शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

मैंने श्रीलाल शुक्ल के रूप में एक बड़ा भाई खो दिया -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

बाएं से नामवर सिंह श्रीलाल और कुंवर नारायण
लखनऊ में अब नहीं मिलेंगे श्रीलाल शुक्ल पर हमेशा याद आते रहेंगे. -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
श्रीलाल शुक्ल जी से मेरा एक दशक पुराना सम्बन्ध था, वह भी लेखकीय सम्बन्ध. उनके जाने से मैंने देश के प्रसिद्ध साहित्यकार और लखनऊ के उदार व्यक्तित्व के रूप में बड़े भाई जैसा एक ऐसा व्यक्ति खो दिया जो अपनी बेबाक टिप्पणी और सहयोगी स्वभाव के लिए आजीवन याद आता रहेगा. अंतिम बार मैंने उनसे उनके निवास पर बातचीत की थी जिसमें लखनऊ विस्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह मेरे साथ थे. उन्होंने मुझे अपने दिल्ली में प्रकाशक से मिलने और उनका सहयोग प्राप्त करने के लिए कहा था. और इतने बड़े साहित्यकार होने के बावजूद उन्होंने मेरे जैसे एक आयु में छोटे और विदेश में निवास करते हिंदी साहित्य और हिंदी सेवा में लगे हुए व्यक्ति की सराहना करते हुए कहा था कि 'सुरेश जी मैं आपकी रचनायें और आपके बारे में निरंतर पढ़ता रहता हूँ. प्रोफ़ेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह जी ने इसे मेरे लिए एक उपलब्धि बताया था.

मुझे लखनऊ की एक घटना याद आ रही है. एक अन्य कार्यक्रम की जिसमें एक  देश के दूसरे महान साहित्यकार और नयी कहानी के जनकों में से एक 'हँस' के सम्पादक राजेन्द्र यादव जी ने लखनऊ में हो रहे उमानाथ राय बली हाल में संपन्न तीन दिवसीय साहित्यिक गोष्ठी में आयोजक साहित्यकार शैलेन्द्र सागर से मुझे विदेशी हिंदी साहित्य का उद्दरण देते हुए दलित और नारी विमर्श पर टिप्पणी करने के लिए समय माँगा था तो उन्होंने मना कर दिया था. जिन राजेंद्र यादव जी का सम्पूर्ण हिंदी जगत सीधे या नाक सिकोड़ते ही सही बहुत ईज्जत करता है और ह्रदय से सम्मान करता है, उन जैसों की बात को काटकर और बिना समन्वय स्थापित किये इतिहास का हिस्सा बनने की लालसा बेईमानी है. हमको भाई श्री लाल शुक्ल, मित्र कमलेश्वर जी, अग्रज मित्र कुंवर नारायण, डॉ. रमा सिंह और राजेंद्र यादव जैसे महान साहित्यकारों से समन्वय रखने और अच्छे आयोजक बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए.

एक घटना और वह है लन्दन में संपन्न हुये छठे विश्व हिंदी सम्मलेन की. लन्दन में संपन्न हुए हिंदी सम्मलेन में लखनऊ के बहुत से हिंदी के लेखकों ने हिस्सा लिया था. साथ ही प्रसिद्ध काव्य आलोचक नामवर सिंह, डॉ. विद्या विन्दु सिंह और बहुत से देश-विदेश के साहित्यकारों के साथ देश के बड़े पत्रकार मित्रों ( दैनिक जागरण के सम्पादक स्व. नरेंद्र मोहन और नव भारत टाइम्स के सम्पादक रहे डॉ. विद्या निवास मिश्र, महान राजनीतिज्ञ और ९ वर्षों तक यू के में भारतीय राजदूत रहे डॉ. लक्ष्मी मल सिंघवी) का सानिध्य और सहयोग भावना देखते नहीं बनती थी. इस सम्मलेन में मेरे काव्य संग्रह 'नीड़ में फँसे पंख' जिसका प्रकाशन हिंदी प्रचारक संस्थान वाराणसी के विजय प्रकाश बेरी ने किया था. काव्य संग्रह 'नीड़ में फँसे पंख' का लोकार्पण नरेंद्र मोहन जी की सलाह और डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी जी और एक सचिव की मदद से विदेश राज्यमंत्री विजय राजे सिन्धिया जी के हाथों भारतीय हाई कमिश्नर जी के निवास पर रात्रि भोज पर हुआ था. इस सम्मलेन में डॉ. महेंद्र के वर्मा, डॉ. कृष्ण कुमार और पद्मेश गुप्त, उषा राजे सक्सेना सहित बहुत से आयोजक सदस्यों का प्रेम भुलाना किसी के लिए संभव नहीं था.

