शनिवार, 15 नवंबर 2014

नार्वे में नेहरू जयन्ती - Suresh Chandra Shukla

नार्वे में नेहरू जयन्ती

14 नवम्बर को ओस्लो में भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में जवाहर लाल नेहरू जयन्ती  धूमधाम से मनाई गयी. शरद आलोक ने नेहरू जी के जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर आयु में सबसे छोटी चार वर्षीय आइशा ने राष्ट्रगान और कविता सुनाई और और 13 वर्षीय  शगुन ने अपना पहला लेख पढ़ा.
इस अवसर पर भारतीय दूतावास से श्री एन  पोन्नप्पन  ने शुभकामनाएं दी. बाद में संपन्न हुई कविगोष्ठी में कवितायें पढ़ी गयी जिनमें मीना  मुरली, अलका भरत, दीपिका रतूड़ी, राज कुमार, मोहिन्दर सिंह, मारिस
मौउरिनो, नौशीन इकबाल,  माया भारती प्रमुख थे.  इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन ने  नेहरू जी को भारत और नार्वे के बीच सम्बन्ध जोड़ने वाला बताया।   

रविवार, 9 नवंबर 2014

कितना अच्छा लगता है बिछड़े मित्रों से मिलकर -Suresh Chandra Shukla


Hei, jeg har møtt mine venner etter 19 år. Det er veldig gledelig å treffe dem igjen.
 कितना अच्छा लगता है बिछड़े मित्रों से मिलकर और नये प्यारे मित्रों से मिलकर। आइये अपने उन मित्र की बात करते हैं जो 19 साल पहले नार्वे से गए थे और हम लोगों से मिलने आये.
आज से तीस पहले मैं साग्न स्टूडेंट टाउन ओस्लो में रहता था कमरा नंबर 205 एडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग में. जो एक साहित्यिक और भारतीय छात्रमित्रों का अनौपचारिक केंद्र था. 19 साल बाद पुराने मित्र परमजीत कुमार चंडीगढ़ से आये और ब्रिटेन से आकर ओस्लो में बसे इंजीनियर मित्र बशीर हाकिम। हम सभी पहले बहुत मिलते हैं. पुरानी और नयी बातों को तह लगाकर रखा गया और नए विचारों से उसे सवांरा गया.
अब तो वैचारिक मित्र पुराने मित्रों की जगह लेते जा रहे हैं, परन्तु पुराने मित्रों को भुलाना संभव नहीं।



मेरे  कमरे में बहुत से नार्वे के व अन्य देश विदेश के साहित्यकार, शिक्षाविद और छात्रमित्र शनिवार को एकत्र होते थे. इन लोगों के नामों में एक बहुत बड़ा काफिला है. जाने-पहचाने और अपरिचित सभी शामिल हैं. सभी धर्मों के लोग पर कभी धर्म और वैचारिक भिन्नता आड़े हाथ नहीं आयी. 
उर्दू के लेखक रामलाल, गोपीचंद नारंग, सत्यभूषण वर्मा, हरमहेन्द्र सिंह बेदी, महेश दिवाकर, विनोद बब्बर,  रामेश्वर और शकुंतला  मिश्र,  रमणिका गुप्ता, सरोजनी प्रीतम, वासंती, मनोरमा  जफ़ा और अनगिनत नार्वेजीय लेखक, शिक्षाविद और कलाकारों की लम्बी लिस्ट है.      

शनिवार, 8 नवंबर 2014

बर्लिन दीवार गिरने की रजत जयन्ती

बर्लिन दीवार गिरने की रजत जयन्ती


पूरे विश्व के कलाकारों ने जर्मनी के मशहूर नगर बर्लिन की 25 साल पहले गिराई हुई दीवारों के खंडहर पर अपनी कला से सजाया है. 9 नवम्बर को आज से 25 साल पहले पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी दो अलग-अलग देशों का अस्तित्व रखते थे पर उस दिन इन दोनों देशों का विलय हुआ. बर्लिन नगर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में बटा हुआ  था. उसके मध्य एक लम्बी दीवार थी जो इतिहास में बर्लिन की दीवार के नाम से जानी जाती है.
25 साल पहले यह दीवार लोगों ने खुशी से गिरा दी थी. लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं था. बहुत से लोग इसका श्रेय काफी हद तक तत्कालीन रूस क राष्ट्रपति मिखाइल गर्बाचोव को देते हैं जो  इस रजत जयन्ती पर मुख्य अतिथि होंगे। उन्हें उनके कार्य के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
'आज जगह -जगह बन रहीं है
एक घर के बीच अनेक दीवारें
घृणा और द्वेष की दीवारें
कटुता और मधुता के बीच दीवारें
आइये इन दीवारों को हमेशा के लिए
बर्लिन की दीवारों की तरह गिराएं
और बिछड़ी खुशी को
दूसरों के मध्य साझा करें।'
बर्लिन दीवार गिरने की रजत जयन्ती मिलकर खुशी से स्वतंत्रता के अहसास के साथ मनायें।        

