सोमवार, 19 मार्च 2012

Velkommen स्वागतम 

लेखक गोष्ठी Forfatterkafe
  Markering av Henrik Ibsens bursdag
 Det blir dikt -, novellelesning og foredrag.
Tirsdag den 20. mars kl. 17:30
Sted: Stikk Innom, Veitvetsenter, Oslo
Fri inngang. Lett servering!
 
20 मार्च को शाम 17:30 बजे लेखक गोष्ठी
कविता, कहानी और इब्सेन पर व्याख्यान
Stikk Innom, वाइतवेत सेंटर ओस्लो में
प्रवेश  निशुल्क .
Arrangør आयोजक:
 Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
भारतीय-नार्वेजीय सूचना  एवं  सांस्कृतिक फोरम
Postboks 31, Veitvet, 0514 Oslo
Norway


रविवार, 11 मार्च 2012

हिन्दी स्कूल नार्वे में होली

हिन्दी स्कूल नार्वे में होली पर्व धूमधाम से मनाया गया. - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद अलोक'

८ मार्च को होली थी. अपने परिवार के साथ ८ मार्च को होली मनाई.  हालाँकि भारत में जिस तरह लखनऊ में होली मनाते थे वैसा तो नहीं मना पाए परन्तु औपचारिक तौर पर की हम होली को नहीं भूले हैं उसे आंशिक तौर पर मनाया, हाँ यह जरूर हुआ पकवान और खानपान के हिसाब से कोई कमी नहीं रही.  चाहे खोये की गुझिया हो, आलू और साबूदाने के पापड हों, पुआ हो, कचौड़ियाँ हों या अन्य मिठाई और नमकीन. सभी कुछ मिला पर वह भारत की सोंधी मिटटी की खुशबू और वह वातावरण नहीं मिला. पर किसी संतकवि ने कहा है. 'अपन मन चंगा तो कटौती में गंगा'.  अतः जो साधन और सुविधाएं उपलब्ध थीं वह घर में होली को मनाने  में सहयोग करती रहीं.

हिन्दी स्कूल नार्वे में होली

शनिवार १० मार्च को अवकाश के दिन ओस्लो में वाइतवेत कल्चर सेंटर में हिन्दी स्कूल के विद्यार्थियों, अध्यापकों और अविभावकों के संग होली धूमधाम रंग, हुडदंग, नांच संगीत के संग मनाई गयी.
इसमें वे पानी के रंग प्रयोग किये गए जो आँखों के लिए भी हानिकारक नहीं थे और आसानी से पानी से धोने से छूट भी जाते हैं.  बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी ने मिलकर होली मनाई. इस अवसर पर हिन्दी के विद्यार्थियों ने एक नाटक भी खेला जो व्यंग्यात्मक था.  नाटक में अभिनय करने वाले बच्चों को पुरस्कार प्रदान किया सुरेशचन्द्र शुक्ल ने.   इस स्कूल की अध्यापिकाओं में संगीता शुक्ल सीमोनसेन, तरु वान्गेन, राखी चोपड़ा शर्मा,
नेहा चोपड़ा सिष्टी,सपना रस्तोगी के अलावा अलका भरत थीं.  

ओस्लो में कवितापाठ

ओस्लो में कवितापाठ एक सुखद अनुभव  - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'













