जो कभी स्टेशन पर चाय बेचता था
वह अब स्टेशन बेच रहा है
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
बेटा तुम नेता नहीं बनना, प्रतिनिधि बनना।
वह खुद चाय नहीं पी पाता।
एक वह लड़का जो स्टेशन पर चाय बेचता था.
पहले गाँधी जी को चरखे से हटाकर
कितने महान हैं हमारे रहनुमा।
उन्हें पूजीपतियों को बेचकर
देशवासियों से स्टेशन मुक्त करा रहा है.
बनिया कौन है जिसने देश को आजादी दिलाई
या जिन्होंने स्टेशन बेच कर उन्हें मुक्त कर दिया।
अब आगे किसकी बारी है?
में दाह संस्कार करना।
नदियों में हमारे मृत शरीर
धर्म के नाम पर हम लोग बहाते हैं.
धर्म के नाम पर हम लोग बहाते हैं.
उस पानी को
इंसान और जीव जंतु पानी पीते हैं.
इंसान और जीव जंतु पानी पीते हैं.
तो आज वायदा करो!
अपने बच्चों को अच्छे नागरिक बनाना।गरीबों को निशुल्क पढ़ाना।
धार्मिक स्थानों के निर्माण की जगह स्कूल बनवाना।
गोशाला की जगह इंसानों के लिए
गर्मी और सर्दी में सरायखाना बनवाना।
जिंदगी जीना।
जितना हो सके खुद हंसना
और दूसरों को हँसाना।
और दूसरों को हँसाना।
एक बार मिलटा है जीवन,
अपनी मर्जी से अपने उसूल बनाना
जिनसे मानवता चमके।
मैं गर्व कर सकूँ,
कि जहाँ तेरे जैसे भारतीय होंगे
वहां किसी भी देश-धर्म का आदमी आये
तुमसे मिलकर मानवता पर गर्व करे.
पाखण्ड से दूर -दूर
दिखावा न करना।
कभी भी नेता नहीं, प्रतिनिधि बनना।
कोढ़ियों के घाव धोना,
कोढ़ियों के घाव धोना,
पर लावारिस अजनबी लाश को कन्धा देना।
अपने विचारों को पानी देना और
अपने अंदर पनपते भेड़िये से
किसी की लाज लुटते देख उसे बचाना
पर किसी अमानुष सत्ताधारी को,
कभी चाय न पिलाना।
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