वहाँ तीन सत्रों में १- दलित साहित्य २- विदेशों में हिंदी पत्रकारिता ३- विदेशों में हिन्दी साहित्य सृजन में मंच पर स्वयं बैठे हुए भी संचालन में परिवर्तन करते हुए बहुत से प्रतिभागियों को मौका मिला था जिनका नाम भी वहाँ मौजूद नहीं था. यह हिंदी सम्मलेन एक मात्र ऐसा हिन्दी सम्मलेन था जहाँ असुन्तुष्टों और आलोचकों के लिए एक अलग सत्र का प्रबंध किया गया था जिसमें मेरे सुझाव का अनुमोदन करते हुए उपरोक्त बंधुओं ने संभव कराया था. मैं वापस लखनऊ आता हूँ. यह सब जो लिख रहा हूँ वह समन्वय भावना को ध्यान में रखकर श्रीलाल जी की याद के बहाने कुछ यादें बाँट रहा हूँ.

लखनऊ में उमानाथ राय बली हाल, कैसरबाग लखनऊ में सत्र में तब दीदी स्व. डॉ. रमा सिंह जी ने मुझे बुलाकर अग्रिम पंक्ति में बैठा दिया था.  अचानक मरी लेखक मित्र बहन शीला मिश्र ने बिना मुझे बताये शैलेन्द्र से पुन: परिचय कराया और बताया की मैं विदेशों में रहकर लिखने वाला बड़ा साहित्यकार हूँ.  हलाकि मैं अभी तक अपने को एक आम लेखक मानता हूँ और सभी को बराबर मानने की अभिलाषा रखता हूँ.  मुझे मौका न भी मिला हो मुझे कोई शिकायत नहीं है परन्तु तीन समाचारों ने मेरी टिप्पणी दलित साहित्य और नारी विमर्श पर कर दी थी मुझे ख़ुशी हुई की पत्रकारों की नजर विस्तृत देख पाती है जबकि कई बार आयोजक की नजर पास रहते हुए भी नहीं देख पाती.
आज जब श्री लाल जी नहीं हैं और उनकी बात मैंने भी नहीं मानी थी अब मानूंगा और उनके प्रकाशक किताबघर से मिलूंगा.  एक बात मैंने जैनेद्र कुमार जी की नहीं मानी थी और मेरे काव्यसंग्रह में महादेवी जी की भूमिका से वाचित रह गया था. उस समय मेरे साथ हिमांशु जोशी थे जिन्हें और जिनके बड़े बेटे की कभी बहुत सहायता की थी जैसे आज भी बिन आगे-पीछे देखे यहाँ ओस्लो नार्वे में सहायता किया करता हूँ. 

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

ओस्लो में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया गया.

