सौ की विदायी।
जिनके हैं बंद खाते,
करवट बदल रहे हैं.
अब सारी देनदारी,
कार्ड से कर रहे हैं.
जो कल था करना,
वह आज कर रहे हैं.
नकदी मुक्त भारत,
दिशा बदल रहे हैं..
चोरी -चकारी से अब,
जो कल था करना,
वह आज कर रहे हैं.
नकदी मुक्त भारत,
दिशा बदल रहे हैं..
चोरी -चकारी से अब,
टूट रहा है नाता
जबसे बैंक कार्डों से
भुगतान कर रहे हैं..
मोदी जी या राहुल
नेता दोनों खरे हैं ।
नोट दो हजार से वे,
दीखते हरे-भरे हैं..
दीखते हरे-भरे हैं..
एक विपक्ष में रहकर,
वह संज्ञान ले रहे हैं.
राजा हमारे बनकर,
वह उपदेश दे रहे हैं.
न भाषण से पेट भरते,
न रोटी कभी पकी है.
रोजगार कम हुए हैं,
ईज्जत कहीं बिकी है. .
विकास हवा महल के
बिन बने ढह रहे हैं. ठिठुर रही है दुनिया,
अलाव जल रहे हैं.
शनिवार, 24 दिसंबर 2016
पांचवा खंभा अच्छा और आकर्षक शीर्षक लगता है-सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
साहित्य का पांचवां खम्भा न्यायालय और संसदों के बाहर संघर्ष रत लोग हैं
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
दलित साहित्य को लेकर हमारे डॉ काली चरण स्नेही जी अपने प्रायास को अपने छात्रों पर रौब से प्रजातंत्र का पांचवा खंभा कह रहे हैं.
असल में जो रक्षा करता है, संघर्ष करता है न्याय दिलाने के लिए वह प्रजातंत्र का खम्भा कहलायेगा। पीड़ित व्यक्ति और सताये हुए व्यक्ति से पूछकर देखिये उसे किसका साथ चाहिए उसे न्याय चाहिए कविता या कहानी नहीं चाहिए। ये बाद की चीजें हैं.
प्रजातंत्र में किसी कभी साथ आप भेदभाव करके गालियां देकर कार्य नहीं कर सकते।
अधिकतर भारतीय राजनैतिक पार्टियां अपने सिद्धांतों पर नहीं चलतीं क्योकि कार्यकर्ताओं को आदरणीय स्नेही जी की तरह नहीं मालुम कि राजनीति समस्या को सुलझाने का तरीका है उसमें भी बहुमत और जो संसद में नहीं है उसके संवाद के जरिये समन्वय की जरूरत होती है तभी कानून बनते हैं.
लिंकन, गांधी जी, मार्टिन लूथर किंग को देखिये। तमाम उदाहरण हैं.
कई साहित्यकारों ने अनेक बार ध्यानाकर्षण के लिए अनेक विधाएं चलायीं। जैसे लखनऊ में ही अकविता, अगेय, अकहानी आदि उसी तरह आपका पाँचवाँ खंभा। पांचवा खंभा अच्छा और आकर्षक शीर्षक लगता है.
लोकतंत्र का पांचवां खम्भा नहीं लाखवां खंभा कहा जा सकता है बहुत से लोगों अनेक बार अपनी विधा को पांचवा खम्भा कहा है. आपको इस तरह के पत्रिकाओं के शीर्षक मिलेंगे जो इस तरफ इशारा करते हैं.
लोकतंत्र की रक्षा के लिए मानवाधिकार के लिए लगे लोगों में बहुत से सामाजिक कार्यकर्ता, न्याय दिलाने के लिए दिन रात- सर्वस्व निछावर करके देश में अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ते हुए न्याय दिला रहे हैं. सड़कों, न्यायालयों, खेत खलियानों में लगे हैं. वे असली खम्भे हैं समाज के. हम आप कूलर में बैठकर छाया में जिंदगी बिता रहे हैं.
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
दलित साहित्य को लेकर हमारे डॉ काली चरण स्नेही जी अपने प्रायास को अपने छात्रों पर रौब से प्रजातंत्र का पांचवा खंभा कह रहे हैं.
असल में जो रक्षा करता है, संघर्ष करता है न्याय दिलाने के लिए वह प्रजातंत्र का खम्भा कहलायेगा। पीड़ित व्यक्ति और सताये हुए व्यक्ति से पूछकर देखिये उसे किसका साथ चाहिए उसे न्याय चाहिए कविता या कहानी नहीं चाहिए। ये बाद की चीजें हैं.
प्रजातंत्र में किसी कभी साथ आप भेदभाव करके गालियां देकर कार्य नहीं कर सकते।
अधिकतर भारतीय राजनैतिक पार्टियां अपने सिद्धांतों पर नहीं चलतीं क्योकि कार्यकर्ताओं को आदरणीय स्नेही जी की तरह नहीं मालुम कि राजनीति समस्या को सुलझाने का तरीका है उसमें भी बहुमत और जो संसद में नहीं है उसके संवाद के जरिये समन्वय की जरूरत होती है तभी कानून बनते हैं.
लिंकन, गांधी जी, मार्टिन लूथर किंग को देखिये। तमाम उदाहरण हैं.
कई साहित्यकारों ने अनेक बार ध्यानाकर्षण के लिए अनेक विधाएं चलायीं। जैसे लखनऊ में ही अकविता, अगेय, अकहानी आदि उसी तरह आपका पाँचवाँ खंभा। पांचवा खंभा अच्छा और आकर्षक शीर्षक लगता है.
लोकतंत्र का पांचवां खम्भा नहीं लाखवां खंभा कहा जा सकता है बहुत से लोगों अनेक बार अपनी विधा को पांचवा खम्भा कहा है. आपको इस तरह के पत्रिकाओं के शीर्षक मिलेंगे जो इस तरफ इशारा करते हैं.
लोकतंत्र की रक्षा के लिए मानवाधिकार के लिए लगे लोगों में बहुत से सामाजिक कार्यकर्ता, न्याय दिलाने के लिए दिन रात- सर्वस्व निछावर करके देश में अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ते हुए न्याय दिला रहे हैं. सड़कों, न्यायालयों, खेत खलियानों में लगे हैं. वे असली खम्भे हैं समाज के. हम आप कूलर में बैठकर छाया में जिंदगी बिता रहे हैं.
पहली बार जब मैंने क्रिसमस नहीं भेजा- -सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla क्रिसमस पर्व पर आपको शुभकामनायें. God Jul.
पहली बार जब मैंने क्रिसमस नहीं भेजा- -सुरेशचंद्र शुक्ल
इस पौधे को Jule stjerne ( क्रिसमस तारे) कहते हैं
Kjære venner ta en tur til din kjente. Å ha en riktig GOD JUL!
क्रिसमस पर्व पर आपको शुभकामनायें. पहली बार जब मैंने अभी तक क्रिसमस की शुभकामनायें किसी को नहीं भेजी हैं.
केवल अखबार में मेरी शुभकामनायें छपी हैं.
क्रिसमस त्यौहार ने धार्मिकता दरकिनार कर दिया है.
यह त्यौहार यहाँ स्कैण्डिनेवियाई देशों में एक परम्परा बन गया है जबकि भारत में फैशन बनता जा रहा है.
लोगों को अपने लोगों से मिलने की बेचैनी और उपहारों और मजेदार चाकलेट मिठाई आदि प्रभावित करती है. आज शाम यहाँ सभी कुछ बंद हो जायेगा। बस और रेल भी कुछ समय के लिए शाम को बंद रहेंगे।
लोग अपने परिवार के साथ मनाते हैं यह दिन.
कल रात सिनेमाहाल में शाम परिवार के साथ फिल्म 'दंगल' देखी। रात बारह बजे घर आये.
सोमवार, 19 दिसंबर 2016
प्रेमचंद का किराए का मकान ढहा. Mest kjent forfatter Premchands historisk leilighet er ødelagt.-Suresh Chandra Shukla
प्रेमचंद का किराए का मकान ढहा.
महोबा के मोहल्ला छजमनपुरा में मुख्य बाजार में मुशी प्रेमचंद का किराए का मकान ढहने के साथ उनकी यादें भी ख़त्म हो गई हैं । 16 अगस्त 2016 को बारिश के चलते यह जर्जर आवास ढह गया था।
महोबा के मोहल्ला छजमनपुरा में मुख्य बाजार में मुशी प्रेमचंद का किराए का मकान ढहने के साथ उनकी यादें भी ख़त्म हो गई हैं । 16 अगस्त 2016 को बारिश के चलते यह जर्जर आवास ढह गया था।
इसी ऐतिहासिक इमारत में रहकर मुंशी प्रेमचंद ने कई उपन्यास और कहानियाँ भी लिखी हैं।
वर्ष 1909 से 1916 तक बेसिक शिक्षा विभाग में एसडीआई के पद पर रहे मुंशी प्रेमचंद स्कूलों का निरीक्षण बैलगाड़ी से करते थे।
रात में गाँव में ही विश्राम करते थे और अगले दिन आसपास के गाँवों के स्कूलों का निरीक्षण करते थे।
वे महोबा के मोहल्ला छजमनपुरा में किराए पर क़रीब 7 साल तक रहे ।
छजमनपुरा में किराए के मकान में रहकर ही मुंशी प्रेमचंद ने 'आत्माराम' और 'मंत्र' जैसी मशहूर कहानियाँ लिखी हैं।
इसके अलावा शोज-ए-वतन पुस्तक नवाब राय के नाम से लिखी थी। लोग इस इमारत को 'मुंशी प्रेमचंद की इमारत' के नाम से जानते थे। (जय प्रकाश मानस की फेसबुक से साभार.)
