शुक्रवार, 31 मई 2019

श्री नरेन्द्र मोदी जी ने दुबारा प्रधानमंत्री की शपथ ली, हार्दिक बधाई - सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो Suresh Chandra Shukla, Oslo

 श्री नरेन्द्र  मोदी जी ने दुबारा प्रधानमंत्री की शपथ ली, हार्दिक बधाई - सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो 
नरेन्द्र मोदी जी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ली साथ ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी मंत्रीपद की शपथ ली है. 

मेनका गांधी
मेनका गांधी जी आठवीं बार सांसद बनी हैं और एक एक्टिविस्ट भी हैं.
हो सकता है कि उन्हें बाद में लोक सभा अध्यक्ष बना दिया जाये।
 इसबार सुषमा स्वराज, मेनका गांधी को मिनिस्टर नहीं बनाया गया है पर मेनका गांधी प्रो टेम स्पीकर होंगी और सभी सांसदों को शपथ दिलायेंगी।  
सबसे गरीब मंत्री 
आज प्रताप चंद्र सारंगी नयी सरकार में मंत्री बनाये गये  हैं. साइकिल से अपना प्रचार करने वाले सारंगी ने करोड़पति उम्मीदवार को हराया है. वह २००४ में एक बार एम एल ए भी रह चुके हैं.
साहित्यकार मंत्री 
रमेश पोखरियाल निशंक  एक अनुभवी सांसद हैं और पहले उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक मंत्री, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और अब अब मिनिस्टर बने हैं. आप उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. आप बचपन से कविता और कहानियाँ लिखते रहे हैं. दर्जनों पुस्तकों के लेखक हैं.

मंगलवार, 28 मई 2019

17वीं लोकसभा के सांसदों की यह है कहानी-

17वीं लोकसभा के सांसदों की यह है कहानी : कोई प्रतिभावान तो किसी के खिलाफ 204 अपराधिक मामले  ?  

(ndtv से आभार) Loksabha Elections Result 2019 : आजादी के बाद से महिला सांसदों की इस बार सबसे अधिक संख्या, सन 2014 में 62 महिला सांसद चुनी गई थीं, अब संख्या 78 हुई.  

कुल 542 में से 233 सांसदों पर आपराधिक  मुकदमें हैं, यानी 43 फीसदी. जबकि 2014 में 34 फीसदी सांसदों पर  मुकदमे थे और इनमें से 29 फीसदी पर गंभीर आरोप हैं और 11 पर तो हत्या का मामला दर्ज है. जिन सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं उनमें से 116 बीजेपी के, 29 कांग्रेस, 10 डीएमके, 10 वायएसआरसी और 9 सांसद तृणमूल के हैं.

बुधवार, 22 मई 2019

शान्तिमय तरीके से प्रदर्शन ही प्रजातंत्र की ख़ूबसूरती है -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, Oslo

 शान्तिमय तरीके से प्रदर्शन ही प्रजातंत्र की ख़ूबसूरती है
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  ओस्लो, नार्वे

प्रिय मित्रों कल २३ मई को भारत में चुनाव परिणाम आएगा
कृपया शान्ति भाव बनाये रखें।

धन्यवाद

बुधवार, 8 मई 2019

करण कपाड़िया- फिल्म ब्लैक से अपनी शुरुआत कर रहे हैं.

करण कपाड़िया-

 बॉलिवुड में एक नए कलाकार के रूप में दस्तक दी है।  वह हैं, अभिनेत्री  डिम्पल कपाड़िया के भांजे और

सिंपल कपाड़िया के बेटे  करण कपाड़िया फिल्म ब्लैक से अपनी शुरुआत कर रहे हैं. बधाई।

शनिवार, 4 मई 2019

बहुत से बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. - बी बी सी, हिन्दी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', 04.05.19

गरीब देशों में चालीस फीसदी बच्चे कुपोषण से पीड़ित 
भारत में लगभग चालीस फीसदी बच्चे कुपोषण से पीड़ित  हैं.
 आतंकवाद से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार
आतंकवाद से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. एक समाचार पात्र के अनुसार ढाई करोड़  रुपया प्रवासी दिवस में खर्च हुआ पर बाहर से निवेश नहीं आया. 
हर साल लाखों बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है. वाराणसी और अमेठी में भी बहुत से बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. 
भारतीय प्रवासी दिवस और कुम्भ में करोड़ों रूपये खर्च दिखाए गए हैं. अब वहां कूड़ों का अम्बार लगा है, उसकी सफाई प्रशासन नहीं कर रही है बरसात में जो भयंकर बीमारी और पर्यावरण के लिए ख़तरा हो सकता है. 
असली मुद्दे चुनाव से गायब हैं. 
धर्म और आतंकवाद को असफल मुद्दा बनाया जा रहा है.
अपराधियों और बम बलास्ट के आरोपियों को चुनाव में टिकट देकर असली मुद्दों से भटकाया जा रहा है. 
आप सभी पाठकगण दुनिया में फ़ैल रहे कुपोषण की तरफ ध्यान दें और चुनाव रैली में खर्च होने वाले खर्च को कुपोषण से जूझने में खर्च किया जाये, बेहतर सेवा होगी और बच्चे मरने से बच जाएंगे और कुपोषण के  शिकार में कमी आएगी।
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', 04.05.19