चित्र में कविता पढने के बाद मेरा धन्यवाद अदा करती कार्यक्रम संचालिका किन्तिका तथा बाएं खड़ी थ्रुदे मेत्तेऔर दायें मेरे कविता पाठ में साथ दिया ब्रेंत बर्ग ने     
१० मार्च, ओस्लो, नार्वे.  यहाँ ओस्लो में स्थित  घाटी ग्रुरुददाल के नाम से केंद्र सरकार के सहयोग से 'संस्कृति बागवान'  नाम से एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी और चार कवियों को इस अवसर पर आमंत्रित किया गया जिसमें मुझे भी अपनी कवितायें पढने का अवसर मिला. भारत की धरती से आकर यहाँ की धरती में एक लेखक के रूप में प्रतिष्ठित होने और यहाँ पर अपनी कविताओं के माह्यम से ओस्लो की संस्कृति को पास से देखकर जो यहाँ की भाषा में कवितायें लिखीं उसे पढ़ा जिसे औरों की कविताओं की तरह सराहा गया.  एक खुला मंच जो अन्य कार्यक्रमों के लिए भी उतना ही अच्छा है. मन में संकल्प लिया क्यों न ऐसा मंच उत्तर प्रदेश के नगर लखनऊ या वाराणसी या दिल्ली में क्यों न बनाया जाये और उसका उपयोग खुले मंच की तरह हो और सभी की भागीदारी भी हो सके. सभी सहयोग प्राप्त करने के लिए सहयोग ही करें.  कभी विस्तार से चर्चा करेंगे जब इसे क्रियान्वयन किया जाएगा. 