ओस्लो में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया गया.
२४ अक्टूबर १९४७ में जब स. रा. संघ बन चूका था. बाद में तय किया गया की यह दिन  संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस के रूप में मनाया जाएगा.
भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर  से आयोजित लेखक गोष्ठी में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया गया.
चित्र में बाएं से भारत से आये विशिष्ट अतिथि श्री सुभास चन्द्र विद्यार्थी, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' और लेखिका इंगेर मारिये लिल्लेएनगेन

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

KIM-Konferanse i Oslo

KIM-Konferanse i Oslo fra 13.10.11 til 15.10.11
på Folkethus i Oslo. Foto: Suresh Chandra Shukla
Det er noen bilder som ble tatt den 14. oktober: 


मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

Fridtyof Nansen फ्रिद्तयोफ नानसेन और Mahatma Gandhi महात्मा गांधी जी को याद किया गया

Fridtyof Nansen फ्रिद्तयोफ नानसेन और Mahatma Gandhi महात्मा गांधी हमारे  महानायक थे - शरद आलोक  

Fridtyof Nansen फ्रिद्तयोफ नानसेन और Mahatma Gandhi महात्मा गांधी जी को वाईट वेत सेंटर, ओस्लो में लेखक गोष्ठी में याद किया गया. स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विन्गेर Torstein Winger ने दोनों  महानायकों के जीवन और उनके कार्यों पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम में कवियों ने अपनी कवितायें पढी और अंत में परिचर्चा संपन्न हुई जिसमें अपने विचार-विमर्श से गोष्ठी में गर्मजोशी भर दी.   कार्क्रम का सञ्चालन भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने की.  कविता पढने वाले मुख्य लोगों में इन्द्रजीत पाल, राजकुमार भट्टी और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  थे. परिचर्चा में संगीता शुक्ल सीमोन्सेन, और अंकुर ताडे, सरदार  मोहिंदर सिंह सिद्धू, बी एस सन्धू, बलबीर सिंह सन्धू,  ने विशेष भूमिका निभायी.

गुदड़ी के लाल अमिताभ बच्चन को जन्मदिन पर बधाई- शरद आलोक

अमिताभ बच्चन को 69 वें  जन्मदिन पर हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनाएं -  शरद आलोक

भारतीय फिल्मों में महानायक और सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरवंश राय बच्चन के बड़े पुत्र अमिताभ बच्चन का आज 69 वां जन्मदिन हैं. उन्हें हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनाएं.  वह शतायु हों और हमेशा की तरह 
भारतीय फ़िल्मी दुनिया में  क्षेत्र में अपना योगदान देते रहें. 

पहली मुलाकात   
अमिताभ बच्चन जी से मेरी पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी. तब वह सांसद थे.  वह बिहार के जाने-माने नेता और मुख्यमंत्री तथा तत्कालीन कांग्रेस के महामंत्री भगवत झा आजाद के पत्र के विवाह में सम्मिलित होने आये थे.  उस समय राजीव गांधी जी भी उस विवाह में आये थे. तब अमिताभ जी और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी से हाथ मिलाकर अभिवादन करने का अवसर मिला था.  मुझे इस विवाह कार्यक्रम में कादम्बिनी के संपादक राजेंद्र अवस्थी जी ले गए थे.

दूसरी मुलाकात

मेरी अमिताभ जी से दूसरी मुलाकात लन्दन में हुई थी. वह एक कवी सम्मलेन में मुख्य अतिथि
 थे यह  कवि सम्मलेन उनके पिताजी श्री हरिवंश राय बच्चन जी को समर्पित था. स्वर्गीय डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी जी और आदरणीय कमला सिंघवी जी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था.  मुझे भी आमंत्रित किया गया था.  जिसमें मैंने भी अपनी दो कवितायें  पढी थीं. इस कविसम्मेलन का प्रसारण भी अनेकों बार टीवी एशिया पर हुआ था. मैंने अपने लेखक मित्र और हिंदी अधिकारी  डॉ. सुरेन्द्र अरोड़ा के सामने अपनी पुस्तक भेंट की थी.  तब वह कुर्सी पर बैठे थे उनके साथ अजिताभ की पत्नी रमोला बच्चन भी थीं.