बंधुवर इस समय तो प्रेमचन्द जीवित नहीं हैं. आजकल तो अनेक लेखकों को उनके घर से बेघर किया जा रहा है.
कभी इस पर भी नजर डालूंगा।
वर्ष 1909 से 1916 तक बेसिक शिक्षा विभाग में एसडीआई के पद पर रहे मुंशी प्रेमचंद स्कूलों का निरीक्षण बैलगाड़ी से करते थे।
रात में गाँव में ही विश्राम करते थे और अगले दिन आसपास के गाँवों के स्कूलों का निरीक्षण करते थे।
वे महोबा के मोहल्ला छजमनपुरा में किराए पर क़रीब 7 साल तक रहे ।
छजमनपुरा में किराए के मकान में रहकर ही मुंशी प्रेमचंद ने 'आत्माराम' और 'मंत्र' जैसी मशहूर कहानियाँ लिखी हैं।
इसके अलावा शोज-ए-वतन पुस्तक नवाब राय के नाम से लिखी थी। लोग इस इमारत को 'मुंशी प्रेमचंद की इमारत' के नाम से जानते थे। (जय प्रकाश मानस की फेसबुक से साभार.)
बंधुवर इस समय तो प्रेमचन्द जीवित नहीं हैं. आजकल तो अनेक लेखकों को उनके घर से बेघर किया जा रहा है.
कभी इस पर भी नजर डालूंगा।
रविवार, 18 दिसंबर 2016
हॉकी जूनियर WC: बेल्जियम को हरा भारत बना विश्व चैंपियन- बधाई। -Suresh Chandra Shukla
हॉकी जूनियर WC: बना विश्व चैंपियन.
India er verdens mester i Junior Landshockey i 2016. Gratulerer.
मेरे बचपन के शहर लखनऊ, भारत के स्टेडियम में आज जूनियर हॉकी विश्वकप के फाइनल मैच में बेल्जियम को २ -१ हराकर विश्व चैम्पियन बन गये.
हॉकी जूनियर WC: बेल्जियम को हरा भारत बना विश्व चैंपियन, 2-1 से हराया. लखनऊ. बधाई।
भारत ने हॉकी जूनियर विश्व कप में बेल्जियम को 2-1 से हराकर विश्व चैंपियन का खिताब अपने नाम कर लिया है। भारत की टीम इस टूर्नमेंट में अजेय रही और उसने अपने सभी 6 मैचों में जीत दर्ज की। 15 साल बाद भारत ने यह खिताब एक बार फिर अपने नाम किया है। इससे पहले 2001 में ऑस्ट्रेलिया के होबर्ट में भारत ने अर्जेंटीना को हराकर इस खिताब पर अपना कब्जा जमाया था।
शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016
Narendra Modi speeks on Indira Gandhi? -Suresh Chandra Shukla नरेंद्र मोदी जी इन्दिरा जी के बारे में भ्रमात्मक बाते कह रहे हैं
नरेंद्र मोदी जी इन्दिरा जी के बारे में भ्रमात्मक बाते कह रहे हैं
जो एक प्रधानमंत्री को दिवंगत प्रधानमंत्री के बारे में शोभा नहीं देता
हमारे प्रधानमंत्री यदि अपने ही देश की प्रधानमंत्री के बारे में यदि गलत बोलेंगे तो वह शिष्टाचार नहीं निभा रहे.
आर एस एस शिष्टाचार की संस्था कही जाती है, जो राष्ट्रीय और एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है.
समाचार पत्र के अनुसार उन्होंने पार्टी बैठक में इंदिरा जी के बारे में और उनके शासनकाल के बारे में जो उप्लब्दियाँ रहीं वह नहीं बताते। हर नेता के नेतृत्व में कुछ बहुत अच्छा होता है कुछ गलतियां होती हैं.
इंदिरा जी विदेशों में प्रेस कांफ्रेंस में नहीं बोलती थीं और मोदी जी ज्यादा बोलते हैं.
मोदी जी का समर्थक और प्रशंसक
मैं मोदी जी का समर्थक और प्रशंसक हूँ, प्रधानमंत्री सभी का होता है यह वह भूल जाते हैं.
वह अपने को अक्सर केवल बी जे पी का ही प्रधानमंत्री मानते हैं ऐसा मैंने लोगों को कहते सुना है. मेरे बहुत अच्छे मित्र बी जे पी से सम्बन्ध रखते हैं और जो बहुत अच्छे इंसान हैं.
आदमी जो सुनता है वह अक्सर वह एक पक्ष भी हो सकता है. ऐसा कभी नहीं होता कि एक नेता हमेशा चर्चित रहता है जो ऊंचाई पर चढ़ेगा वह नीचे भी उतरेगा यह प्रकृति का नियम है. दुनिया में बहुत से लोग हैं जिन्हें मोदी जी के कुछ कार्य और मोदी जी के कुछ कार्य पसंद हैं. पर सवाल यह है कि व्यक्ति को कुछ ऐसा नहीं बोलना चाहिये जिससे बाद में प्रतिष्ठा गिरे। जबान से शब्द निकलने के बाद अपने नहीं रहते वे सार्वजनिक हो जाते हैं.
इन्दिरा जी के शासन काल सन 1983 में कंप्यूटर में तेजी आयी
मोदी जी ने पार्टी बैठक में कुछ इस तरह कहा कि इंदिरा जी के शासन काल में स्वाइप मशीन आदि लग जाती नोट बंदी होती तो उन्हें आसानी हो जाती।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ मैं भारत की आई टी मिनिस्ट्री में दो बार गया हूँ. वहां से ज्ञात हुआ कि सन 1983 से यह मिनिस्ट्री पूरे देशवासियों को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ के प्रोग्राम (साफ्ट वेयर) मुफ्त उपलब्ध कराती थी. जिससे सभी इच्छुक और बड़ी छोटी इंडस्ट्री को साफ्टवेयर मुफ्त मिला जबकि विदेशी कंपनियां इस तरह के साफ्टवेयर बेचती थीं. इंदिरा जी की ह्त्या सन 1984 में हो गयी थी.
इंदिरा गांधी जी एक शिष्ट नेता थीं
इंदिरा जी के भाषणों को उठाकर देखें तो आप पाएंगे कि उनके भाषण नपे तुले होते थे. मुझे इंदिरा गांधी जी से तीन बार मिलने का मौक़ा मिला था. मोदी जी से प्रवासी भारतीय दिवस पर एक बार हाथ मिलाया है.
इन्दिरा और मोदी के दो वर्ष के भाषणों पर तुलनात्मक एम फिल हो
इंदिरा जी के दो सालों के भाषणों और मोदी जी के दो सालों के सार्वजनिक मंचों/आम सभा/पार्टी बैठक का संग्रह एक साथ तुलना के साथ छपाया जाये तो अच्छा होगा। इन्दिरा जी ने इमरजेंसी लगाई जिसमें बहुत से फायदे हुए और बहुत ज्यादा नुक्सान भी हुये। राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी इस पर एम फिल भी कर सकते हैं.
तानाशाही के कारण चुनाव हारने के बाद इंदिरा जी जयप्रकाश नारायण से मिलने गयीं और छमा माँगी थी. और वह दोबारा सत्ता में आयीं। राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी इस पर एम फिल भी कर सकते हैं.
गुरुवार, 15 दिसंबर 2016
बुधवार, 14 दिसंबर 2016
Lært mye av Marit Nybakk og Hadia Tajik-Suresh Chandra Shukla मारित नीबाक,Marit Nybakk Hadia Tajik
राजनीति में बहुत कुछ सीखा है मारित नीबाक से Marit Nybakk -Suresh Chandra Shukla
दोस्ती घर से दूतावास तक ले गई।
हर व्यक्ति के अपनी हस्ती होती है। उसका एक मुकाम होता है। उसकी एक आस्था होती है किसी भी व्यक्ति के लिए। एक विचार बन जाता है किसी के लिए।
मारित नीबाक ने नार्वे की पार्लियामेन्ट (Storting) में ३० सालों से सांसद हैं. कल ओस्लो के सामफ्यून्स हूस, ओस्लो में उनके राजनीति में 30 साल पूरे होने पर एक बैठक संपन्न हुआ जिसमें ओस्लो लेबर पार्टी के अध्यक्ष फ्रूदे, हादिया ताजिक और मारित नीबाक ने प्रकाश डाला और उनके योगदान और पार्टी एक लिए किये गये प्रयासों की प्रशंसा की गयी गयी.
नाटो के चीफ और नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री जेन्स स्तूलतेनबर्ग ने वीडियो सन्देश में कहा कि मारित नीबाक एक बहुत अच्छी नेता हैं औरन उनसे उन्होंने बहुत सीख है और वह एक अच्छी मित्र भी हैं.
पूर्व मंत्री और नार्वे की अरबाइदर (लेबर) पार्टी की नेता ने हादिया ताजिक ने मारित को प्रेरणादायक बताया।
मैं मारित को एक अच्छी सुलझी हुई मित्र नेता हैं जो सभी का सम्मान करती हैं.
मुझे मेरिट नीबाक ने इन्टरनेशनल फोरम के कार्यकारिणी में सदस्य बनाने के लिए अनुमोदित किया था जिसमें मैं तीन वर्ष तक कार्यकारिणी और उस नेटपत्रिका में सम्पादकीय विभाग में सदस्य रहा.
मारित 14 फरवरी को 70 वर्ष की हो जायेंगी।
20 पहले जब उनका जब उनका 50वाँ जन्मदिन मनाया गया था AOF की तरफ से तो मैंने भी उसमें एक कविता पढ़ी थी. उन्होंने मुझे पार्लियामेंट में प्रवासियों पर हुई कांफ्रेंस में मंच पर स्थान दिलाया था.
