जेहादी मेरी गलियों में नहीं घूमते -सुरेशचन्द्र शुक्ल , 09.06.2017
आतंक के खिलाफ कोई युद्ध नहीं है.
इस लिए लिए जीता भी नहीं जा सकता।
कभी चर्चिल ने कहा था कि "हम उनके साथ लेक में लड़ेंगे।" और उन्होंने ब्रिटेन के स्तर को को दूसरे विश्वयुद्ध में स्थापित किया।
"या तो तुम हमारे साथ हो या आतंकवादियों के साथ हो", जार्ज डब्लू बुश ने कहा और अमेरिका के स्तर को स्थापित करते हुए ईराक के साथ 9 सितम्बर के बाद युद्ध किया।
"कोई भी भी तुम्हारे राष्ट्र की रक्षा नहीं कर सकता, डोनाल्ड ट्रम्प की तरह." आज के वर्तमान राष्ट्रपति का कहना है. आशा है कि जो अंत में कहा गया मनोरंजन करने वाला है और इसे जल्द ही भुला दिया जाएगा जब हम इक्कीसवीं सड़ी की समीक्षा करेंगे। जबकि पहले दो कथनों ने इतिहास में अपने चिन्ह छोड़ दिए हैं.
चर्ची और बुश दो अलग-अलग नमूने हैं. जबकि चर्चिल को साहित्य में उनके लेखन के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था जो अपने समय के बड़े नेता थे. जब विश्व की राजनीति की चर्चा होगी तब युद्ध में जार्ज डब्लू बुश की स्पष्ट अज्ञानता बुश का परिचय मिलेगा। दोनों के कथन में अंतर है क्योंकि इसमें समानता नहीं है.
चर्चिल को एक युद्ध करना था. एक परम्परात्मक युद्ध उस दुशमन के साथ करना था जिसने दुसरे देश के क्षेत्र पर अपना कब्जा किया हुआ था. पीड़ितों को क्रूर तरीके से शापित कर रहे थे. इस युद्ध में युद्ध समाप्ति भी थी.
सदी पुरुष महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि हमको सभी पक्षों को सम्मिलित करना होगा समस्या को सुलझाने के लिए. इन 16 सालों में बड़ी गलतियां की गयीं कि अयुद्ध को परम्पारात्मक युद्ध में बदल दिया गया. पहले अफगानिस्तान में, फिर इराक और लीबिया में. सभी पश्चिम साथ हो गया एक दुश्मन के लिए , एक देश के लिए.
परन्तु तालिबान की मध्यकालीन और आतंवादी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी नहीं थे. ये सबसे ज्यादा व्यस्त हैं व्यापार पर नियंत्रण, धर्म, अर्थ और राजनीति इनके मुख्य क्षेत्र थे अफगानिस्तान में. सद्दाम हुसैन और मुहम्मद गद्दाफी
अल कायदा द्वारा घृणा किया जाता था जो एक तरह से धार्मिक कट्टरवाद जो आज आई एस है.
अभी एक सप्ताह पहले जो लन्दन में आतंकवादी हमला हुआ इसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि व्यक्ति मासूमों पर क्रूरतापूर्ण हमले पर, लेकिन क्योंकि पश्चिमी राजनैतिज्ञ कुछ न कुछ करने के लिए उत्सुक्त हैं
जो पिछले दस वर्षों में.
हमको नहीं पता है की दुनिया इराक और लीबिया बिना युद्ध हुए कैसा देखती। तीन देश इस युद्ध से दूर भविष्य तक नष्ट हो चुके हैं. चौथा देश 6 वर्षों से युद्ध क्षेत्र बना हुआ है.
कोई युद्ध आतंक के खिलाफ नहीं है क्योंकि कोई आतंकी देश नहीं है. नहीं कोई आतंकी सेना है जिसके खिलाफ युद्ध किया जाये और जीता जाये। आतंकी शिथिल संगठित है गुप्त कोशिकाओं में जो धार्मिक प्रेरित हैं.