गुदड़ी के लाल अमिताभ बच्चन

अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा , ' मैं आज ही के दिन पैदा हुआ था। 11 अक्टूबर 1942 को इलाहबाद के कटरा के भीड़भाड़ वाले इलाके में डॉ. बरार के एक छोटे से मैटरनिटी होम में मेरा जन्म हुआ। मेरे माता-पिता मुझे एक तांगे से घर लाए। '

उन्होंने लिखा , ' मुझे एक गुदड़ी में लपेटकर लाया गया था। मैं अब भी लोगों को खुद को ' गुदड़ी का लाल ' बताता हूं , मतलब ऐसा व्यक्ति जिसे सबसे सस्ता कपड़ा मिला। मुझे उस कपड़े में लिपटकर आना अच्छा लगा और अब भी मैं उसे अच्छा मानता हूं।

अब जगजीत सिंह नार्वे में नहीं आ सकते - शरद आलोक

अब जगजीत सिंह नार्वे में नहीं आ सकते -  शरद आलोक 

१० अक्टूबर 2011 को कल मुंबई में महान गायक,  भारत के प्रसिद्ध  पुरस्कार पद्म भूषण (2003) से सम्मानित जगजीत सिंह का देहांत  हो  गया. उनके  दुनिया से विदा होने के बाद उनके जैसे महान गजल  गायक और संगीतकार की जो जगह रिक्त हुई है उसकी भरपाई करना असंभव है.  अनेकों संस्थाओं को आर्थिक सहयोग करने वाले कलाकार जगजीत सिंह का दुनिया में उनसा कोई और नहीं था.
मेरी पहली और आखिरी मुलाकात
सन 1999 की बात है. लन्दन में छठा विश्व हिंदी सम्मलेन संपन्न हुआ था.  वहां पर हिंदी भाषा और साहित्य के विद्वानों के आलावा बहुत सी फ़िल्मी हस्तियां भी मौजूद थीं.  लाखनऊ शहर के प्रसिद्ध फिल्म कलाकार सईद जाफरी और एनी लोग भी उपस्थित थे. उन्होंने सम्मलेन में हम लोगों के विचार सुने थे.  यहाँ मुझे हिंदी सेवा के लिए गोल्ड मेडल भी दिया गाया था.  जगजीत सिंह जी ने शाम को सम्मलेन में   अपना कंसर्ट किया था. उनकी अनेक हिंदी की रचनाओं ने हिंदी सम्मलेन में भाग लेने वाले श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया था. वहाँ मेरी उनसे पहली और आखिरी बार मुलाकात हुई थी.  वह मिलनसार और एक अच्छे इंसान थे.
उन्होंने अपनी गायकी से 1970 में प्रसिद्धि पाई थी. 1980 में उन्होंने अपनी पत्नी चित्रा सिंह के साथ गाया और  विश्व में पति-पत्नी द्वारा गयी गजलों की एलबम को बहुत प्रसिद्धि मिली.   
उनके एकमात्र बेटे की मौत 1990 में हो गई थी. तब सदमें में आकर चित्रा सिंह ने गाना छोड़ दिया था.  चित्रा सिंह की मृत्यु भी बहुत जल्दी 1991 में हो गयी थी.  उन्होंने मुझसे वायदा किया था कि वह हमारे द्वारा चैरिटी यानि सहयोग के लिए अपना कंसर्ट देंगे. आने वाले वर्षों में हमने भी नार्वे में विश्व हिंदी सम्मलेन कराने की योजना थी पर अब जगजीत सिंह कभी नार्वे नहीं आ सकेंगे. उनकी स्मृति में ओस्लो में 15 अक्टूबर 2011 को साहित्य और संगीत प्रेमी एक सभा करने जा रहे हैं. इस ब्लॉग  में पता/ स्थान  के लिए अवलोकन करते रहें .   

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

Forfatter kafe på Veitvet-महात्मा गांधी जी तथा नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रित्तयोफ नानसेन का 150 वां जन्मदिन मनाया जाएगा.

रविवार  9  अक्टूबर को वाईतवेत, ओस्लो में लेखक गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है जिसमें महात्मा गांधी जी तथा नोबेल पुरस्कार विजेता  फ्रित्तयोफ नानसेन  का 150 वां  जन्मदिन मनाया जाएगा. 

