बुधवार, 29 नवंबर 2017

धार्मिक भावनाओं और धर्म की बात करने वाले नेताओं से दूर रहें और उन्हें तवज्जो नहीं दीजिये। -शरद आलोक Suresh Chandra Shukla

दुनिया भर के मित्रों! आज विश्व ज्ञान-विज्ञान और मानवता की बात कर रहा है जो बहुत जरूरी है.
सभी को शिक्षा मिले ताकि आदमी अपने कर्तव्यों और अधिकारों को जाने और उसका पालन करे.
 शान्ति, सद्भाव, सर्वधर्म भाव जरूरी है.
जब देश में चुनाव होते हैं नेतागण  जनता से कहते हैं तुम भूखे रहकर बहुत सहनशील हो देवताओं की तरह हो.
सावधान रहें।
मेरी कविता 










 शरद आलोक 

नेता कुछ नहीं देता लेकिन सब कुछ ले लेता 
"नेता कुछ नहीं देता लेकिन सब कुछ ले लेता।
झूठे नारों झूठे वायदों से सबको बस में कर लेता।
समस्या बनी रहें इसलिए समस्याओं का ठीकरा विपक्षी पर ठोंकता।
कभी भावनाओं को भड़काता
कभी फुसलाता
चुनाव के पहले  कितने ही लालीपाप दिखाता
चुनाव के बाद नारद सा लोप हो जाता।
न्याय पालिका को अपना औजार बनाता
विपक्षी दलों पर खूब मुक़दमे चलाता
हाँ यह भारत का सत्ता धारी नेता होता
उसका दल और समाज से कोई बतलब नहीं होता
इसीलिये दूसरी पार्टी के प्रतिनिधि रोज तोड़ता
दूसरों के घरों की कीमत पर अपने सपने पूरे करता।
यह नेता कुछ नहीं देता लेकिन सबकुछ ले लेता।
नोटबन्दी-डिजिटल जासूसी से खूब  डराता,
चालीस प्रतिशत निरक्षर जनता को और डराता
उन्हें साक्षर करने की जगह राशन कार्ड से जोड़ता,
जनता को खूब मूर्ख बनाता।
हम उसको हंटर देते और वह हमपर खूब बरसाता।
जब तक हम भूख से मरेंगे
किसान फांसी पर चढ़ेंगे
ये नेता बने रहेंगे।
प्रजातंत्र का गला घोंटेंगे।
हम अहिंसा के पुजारी
देशी की रट लगाता और विदेशी लाखों का सूट पहनता
हमारे खेतों में देशी बीजों को छीनकर विदेशी बीज बेचता
 फांसी से लटके किसान परिवारों को ट्रैक्टर तो दूर
उन्हें  हर बार दो बैलों की तरह जोतने को तैयार
नेता चुनाव में तैयार है जो धर्म का ठेकेदार है
आओ उसे जितायें
प्रजातंत्र की अर्थी सजायें
उन्हीं धर्मात्माओं -नेताओं को दोबारा जितायें।
एक बार फिर जीते जी मर जाएँ।"
  - शरद आलोक, ओस्लो, 29. 11 . 17


से खूब
 इसलिए नए नारे और दूसरों
धार्मिक भावनाओं और धर्म की बात करने वाले नेताओं से दूर रहें और उन्हें तवज्जो नहीं दीजिये। -शरद आलोक

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