मंगलवार, 6 मार्च 2012

संगीता का जन्मदिन और भारत में पांच प्रदेशों के चुनाव परिणाम का उत्सव- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
मेरी पुत्री संगीता का आज जन्म दिन है. हम  सभी परिवार जनों ने प्रातःकाल संगीता का जन्मदिन मनाया. संगीता की माँ माया भारती  भी जन्मदिन मनाने में  बड़े उत्साह से इंतजाम में लगी थी. संगीता का जन्म लखनऊ, भारत में वह भी  घर पर ही  हुआ था. एक महिला  चिकित्सक और  नर्स की देखरेख में हुआ था.  ६ मार्च को  मेरे पिताजी श्री बृजमोहन लाल शुक्ल बहुत प्रसन्न थे.  उन्होंने घर पर सभी इंतजाम कर रखे थे और इस बात का भी ध्यान रखा था की यदि कोई इमरजेंसी हुई तो उससे कैसे निपटना है उसका भी ध्यान रखे हुए थे. लखनऊ में अपने ८ मोतीझील ऐशबाग रोड,  पर  स्थित निवास पर चहल-पहल बढ़ गयी थी. 
अब संगीता के अपने दो होनहार बच्चे हैं आलेक्संदर अरुण और निकीता तथा पति रोई थेरये के साथ मेरे नार्वे में निवास के समीप बने अपने घर पर रहती है. यह देखकर ख़ुशी होती है कि संगीता ने अपनी भाषा और संस्कृति को स्वयं भी अपनाया है और अपने बच्चों को भी सिखा रही है. नार्वे में हिन्दी सिखाने के लिए हिन्दी स्कूल भी खोला है जहाँ बहुत से भारतीय और नार्वेजीय बच्चे हिन्दी और संस्कृति की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
विक्रम सिंह ने अपनी पुस्तक 'सूरज चांदनी रात में' संगीता के सांस्कृतिक कार्यों  का उल्लेख  किया है.  विक्रम सिंह की इस पुस्तक को अनेकों जगह सम्मानित भी किया गया है उन्हें बधाई.
चुनाव का जश्न  
नार्वे में प्रवासी भारतीयों में  विभिन्न प्रदेशों के लोग हैं. इनमें उतरांचल,  उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा के रहने वाले भी शामिल हैं. अतः इन प्रदेशों में चुनाव परिणामों से लोगों में उत्सुकता है यह जानने की किसकी सरकार  बनेगी और कौन-कौन उमीदवार जीता है.
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को  नेताजी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में ४०३ में २२४  सीटें पर जीत मिली है जिसके उत्तर प्रदेश में युवा नेता अखिलेश सिंह यादव अध्यक्ष हैं. दलित नेता और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ८० सीटें जीत कर अभी भी दूसरे स्थान पर हैं.  भारतीय जनता पार्टी को ४५ सीटें मिली हैं. जबकि कांग्रेस को  २८  सीटें ही मिलीं.   
मुलायम  सिंह यादव हिन्दी प्रेमी हैं  
मुझे स्मरण है कि  जब  मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए थे तब उन्होंने उत्तर प्रदेश में सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढाया था. मेरी पहली मुलाकात मुलायम सिंह यादव जी से लखनऊ में हुई थे जब वह उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में मेरे प्रिय साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की प्रतिमा का उद्घाटन करने आये थे.  मैं उस समय वहां उपस्थित था और मैंने उन्हें अपनी काव्य पुस्तक भेंट की थी. उस समय उपन्यासकार मृणाल पाण्डेय, डॉ. रमा सिंह भी उपस्थित थीं.
मायावती जी अपने प्रदेश के साहित्यकारों का सम्मान  नहीं करती हैं
और मायावती जी के चुनाव हारने की एक वजह यह भी है कि वह साहित्यकारों का सम्मान नहीं करतीं. किसी भी प्रदेश की भाषा और साहित्य के प्रचार -प्रसार और प्रोत्साहन की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार  की होती है, पर बहन मायावती जी ने संस्थान के तीन पुरस्कारों को छोड़ सभी पुरस्कारों को  समाप्त  कर दिया था. बड़ा अटपटा था उनका निर्णय. पहले पुरस्कार समिति बनायी गयी उत्तर प्रदेश के  सरकार के आदेश पर जब समिति ने अपना निर्णय संस्थान को दिया तो सरकार ने उसे निरस्त कर दिया.  आशा है मायावती जी इस चुनाव से सबक लेंगी. 
भारतीय जनता पार्टी के राज्य के समय में भी उसके कुछ तत्कालीन स्वार्थी नेता  भी प्रदेश में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के पुरस्कार उसके अध्यक्ष बनकर और उपाध्यक्ष बनकर पहले  स्वयम लिए और साथ ही अपने रिश्तेदार और दोस्तों को बांटे थे. अब ऐसा नहीं होगा ऐसी आशा करनी चाहिए. 
दूसरा कि उत्तर प्रदेश सरकार बहुत समय से प्रवासी सम्मेलनों, प्रवासी दिवस आदि पर अपनी जोरदार उपस्थिति नहीं दिखा सकी है और जो उपस्थिति दिखाई भी तो अपने वायदों से भी मुकर गयी थी. यह मेरा अनुभव है. मैंने इसे  नजदीक  से देखा  है. आशा है कि उत्तर प्रदेश की नयी  सरकार  और इसके नेता अपने प्रदेश को खुशहाल बनाने और प्रगति के लिए दिए गए सुझाव को गंभीरता से लेंगे और उस पर कार्य कर प्रदेश को देश के   अधिक प्रगति वाले प्रदेशों में सम्मिलित करायेंगे. यदि प्रदेश को मेरी किसी प्रकार  की मदद की आवश्यकता हुई तो मैं तत्पर हूँ पर सहयोग  दोनों  तरफ  से होना  चाहिए. साहित्य और सांस्कृतिक विकास के लिए प्रदेश की सेवा के लिए तत्पर हूँ. 
पंजाब, उतरांचल  और गोवा में भारतीय जनता पार्टी दोबारा जीती
पंजाब और उत्तराँचल में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा. यहाँ इस पार्टी  के नेताओं  के जमीन से जुड़े होने के कारण विजय मिली  हैं. उत्तर प्रदेश और उत्रन्न्चल के मंत्री और मुख्य मंत्री रहे  रमेश पोखरिआल निशंक मुझे जनवरी २०११ में दिल्ली में प्रवासी फिल्म महोत्सव दिल्ली में मिले थे और  एक विवाहोत्सव पर दिसंबर २०११ में देहरादून दूसरी बार मिले थे. 
पंजाब में अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी ने ६४ सीटें  जीती हैं और ४६ सीटें जीतकर कांग्रेस चुनाव हार गयी है.  ४५ वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी पार्टी को लगातार दोबारा जनता ने जिताया है. 
पंजाब के नेता हर वर्ष नार्वे आते हैं.  कांग्रेस, अकाली और भारतीय जनता पार्टी सभी पार्टियों के नेता यहाँ आने वालों में शामिल हैं .