Mahatma Gandhi og Fritjof nansen markeres
på Forfaterkafe på søndag den 9. oktober kl. 17:00 på Veitvet.
For sted kontakt på tlf. 22 25 51 57.
Arrangør:
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
Postboks 31, Veitvet, 0518 Oslo

थोमस ट्रांसस्त्रोमेर Tomas Gösta Tranströmer को नोबेल साहित्य पुरस्कार

थोमस ट्रांसस्त्रोमेर Tomas Gösta Tranströmer को  नोबेल साहित्य पुरस्कार -  सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
 10 दिसंबर  को स्टाकहोम, स्वीडेन में  दिया जाएगा. थोमस ट्रांसस्त्रोमेर  का जन्म 15 अप्रैल 1931 में हुआ  था. आप एक कवि हैं. आपकी प्रथम काव्य पुस्तक 17 कवितायें '17 Dikter' सन 1954  में प्रकाशित हुई थी.  दुनिया की बहुत ज्यादा भाषाओँ में अनुवाद किये जाने वाले कवि थोमस ट्रांसस्त्रोमेर एक मनोवैज्ञानिक थे.  स्वीडेन में वह बहुत चर्चित कवि नहीं थे क्योंकि उन्होंने काफी दिनों से अपने ख़राब स्वास्थ के कारण लिखना  बहुत कम कर दिया था. 
सरल भाषा,  अभिव्यक्ति में परिपक्व, गद्यात्मक कविता तथा राजनैतिक कवितायें भी लिखने वाले रहे हैं.  
थोमस ने पुरस्कार मिलने पर कहा की यह पुरस्कार उन्हें प्रोत्साहित करने वाला है.
स्टॉकहोम। साल 2011 का साहित्य का नोबल स्वीडन के कवि थोमस ट्रांसस्त्रोमेर के  दिए जाने की घोषणा दिनांक 6 अक्टूबर को स्वीडेन के समय साढ़े बारह बजे की गयी .  स्वीडिश अकादमी ने मानव मस्तिष्क के अतियथार्थवादी रहस्यमयी चित्रण करने के लिए उन्हें चुना है।

थोमस ट्रांसस्त्रोमेर यह पुरस्कार पाने वाले आठवें यूरोपीय हैं। इसके पहले जर्मनी की उपन्यासकार हर्ता मुलर, फ्रांस के लेखक ली क्लेजिया ने यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीता था। ट्रांसट्रॉमर मूलत कवि हैं और उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा स्वीडन में हुई है।
स्वीडिश भाषा में लिखने वाले थोमस ट्रांसस्त्रोमेर की कविताओं का अनुवाद 1997 में रॉबिन फुल्टन ने किया।

ओस्लो में काव्य संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम

25 सितम्बर 2011 को ओस्लो  में काव्य संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम
  
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से  रंगबिरंगी  काव्य संध्या नृत्य और संगीत के साथ संपन्न हुई.  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विंगेर  Torstein Winger और 
वेन्स्त्रे Venstre पार्टी के नेता और ओस्लो की सांस्कृतिक समिति के उपाध्यक्ष शेल वाईवोग  Kjell Veivåg कार्यक्रम एन विशेष अतिथि थे.
काव्य संध्या में शामिल होने वाले कवियों में नार्वे के प्रसिद्द अर्लिंग इंगेरआइदे Erling Ingreide, अर्लिंग कित्तेल्सेन Erling Kittelsen, सिग्रीद मारिये रेफ्सुम Sigrid Marie Refsum, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन Inger marie Lilleengen, बेरित थून Berit Thon,  चिली के लुईस Luis और भारतीय नार्वेजीय लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla थे. 
कार्यक्रम में अनुराग सैम  शाह  Anurag Sam Shaw ने भारतीय राग गाये और अनुश्री  ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया.  सभी के ह्रदय को  झंकृत करने   वाला सुन्दर नृत्य चिली के कलाकारों ने प्रस्तुत किया.