Election in India, biggest democrasy in the world. बी जे पी की लोकप्रियता घटना शुरू

बी जे पी की लोकप्रियता घटना शुरू
प्रधानमन्त्री के रूप में कोई भी भारत का प्रधानमंत्री हो उसका सम्मान सारा विश्व करता है और करता रहेगा।   श्री नरेंद्र मोदी जी कीलोकप्रियता विदेशों में कभी नहीं रही है. जब आप विदेशों में दूतावासों के जरिये बैठक और कार्यक्रम भारतीय पैसे से करते हैं तो वह बैठक /सभा में प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का सम्मान हुआ उनके नाम के कारण नहीं।
स्वीडेन के समाचार पत्र पढ़ें जब प्रधानमंत्री के तौर पर स्टॉकहोल्म आये थे. नार्वे और डेनमार्क से बुलाये गए कुछ मोदी समर्थक भारतीयों की आने जाने और रुकने की अर्थव्यवस्था /व्यवस्था दूसरों ने की थी वे कौन थे? जानिये।  स्वीडेन के उद्योगमंत्री ने प्रधानमंत्री के आने से सम्बन्ध बढ़ने की बात अन्य तरीके से खारिज की थी. प्रेसकांफ्रेंस का हिस्सा मैंने मुख्य  भारतीय हिंदी अखबार में छपा नहीं देखा है.
स्वीडेन में स्कैण्डिनेवाईयाई भारतीय मीडिया कर्मियों को नहीं आने दिया गया था. यह पहली बार हुआ था.
नार्वे में श्रीमती इंदिरा गांधी जी के आगमन पर भी कुछ लोगों ने प्रदर्शन किये थे फिर भी भारतीय मीडियाकर्मी बुलाये गए थे और इंदिरा जी ने नार्वे में प्रेस कांफ्रेंस में भाग नहीं लिया था. मीडिया ने साक्षात्कार लिए थे.
श्री नरेंद्र मोदी के स्वीडेन में भारतीय -उत्तरीय देशों की सयुक्त सम्मिट का भारत भी संयुक्त रूप से आयोजक था और श्री मोदी जी के आगमन पर इस बार भी कुछ भारतीयों ने शांतिपूर्वक विरोध किया था, पर कहीं समाचार नहीं छपा है. नार्वे और स्वीडेन के कुछ बीजेपी समर्थक पीछे हटने लगे हैं.


4 मई 2019 से बीजेपी की राजनैतिक ऊँचाई अब निचाई की ओर जाना शुरू हो गयी है.
अनेक कारण हैं.
     1 -भारतीय जनता और मीडिया में बीजेपी के अवगुणों का बखान करने पर कई लोग
         परेशान  किये जा चुके हैं. फिर भी आज से सोशल मीडिया और समाचारपत्रों के बी जे पी के विज्ञापन में
         केवल मोदी की तस्वीर विज्ञापन में छपने का विरोध उनकी अपनी ही पार्टी (बीजेपी) के देश-विदेश के
        बहुत से लोगों  नें करना शुरू कर दिया है.
     2 - भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने वाली संस्था आर एस एस जान गयी है कि उसके सदस्य अब अनेकों
         पार्टियों में फ़ैल गए हैं. जिसका उदाहरण लखनऊ के कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार ने आज के अमर
         उजाला अखबार में दिया है कि लखनऊ से गठबन्दन (सपा और बसपा) की उमीदवारआर एस एस की
        सदस्य हैं. उनके पति पटना से कांग्रेस के उम्मीदवार भी आर एस एस के सदस्य हैं.
     3 -आने वाले समय में महाराष्ट्र से बीजेपी से जुडी पार्टियाँ प्रधानमंत्री के रूप में श्री मोदी जी का प्रज्ञा ठाकुर
         का निजी समर्थन भारी पड़ सकता है अर्थात चुनाव परिणाम में बी जेपी के विरोध में जा सकता है. आई पी
         एस अधिकारियों ने भारतीय अखबारों में अनेक लेख लिखे हैं इसके विरोध में. और मुंबई की
         जनता ने  अनेक स्थानों पर प्रदर्शन कर वीर शहीद पुलिस अधिकारी की आरोपी को उम्मीदवार बनाये
        जाने पर आश्चर्य और उसके श्राप को घिनौना बताया है.
        अनेक वर्षों से सजा काट रही आरोपी प्रज्ञा को बीजेपी का उम्मीदवार बनाये जाने को अब आर एस एस के
        समर्थन वापस लेने से  अभी भी बची-खुची प्रतिष्ठा बच सकती है.

