सामयिक चिंतायें भारत के सन्दर्भ में - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
स्कूल के बैग:
अभी समाचार पत्रों में सुर्ख़ियों पर है कि उत्तर प्रदेश के बैग गुजरात में क्यों दिये गए. मैं प्रश्न करता हूँ उसमें बुराई क्या है. रिसाइकिल यानि उन थैलों को फेकने की जगह बच्चों को दे दिया गया यह टी तो सबसे अच्छा रिसाइकिल यानि पुनः प्रयोग है. इसमें आसमान पर उठाने वाली क्या बात है. कम लागत में केवल स्टिकर छापकर यदि काम चल गया तो इसमें बुरी बात मुझे नहीं दिखाई देती।
सड़क के गड्ढे :
उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश दिए थे कि 15 जून तक सड़क के गड्ढे बाहर दिए जाएंगे जो किसी कारण नहीं भरे जा सके. यहाँ भी मेरा प्रश्न जनता और स्थानीय लोगों से है जहाँ सड़क पर गड्ढे हैं. क्या उन्होंने सही चिंता की और मिलजुलकर नगरपालिका, स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेकर उसे मिलजुलकर भर लेते जब तक सरकारी प्रयास से न भरे जा पाते। उस गड्ढे के फोटोग्राफ आदि ले लेते ताकि उन्हें सही ढंग से दोबारा भरा जा सके. जब हमारे घरों में बिजली जाती है तब मिलजुलकर समस्या का हल नहीं निकालते। ठीक उसी तरह हम सभी नागरिकों को जागरूक होना होगा और अपने मन को बदलना होगा। देश समाज के लिए हमारे भी कर्तव्य हैं.
गैंगरेप के विरोध में जन जागरण और पहरेदारी:
आज जब भी महिला की सुरक्षा का नाम आता है तो उसमें अविकसित और विकासशील देशों का नाम ज्यादा आता है. भारत भी सुर्ख़ियों में होता है जिसे सुनकर और पढ़कर बहुत तकलीफ होती है. कुछ उपाय मेरी नजर में हो सकते हैं हो सकता है ये परिपक्व न हों अपर इससे आशय समझा जा सकता है.
१-क्या हम जैसे अपने मोहल्ले में बारी-बारी पहरेदार से पहरेदारी कराते हैं या खुद पहरेदारी करते हैं उसी तरह पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बारी-बारी अपनी सड़कों पर पहरेदारी नहीं कर सकते। लोगों में जागरण और सूचना के आदान-प्रदान द्वारा भी जागरण लाने में मदद मिल सकती है. सूचना से यह होगा कि बचपन और युवा आयु समय में सभी जो स्कूल जाते हैं और जो काम करते हैं या घर में रहते हैं सभी को समस्या और उससे बचने और अपराध पर लगाम लगाने के लिए बातचीत करनी होगी उन्हें अपने कर्तव्य की तरफ जागरूक करना होगा।
इससे अपराध और उसकी प्रवत्ति की तरफ बढ़ते रुख का पता चलेगा और उसे रोकने और शिक्षित करने में आसानी होगी। परिणाम स्वरूप अन्य अपराधों और बलात्कार में कमी आयेगी।
स्कूल के बैग:
अभी समाचार पत्रों में सुर्ख़ियों पर है कि उत्तर प्रदेश के बैग गुजरात में क्यों दिये गए. मैं प्रश्न करता हूँ उसमें बुराई क्या है. रिसाइकिल यानि उन थैलों को फेकने की जगह बच्चों को दे दिया गया यह टी तो सबसे अच्छा रिसाइकिल यानि पुनः प्रयोग है. इसमें आसमान पर उठाने वाली क्या बात है. कम लागत में केवल स्टिकर छापकर यदि काम चल गया तो इसमें बुरी बात मुझे नहीं दिखाई देती।
सड़क के गड्ढे :
उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश दिए थे कि 15 जून तक सड़क के गड्ढे बाहर दिए जाएंगे जो किसी कारण नहीं भरे जा सके. यहाँ भी मेरा प्रश्न जनता और स्थानीय लोगों से है जहाँ सड़क पर गड्ढे हैं. क्या उन्होंने सही चिंता की और मिलजुलकर नगरपालिका, स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेकर उसे मिलजुलकर भर लेते जब तक सरकारी प्रयास से न भरे जा पाते। उस गड्ढे के फोटोग्राफ आदि ले लेते ताकि उन्हें सही ढंग से दोबारा भरा जा सके. जब हमारे घरों में बिजली जाती है तब मिलजुलकर समस्या का हल नहीं निकालते। ठीक उसी तरह हम सभी नागरिकों को जागरूक होना होगा और अपने मन को बदलना होगा। देश समाज के लिए हमारे भी कर्तव्य हैं.
गैंगरेप के विरोध में जन जागरण और पहरेदारी:
आज जब भी महिला की सुरक्षा का नाम आता है तो उसमें अविकसित और विकासशील देशों का नाम ज्यादा आता है. भारत भी सुर्ख़ियों में होता है जिसे सुनकर और पढ़कर बहुत तकलीफ होती है. कुछ उपाय मेरी नजर में हो सकते हैं हो सकता है ये परिपक्व न हों अपर इससे आशय समझा जा सकता है.
१-क्या हम जैसे अपने मोहल्ले में बारी-बारी पहरेदार से पहरेदारी कराते हैं या खुद पहरेदारी करते हैं उसी तरह पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बारी-बारी अपनी सड़कों पर पहरेदारी नहीं कर सकते। लोगों में जागरण और सूचना के आदान-प्रदान द्वारा भी जागरण लाने में मदद मिल सकती है. सूचना से यह होगा कि बचपन और युवा आयु समय में सभी जो स्कूल जाते हैं और जो काम करते हैं या घर में रहते हैं सभी को समस्या और उससे बचने और अपराध पर लगाम लगाने के लिए बातचीत करनी होगी उन्हें अपने कर्तव्य की तरफ जागरूक करना होगा।
इससे अपराध और उसकी प्रवत्ति की तरफ बढ़ते रुख का पता चलेगा और उसे रोकने और शिक्षित करने में आसानी होगी। परिणाम स्वरूप अन्य अपराधों और बलात्कार में कमी आयेगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें