मंगलवार, 19 अगस्त 2025

लोकतंत्र को बचाने के लिए विपक्षी सांसदों का मार्च - सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ Suresh Chandra Shukla

 लोकतंत्र को बचाने के लिए विपक्षी सांसदों का मार्च 

सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

इंडिया गठबंधन के 300 सांसदों ने वेरिफिकेशन के खिलाफ संसद से चुनाव आयोग के लिए मार्च निकाला
राहुल-प्रियंका,अखिलेश को हिरासत में लिया, 2 घंटे बाद छोड़ा; प्रदर्शन के दौरान 2 महिला सांसद बेहोश हुईं
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11 अगस्त, दिल्ली में वोटर वेरिफिकेशन और चुनाव में वोट चोरी के आरोप पर विपक्ष के 300 सांसदों ने सोमवार को संसद से चुनाव आयोग के ऑफिस तक मार्च निकाला।  उन्हें चुनाव आयोग तक नहीं पहुँचने दिया गया। 

हिरासत में लिए गए सांसद 
बेरिकेटिंग करके पुलिस ने उन्हें रोक दिया।  वहां पुलिस ने बल का प्रयोग भी किया।  सांसदों को रोका और सांसदों को हिरासत में लेकर बसों में ठूंस कर लादा   मार्च के दौरान अखिलेश ने बैरिकेडिंग फांदकर आगे बढ़ने की कोशिश की। जब सांसदों को आगे नहीं जाने दिया गया तो वे जमीन पर बैठ गए।  प्रियंका, डिंपल समेत कई सांसद 'वोट चोर गद्दी छोड़' के नारे लगाते दिखे।  पुलिस उन्हें संसद मार्ग पुलिस स्टेशन ले गई, जहां से 2 घंटे बाद रिहा कर दिया गया।
इसमें दोनों सदनों के इंडिया गठबंधन के सभी बड़े नेता थे।  राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, शरद पावर, अखिलेश यादव आदि विपक्ष के दिग्गज नेता थे। 
हिरासत में लिए जाने के बाद राहुल गांधी ने कहा कि यह संविधान बचाने की लड़ाई है। ये एक व्यक्ति-एक वोट की लड़ाई है, इसलिए हमें साफ वोटर लिस्ट चाहिए। वहीं प्रियंका गांधी ने कहा कि यह सरकार डरी हुई है और कायर है।   
प्रदर्शन के दौरान TMC सांसद मिताली बाग और महुआ मोइत्रा की तबीयत बिगड़ गई।  बेहोश हो गईं। राहुल गांधी और अन्य सांसदों ने उनकी मदद की।

संसद में हंगामा और बिना चर्चा के अनेक विधेयक पास किये गए 
इससे पहले दोनों सदनों में इस मुद्दे पर भारी हंगामा हुआ।  जब इंडिया गठबंधन के सांसद प्रदर्शन कर रहे थे, तभी सत्ता पक्ष ने संसद  में बिना चर्चा के अनेक विधेयक पास किये


अधिकांश अख़बारों और टी वी से यह समाचार गायब 
    सुरेश चन्द्र शुक्ल 
12 अगस्त को जब लोगों ने सुबह देश के समाचार पत्र पढ़े तो पहले पेज पर 'इण्डिया गठबंधन के 300 सांसदों का मार्च' के समाचार को समुचित जगह नहीं दी गयी जबकि यह खबर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी।  एक सवाल है कि अखबार विपक्ष की खबर को क्यों पहले पेज में छपने के लायक नहीं समझते।  
समाचार पत्र के पाठकों को देश की सबसे बड़ी खबर  'वोटर वेरिफिकेशन और चुनाव में वोट चोरी के आरोप पर इण्डिया गठबंधन के 300 सांसदों का मार्च' से वंचित रखा गया।  मीडिया पर इस तरह सत्ता पक्ष की चाटुकारिता के आरोप लगते हैं।  विपक्ष की आवाज बहुत मायने रखती है।  लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की अहमियत है।  बिना विपक्ष के बिना आलोचनात्मक सुर के, बिना सरकार के तमाम फैसलों और नीतियों के विरोध की आवाजों के सत्ता पक्ष का कोई मतलब नहीं होता।  लोकतंत्र का मंदिर जहाँ सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों होते हैं। 
इससे यह भी चर्चा होने लगी कि लोकतंत्र का चौथा खंभा मीडिया विशेषकर गोदी मीडिया लोकतंत्र की हत्या में क्यों शामिल हो रहा है?