Det var inspirernde å høre på min venn politiker og partikollega Marit Nybak og unge talentful politiker Hadia Tajik.
De begge insirerer meg ved å møte folk og å gi respons. Takk til begge to og lykke til med fremtiden.
- Suresh Chandra Shukla, Samfunnssalen i Oslo, 13.12.16
दोस्ती घर से दूतावास तक ले गई।
हर व्यक्ति के अपनी हस्ती होती है। उसका एक मुकाम होता है। उसकी एक आस्था होती है किसी भी व्यक्ति के लिए। एक विचार बन जाता है किसी के लिए।
मारित नीबाक ने नार्वे की पार्लियामेन्ट (Storting) में ३० सालों से सांसद हैं. कल ओस्लो के सामफ्यून्स हूस, ओस्लो में उनके राजनीति में 30 साल पूरे होने पर एक बैठक संपन्न हुआ जिसमें ओस्लो लेबर पार्टी के अध्यक्ष फ्रूदे, हादिया ताजिक और मारित नीबाक ने प्रकाश डाला और उनके योगदान और पार्टी एक लिए किये गये प्रयासों की प्रशंसा की गयी गयी.
नाटो के चीफ और नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री जेन्स स्तूलतेनबर्ग ने वीडियो सन्देश में कहा कि मारित नीबाक एक बहुत अच्छी नेता हैं औरन उनसे उन्होंने बहुत सीख है और वह एक अच्छी मित्र भी हैं.
पूर्व मंत्री और नार्वे की अरबाइदर (लेबर) पार्टी की नेता ने हादिया ताजिक ने मारित को प्रेरणादायक बताया।
मैं मारित को एक अच्छी सुलझी हुई मित्र नेता हैं जो सभी का सम्मान करती हैं.
मुझे मेरिट नीबाक ने इन्टरनेशनल फोरम के कार्यकारिणी में सदस्य बनाने के लिए अनुमोदित किया था जिसमें मैं तीन वर्ष तक कार्यकारिणी और उस नेटपत्रिका में सम्पादकीय विभाग में सदस्य रहा.
मारित 14 फरवरी को 70 वर्ष की हो जायेंगी।
20 पहले जब उनका जब उनका 50वाँ जन्मदिन मनाया गया था AOF की तरफ से तो मैंने भी उसमें एक कविता पढ़ी थी. उन्होंने मुझे पार्लियामेंट में प्रवासियों पर हुई कांफ्रेंस में मंच पर स्थान दिलाया था.
Det var inspirernde å høre på min venn politiker og partikollega Marit Nybak og unge talentful politiker Hadia Tajik.
De begge insirerer meg ved å møte folk og å gi respons. Takk til begge to og lykke til med fremtiden.
- Suresh Chandra Shukla, Samfunnssalen i Oslo, 13.12.16
सोमवार, 12 दिसंबर 2016
परायी जमीन पर सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, Oslo, 12.12.16
परायी जमीन पर
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
अपने देश में अनजान पक्षियों की तरह
अपना कोई खुद का मकान नहीं।
दिनोदिन जब पश्चिम में बढ़ रही है बेरोजगारी,
तकादा करते भुगतान के लिए बिल,
बैंक के खाते में नहीं हैं पैसे?
कैसे चुकाऊं और कहाँ जाऊँ
इससे उधेड़बुन में में
परिवार का सदस्य बढ़ जाता है.
हर कोई दस्तक देकर नहीं आता.
हर दस्तक किसी आने की आहट नहीं होती।
आसमान में छाया धुंधलका,
जमीन पर जमी बर्फ की फिसलन पर,
अब पैर नहीं जमते।
हाँ यह ओस्लो का एक मोहल्ला है वाइतवेत.
जहाँ बच्चे-बूढ़े और जवान
सभी के मध्य होकर गुजरता हूँ प्रतिदिन।
यहाँ आदमी दस साल पहले मर जाता है,
यहाँ अपेक्षाकृत आमदनी में कमी,
बन जाती है आर्थिक नमी.
यह धरती उनके लिए है परायी
जो अपना घरबार छोड़कर दूसरे देश में आये
प्रवासी या शरणार्ती कहललाये।
अपना देश छोड़कर कौन बाहर जाता है.
आदमी का आदमी से सच्चा नाता है.
suresh@shukla.no
रविवार, 11 दिसंबर 2016
सैंडविच बेचते थे दिलीप कुमार 11 दिसंबर, आज जन्मदिन है. - सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो Suresh Chandra Shukla
कभी आर्मी क्लब में सैंडविच बेचते थे दिलीप कुमार
11 दिसंबर : आज है दिलीप कुमार का जन्मदिन
शिखा त्रिपाठी
नई दिल्ली, 10 दिसंबर। बॉलीवुड में
'ट्रेजिडी किंग' के नाम से मशहूर दिलीप कुमार बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार
हैं। वह राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। हिंदी सिनेमा में उन्होंने पांच
दशकों तक अपने शानदार अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज किया। उन पर
फिल्माया गया 'गंगा जमुना' का गाना 'नैना जब लड़िहें तो भैया मन मा कसक
होयबे करी' को भला कौन भूल सकता है!
दिलीप कुमार को भारतीय फिल्मों के
सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
इसके अलावा उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज
से भी सम्मानित किया गया है।
दिलीप कुमार का असली नाम मुहम्मद यूसुफ
खान है। उनका जन्म पेशावर (अब पाकिस्तान में) में 11 दिसंबर, 1922 को हुआ
था। उनके 12 भाई-बहन हैं। उनके पिता फल बेचा करते थे व मकान का कुछ हिस्सा
किराए पर देकर गुजर-बसर करते थे।
दिलीप ने नासिक के पास एक स्कूल में पढ़ाई की।
जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनायें, दिलीप कुमार।
कभी आर्मी क्लब में सैंडविच बेचते थे दिलीप कुमार.
11 दिसंबर : आज है दिलीप
कुमार का जन्मदिन है. जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनायें।
दिलीप कुमार जी और
सायरा जी से मुलाक़ात मैनचेस्टर में हुए कविसम्मेलन में हुई थी जिन्हें वहाँ
लाने का श्रेय डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी को था.
वर्ष 1930 में उनका परिवार मुंबई आकर बस
गया। वर्ष 1940 में पिता से मतभेद के कारण वह पुणे आ गए। यहां उनकी मुलाकात
एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद से हुई, जिनकी मदद से उन्होंने आर्मी क्लब
में सैंडविच स्टॉल लगाया। कैंटीन कांट्रैक्ट से 5000 की बचत के बाद, वह
मुंबई वापस लौट आए और इसके बाद उन्होंने पिता को मदद पहुंचने के लिए काम
तलाशना शुरू किया।
वर्ष 1943 में चर्चगेट में इनकी मुलाकात
डॉ. मसानी से हुई, जिन्होंने उन्हें बॉम्बे टॉकीज में काम करने की पेशकश
की, इसके बाद उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई।
उनकी पहली फिल्म 'ज्वार भाटा' थी, जो 1944
में आई। 1949 में फिल्म 'अंदाज' की सफलता ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। इस
फिल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया। 'दीदार' (1951) और 'देवदास'
(1955) जैसी फिल्मों में दुखद भूमिकाओं के मशहूर होने की वजह से उन्हें
ट्रेजिडी किंग कहा गया।
वर्ष 1960 में उन्होंने फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में मुगल राजकुमार जहांगीर की भूमिका निभाई। यह फिल्म पहले श्वेत और श्याम थी और 2004 में रंगीन बनाई गई। उन्होंने 1961 में फिल्म 'गंगा-जमुना' का खुद निर्माण किया, जिसमें उनके साथ उनके छोटे भाई नसीर खान ने काम किया।
उन्होंने जब हिंदी फिल्मों में काम करना
शुरू किया, तो मुहम्मद यूसुफ से अपना नाम बदलकर दिलीप कुमार कर दिया, ताकि
उन्हें हिंदी फिल्मों मे ज्यादा पहचान और सफलता मिले।
दिलीप कुमार ने अभिनेत्री सायरा बानो से
11 अक्टूबर, 1966 को विवाह किया। विवाह के समय दिलीप कुमार 44 वर्ष और
सायरा बानो महज 22 वर्ष की थीं। उन्होंने 1980 में कुछ समय के लिए आसमां से
दूसरी शादी भी की थी।
बॉलीवुड के प्रेमी जोड़ों की जब भी बात की जाती है, तो सायरा बानो और दिलीप कुमार का नाम जरूर आता है।
दिलीप कुमार और सायरा इन दिनों बुढ़ापे की
दहलीज पर हैं। दिलीप कुमार अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित हैं और सायरा उनकी
एकमात्र सहारा हैं। हर कहीं दोनों एक साथ आते-जाते हैं और एक-दूसरे का
सहारा बने हुए हैं।
दोनों को कई पार्टियों और फिल्मी प्रीमियर के मौके पर साथ देखा जाता है। सायरा अपने खाली समय को समाजसेवा में लगाती हैं।
वर्ष 2000 में दिलीप राज्यसभा सदस्य बने। 1980 में उन्हें मुंबई का शेरिफ घोषित किया गया और 1995 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