    प्रेस की आजादी हमको अमेरिका और नार्वे से सीखना चाहिये, जो दुनिया में एक मिसाल स्थापित करते हैं।

 -सुरेशचन्द्र शुक्ल, शरद आलोक, ओस्लो , 04.05.19

शुक्रवार, 3 मई 2019

राजनैतिक डेमोक्रेटिक मुद्दे और पारदर्शिता आज क्यों गायब हैं?

राजनैतिक डेमोक्रेटिक मुद्दे और पारदर्शिता आज क्यों गायब हैं?
Demokratiske prinsiper er lite i politikk i India?

आज प्रसिद्द लेखक सुधाकर अदीब जी ने अपनी पोस्ट पर आवाज उठाई है उसे आगे बढ़ा रहा हूँ. भारत देश में राज कर रहे राजनेताओं के कारण सबसे बड़ी कमी आयी है,वह है पारदर्शिता पर बहुत बड़ा पर्दा कानूनी और नैतिक जिसने विश्वसनीयता पर सवाल उठाये हैं जो आने वाले दशकों तक इनका पीछा नहीं छोड़ेंगे? सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग नया नहीं है पर अब अंधाधुंध बढ़ा हुआ लगता है? हमको आज सभी से मिलकर चलना होगा। विश्व एक गाँव है. पड़ोसी भूखा हो तो हम सुखी नहीं रह सकते? यह मेरा विचार है.
आज हमारे फेसबुक, अन्य सोशल मीडिया पर चुनाव को लेकर ज्यादातर सही बात नहीं हो रही है? व्यक्तिवादी, तर्कहीन, प्रोपागेंडा का शिकार हो चुके हैं.
सबसे बड़ी चुनौतियाँ और समस्यायें हैं: बेरोजगारी, शिक्षा, साफ़ पानी, जनसंख्या, पर्यावरण समस्या (ट्राफिक और कूड़ा प्रबंधन से लेकर नदियों और पर्वतों तक गैरकानूनी निमार्ण और उन्हें सरकारी संरक्षण), प्रवासियों का घटता और विदेशी निवेश.
आज सुधाकर अदीब जी ने अडानी और अम्बानी पर आवाज उठायी उनके ईमानदार होने परंतु विशेषकर रफाल से ये लोग नजर में आ गये. सीधे चोर तो नहीं पर टैक्स चोर तो बहुत बड़े हैं? हमारे नेताओं ने अपने घर में सेंध लगवा दी, जान पड़ता है? टीवी डिबेट इसका श्रोत है, पर बिना सरकार और सिस्टम की सहायता के चोरी संभव नहीं थी. बस देश में सभी को लिखना-पढ़ना आ जाये और हमारे नेता अपने आफिस में और जनता की समस्या में भी समय लगायें पर ऐसा बहुत से वर्षों से नहीं हो रहा है?
हम और आप खुद हिसाब लगायें बहुत से नेता नेता जी रैली और विदेश यात्राएं (अपने साथ ले गए लोगों की सूची बिना जनता को बताये) और केवल कुछ निजी फायदे के लिए कार्पोरेटर ग्रुप की बैकडोर से सहायता सबसे बड़ा दोष रहा है. यह राजनैतिक ही नहीं सभी क्षेत्रों में भी रहा है? कहीं कम, कहीं ज्यादा। (देश के व्यापारियों के समूह की सहायता करना अच्छा है, पर चन्द/कुछ लोगों के लिए नहीं।)
डेमोक्रेसी की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं जिसके लिए जागरूक न होने के लिए बुद्धिजीवी और युवाओं पर भी जिम्मेदारी आती है. कोई इस लिए आदरणीय नहीं हो सकता कि वह राजनैतिक ताकतवर है, चाहे पद से हो या संसाधनों से. कई मामले में हमारा चुनाव आयोग उन्हीं पर कार्यवाही करता है जब आप कोर्ट में शिकायत करो और फिर वहां से आदेश आये? वोट देते समय भूल जाते हैं किसको चुनें। यदि चयन में आपको दुविधा हो रही है तो बदलाव को चुनिये।
पर ध्यान रखिये कि चुनाव के बाद भी अपने काम करते हुए, उत्पादन बढ़ाते हुए सड़क, गलियों और चौराहों तथा विधानसभा और लोकसभा के बाहर और अन्दर जो हों उन्हें जागते रहना होगा। अब सोने का वक्त जा रहा है. जो काम नहीं कर सकते वह हटें और जो करना चाहते हैं उनके लिए जगह खाली करें। इस चुनाव के बाद जनता को संगठित, शांतिपूर्वक, श्रमदान, सहकारिता भाव से आपसी सहायता और अन्याय के लिए विरोध और प्रदर्शन करना है (अपने काम करते हुए, उत्पादन बढ़ाते हुए ) तभी डेमोक्रेसी बचेगी वरना हमारे पैसे रैलियों में फूँके जाएंगे और नेता जिन्हें काम करना है वे देश-विदेश में कारपोरेटरों के लिए कार्य करके जनता को चूना लगाते रहेंगे?