गुरुवार, 17 जुलाई 2025

ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Poem - Suresh Chandra Shukla

 ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता

सुरेश चन्द्र शुक्ल  'शरद आलोक'


ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता,
राष्ट्रद्रोही सत्ता पर बैठे,
जनता पर बमबारी करके,
लोकतंत्र का क़त्ल कर रहे हैं।

अपने-अपने देश लूटकर,
व्यापारियों को मालामाल कर रहे हैं।
कॉरपोरेट के क़ब्ज़े में मीडिया,
लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं।

क्या सत्ता में बैठे लोग राष्ट्रद्रोही हो गए हैं?
क्या वे विदेशी ताक़तों के ग़ुलाम बन गए हैं?
कौन इन्हें बेनकाब करेगा?
अब तो देश के दुश्मन आम हो गए हैं।

हम पर युद्ध थोपने की तैयारी है,
सत्ताधारी शोर मचा रहे हैं।
लोकतंत्र को धता बताकर,
प्रखर आवाज़ों को दबा रहे हैं।

भारत में क्यों कायर पैदा होते हैं,
जो सत्ता में पहुँचते ही चुप हो जाते हैं?
जब नेतृत्व ही अक्षम है,
तो विदेश और आंतरिक नीति विफल ही होगी।

दूर देशों में बैठे प्रवासी,
जैसे पिंजरे में बंद परिंदे बोलते हैं।
न खुलकर बोलते हैं,
सिर्फ लोकतंत्र के टूटने को देखते हैं।

हर रोज़ मरकर कब तक
हम अन्यायों से लड़ पाएंगे?
बीरबल की खिचड़ी पकाते रहेंगे,
या प्रवासी बनकर काँव-काँव करते जाएंगे?

अगर सत्य जानकर भी न जागे,
तो सत्ता हमें ग़ाज़ा जैसा बना देगी।
लोकतंत्र में चुनकर सत्ता में आए,
पर क्या वे मुसोलिनी-हिटलर बन जाएंगे?

सोमवार, 14 जुलाई 2025

कविता के राजकुमार डॉ. अजय प्रसून - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 कविता के राजकुमार डॉ. अजय प्रसून 

सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, Norway 


अजय प्रसून जी की एक गजल है जिसे मैं प्रायः गुनगुनाता था.
"ओठों पर आये मंद-मंद हास की तरह।
यादों को गाते जाएंगे इतिहास की तरह।
सबसे पहले मैं डॉ. राहुल मिश्र जी का आभारी हूँ कि उन्होंने डॉ. अजय प्रसून पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का निर्णय लिया जिसके लिए मैं डॉ. राहुल मिश्र जी को साधुवाद भी देता हूँ।

साहित्यकार के रूप में अंतरराष्ट्रीय छवि की बुनियाद 
आज जो भी मेरी साहित्यकार के रूप में आज जो अंतरराष्ट्रीय छवि है उस पर यह बचपन और युवा समय का काफी प्रभाव है और बुनियाद रखी गयी जिसमें अजय प्रसून मित्र साहित्यकार का भी सहयोग मिला है।

इसके आलावा मेरी रचना प्रक्रिया और प्रोत्साहन देने वालों में मेरे सहयोगी रहे हैं मेरे पिताजी डॉ. बृजमोहन शुक्ल, गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कालेज ऐशबाग  में प्रधानाचार्य स्व. डॉ. दुर्गाशंकर मिश्र, श्री शिवशंकर मिश्र,  मेरे रिश्तेदार अवधी  के प्रसिद्ध कवि-नाटककार रमई काका (चंद्र भूषण त्रिवेदी), स्वतन्त्र भारत के संपादक अशोक जी, शिवसिंह सरोज जी और बचनेश त्रिपाठी जी, क्रन्तिकारी आदरणीय दुर्गा भाभी, रामकृष्ण  खत्री, गंगाधर गुप्ता  और समाज सेवी और सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापकद्वय  श्रीमती भारती गांधी और श्री जगदीश गांधी जी का।

अजय प्रसून पहले  हेल्थ स्क्वायर, सिटी स्टेशन के पास लखनऊ में रहते थे और बाद में त्रिवेणी नगर में रहने लगे।  हेल्थ स्क्वायर में स्थित घर में उनके पिताजी, माताजी और बच्चों से बातचीत होती थी।  अनेक यादें हैं।