दिलीप कुमार को 1983 में फिल्म 'शक्ति',
1968 में 'राम और श्याम', 1965 में 'लीडर', 1961 की 'कोहिनूर', 1958 की
'नया दौर', 1957 की 'देवदास', 1956 की 'आजाद', 1954 की 'दाग' के लिए
फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से नवाजा गया।
दिलीप कुमार का 11 दिसंबर को 94वां जन्मदिन है। लेकिन इस बार दिलीप साहब अपना जन्मदिन नहीं मना रहे।
जन्मदिन न मनाने की वजह उनकी खराब सेहत
नहीं, बल्कि बॉलीवुड अभिनेत्री सायरा बानो के भाई का निधन है। यानी अपने
साले के इंतकाल की वजह से दिलीप कुमार अपना जन्मदिन धूमधाम से नहीं, बल्कि
कुछ करीबी दोस्तों के साथ सादगी से मनाएंगे।
जन्मदिन के अवसर पर उनके स्वस्थ्य जीवन की कामना करते हैंमोदी जी कहीं परेशानी में तो नहीं हैं? उनकी सहायता कीजिये - सुरेशचन्द्र शुक्ल, Suresh Chanda Shukla, Oslo, 11.12.16
मोदी जी कहीं परेशानी में तो नहीं हैं? उनकी सहायता कीजिये
- सुरेशचन्द्र शुक्ल, Suresh Chanda Shukla, Oslo, 11.12.16
आजकल मोदी जी बिना अपनी जनता के बारे में उनकी सोच को समझे हुए उपदेश और संदेश दे रहे हैं।उनके साथी और सहयोगी उनका अंधा सहयोग दे रहे हैं ऐसा प्रतीत होता है। हो सकता है यह अनुमान गलत हो।
डॉ राम गोपाल के पत्र मेंलिखा है कि
"मित्रो, 8 नवंबर को जब माननीय मोदी जी ने बड़े नोट वापसी का फैसला लिया तो उनके इस कदम का स्वागत करने वालो की भीड़ में मैं भी शामिल था ,परंतु कल विशाल जन सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने जो कहा उसने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या ये हमारे देश के पी एम् बोल रहे हैं।उन्होंने कहा कि आप यदि कार से कही जा रहे हैं और लाल बत्ती पर आपको भिखारी मिल जाए तो आप तुरंत जेब से कार्ड निकालें और उसे कहें भैया मेरे पास छुट्टे नहीं हैं ,तुम अपनी स्वेप मशीन में ये कार्ड स्वेप कर अपने खाते में पैसा डाल लो।
आश्चर्य हुआ,उन्हें ये जानकारी होनी चाहिए थी कि स्वेप मशीन उन व्यवसायियों को दी जाती है जिसका बैंक में करेंट अकाउंट खुला हो ,हर समय उसमे 10000 बैलेंस बना रहे।क्या कोई भिखारी ऐसा करेगा।दुसरे आप यदि इसे व्यापार मानते हैं और भीख को प्रोत्साहन दे रहे हैं तो फिर कैशलेस संबंधी सारे सवाल बेमानी हो जाएंगे।नेट से पेमेंट लागू करने से पूर्व देश मे सभी जगह नेट उपलब्धि,हर नागरिक को आवश्यक शिक्षा और खाते खोलने लायक आर्थिक स्थिति जैसी मूलभूत सुविधाएं देना जरूरी है।दुनिया में सर्वाधिक कैशलेस व्यवस्था वाले देश बेल्जियम में भी शायद भिखारी स्वेप मशीन नहीं रखता होगा फिर है।भारत जैसे गरीब देश के लिए पी एम् द्वारा इस प्रकार का उदाहरण देना क्या मजाक नहीं।जरा सोचिए।"
भारत के प्रधानमंत्री जी को अभी बहुत चीजों का ज्ञान नहीं है।
सारी सूचनाएँ स्वयं देना चाहते हैं जिसके वह जानकार नहीं हैं।
उन्हें अभी भी सभी राजनैतिक दलों के साथ समन्वय करने के साथ-साथ
वे भारतीय उपभोक्ता संघ, सामाजिक संगठनों और श्रमिक संघों के साथ
विचार विमर्श करके चलें
अन्यथा कहा जाता है कि या तो इनकी आखिरी सरकार होगी
जिसका ज्ञान और भान उन्हें नहीं है
या वे इमरजेंसी लगायेंगे।
उन्हें नोबल पुरस्कार विजेता से सीखना चाहिये
जो अपने देश में हुए गृह युद्ध से निपटने के लिए सभी का सहयोग ले रहे हैं जैसे राजनैतिज्ञ, पत्रकार, चिकित्सक, व्यापारी और कन्फ़्लिक्ट से और उससे जुड़े लोग भी शामिल किए गए हैं। 'बड़ी बड़ाई न करे सो पाझे पछिताय।"
-शरद आलोक
- सुरेशचन्द्र शुक्ल, Suresh Chanda Shukla, Oslo, 11.12.16
आजकल मोदी जी बिना अपनी जनता के बारे में उनकी सोच को समझे हुए उपदेश और संदेश दे रहे हैं।उनके साथी और सहयोगी उनका अंधा सहयोग दे रहे हैं ऐसा प्रतीत होता है। हो सकता है यह अनुमान गलत हो।
डॉ राम गोपाल के पत्र मेंलिखा है कि
"मित्रो, 8 नवंबर को जब माननीय मोदी जी ने बड़े नोट वापसी का फैसला लिया तो उनके इस कदम का स्वागत करने वालो की भीड़ में मैं भी शामिल था ,परंतु कल विशाल जन सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने जो कहा उसने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या ये हमारे देश के पी एम् बोल रहे हैं।उन्होंने कहा कि आप यदि कार से कही जा रहे हैं और लाल बत्ती पर आपको भिखारी मिल जाए तो आप तुरंत जेब से कार्ड निकालें और उसे कहें भैया मेरे पास छुट्टे नहीं हैं ,तुम अपनी स्वेप मशीन में ये कार्ड स्वेप कर अपने खाते में पैसा डाल लो।
आश्चर्य हुआ,उन्हें ये जानकारी होनी चाहिए थी कि स्वेप मशीन उन व्यवसायियों को दी जाती है जिसका बैंक में करेंट अकाउंट खुला हो ,हर समय उसमे 10000 बैलेंस बना रहे।क्या कोई भिखारी ऐसा करेगा।दुसरे आप यदि इसे व्यापार मानते हैं और भीख को प्रोत्साहन दे रहे हैं तो फिर कैशलेस संबंधी सारे सवाल बेमानी हो जाएंगे।नेट से पेमेंट लागू करने से पूर्व देश मे सभी जगह नेट उपलब्धि,हर नागरिक को आवश्यक शिक्षा और खाते खोलने लायक आर्थिक स्थिति जैसी मूलभूत सुविधाएं देना जरूरी है।दुनिया में सर्वाधिक कैशलेस व्यवस्था वाले देश बेल्जियम में भी शायद भिखारी स्वेप मशीन नहीं रखता होगा फिर है।भारत जैसे गरीब देश के लिए पी एम् द्वारा इस प्रकार का उदाहरण देना क्या मजाक नहीं।जरा सोचिए।"
निंदक नियरे राखिए
सारी सूचनाएँ स्वयं देना चाहते हैं जिसके वह जानकार नहीं हैं।
उन्हें अभी भी सभी राजनैतिक दलों के साथ समन्वय करने के साथ-साथ
वे भारतीय उपभोक्ता संघ, सामाजिक संगठनों और श्रमिक संघों के साथ
विचार विमर्श करके चलें
अन्यथा कहा जाता है कि या तो इनकी आखिरी सरकार होगी
जिसका ज्ञान और भान उन्हें नहीं है
या वे इमरजेंसी लगायेंगे।
उन्हें नोबल पुरस्कार विजेता से सीखना चाहिये
जो अपने देश में हुए गृह युद्ध से निपटने के लिए सभी का सहयोग ले रहे हैं जैसे राजनैतिज्ञ, पत्रकार, चिकित्सक, व्यापारी और कन्फ़्लिक्ट से और उससे जुड़े लोग भी शामिल किए गए हैं। 'बड़ी बड़ाई न करे सो पाझे पछिताय।"
-शरद आलोक
हेनरी किसिंगेर का आज ओस्लो में भाषण - Suresh Chandra Shukla, Oslo
अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री और नोबेल पुरस्कार विजेता हेनरी किसिंगेर का आज ओस्लो में भाषण
आज पूर्व अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री और नोबेल पुरस्कार विजेता हेनरी किसिंगेर
का आज ओस्लो में भाषण होगा। इसका आयोजन नार्वेजीय नोबेल कमेटी और
ओस्लो यूनिवर्सिटी मिलकर यूनिवरिसिटी अउला , कार्ल यूहान गता ओस्लो इन होगा।
हमेशा विवादित रहे और मीडिया में आने के लिए बेताब रहने वाले इस महान आत्मा
आज अपने किस आत्मकथा का पन्ना खोलती है
या हमेशा की तरह विवादित बयान देते हैं.
कल ओस्लो में शान्ति का नोबेल पुरस्कार कोलंबिया के राष्ट्रपति जुहान मैनुअल संतोस को दिया गया था.
कल शाम को 6:00 बजे उनके स्वागत में मशाल जुलुस निकला था.
एक अन्य कार्यक्रम शालीमार रेस्टोरेंट, रूसेनहोफ़ गाता ओस्लो के पास था जहाँ हिंदी , पंजाबी और उर्दू कवि गोष्ठी हुई और संगीत प्रस्तुत किया गया. इस कार्यक्रम में कुछ लोगों को सम्मानित भी किया गया.
आज पूर्व अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री और नोबेल पुरस्कार विजेता हेनरी किसिंगेर
का आज ओस्लो में भाषण होगा। इसका आयोजन नार्वेजीय नोबेल कमेटी और
ओस्लो यूनिवर्सिटी मिलकर यूनिवरिसिटी अउला , कार्ल यूहान गता ओस्लो इन होगा।
हमेशा विवादित रहे और मीडिया में आने के लिए बेताब रहने वाले इस महान आत्मा
आज अपने किस आत्मकथा का पन्ना खोलती है
या हमेशा की तरह विवादित बयान देते हैं.