लेकिन जेहादी आतंकियों से लड़ाई जीती जा सकती है जो एक दामपंथ के अन्ध बिंदु है, इसमें आदर्श बामपंथी राजनीति की प्रेरणा से कारगर सिद्ध हो सकती है.
आर्थिक असमानता, गरीबी और नस्लभेद और भेदभाव आतंक की पृष्टभूमि है. लेफ्टिस्ट /बामपंथी हमेशा से सही हैं. कुछ लोग इस पृष्टभूमि के सामने खेल रहे हैं. कुछ आतंकियों के घृणा का प्रचार और अमानवीय तथ्यों का प्रोपागंडा करते हैं, आतंकी अपने आतंकी गतिविधियों के लिए भर्ती करते हैं.
न जाने ये आये दिन आतंकी हमले बंद होंगे इसमें शक है.
हमको दामपंथी कट्टरवाद, जातिवाद, धार्मिक भेदभाव को हवा नहीं देनी है. भारत में दलितों पर अत्याचार और किसानों का राजनैतिक और आर्थिक शोषण और सरकारी/शासनीय भ्रष्टाचार और चंदे में संसदीय अपारदर्शिता को तुरंत समाप्त करना होगा।
भारतीय संसद में विपक्ष के योग्य सदस्यों की भी सार्वजनिक समस्या को सामूहिक रूप से हल करने में सहायता लेनी चाहिये। जैसे पंडित नेहरू जी लेते थे.
श्री यचूरी की प्रेस कांफ्रेस में हमला, बामपंथी पार्टियों और विरोधी दलों के बारे में राज्य कर रही पार्टी द्वारा अपने पार्टी सदस्यों को भड़काना अच्छा नहीं है.
वह सभी जो अमेरिका का समर्थन नहीं करते आतंकी नहीं हैं. शायद सभी मिलकर आतंक को समाप्त करने का सिद्धांत खोजें और मिलकर आतंक दूर करें।
आतंक के खिलाफ कोई युद्ध नहीं है.
इस लिए लिए जीता भी नहीं जा सकता।
कभी चर्चिल ने कहा था कि "हम उनके साथ लेक में लड़ेंगे।" और उन्होंने ब्रिटेन के स्तर को को दूसरे विश्वयुद्ध में स्थापित किया।
"या तो तुम हमारे साथ हो या आतंकवादियों के साथ हो", जार्ज डब्लू बुश ने कहा और अमेरिका के स्तर को स्थापित करते हुए ईराक के साथ 9 सितम्बर के बाद युद्ध किया।
"कोई भी भी तुम्हारे राष्ट्र की रक्षा नहीं कर सकता, डोनाल्ड ट्रम्प की तरह." आज के वर्तमान राष्ट्रपति का कहना है. आशा है कि जो अंत में कहा गया मनोरंजन करने वाला है और इसे जल्द ही भुला दिया जाएगा जब हम इक्कीसवीं सड़ी की समीक्षा करेंगे। जबकि पहले दो कथनों ने इतिहास में अपने चिन्ह छोड़ दिए हैं.
चर्ची और बुश दो अलग-अलग नमूने हैं. जबकि चर्चिल को साहित्य में उनके लेखन के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था जो अपने समय के बड़े नेता थे. जब विश्व की राजनीति की चर्चा होगी तब युद्ध में जार्ज डब्लू बुश की स्पष्ट अज्ञानता बुश का परिचय मिलेगा। दोनों के कथन में अंतर है क्योंकि इसमें समानता नहीं है.
चर्चिल को एक युद्ध करना था. एक परम्परात्मक युद्ध उस दुशमन के साथ करना था जिसने दुसरे देश के क्षेत्र पर अपना कब्जा किया हुआ था. पीड़ितों को क्रूर तरीके से शापित कर रहे थे. इस युद्ध में युद्ध समाप्ति भी थी.