जनसंख्या विभाग में नौकरी के साथ-साथ डॉ. अजय प्रसून चिकित्सक भी हैं। उन्होंने होम्योपैथी से डिप्लोमा किया था। अवकाश प्राप्त के बाद वह चिकित्सा की क्लीनिक चलाने लगे थे।  मैं नार्वे से काफी दिनों बाद जब अजय प्रसून जी की याद आयी, होली का दिन था मैं उनके हेल्थ स्क्वायर में स्थित घर गया।  वहां लोगों ने बताया, " शायर साहेब, वह तो यहाँ से चले गए और  महफ़िल वीरान हो गयी।  एक पड़ोसी ने बताया कि  वह त्रिवेणी नगर, लखनऊ में बस गए हैं।  मैंने भी कोलम्बस की तरह निर्णय लिया और बिना पते के पूछ-पूछ कर खोज ही लिया।
 
एक दिन जोरदार वर्षा हो रही थे पानी गिर रहा था और उनके घर पहुँच गया। हम दोनों बहुत खुश हुए। अनेक यादें हैं साथ-साथ की।  आपको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में डॉ. विनोद चंद्र पांडेय जी के निदेशक रहते बहुत पहले सम्मान मिला था जो गर्व की बात है।  बिना किसी की परवाह किये निराला की तरह मस्त अजय जी ने जो स्थान बनाया है वह उनके अभिनन्दन ग्रन्थ छपने के बाद उसका विस्तार होगा जो उनको सही स्थान दिलाएगा।  

यहाँ मैं यह बताता चलूँ  कि मेरे प्रिय साहित्यकार मित्र  डॉ. अजय प्रसून जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। जो इनसे एक बार मिल लेता था हमेशा के लिए जुड़ जाता था यह मेरा अनुभव है।

कविता की कर्मशाला
डॉ अजय प्रसून एक लोकप्रिय कवि और स्वयं कविता की कर्मशाला हैं। क्योंकि अनगिनत कवियों  (युवा कवि और कवियित्री) ने अजय प्रसून के पास आकर अपनी कविता को या तो निखारा और मंच पाया।  कवि को क्या चाहिए मंच।  यह मंच कविता पाठ का भी रहा और प्रकाशन का भी जो अजय प्रसून जी ने अनगिनत कवियों को दिलवाया।  
साहित्य में अ आंदोलन  
अ से अनेक लेखकों ने आंदोलन चलाये। डॉ. अजय प्रसून ने अनागत आंदोलन चलाया और अनगिनत लोगों को जोड़ा।   
कहानी में मेरे मित्र स्व. प्रो. गंगा प्रसाद 'विमल' जी (शिक्षाविद और साहित्यकार) ने अकहानी आंदोलन चलाया तो कविता में अकविता आंदोलन चलाया मेरे एक अन्य मित्र कवि  डॉ. जगदीश चतुर्वेदी जी ने।  इन दोनों साहित्यकारों के साथ मैनें देश विदेश की यात्रा की और कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया।  इनमें यू. के. (ब्रिटेन में लन्दन, मैनचेस्टर, बर्मिंगम और यॉर्क) प्रमुख हैं।  जब देहरादून में राहुल सांकृतायन जी की जन्मशती मनाई गयी थी तब डॉ. गंगा प्रसाद विमल जी और सांकृत्यायन जी की पत्नी आदरणीय कमला  सांकृत्यायन, वीरेंद्र सक्सेना जी साथ थे।  इस कार्यक्रम में मुझे ले जाने का श्रेय कादम्बिनी और साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक और उपन्यासकार आदरणीय राजेन्द्र अवस्थी जी को जाता है। देहरादून में डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी, डॉ. सुधा पांडेय जी मिले।  डॉ. सुधा पांडेय जी हमारे कार्यक्रम में नार्वे भी आ चुकी हैं उनसे  पुनः मिलना हुआ।  प्रसिद्ध साहित्यकार  शशि प्रभा शास्त्री जी के घर गए और हमारे साथ थे आदरणीय पूर्व कुलपति अनुज कुमार धान और उनकी पत्नी रांची विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष हिंदी डॉ. मंजू ज्योत्स्ना जी। 