कल ओस्लो में शान्ति का नोबेल पुरस्कार कोलंबिया के राष्ट्रपति जुहान मैनुअल संतोस को दिया गया था.
कल शाम को 6:00 बजे उनके स्वागत में मशाल जुलुस निकला था.
एक अन्य कार्यक्रम शालीमार रेस्टोरेंट, रूसेनहोफ़ गाता ओस्लो के पास था जहाँ हिंदी , पंजाबी और उर्दू कवि गोष्ठी हुई और संगीत प्रस्तुत किया गया. इस कार्यक्रम में कुछ लोगों को सम्मानित भी किया गया.
शनिवार, 10 दिसंबर 2016
ओस्लो में लेखक गोष्ठी में पुरस्कार विजेता को दी गयी बधाई - Suresh Chandra Shukla, Oslo
ओस्लो में लेखक गोष्ठी में पुरस्कार विजेता को दी गयी बधाई
ओस्लो, १० दिसम्बर
भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में ओस्लो में लेखक गोष्टी सम्पन हुई जिसमें नोबेल पुरस्कार विजेता जुहान मैनुएल संतोस को बढ़ाई दी गयी और गीत गाये गये.
कार्यक्रम की शुरुआत में भारतीय राजनीति की लोकप्रिय नेत्री जयललिता और संस्था के सदस्य की मृत्यु पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी.
इसके बाद कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी जी, उपस्थित सदस्य बासदेव भरत और यादविंदर सिंह के जन्मदिन पर बधायी दी गयी और केक काट गया.
लेखकगोष्ठी में स्थानीय नेता थूरस्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास, ओस्लो के सचिव एन पुनप्पन ने बधाई दी तथा शरद आलोक ने नोबेल पुरस्कार पर अपना वक्तव्य दिया। कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करने वालों में और कवितापाठ करने वालों में इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन, नूरी रोसेग, संगीत शुक्ला, रूबी शेरी, जावेद भट्टी, राज कुमार, प्रगट सिंह, अनुराग विद्यार्थी और सुरेशचंद्र शुक्ल थे. कार्यक्रम में उपस्थित
माया भारती ने सभी लोगों का संस्था की तरफ से आभार व्यक्त किया।
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम एक गैर राजनैतिक और गैर धार्मिक संस्था है जी नार्वे में भारत नार्वे के मध्य मैत्री को मज्बोत करने के लिए कार्य करती है और नार्वे में विभिन्न संस्कृतियों के मध्य संवाद और सेतु का कार्य करती है कविता, कहानी, लेखक सेमीनार, प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से. इसके कार्यक्रम में सभी के लिए प्रवेश निशुल्क और खुला रहता है.
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016
हमारी नई पीढ़ी हम पर कैसे गर्व करेगी। -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक
कुछ विचार भारत में वर्तमान नोटबंदी और जागरूकता पर
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
प्रिय मित्रों जो हमारे वित्तमंत्री जी ने कल किसानों के कार्ड बनवाने की अच्छी बात की, वह मैंने दो सप्ताह पूर्व कही थी। अच्छे एन आर आई या विदेशों में रहने वाले अनुभवी और ज्ञानी भारतीयों से मिलकर अच्छे सुझाव प्राप्त करें जो भारतीय और विभिन्न प्रदेशीय स्थितियों में कारगर सिद्ध हो सकें।
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
प्रिय मित्रों जो हमारे वित्तमंत्री जी ने कल किसानों के कार्ड बनवाने की अच्छी बात की, वह मैंने दो सप्ताह पूर्व कही थी। अच्छे एन आर आई या विदेशों में रहने वाले अनुभवी और ज्ञानी भारतीयों से मिलकर अच्छे सुझाव प्राप्त करें जो भारतीय और विभिन्न प्रदेशीय स्थितियों में कारगर सिद्ध हो सकें।
इसी के साथ मैं समाज के लिए अच्छी सोच रखने वाले जिनके पास समय है और भारत में रहते हैं, वे यदि सहकारिता भाव और स्काउट भाव से शिक्षा लें-दें और अपने बचाए समय द्वारा लोगों को खाता खुलवाने से फायदे और साक्षारता में ध्यान दें तो बहुत जल्दी ही हम जागरूक हो सकते हैं,
चाहे स्वास्थ का मामला हो, स्वक्छ्ता का मामला है, यातायात में अनुशासन का मामला है, ईमानदारी आदि है उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
अन्यथा हमारी नई पीढ़ी हम पर और पुरानी पीढ़ियों पर कैसे गर्व करेगी।
विदेशों में भी भारतीयों के बहुत से समुदाय और संस्थायें हैं पर अधिकतर या तो बुजुर्गों के क्लब हैं जो बातचीत और चायपानी तक सीमित हैं और कुछ लोग संस्थाओं के नाम पर एक विचार की विचारधारा पर अपनी बातें करके संतोष और खुशी प्राप्त करते हैं।
भारत देश के लिए सही सोचने और करने वालों की कमी नहीं है पर उन्हें सही मंच नहीं मिलता और उनसे पूछा नहीं जाता।
आपका दिन अच्छा बीते।
ओस्लो, 9 दिसंबर 2016
बुधवार, 7 दिसंबर 2016
kavita मेरी स्मृतियों में - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो से -सुरेशचन्द्र शुक्ल
मेरी स्मृतियों में - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो से
राजनीति:
आदमी हो और दायें बाजू,
मैं समझना चाह रहा हूँ।
समाजवादी का सिपाही,
गीत युग के गा रहा हूँ। ।
भाषा:
नये देश में नव आशायें,
नई बोलियाँ नव भाषायें।
जो समाज के खोले ताले,
जिससे नव आकार बना लें। ।
7 दिसंबर 2016
आज विनोद बब्बर जी के साप्ताहिक राष्ट्र किंकर का स्थापना दिवस है 7 दिसंबर को। बहुत -बहुत बधाई।
राष्ट्र किंकर
राष्ट्र किंकर न केवल पत्र है,
जीवन का नया सत्र है,
समय के गुम हो रहे चमन के सूरजमुखी,
और मैले हो रहे सुमन
और कमल के दल-शतदल यहाँ,
कोरे कागज पर किसी रचना का जैसे दखल है,
नहीं अन्यत्र है,
राष्ट्र किंकर न केवल पत्र है
बल्कि वह प्रपत्र है। -
मेरे छोटे भाई सरीखे प्रवीण गुप्ता का जन्मदिन है
जन्मदिन पर हो बधाई,
कला के तुम पारखी हो,
खुश रहो यह घड़ी आई,
समय के द्वार पर दस्तक बनो तुम,
कला संग ही सात जन्मों की खाई कसमें,
संग गढ़ो, आगे बढ़ो,
चिरजीवी हो तुमको कोटि बधाई।
7 दिसंबर 2016
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
राजनीति:
आदमी हो और दायें बाजू,
मैं समझना चाह रहा हूँ।
समाजवादी का सिपाही,
गीत युग के गा रहा हूँ। ।
भाषा:
नये देश में नव आशायें,
नई बोलियाँ नव भाषायें।
जो समाज के खोले ताले,
जिससे नव आकार बना लें। ।
7 दिसंबर 2016
आज विनोद बब्बर जी के साप्ताहिक राष्ट्र किंकर का स्थापना दिवस है 7 दिसंबर को। बहुत -बहुत बधाई।
राष्ट्र किंकर
राष्ट्र किंकर न केवल पत्र है,
जीवन का नया सत्र है,
समय के गुम हो रहे चमन के सूरजमुखी,
और मैले हो रहे सुमन
और कमल के दल-शतदल यहाँ,
कोरे कागज पर किसी रचना का जैसे दखल है,
नहीं अन्यत्र है,
राष्ट्र किंकर न केवल पत्र है
बल्कि वह प्रपत्र है। -
मेरे छोटे भाई सरीखे प्रवीण गुप्ता का जन्मदिन है
जन्मदिन पर हो बधाई,
कला के तुम पारखी हो,
खुश रहो यह घड़ी आई,
समय के द्वार पर दस्तक बनो तुम,
कला संग ही सात जन्मों की खाई कसमें,
संग गढ़ो, आगे बढ़ो,
चिरजीवी हो तुमको कोटि बधाई।
7 दिसंबर 2016
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
सोमवार, 5 दिसंबर 2016
न्यूजी लैंड New Zealand- इटली Itly पर कविता 'हम पद के पीछे भाग रहे है' - शरद आलोक Suresh Chandra Shukla
हम पद के पीछे भाग रहे है - suresh chandra shukla, Oslo
जहाँ हम पद के पीछे भाग रहे है, वहीं न्यजीलैंड के प्रधानमंत्री का पद छोड़ना चाहते हैं. न्यूजी लैंड New Zealand
के प्रधानमंत्री जान केय John Key ने प्रधानमंत्री से हटने की ईच्छा व्यक्त की है. वह अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहते हैं. अगले हफ्ते उनकी पार्टी की बैठक में फैसला लिया जाएगा कि किसे नेता चुना जाये।
हम पद के पीछे भाग रहे हैं,
भारत में विपक्ष के सांसददोनों सदनों का समय बर्बाद कर रहे हैंव्यक्तिगत बलिदान करनाप्रधानमंत्री की भूमिका निभा रहेजान केय (न्यजीलैंड के प्रधानमंत्री) से पूछे?इटली में प्रधानमंत्री Matteo Renzi ने स्तीफा दियाक्योकि उनकी संविधान संशोधन की सलाह परजनता ने उसके विरोध में दिया अपना मत.जब आप कुछ खोते हैंआप खोने का दिखावा नहीं कर सकते।
जिसे आप निजी बलिदान कहते हैं
वह अक्सर एक गलती होती है
बदलाव की पेशकश
हमेशा नहीं होती सफल.