एच सी अन्दर्सन - Suresh Chandra Shukla

एच सी अन्दर्सन

विश्व प्रसिद्द डेनमार्क के लेखक एच सी अन्दर्सन की लोककथाओं का अनुवाद मैंने बहुत पहले किया था इनकी मूर्ति कोपेनहेगन के रोदहूस (सिटी हाल) के सामने दायीं ओर स्थित है. इनकी कथाएं पढ़कर हर बच्चा डेनमार्क में बड़ा होता है जो स्वयं अपने जीवन में भेदभाव के शिकार हुए थे.

 
६ नवम्बर को  कोपेनहेगन की यात्रा पर गया था. एक बहुत अच्छा शहर. नाविकों और व्यापारियों का हमेशा से नगर रहा है. 1980 को गया था. हर बार मुझे एक नया लुफ्त मिलता है कोपेनहेगन में. विश्वविद्यालय में उपकुलपति कार्यालय में कुछ समय बिताने के बाद विधि संकाय में लंच (खाना) खाया।
पार्लियामेंट के बाहर हेंनिग से मुलाक़ात की जो लगभग चार सालों से शान्ति के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं जो 80 साल  की  उम्र में  डेनमार्क आये थे. विचारों में मार्कसिस्ट बामपंथी और शान्ति के बारे में  महात्मा गांधी जी से मिलते विचार।
मैंने उनसे कहा कि मैं भी सोशल लेफ्ट पार्टी से ओस्लो नगर पार्लियामेंट में चार साल जनता की आवाज उठाता रहा हूँ. वे सुनकर खुश हुए. उन्होंने कुछ पर्चे दिए और अपना परिचय पत्र भी दिया। मैंने उनका साक्षात्कार कैमरे में कैद किया और आगे चलता बना.
 
      
शान्ति के प्रचार में चार सालों से प्रयासरत हेंनिग
डेनमार्क के  पार्लियामेंट के सामने 
 
'पर्यावरण और हिन्दी साहित्य'

18 से 20 अक्टूबर 2014 को 'पर्यावरण और हिन्दी साहित्य' विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के कुछ चित्र जिसका आयोजन पानेर, अहमदनगर, महाराष्ट्र में हुआ था जहाँ मुझे भारत के सर्वाधिक प्रसिद्द समाजसेवी, सोशल एक्टिविस्ट अन्ना हजारे के साथ घंटों विचार विमर्श करने का अवसर मिला जो बहुत प्रेरणापद था. जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता।


 

सोमवार, 3 नवंबर 2014

Big change in newspaper in India - Suresh Chandra Shukla

Presse i India er i forandring.  भारत में प्रेस में बहुत बड़ा बदलाव



कैलाश सत्यार्थी एवं सुमेधा जी का ओस्लो एयरपोर्ट पर स्वागत करते हुए सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 

Presse i India i forandring. भारत में प्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया है. बड़े समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठ पर
हमारे भारत गौरव कैलाश सत्यार्थी जी पर मेरी कुछ बड़े पत्रकारों से बात हुई, उनमें से अधिकतर का कहना था कि सत्यार्थी जी भारत में चर्चित नहीं हैं? क्यों पर वह सपष्ट नहीं कह पाये! उन्होंने दबे मन से स्वीकार किया कि खोजी पत्रकारिता यानि स्वयं पता करके समाचार छापा जाए. कैलाश सत्यार्थी जी को मैं दो दशकों से जानता हूँ. वह विदेशों के अतिरिक्त भारत के सभी एक्टिविस्टों में आदर के पात्र रहे हैं पर हम प्रेस वाले उन विषय के विशेषग्योँ से  नहीं पूछते जिस विषय  के वह जानकार और एक्सपर्ट हैं.  सत्यार्थी जी की जीवनी कुछ देशों में  पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाई जाती है. हम कुछ प्रेस वाले घर की मुर्गी की आदत छोड़ें और खोजी पत्रकारिता को अपनाएँ और अपने संगठन आर्थिक न्यायिक रूप से  मजबूत करें।   मेरी नजर में प्रेस रिलीज और बने - बनाये समाचार की भी खोज की जानी चाहिए।  हम भारतीय लेखक भी इससे अछूते नहीं हैं.