अनागत कविता आंदोलन के जनक
अब बात करते हैं अ  अनागत कविता आंदोलन के जनक हम सबके प्रिय डॉ. अजय प्रसून जी की।  
अ से अगीत का आंदोलन चलाने  वाले प्रिय मित्र स्व. रंग डॉ. रंगनाथ मिश्र 'सत्य' जी का जिक्र भी जरुरी है जो राजाजीपुरम लखनऊ में बस गए थे, जहाँ गाँव किसान के संपादक शिवराम पांडेय जी रहते हैं।  सत्य जी भी  अजय प्रसून जी की तरह कवि गोष्ठियों का आयोजन करते थे। 

स्व. आदरणीय गया प्रसाद तिवारी मानस, डॉ. शिवशंकर मिश्र एवं दयाशंकर  मिश्र जी राजेंद्र नगर लखनऊ में रहते थे और समय -समय पर कवि गोष्ठियां आयोजित करते थे तब मैं पंद्रह - सोलह वर्ष का था। इनकी गोष्ठियों की सूचना अखबार में पढ़कर जाता था।  परिचय बहुत बाद में हुआ।  स्व. आदरणीय गया प्रसाद तिवारी मानस जी के पुत्र पत्रकारिता के बहुत बड़े विद्वान प्रो. डॉ. संतोष तिवारी जी से मुलाकात अभी विधायक निवास के बाहर  राजेंद्र नगर पर स्थित पंडित जी की चाय की दूकान में चार महीने पूर्व हुई थी उस समय मेरे साथ थे हिमांशु कॉल जी। 

'युग के आँसू' चर्चित हुई 
जहाँ तक मुझे स्मरण है कि सन् 1974-1975 में  मेरी मुलाकात अजय प्रसून से हुई थी।  यह मुलाकात 1975 में बढ़ी स्व. श्री  उमादत्त त्रिवेदी जी के घर में हुई थी।  वह डी ए वी इंटर कॉलेज में मेरे कक्षा अध्यापक थे।  
स्व. श्री  उमादत्त त्रिवेदी जी ने अजय प्रसून जी की पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक था 'युग के आँसू' जो बहुत चर्चित हुई।  

ये वही स्व. उमादत्त त्रिवेदी जी हैं जो राजनैतिक पार्टी भाजपा के चर्चित प्रवक्ता श्री सुधांशु त्रिवेदी जी के पिताजी हैं।  जब मेरी शादी 1977 में हुई तब आदरणीय उमादत्त त्रिवेदी जी की पत्नी और पूर्व प्रधानाचार्य हनुमान प्रसाद रस्तोगी इंटर कालेज की प्रधानाचार्या श्रीमती प्रियंवदा त्रिवेदी जी का रिश्ते में मौसिया लगने लगा।  
जब भी भारत जाता हूँ  हनुमान प्रसाद रस्तोगी इंटर कालेज लखनऊ से मेरा अच्छा सम्बन्ध रहा है अतः वहां अनेक कार्यक्रमों में जाता रहता हूँ जहाँ प्रसिद्ध कवियित्री श्रीमती सुमन दुबे जी भी प्राध्यापक हैं।

अभी चार महीने पूर्व दिल्ली में श्री सुधांशु त्रिवेदी जी से जी से जब मुलाकात हुई तब पुरानी यादें ताजी हो गयीं।  
उन्होंने बताया था कि उन्हें स्मरण है जब हम उनके घर पिताजी और माताजी से मिलने जाया करते थे।

डी ए वी कालेज में मेरे अध्यापकों स्व. रमेश चंद्र अवस्थी जी जिनकी शक्ल  जवाहर लाल नेहरू जी की तरह थी।   र मेश चंद्र अवस्थी जी जवाहर लाल नेहरू जी  की तरह वेशभूषा रखते थे, उन्होंने डी ए वी कालेज की पत्रिका में मेरी कविता 'ले चल पंछी दूर गगन में' को स्थान दिया।  स्व. श्री देवेंद्र मिश्र  विद्यालय के  छात्रसंघ के अध्यापक संचालक थे।  यहाँ मेरी मुलाकात स्व. वचनेश त्रिपाठी से हुई जो तरुण भारत समाचार पत्र के संपादक थे जो राजेंद्र नगर, लखनऊ से छपता था।  अजय प्रसून जी की पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक था 'युग के आँसू' जो बहुत चर्चित हुई। 