रविवार, 4 मार्च 2012

अमरीका में हमारे सांस्कृतिक दूत शेर बहादुर सिंह -शरद आलोक

अमरीका में हमारे सांस्कृतिक दूत शेर बहादुर सिंह -शरद आलोक

सबसे पहले मैं भाई डॉ मनोज जी को बधाई देता हूँ कि जिन्होंने शेर बहदुर सिंह जी के अभिनन्दन ग्रन्थ का सम्पादन आरम्भ किया है.  ऐसे कर्मठ हिन्दी सेवी शेर बहादुर सिंह के जीवन पर इस ग्रन्थ द्वारा विस्तृत सामग्री पाठकों के सामने आयेगी और लोग उससे लाभान्वित होंगे.

वृक्ष कबहु नहीं अल भखे, नदी न संचै नीर 
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर..

कबीर दास जी की इन पंक्तियों को  सही रूप में अमेरिका में बसे श्री शेर बहादुर सिंह जी के जीवन को चरित्रार्थ कर रही हैं .  शेर बहादुर सिंह अमेरिका सन  १९७८ को भारत से अमेरिका आ गये थे. वहीं अपने परिवार के साथ बस गये हैं.  आपको अमरीकी प्रदेश न्यूयार्क या  न्यूजर्सी में ही नहीं अपितु पूरे अमेरिका में भारतीय लोग जानते हैं.  एक बड़ी संख्या है उन भारतीय लोगों की जो नये -नये अमरीका  में आये थे और स्थापित होने का प्रयास कर रहे थे तथा सहयोग की कामना कर रहे थे उन्हें न केवल स्वयं शेर बहादुर सिंह ने यथा संभव अपने तन-मन-धन  से सहायता की बल्कि उन्हें नौकरी दिलाने के लिए रास्ते भी बताये.
आम तौर पर लोग जीवन यापन के लिए विदेश आते-जाते रहते हैं. धन कमाने और शिक्षा यापन के लिए. पर शेर बहादुर सिंह केवल अमेरिका में बसकर भी अपनी सभ्यता और संस्कृति की सेवा कर रहे हैं जो बहुत प्रशासनीय है.   