सदी पुरुष महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि हमको सभी पक्षों को सम्मिलित करना होगा समस्या को सुलझाने के लिए. इन 16 सालों में बड़ी गलतियां की गयीं कि अयुद्ध को परम्पारात्मक युद्ध में बदल दिया गया. पहले अफगानिस्तान में, फिर इराक और लीबिया में. सभी पश्चिम साथ हो गया एक दुश्मन के लिए , एक देश के लिए.
परन्तु तालिबान की मध्यकालीन और आतंवादी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी नहीं थे. ये सबसे ज्यादा व्यस्त हैं व्यापार पर नियंत्रण, धर्म, अर्थ और राजनीति इनके मुख्य क्षेत्र थे अफगानिस्तान में. सद्दाम हुसैन और मुहम्मद गद्दाफी
अल कायदा द्वारा घृणा किया जाता था जो एक तरह से धार्मिक कट्टरवाद जो आज आई एस है.
अभी एक सप्ताह पहले जो लन्दन में आतंकवादी हमला हुआ इसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि व्यक्ति मासूमों पर क्रूरतापूर्ण हमले पर, लेकिन क्योंकि पश्चिमी राजनैतिज्ञ कुछ न कुछ करने के लिए उत्सुक्त हैं
जो पिछले दस वर्षों में.
हमको नहीं पता है की दुनिया इराक और लीबिया बिना युद्ध हुए कैसा देखती। तीन देश इस युद्ध से दूर भविष्य तक नष्ट हो चुके हैं. चौथा देश 6 वर्षों से युद्ध क्षेत्र बना हुआ है.
कोई युद्ध आतंक के खिलाफ नहीं है क्योंकि कोई आतंकी देश नहीं है. नहीं कोई आतंकी सेना है जिसके खिलाफ युद्ध किया जाये और जीता जाये। आतंकी शिथिल संगठित है गुप्त कोशिकाओं में जो धार्मिक प्रेरित हैं.
लेकिन जेहादी आतंकियों से लड़ाई जीती जा सकती है जो एक दामपंथ के अन्ध बिंदु है, इसमें आदर्श बामपंथी राजनीति की प्रेरणा से कारगर सिद्ध हो सकती है.
आर्थिक असमानता, गरीबी और नस्लभेद और भेदभाव आतंक की पृष्टभूमि है. लेफ्टिस्ट /बामपंथी हमेशा से सही हैं. कुछ लोग इस पृष्टभूमि के सामने खेल रहे हैं. कुछ आतंकियों के घृणा का प्रचार और अमानवीय तथ्यों का प्रोपागंडा करते हैं, आतंकी अपने आतंकी गतिविधियों के लिए भर्ती करते हैं.
न जाने ये आये दिन आतंकी हमले बंद होंगे इसमें शक है.
हमको दामपंथी कट्टरवाद, जातिवाद, धार्मिक भेदभाव को हवा नहीं देनी है. भारत में दलितों पर अत्याचार और किसानों का राजनैतिक और आर्थिक शोषण और सरकारी/शासनीय भ्रष्टाचार और चंदे में संसदीय अपारदर्शिता को तुरंत समाप्त करना होगा।
भारतीय संसद में विपक्ष के योग्य सदस्यों की भी सार्वजनिक समस्या को सामूहिक रूप से हल करने में सहायता लेनी चाहिये। जैसे पंडित नेहरू जी लेते थे.
श्री यचूरी की प्रेस कांफ्रेस में हमला, बामपंथी पार्टियों और विरोधी दलों के बारे में राज्य कर रही पार्टी द्वारा अपने पार्टी सदस्यों को भड़काना अच्छा नहीं है.
वह सभी जो अमेरिका का समर्थन नहीं करते आतंकी नहीं हैं. शायद सभी मिलकर आतंक को समाप्त करने का सिद्धांत खोजें और मिलकर आतंक दूर करें।
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