एक तरफ का स्पष्टीकरण
दूसरे पक्ष की जीत हो सकती है.
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 05.12.16
प्रधानमंत्री जब वह कुछ ही समय बाद आधी रात को स्वीकार किया की हार: लोगों को संविधान में संशोधन करने के लिए अपने स्वयं के प्रस्ताव पर कोई वोट दिया था।
शनिवार, 3 दिसंबर 2016
प्रेम पथिक हूँ, दीपक रोज जलाता हूँ। -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla
प्रेम पथिक हूँ, दीपक रोज जलाता हूँ।
-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
आज तुम्हारे आगे शीश नवाता हूँ,
संस्कार से शील विनय दोहराता हूँ।
जब तक मिलता है सादर प्रेम तुम्हारा,
प्रेम पथिक हूँ, दीपक रोज जलाता हूँ।
ऐशबाग की गलिया मुझे याद करेंगी,
रामलीला ईदगाह के मध्य न दूरी। ।
दोनो द्वारों पर मेले आ सजते हैं,
हूँ प्रेम पुजारी पूजा है मजबूरी। ।
श्रमिक बस्ती की माधुरी और सुंदरता,
राजेंद्र- राम नगर, मवैया आँगन है।
ये प्रेम मिलन हो या सामाजिक सेवा,
ये चारबाग नाका मेरा प्रांगण है। ।
कितनी दुलार भरा लखनऊ नगर है,
दुर्गा भाभी-प्रकाशवती ने अपनाया।
जिसको भी हवा यहाँ लग जाती,
उसने दूर बैठ भी उसके गुण गाया॥
जीर्ण शीर्ण से कभी न मैंने भेद किया,
जो प्रेम भिखारी उसको गले लगाया।
भूख प्यास से बढ़कर प्रेम हमारा,
क्या वही अतिथि है जो गाड़ी से आया?
-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
आज तुम्हारे आगे शीश नवाता हूँ,
संस्कार से शील विनय दोहराता हूँ।
जब तक मिलता है सादर प्रेम तुम्हारा,
प्रेम पथिक हूँ, दीपक रोज जलाता हूँ।
ऐशबाग की गलिया मुझे याद करेंगी,
रामलीला ईदगाह के मध्य न दूरी। ।
दोनो द्वारों पर मेले आ सजते हैं,
हूँ प्रेम पुजारी पूजा है मजबूरी। ।
श्रमिक बस्ती की माधुरी और सुंदरता,
राजेंद्र- राम नगर, मवैया आँगन है।
ये प्रेम मिलन हो या सामाजिक सेवा,
ये चारबाग नाका मेरा प्रांगण है। ।
कितनी दुलार भरा लखनऊ नगर है,
दुर्गा भाभी-प्रकाशवती ने अपनाया।
जिसको भी हवा यहाँ लग जाती,
उसने दूर बैठ भी उसके गुण गाया॥
जीर्ण शीर्ण से कभी न मैंने भेद किया,
जो प्रेम भिखारी उसको गले लगाया।
भूख प्यास से बढ़कर प्रेम हमारा,
क्या वही अतिथि है जो गाड़ी से आया?
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016
कैलाश सत्यार्थी राष्ट्रपति भवन में 10-11 दिसंबर, 2016 को राष्ट्रपति भवन में Laureates and leaders For Children Summit. -Suresh Chandra Shukla
बच्चों के लिए बड़ों का बहुत बड़ा आंदोलन
10-11 दिसंबर, 2016 को राष्ट्रपति भवन में Laureates and leaders For Children Summit का आयोजन कर कैलाश सत्यार्थी जी बच्चों के हित में दुनियाभर के नोबेल पुरस्कार विजेताओं और विश्व के प्रमुख नेताओं का एक नैतिक मंच तैयार करने जा रहे हैं।
नोबल पुरस्कार के लिए जब कैलाश सत्यार्थी का नाम घोषित किया गया, तो हम जैसे लोगों के लिए सबसे बड़ी बात यही थी कि एक भारतीय को दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जा रहा है। ये पुरस्कार इसलिए भी अहम हो गया क्योंकि, भारत की गरीबी, मुश्किलें और असमानता को दूर करने के काम में जब भी कोई काम होता हुआ दिखता है या कहें कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जब ऐसे किसी काम की चर्चा होती है, तो वो ज्यादातर कोई विदेशी संस्था ही कर रही होती है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि भारत की धरती पर भारतीय व्यक्ति और संस्थाओं के किए काम को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कम ही महत्व मिल पाता है। इसीलिए जब नोबल पुरस्कार के लिए कैलाश सत्यार्थी को चुना गया, तो भारत के लिए ये बड़ी उपलब्धि रही। कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों का जीवनस्तर सुधारने के लिए जिस तरह का काम किया और जिस तरह से बिना किसी साधन, संसाधन के लम्बे समय तक उसे जिया, वो काबिले तारीफ है। लेकिन, ये सब शायद दूर से अहसास करने जैसा ही रह जाता, अगर एक दिन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउन्डेशन के कन्टेंट एडिटर अनिल पांडे का बुलावा न आता। बुलावा भी बहुत खास था। उन्होंने कहाकि कैलाश जी पत्रकारों, वेब पर काम करने वाले लोगों से मिलना चाहते हैं। कैलाश सत्यार्थी से निजी तौर पर मिलने की इच्छा भर से मैं वहां चला गया। लेकिन, वहां जाना मेरे लिए कैलाश सत्यार्थी के जीवन भर चलाए गए आंदोलन का अहसास करने का शानदार मौका बन गया। कमाल की बात ये कि अभी भी कैलाश जी पहले जैसे ही सहज, सरल हैं। एक सवाल जो मेरे मन में था कि अब नोबल पुरस्कार तो मिल ही गया। किसी भी सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति के लिए इससे बड़ा क्या यानी अब कैलाश सत्यार्थी आगे क्या करेंगे?
ये सवाल मेरे मन में था। लेकिन, हम ये सवाल पूछते उससे पहले खुद कैलाश जी ने कहाकि नोबल पुरस्कार पाने के बाद इतनी रकम और प्रतिष्ठा मिल जाती है कि कुछ न भी करे तो जीवन चल जाएगी और लगने लगता है कि आगे क्या? लेकिन, मुझे लगता है कि बच्चों के लिए अभी बहुत काम करना बचा है। और इसी बहुत काम करना बचा है वाली कैलाश जी की ललक ने भारत की धरती से दुनिया के लिए एक अनोखी मुहिम शुरू की है। वो बच्चे जिन्हें जीवन में किसी तरह से सामान्य बच्चों की तरह जीवन जीने का अवसर नहीं मिल पा रहा है। वो बच्चे जो अभी भी किसी मजबूरीवश शोषित हो रहे हैं। ऐसे दुनिया के हर बच्चे को दूसरे बच्चों की तरह जीवन देने के लिए कैलाश सत्यार्थी एक बड़ी मुहिम शुरू कर रहे हैं। नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की इस मुहिम को मजबूत करने के लिए दूसरे ढेर सारे नोबल पुरस्कार विजेता और दुनिया के बड़े नेता शामिल होंगे। इसके जरिये दुनिया भर के बच्चों के हक में आवाज बुलंद की जाएगी। साथ ही बच्चों की प्रति करुणा, सहृदयता की भावना बढ़ाने की अपील भी होगी।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इस अभियान को शुरू करेंगे। 10-11 दिसंबर, 2016 को राष्ट्रपति भवन में Laureates and leaders For Children Summit का आयोजन कर कैलाश सत्यार्थी जी बच्चों के हित में दुनियाभर के नोबेल पुरस्कार विजेताओं और विश्व के प्रमुख नेताओं का एक नैतिक मंच तैयार करने जा रहे हैं। 100 Million For 100 Million Campaign की शुरुआत यहीं से होगी। जैसा नाम से ही जाहिर है ये अभियान दुनिया के उन 10 करोड़ बच्चों के लिए है, जिनको वो सब नहीं मिल सका, जिसके वो हकदार हैं और उन्हें ये हक दिलाने के लिए दुनिया के 10 करोड़ नौजवानों ने मन बनाया है। 10 देशों से शुरू करके अगले 5 सालों में ये अभियान दुनिया के 60 देशों में चलाने की योजना है। कैलाश सत्यार्थी कहते हैं कि दुनिया के हर बच्चे को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान का अधिकार दिलाने के लिए ये अभियान चलाया जा रहा है। हम सबको कैलाश जी की इस मुहिम का हिस्सा बनना चाहिए। मैं इस मुहिम में कैलाश जी के साथ हूं।
चाहते कुछ हैं और चुनते कुछ और हैं -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक Suresh Chandra Shukla
संस्मरण
चाहते कुछ हैं और चुनते कुछ और हैं -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक
मेरे लखनऊ निवास 8 -मोतीझील ऐशबाग रोड लखनऊ पर केशरी नाथ त्रिपाठी मेहमान बने थे
दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो बनना कुछ चाहते हैं और बन कुछ और जाते हैं. ऐसे उदाहरणों के किस्से कहानियां भरी पड़ी हैं.
जो आदमीं अपनी मर्जी के अनुसार अपने कार्य को नहीं चुन पाता अनेक बार वह चुनाव करने में सक्षम नहीं होता। जब मैं छोटा बालक था तब मैं कलाकार बनना चाहता था. कई बार परिस्थितियों के कारण आदमी अपने अनचाहे प्रोफेशन और नौकरी को स्वीकार करता है.
