Et dikt av meg om dikter Nagarjun (30.01.1911-05.11.1998)
नागार्जुन को जन्मदिन पर समर्पित - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
गरीब और गरीब हो रहे
अमीरों की बढ़ी अमीरी।
असमानता बढ़ती जाती है.
और मानवता में दूरी।
बाँटकर नहीं काटकर खाते,
ऐसे मेरे आका.
न हिन्दू-मुस्लिम-सिख ईसाई ने
हमको अपनों ने बाँटा।
जो देशवासी का क़त्ल करें,
गोभक्त नहीं अपराधी।
देश पर बोझ बने हैं गोरक्षक के नाम पर
जैसे बन सूखा और अकाल।
गर सिंघासन पर बैठूँगा,
पक्ष-विपक्ष से कर बात.
संवाद अगर कमजोर हो गया,
जनतन्त्र बने बेहाल।
suresh@shukla.no