कम आयु में ही अजय प्रसून जी लखनऊ में अपने से बड़े और समकक्ष कवियों में कवि-गजलकार के रूप में अच्छी छवि बना चुके थे।  मेरा भी पहला काव्य संग्रह 1975  में छपकर आया था।  

 मैं यही कामना करता हूँ डॉ. अजय प्रसून जी पर अभिनन्दन ग्रन्थ साहित्य में मील का पत्थर बने।  वह शतायु हों और स्वस्थ रहें।  डॉ. राहुल मिश्रा और अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन टीम को हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनायें।


शुभकामनाओं सहित,
सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',
अध्यक्ष, भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम,
सम्पादक, स्पाइल-दर्पण (ओस्लो से प्रकाशित द्विभाषी- द्वैमासिक पत्रिका)
संस्थापक, वैश्विका साप्ताहिक लखनऊ
यूरोप संपादक, देशबंधु राष्ट्रीय समाचार पत्र, नई दिल्ली
Post Box 31, Veitvet, 0518 Oslo, Norway 
मोबाइल: + 47 -90070318, 
केवल वॉट्सऐप: +91-88 00 51 64 79

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

स्ट्रा / (नली वाली सींक) से सत्तू पी रहा है - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 चुनाव आयोग स्ट्रा से सत्तू पी रहा है 

सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

उसके पास मतदाता सूची है,
फिर भी मतदाताओं से क्यों
दस्तावेज माँग रहा है।

कर्तव्य भूल गया चुनाव आयोग,
तानाशाह बन गया है,
वह क्यों तय करेगा कि
कौन चुनाव आयोग से मिलेगा?

लोकतन्त्र को नहीं डुबा सकेगा चुनाव आयोग।
जनता सहिष्णु है, कायर नहीं।
जो जनता किसी को सत्ता पर बिठा सकती है
तो भ्रष्ट सत्ता को हटा सकती है।
काठ की हांडी बार -बार नहीं चढ़ती।

जनता से बड़ा हो गया है चुनाव आयोग
विपक्ष से बातचीत में सौहद्र भूल गया है।

देश में बहुत से कुपोषित बच्चे 
भूखे मर रहे हैं।
हमारे नेता विदेश में
सम्मान की भीख माँग रहे हैं।
हमारे प्रवासी वापस
हथकड़ी में आ रहे हैं।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल
ओस्लो, 03.07.25

सोमवार, 30 जून 2025

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. कृष्णाजी 11 जून 25 को नहीं रहे - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. कृष्णाजी नहीं रहे

- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’



जन्म:14.11-1967 - मृत्यु:11.06-2025

मित्रों आपके साथ एक दुःखद सूचना साझा कर रहा हूँ कि
हम सबके प्रिय प्रो. कृष्णाजी श्रीवास्तव नहीं रहे। डॉ. कृष्णा जी का लम्बी बीमारी के बाद बुधवार 11 जून को तड़के उनका आकस्मिक निधन हो गया।
उनका अंतिम संस्कार भैंसा कुंड, लखनऊ में किया गया. लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के प्रोफेसर वाई पी सिंह ने बताया कि आलमबाग सुजानपुरा के निवासी डॉ. कृष्णा जी श्रीवास्तव की सेवा 2029 तक थी
जो लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं कार्य परिषद् के सदस्य थे। उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं और शोध कराये।

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर पवन अग्रवाल के अनुसार,
"डॉ. कृष्णा जी बड़े कर्मठ और अच्छे अध्यापक थे। रंगमंच के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता थी। वह निरंतर विभागीय सहयोगियों, क्षेत्रों के साथ सौहाद्र बनाये रखते थे। उनकी मृदुभाषिता , सहजता और कर्मठता सदैव अनुकरणीय रहेगी।
उनके निधन से हम सभी हतप्रभ हैं ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करें और परिजन को इस गहन दुःख सहन करने का संबल प्रदान करें।"

आधुनिक भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित के अनुसार, " मेरे प्रिय शिष्य और सहयोगी कृष्णा जी हिन्दी विभाग में लगभग 35 वर्ष पूर्व  व्यावहारिक रंगमंच के सहायक रूप में आए थे। इस पाठ्यक्रम को चलाने में उन्होंने बहुत मदद की थी।"