प्रायः व्यक्ति नौकरी में ऐसा कई बार करता है. मेरी एक कविता की पंक्तियाँ हैं,
"चुनते समय हम चुनते हैं नापसंद चीजें।'
जब चाहा तब दुत्कार दिया।
बस ठुकराया या प्यार किया।
कहाँ खो गयी संस्कृति मेरी
जब चाहा अंगीकार किया।
,
राहों में कितने हों काँटे,
पांवों में पथ के छाले हैं.
सबकी अपनी सुख-पीड़ा है,
पर राही हम मतवाले हैं.
हम सरल शांत मन भावन हैं,
हम सबके अपने पाले हैं
मग कटु-कठोर झंझावात है.
अपने सांचे में ढाले हैं..
बचपन में सामजिक शिक्षा की नींव पड़ी
जैसा कि मैंने पहले कहा है कि जब मैं छोटा बालक था तब मैं कलाकार बनना चाहता था. एक दूसरे की नक़ल कर लेता था उसी को मैं कला समझने लगा था. किसी प्रकार का प्रोत्साहन और नेतृत्व तो मिला नहीं। बस जहाँ अवसर मिलता उस गतिविधि में सम्मिलित होता रहता। मेरे मोहल्ले में श्रमिक हितकारी केंद्र था जो सांस्कृतिक और सामजिक गतिविधियों का केंद्र था जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
यहाँ समय-समय पर समाज शास्त्र के उच्च शिक्षा के विद्यार्थी आते और अवकाश के समय हम लोगों को घरों से बुलाकर एकत्र करते।
वे लोग हमसे कभी कविता -कहानी सुनते तो कभी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन होता। यहाँ से थोड़ा सामूहिक मिलना -जुलना शुरू हुआ. संगठित तरीके से समूह में रहकर तौर-तरीके सीखे। जैसे वाद विवाद में कौन सा अनुशासन या इसकी क्या संस्कृति है. स्काउट और गाइड के बनने के लिया हम एकत्र होते। श्रमिक केंद्र से हमको कमीज और हाफ पेंट मिलती। हम पी टी, व्यायाम करते। मार्चपास्ट करते। टीम बनाकर खेलते। यह कोई तब का समय है जब मेरी आयु नौ दस बरस की होगी।
हमलोग उस समय लखनऊ के स्टेडियम में बाल-युवा समारोह में ले जाए जाते, कभी फिल्म देखने मोती नगर ले जाए जाते तो कभी चिड़ियाघर। इसी आयु में बहुत से झूले साथ झूलने वाले मित्र, गेंद खेलने वाले मित्र थे.
नौकरी और पढ़ाई साथ-साथ
सन १९७० की बात है मेरे बड़े भाई घर छोड़कर दुनिया की यात्रा पर निकल पड़े. मेरे बीच वाले भाई
पी ए सी (पुलिस) में भर्ती हो गये और प्रशिक्षण के लिए घर से चले गये. मैं घर में अकेले हो गया. मेरे माता-पिता मेरे साथ रहते थे. इससे मेरी पढ़ाई पर असर पड़ा. जो सबकुछ संयमित चल रहा था अब उसमें बदलाव आ गया. घूमने में अधिक मन लगने लगा. अतः पढ़ाई पर ध्यान न दे सका और हाई स्कूल में फेल हो गया और पिताजी ने रेलवे में नौकरी लगवा दी. पिताजी भी आलमबाग लखनऊ में स्थित सवारी और मालडिब्बा कारखाना में कार्यरत थे. मेरे बाबा भी इस कारखाने में काम करके सन १९६३ में अवकाश प्राप्त कर चुके थे और सुल्तानपुर जाकर बस गये थे.
अब क्या था नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखी. रस्तोगी कालेज ऐशबाग से सन 1972 में हाईस्कूल, 1975 में डी ए वी कालेज लखनऊ से इंटरमीडिएट पास किया।
फीस न होने के कारण फिल्म इंस्टीट्यूट में प्रवेश न हो सका
तभी अखबार में सूचना आयी कि लखनऊ में फिल्म और टेलीविजन इंस्ट्टीट्यूट बन रहा है जिसमें कोई भी ऐक्टिंग, फोटोग्राफी, गायन आदि सीख सकता है. मैंने फ़ार्म भरा. ग्लैमर स्टूडियो से पोस्टकार्ड आकार के चित्र खिंचाये और वहां कार्यालय गया. वहां पता चला इसके लिए दो हजार रूपये फीस देनी पड़ेगी और नौकरी छोड़नी पड़ेगी। मेरे पास फिल्म इंस्ट्टयूट में फीस में देने के लिए दो हजार रूपये नहीं थे. अतः चाहकर भी प्रवेश न ले सका था.
फिल्म में कार्य करने का आंशिक सपना 1985 में पूरा हुआ
पर मेरा फिल्म में कार्य करने का आंशिक सपना 1985 में पूरा हुआ जब मैं ओस्लो नार्वे में पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त कर रहा था और गर्मी की छुट्टियों में दिल्ली में हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी में तीन महीने पत्रकारिता का कार्य किया। उस समय संपादक राजेंद्र अवस्थी जी की कथा पर दिल्ली दूरदर्शन एक फिल्म बना रही थी जिसका नाम था 'आठवाँ चाचा'. इस फिल्म में मुझे एक खलनायक का अभिनय करने का मौका मिला। बहुत अच्छा अनुभव रहा.
बी एस एन वी डिग्री कालेज लखनऊ से बी ए किया।
26 जनवरी 1980 को ओस्लो नार्वे पहुंचा
गवर्नर से बचपन में न मिल सके वह मेरे घर ओस्लो मिलने आये
सत्य नारायण रेड्डी जी एक बार एक कार्यक्रम में मेरे मोहल्ले पुरानी श्रमिक बस्ती में आये थे तब वह उत्तर प्रदेश के गवर्नर थे. उस समय उनसे मिलने की ईच्छा थी पर नहीं मिल सके थे. मेरा उनसे कभी पूर्व परिचय नहीं था. पर पूर्व केंद्रीय मंत्री भीष्म नारायण सिंह और दूसरे दिल्ली में रह रहे लेखक मित्रों से सुनकर मेरे पास ओस्लो में मेरे निवास पर आये. तब मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह मुझे लेकर १५ अगस्त को भारतीय दूतावास गये उस समय हमारे राजदूत निरुपम सेन जी थे. वह मेरे साथ दूकान इन सामन खरीदवाने गए और उन्होंने खुद पैसे दिए उस सामान के जो मैंने अपने घर के लिए खरीदा था.
बाद में दिल्ली में वह दो-तीन बार मिले थे. है न बड़ी खुसी और आश्चर्य की बात कि जिनसे बचपन में मिलना छह उनसे नहीं मिल सका और वह मुझसे मिलने मेरे घर आये. क्या यह ईश्वर की कृपा थी.
शेष पढिये दूसरे दिन इसी पेज पर. धन्यवाद।
चाहते कुछ हैं और चुनते कुछ और हैं -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक
मेरे लखनऊ निवास 8 -मोतीझील ऐशबाग रोड लखनऊ पर केशरी नाथ त्रिपाठी मेहमान बने थे
दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो बनना कुछ चाहते हैं और बन कुछ और जाते हैं. ऐसे उदाहरणों के किस्से कहानियां भरी पड़ी हैं.
जो आदमीं अपनी मर्जी के अनुसार अपने कार्य को नहीं चुन पाता अनेक बार वह चुनाव करने में सक्षम नहीं होता। जब मैं छोटा बालक था तब मैं कलाकार बनना चाहता था. कई बार परिस्थितियों के कारण आदमी अपने अनचाहे प्रोफेशन और नौकरी को स्वीकार करता है.
प्रायः व्यक्ति नौकरी में ऐसा कई बार करता है. मेरी एक कविता की पंक्तियाँ हैं,
"चुनते समय हम चुनते हैं नापसंद चीजें।'
जब चाहा तब दुत्कार दिया।
बस ठुकराया या प्यार किया।
कहाँ खो गयी संस्कृति मेरी
जब चाहा अंगीकार किया।
,
राहों में कितने हों काँटे,
पांवों में पथ के छाले हैं.
सबकी अपनी सुख-पीड़ा है,
पर राही हम मतवाले हैं.
हम सरल शांत मन भावन हैं,
हम सबके अपने पाले हैं
मग कटु-कठोर झंझावात है.
अपने सांचे में ढाले हैं..
बचपन में सामजिक शिक्षा की नींव पड़ी
जैसा कि मैंने पहले कहा है कि जब मैं छोटा बालक था तब मैं कलाकार बनना चाहता था. एक दूसरे की नक़ल कर लेता था उसी को मैं कला समझने लगा था. किसी प्रकार का प्रोत्साहन और नेतृत्व तो मिला नहीं। बस जहाँ अवसर मिलता उस गतिविधि में सम्मिलित होता रहता। मेरे मोहल्ले में श्रमिक हितकारी केंद्र था जो सांस्कृतिक और सामजिक गतिविधियों का केंद्र था जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
यहाँ समय-समय पर समाज शास्त्र के उच्च शिक्षा के विद्यार्थी आते और अवकाश के समय हम लोगों को घरों से बुलाकर एकत्र करते।
वे लोग हमसे कभी कविता -कहानी सुनते तो कभी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन होता। यहाँ से थोड़ा सामूहिक मिलना -जुलना शुरू हुआ. संगठित तरीके से समूह में रहकर तौर-तरीके सीखे। जैसे वाद विवाद में कौन सा अनुशासन या इसकी क्या संस्कृति है. स्काउट और गाइड के बनने के लिया हम एकत्र होते। श्रमिक केंद्र से हमको कमीज और हाफ पेंट मिलती। हम पी टी, व्यायाम करते। मार्चपास्ट करते। टीम बनाकर खेलते। यह कोई तब का समय है जब मेरी आयु नौ दस बरस की होगी।
हमलोग उस समय लखनऊ के स्टेडियम में बाल-युवा समारोह में ले जाए जाते, कभी फिल्म देखने मोती नगर ले जाए जाते तो कभी चिड़ियाघर। इसी आयु में बहुत से झूले साथ झूलने वाले मित्र, गेंद खेलने वाले मित्र थे.
