शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

राजनीति में संवाद जरूरी है: "हाथ पर हाथ रखकर कभी कुछ होना नहीं, काटना क्यों चाहते हो नयी फसल जब तुम्हें बोना नहीं।" -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla


 राजनीति में संवाद जरूरी है: 
"हाथ पर हाथ रखकर कभी  कुछ होना नहीं, काटना क्यों चाहते हो नयी फसल जब तुम्हें बोना नहीं।" -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
हाथ में कलम उठायें और आपभी अपने विचार लिखें। चित्र में सफ़ेद कलम लिए स्वयं मैं (सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ).

अक्सर सुनने में आया है कि यदि आप किसी राजनैतिक पार्टी में सक्रिय सदस्य हैं और आपने कोई ऐसा बयान दिया चाहे सही हो परंतु वह हमारे नेता के अनुकूल न हो तो उसे रोका  जाता है. कभी-कभी तो उसके ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाही तक होती है जबकि यह प्रश्न अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा भी होता है.
मेरी नजर में कार्यवाही के जगह उस सदस्य को पार्टी,  उसकी राजनैतिक पार्टी उसे स्कूल पार्टी-स्कूल भेजे और उसे अपने सिद्धांत सिखाये और उसे अभिव्यक्ति के तरीके सिखाये (शिष्टाचार अथवा पार्टी का कार्यक्रम और उद्देश्य),  ताकि कार्यकर्ता अपनी पार्टी और देश के लिए राजनैतिक तरीके से, लोकतांत्रिक तरीके से बिना लोगों को दुःख पहुंचाये अपनी अभिव्यक्ति दे सके.
जब कोई तर्क पूर्वक आंकड़ों के साथ भी अभिव्यक्ति या बयान देता है तो भी आपत्ति का सामना करना पड़ता है: यहाँ जरूरी है बोलने का तरीका और आपके चेहरे के हावभाव भी उसमें प्रभाव डालते हैं.
जैसे गुस्से में और तेज आवाज में प्रेस  कांफ्रेंस में  बोलने से बचना चाहिये।

भारत में राजनीति में बदलाव का समय है.
11 मार्च के बाद चुनाव में जो भी परिणाम हो उसका स्वागत करें और चुनाव के बाद सद्भाव का वातावरण बनाने में सहयोग करें।
अभी भारत देश को आपकी सतत सेवा और सहयोग की जरूरत है.
अभी पूरा देश में साक्षर नहीं हैं. समुचित स्कूल नहीं हैं बाहत से स्कूलों में श्यामपट (ब्लैकबोर्ड) और छत नहीं है.
जनता राजनैतिक रूप से जागृत नहीं है.
सभी गलत फैसले भी चुपचाप सहन कर लेती है.
क्योंकि बहुतों को रोजगार ढूढने जाना होता है
और नौकरी के अभाव में, अनाथ बालक और विधवा होने पर,  बहुतों  को बीमार होने पर और अन्य कारणों से बहुतों का पेट भरा नहीं होता।
यदि हर व्यक्ति देश, समाज और उसकी राजनीति के प्रति जागरूक हो.
और श्रमदान के माध्यम से एक दूसरे को शिक्षित करें ताकि हम कुशल कारीगर बनें, सफाई और ट्राफिक में योगदान दें.
यह मत सोचें कि देश और समाज ने हमको क्या दिया है यह जरूर सोचें कि हमने देश के लिए क्या किया है.
अन्याय सहना और उसे आगे न बताना उस अन्याय का मौन साथ देने के सामान है.



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