कई महीनों से वह बीमार थे और इलाज करा रहे थे। उनकी बहन जी से समाचार मिल जाते थे।
एक अच्छे रंगकर्मी, मृदुभाषी मित्र की कमी को भरा नहीं जा सकता।

लखनऊ में जब भी फिल्माचार्य आनन्द शर्मा के निर्देशन में मेरे स्वरचित नाटक मंचित होते थे तब वह देखने ज़रूर आते थे। उनसे लखनऊ में रंगमंच और फिल्मी हस्तियों की भूमिका पर बहुत विचार होता था।

लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अलावा उनके साथ पत्रकारिता विभाग में भी प्रो. कृष्णाजी श्रीवास्तव के साथ प्रो. मुकुल श्रीवास्तव जी से मिलने जाता था जो पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष थे।

डॉ. कृष्णा जी के निर्देशन में मेरी (सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' की ) कहानियों पर शोधार्थी पूनम ने शोध किया था। उनके साथ विश्वविद्यालय, स्टेडियम और हजरतगंज में चाय पीने जाते थे। मेरा सपना है कि हमारा लखनऊ में निजी - सार्वजानिक थिएटर हों जहाँ रंगकर्मियों का मिलने और मंचन करने की सुविधा हो।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
11 जून 25 को (30.06.25 को प्रकाशित)

शुक्रवार, 27 जून 2025

फिर एक हादसा होना चाहिए - सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे

फिर एक हादसा होना चाहिए

    सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे 

कुछ नहीं रहा तेरी सियासत में,

अब तुमको स्तीफा देना चहिये।

सियासत से चिपकना है तुमको

फिर एक हादसा होना चाहिए।


यदि जीवन में सब नहीं मिलता,

तब प्रयास जारी रहना चाहिए।

तुमपर कोई हमला नहीं करता,

खुद पर हमला कराना चाहिए।


असफलता के दौर में तुमको,

विरोधी स्वर दबाना चाहिए?

अपने पाप  छिपाने के लिए,

नेहरू को गाली देना चाहिए।


आजादी में योगदान न सही,

देश को गुलाम बनाना चाहिए।

ले  लिया है हमने अथाह चंदा,

सबको गुलाम बनना चाहिए।


ओस्लो, २७.०६. २५ 

गुरुवार, 26 जून 2025

कितने गाज़ा - सुरेश चंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla

कितने गाज़ा 

 - सुरेश चंद्र शुक्ल 


कितने गाजा, मणिपुर जल रहे,

राजनीति के संत छल रहे। 

सत्य अहिंसा वाली सत्ता, 

बन जाये बर्रैया का छत्ता। 

 

अब न और सताओ जी,

अब तो लोकतंत्र बचाओ जी।


पचास साल पहले आपातकाल था 

घोषित पर निंदनीय बहुत था।

कितना बड़ा झूठ या सच है,

एक दशक से अघोषित आपातकाल है । 


राजनीति में थाली के बैगन,

आज काले तो कल उजले हैं।

लोकतंत्र का चाहे गला घुटे,

सब कठपुतली के पुतले हैं। 


भुखमरी और गरीबी में अव्वल,

जैसे वेंटिलेटर पर नैतिकता है?

बेरोजगारी, शिक्षा, मँहगाई 

आवाज पर पहरा, लोकतन्त्र है?


जहाँ न्यायालय आशा का दीपक, 

चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है।

हेट स्पीच -फेक न्यूज तंत्र बड़े,

जनता का हौंसला बड़ा है।


अक्षम जहाँ राज्य करते हों,

किसके हाथों की कठपुतली हैं।

कर्तव्यों का बोध नहीं है 

अधिकारों की माँग बढ़ी है।


यहाँ-वहां सब ओर थूकते,

देहरी, गलियाँ भवन भले हो।

तालाब, मार्ग, पार्क भले हो,

अतिक्रमण करते नहीं थकते हैं।


उद्द्योगपति से चंदा लेकर, 

सत्ता में आ उनके एजेंट बने हैं।

हवाई अड्डे, बंदरगाह, खानें बाटें,

कैसे ठेकेदार बने हैं। 


देश की रक्षा का सौदा कौड़ी के भाव,

क्या बहुत बड़ा अपराध किया है?

जनता से कैसा प्यार किया है,

उसे जन्म से ही कर्जदार किया है।


अब बहुत हुआ अब जाओ जी,

सब मिलकर लोकतंत्र बचाओ जी।

( ओस्लो, 26.06.25)