नौकरी और पढ़ाई साथ-साथ
सन १९७० की बात है मेरे बड़े भाई घर छोड़कर दुनिया की यात्रा पर निकल पड़े. मेरे बीच वाले भाई
पी ए सी (पुलिस) में भर्ती हो गये और प्रशिक्षण के लिए घर से चले गये. मैं घर में अकेले हो गया. मेरे माता-पिता मेरे साथ रहते थे. इससे मेरी पढ़ाई पर असर पड़ा. जो सबकुछ संयमित चल रहा था अब उसमें बदलाव आ गया. घूमने में अधिक मन लगने लगा. अतः पढ़ाई पर ध्यान न दे सका और हाई स्कूल में फेल हो गया और पिताजी ने रेलवे में नौकरी लगवा दी. पिताजी भी आलमबाग लखनऊ में स्थित सवारी और मालडिब्बा कारखाना में कार्यरत थे. मेरे बाबा भी इस कारखाने में काम करके सन १९६३ में अवकाश प्राप्त कर चुके थे और सुल्तानपुर जाकर बस गये थे.
अब क्या था नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखी. रस्तोगी कालेज ऐशबाग से सन 1972 में हाईस्कूल, 1975 में डी ए वी कालेज लखनऊ से इंटरमीडिएट पास किया।
फीस न होने के कारण फिल्म इंस्टीट्यूट में प्रवेश न हो सका
तभी अखबार में सूचना आयी कि लखनऊ में फिल्म और टेलीविजन इंस्ट्टीट्यूट बन रहा है जिसमें कोई भी ऐक्टिंग, फोटोग्राफी, गायन आदि सीख सकता है. मैंने फ़ार्म भरा. ग्लैमर स्टूडियो से पोस्टकार्ड आकार के चित्र खिंचाये और वहां कार्यालय गया. वहां पता चला इसके लिए दो हजार रूपये फीस देनी पड़ेगी और नौकरी छोड़नी पड़ेगी। मेरे पास फिल्म इंस्ट्टयूट में फीस में देने के लिए दो हजार रूपये नहीं थे. अतः चाहकर भी प्रवेश न ले सका था.
फिल्म में कार्य करने का आंशिक सपना 1985 में पूरा हुआ
पर मेरा फिल्म में कार्य करने का आंशिक सपना 1985 में पूरा हुआ जब मैं ओस्लो नार्वे में पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त कर रहा था और गर्मी की छुट्टियों में दिल्ली में हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी में तीन महीने पत्रकारिता का कार्य किया। उस समय संपादक राजेंद्र अवस्थी जी की कथा पर दिल्ली दूरदर्शन एक फिल्म बना रही थी जिसका नाम था 'आठवाँ चाचा'. इस फिल्म में मुझे एक खलनायक का अभिनय करने का मौका मिला। बहुत अच्छा अनुभव रहा.
बी एस एन वी डिग्री कालेज लखनऊ से बी ए किया।
26 जनवरी 1980 को ओस्लो नार्वे पहुंचा
गवर्नर से बचपन में न मिल सके वह मेरे घर ओस्लो मिलने आये
सत्य नारायण रेड्डी जी एक बार एक कार्यक्रम में मेरे मोहल्ले पुरानी श्रमिक बस्ती में आये थे तब वह उत्तर प्रदेश के गवर्नर थे. उस समय उनसे मिलने की ईच्छा थी पर नहीं मिल सके थे. मेरा उनसे कभी पूर्व परिचय नहीं था. पर पूर्व केंद्रीय मंत्री भीष्म नारायण सिंह और दूसरे दिल्ली में रह रहे लेखक मित्रों से सुनकर मेरे पास ओस्लो में मेरे निवास पर आये. तब मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह मुझे लेकर १५ अगस्त को भारतीय दूतावास गये उस समय हमारे राजदूत निरुपम सेन जी थे. वह मेरे साथ दूकान इन सामन खरीदवाने गए और उन्होंने खुद पैसे दिए उस सामान के जो मैंने अपने घर के लिए खरीदा था.
बाद में दिल्ली में वह दो-तीन बार मिले थे. है न बड़ी खुसी और आश्चर्य की बात कि जिनसे बचपन में मिलना छह उनसे नहीं मिल सका और वह मुझसे मिलने मेरे घर आये. क्या यह ईश्वर की कृपा थी.
शेष पढिये दूसरे दिन इसी पेज पर. धन्यवाद।
पुरानी यादें ऐतिहासिक चित्र Saamen med Lech Wałęsa og Hanna Kvanmo -Suresh Chandra Shukla
पुरानी यादें ऐतिहासिक चित्र - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla
नार्वे में ३६ साल से रहते हुए और लेखक तथा पत्रकार होने के कारण बहुत से लेखक, समाजसेवी और विशिष्ट व्यक्तियों से भी मिलने का अवसर मिलता है.
पुराना यादगार चित्र नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता लेक वालेसा बाएं, एली वीसल का बेटा, नार्वे की नेत्री हान्ना कवानमू और मैं:
Et gammel historisk bilde for meg. På bilde fra venstre er Nobel fredsprisvinner Lech Wałęsa fra Polen, sønnen til Elie Wiesel, SVs mest kjent leder Hanna Kvanmo og meg selv (Suresh Chandra Shukla.
बायें से चित्र में पोलैंड के नोबेलपुरस्कार विजेता और पूर्व राष्ट्रपति लेक वालेसा, नोबेल पुरस्कार विजेता एली वीसल के पुत्र, नार्वे की सोसियलिस्ट लेफ्ट पार्टी की प्रसिद्द धाकड़ नेत्री हन्ना क़्वानमू और स्वयं मैं (सुरेशचंद्र शुक्ल) चित्र नोबेल सेमीनार ओस्लो में. पुराना चित्र।
गुरुवार, 1 दिसंबर 2016
पुनः बने मागनुस कार्लसन विश्व के शतरंज़ विजेता। - Suresh Chandra Shukla
पुनः बने मागनुस कार्लसन विश्व के शतरंज़ विजेता।
नार्वे के युवा शतरंज खिलाड़ी मागनुस कार्लसन ने एक वर्ष पूर्व विश्व शतरंज चैम्पियन भारत के आनंद को हराकर बने थे.
कल रात और आज तड़के सुबह हुए अमेरिका में सम्पन हुए मुकाबले में रूस के खिलाड़ी Sergeye Karjakin को हराकर शतरंज चैम्पियन का ताज अपने सर पर बनाये रखा. मुकाबला बहुत रोचक था.
Gratulerer Magnus Karlsen, du er fortsatt verdensmester i sjakk. मागनुस कार्लसेन को बधायी। नार्वे के मागनुस कार्लसेन Magnus Karlsen ने शतरंज में विश्व चैंपियन का खिताब कायम रखा। और अपने प्रतिद्वंदी रूस के प्रतिभाशाली खिलाड़ी Sergeye Karjakin को हरा दिया। मैं देर रात तक रोचक शतरंज की बाजी टीवी पर देखता रहा। Photo:Dagsavisen.
बचपन में शतरंज अपने मित्रों के संग.
मेरा बचपन लखनऊ के एक मोहल्ले पुरानी श्रमिक बस्ती ऐशबाग में बीता है. सभी को अपने बचपन के स्थान अच्छे और प्यारे लगते हैं. मैं कोई अलग नहीं हूँ. यह मोहल्ला कुछ ख़ास लगता था मुझे।
यहाँ से बड़ी कालोनी (इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट कालोनी), भदेवां, और ईदगाह के आसपास बसा है. यहाँ से रामलीला मैदान ऐशबाग और गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कालेज, गूंगे-वधिर महाविद्यालय आदि.
सेंटरवाली पार्क कहलाती है जहाँ राजकीय श्रम हितकारी केंद्र था जहाँ अनेक सामजिक गतिविधियां राज्य सरकार के सहयोग से होती रहती थीं जिससे ज्यादा चहल-पहल रहती थी और अधिक मेलमिलाप रहता था। संगठित और समानता के आधार पर खेलकूद, पुस्तकालय और वाचनालय, चिकित्सालय और सिलाई बिनाई महिलाओं के लिए उपलब्ध हुआ करता था.
यहाँ पर हम अपने मित्रों के साथ शतरंज खेला करते थे. इन मित्रों में दीपक (आनंद प्रकाश गुप्त), ओम प्रकाश, आत्माराम, बब्बू खान, मनोज सिंह, विजय सिन्हा, देवेंद्र कुमार और वीरेन्द्र कुमार डिमरी, विनोद कुमार भल्ला आदि.
अभी दीपावली के समय मुझे अपने बचपन के मित्रों के सहपाठियों से मिलने का अवसर मिला जिनमें प्रमुख थे विनोद कुमार भल्ला (इनके साथ कक्षा पांच में सहपाठी थे), ओम प्रकाश (हाई के सहपाठी), बब्बू खान (मोहल्ले में साथ चन्दा मांगते थे अतः सामाजिक कार्यों के मित्र), विशाल पाण्डेय, जितेन्द्र कुमार शर्मा मोहल्ले में साथ चन्दा मांगते थे अतः सामाजिक कार्यों के मित्र), सुरेंद्र कुमार 'कोडू' (इन्होंने मेरे साथ कक्षा पांच से दस तक शिक्षा पायी थी) से मिला।
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