युवाओं जैसे  जोश से भरा व्यक्तित्व
आपसे किसी भी आयु का व्यक्ति बातचीत में सहजता महसूस होता है. आप मिलने वाले उसकी आयु और स्थिति का ध्यान  तो करते ही हैं साथ ही उसका समय बर्बाद नहीं करते.  किसी प्रकार की समस्या या अड़चन हो उससे निपटने और उसे निपटाने  के लिए युवाओं की तरह तत्पर रहते है.
मुझे शेर बहदुर सिंह जी की शादी की जुबली में सम्मिलित होने  का अवसर मिला था. इनके बेटे ने इस  उत्सव का आयोजन सागर तट पर बने एक  बड़े सुन्दर रेस्टोरेंट में किया था जिसमें पूरे अमरीका से साहित्यिक प्रेमी, परिवार और मित्रजन आये थे.  लेखिका पूर्णिमा गुप्ता १२ घंटे कार चलाकर वहां आयी थीं. देवेन्द्र सिंघ्न्यु जर्सी से आये थे. जिसमें नृत्य के लिए युवा माडलों ने भी उत्सा की सरगर्मी में चार चाँद लगाये थे.  यह एक न भूलने वाला पारिवारिक कार्यक्रम था
सबके प्रिय शेर बहादुर सिंह जी
शेर बहादुर सिंह अमरीका और भारत मरण सभी के प्रिय हैं. जो एक बार आपसे मिलता है आपसे जरूर प्रभावित होता है.
अपने समाज से लेकर समस्त भारतीयों के सांस्कृतिक, धार्मिक और साहित्यिक समाज के लोग केवल शेरबहादुर सिंह जी को जानते ही नहीं हैं अपितु आपके कार्य के प्रशासक हैं.  लोग इनका उदहारण देते हैं कि 'मनुष्य हो तो शेरबहादुर सिंह जैसा.' कर्मठ समाजसेवी हो तो इनके जैसा.  जहाँ भारत देश की बात आती है तो उसके सम्मान के खिलाफ कोई समझौता नहीं करते भले ही वह कोई हो वह स्पष्ट कह देते हैं कि यह उन्हें सहनीय नहीं है.  यही कारन है कि अनेक अन्स्कृतिक, धार्मिक और साहित्यिक संस्थाओं ने आपको अपना नेता चुना. आपने अपने को कभी नेता न समझते हुए, सभी को समान समझते हुए सभी को आदर देते हैं और उसका सम्मान करते हैं.
इसीलिये आप अमरीका में रहने वाले भारतीयों बड़े उदार, कर्मठ और पुरुषार्थी के रूप में भी प्रतिष्ठा पाते हैं. 
आपके पास अनेक संस्थाओं के अनेक महत्वपुर्ण पद रहे पर आपने कभी घमंड नहीं किया. और किसी के भी आग्रह पर आप उसके पास जाकर उसकी परेशानी सुनते थे और उसे हल कारने का प्रयास करते थे.
साहित्यकारों का बहुत सम्मान
आप साहित्यकारों का बहुत सम्मान करते हैं इसीलिए अमरीका में आपके घर पर बहुत से साहित्यकार आकर रुकते हैं और उनका घर साहित्य गोष्ठियों से भर जाता है. में बस गये हैं.  वह अपने परिवार के साथ रहते हुए अपना संस्कृति और हिन्दी सेवा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
मुझे अनेकों बार अमरीका में आने का अवसर प्राप्त हुआ और हर बार शेर बहादुर सिंह जी से मिला. इनके घर पर भी अनेकों बार रुका.  इनका पूरा परिवार भारतीय संस्कृति को समर्पित है. सातवे विश्व हिन्दीसम्मेलन न्यूयार्क के बाद मैं आपके घर पर डॉ. दो दिन उज्जैन के विद्वान हरिमोहन बुधौलिया के साथ रुका था.  साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्मरणों और कवता कहानी का ऐसा दौर चलता कि रात के दो और तीन बज जाते थे.
साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन
अमरीका में हर वर्ष आपकी संस्था अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति  अमेरिका के विभिन्न प्रदेशों में कविसमेलन आयोजित करती है जिसका और भारत से अनेक साहित्यकारों को आमंत्रित करती है. इस तरह वर्षों से कविता के माध्यम से अमेरिका में हिन्दी का प्रचार प्रसार हो रहा है.  आप इस संस्था के पदाधिकारी हैं और अपने घर पर कवियों को रकते हैं और सम्मान करते हैं.  अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति  अमेरिका की स्थापना स्व. कुंवर चन्द्र प्रकाश सिंह ने की थी और आजकल कुंवर चन्द्र प्रकाश सिंह के सुपुत्र डॉ रवी प्रकाश सिंह भी इससे जुड़े हुए हैं.
आपने स्वयं संस्था के माध्यम से दर्जनों कवी सम्मलेन भारतीय दूतावास और  सार्वजानिक स्थानों पर आयोजित किये हैं.
विश्व हिन्दी सम्मलेन में महत्वपूर्ण भूमिका
आप विश्व हिन्दी सम्मलेन में आयोजन समिति के सदस्य थे तथा स्थानीय यात्रा संबंधी सुविधा को सम्मलेन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को दिलाना आपकी जिम्मेदारी थे जिसे आपने बहुत ख़ूबसूरती से निभाया था आपको इसके लिए भारतीय विद्या भवन और दूतावास ने सम्मानित भी किया था.
अध्यापन में महत्वपूर्ण योगदान
आपने ११ वर्षों तक न्यू यार्क शिक्षा बोर्ड में कार्य किया और  महत्वपूर्ण सेवा की.  भारत में आप पहले २३ वर्षों तक माधवराव सिंधिया व्यास कालेज में भी कार्यरत रहे. आप पहली पारी के एक दशक से अधिक प्रधानाचार्य भी रहे. एन सी सी प्रशिक्षण और छात्रावास प्रबंधन में भी बहुत महत्वपूर्ण  भूमिका निभायी और सभी की प्रशसा के पात्र बने.