23 सितम्बर २०११ को नार्वे में जगदीश गाँधी को संस्कृति पुरस्कार

शिक्षाविद और समाजसेवी जगदीश गाँधी को संस्कृति पुरस्कार -शरद आलोक  
चित्र में बाएं से डॉ जगदीश गांधी Dr. jagdish Gandhi स्थानीय मेयर थूरस्ताइन  विन्गेर Torstein Winger से पदक प्राप्त करते हुए और दायें खड़े हैं संस्था के अध्यक्ष सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla
नार्वे में जगदीश गांधी जी को संस्कृति पुरस्कार प्रदान किया गया. यह संस्कृति पुरस्कार २३ सितम्बर को डॉ  जगदीश गांधी जी को भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा दो महान नोबेल पुरस्कार विजेताओं  विद्वानों : साहित्य में (नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारत के ) गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर और (शांति में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले) नार्वे के फ्रित्योफ़ नानसेन की १५० वें  जन्म वर्ष (डेढ़ शती) के अवसर ओस्लो में स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर ने प्रदान किया.  प्रमाणपत्र श्रीमती नंदा एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव दिनेश कुमार नंदा जी ने.  कार्यक्रम  की  अध्यक्षता  संस्था के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  ने की.
फोरम के अध्यक्ष सुरेस्चंद्र शुक्ल ने कहा कि जगदीश गांधी जी से वह सन् १९७४ के बाद आज मिले हैं. जगदीश गांधी जी का संघर्षमय जीवन किसी भी युवा के लिए प्रेरणाश्रोत है बशर्ते वह अपने कठोर मेहनत और दृढ इरादे से कार्य करे. शुक्ल जी ने अपने पुराने दिनों कि याद करते हुए कहा कि श्रीमती भारती गाँधी जी से मेरी पहली मुलाकात सन १९७१ में हुई थी.आदरणीय दीदी भारती गाँधी जी ने मेरी मुलाकात डॉ. जगदीश गाँधी से कराई थी. जगदीश गांधी लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य और सिटी मोंटेसरी स्कूल लखनऊ और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक हैं. सन १९७१ में जब वह पुरानी श्रमिक बस्ती, ऐशबाग लखनऊ में युवक सेवा संगठन द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं. और उन्होंने कला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया था. फिर सन १९७२ से १९७४ तक डॉ जगदीश गांधी जी से संपर्क बना रहा.


जगदीश गांधी एक कर्मयोगी हैं और वह युवापीढी के लिए प्रेरणा हैं. उनका जीवन संघर्ष किसी को भी ऊँचाइयों तक ले जा सकता है. बशर्ते वह व्यक्ति अपने संघर्ष और सेवा भाव में पूरी निष्ठां और दृढता से जुड़ा रहे. शरद आलोक ने आगे भावुक होते हुए कहा, मुझे ऐसा लगा कि सन १९७४ से कोई महान बिछड़ा भाई मिल गया हो. ऐसे महान व्यक्तित्व को बार-बार शीश झुकाने को मन करता है.  उन्होंने अन्त में धन्यवाद देते हुए कहा कि यदि समय ने अवसर दिया तो वह जगदीश गांधी जी के आत्मकथ्य अपनी पत्रिकाओं में प्रकाशित करेंगे.

शांति के लिए सर्वांगीण शिक्षा जरूरी - जगदीश गाँधी

जगदीश गांधी ने बच्चों की शिक्षा पर एक बहुत सारगर्भित व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि बचपन में ही बच्चे के जीवन कि नीव पड़ती है तब उसका सर्वांगीण विकास किया जाना चाहिए. डॉ जगदीश गांधी जी ने अपने व्याख्यानों में सिटी मोंटेसरी स्कूल, उसके विकास और उसकी समाज के प्रति भूमिका पर भी प्रकाश डाला. वह नार्वे में विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर आये थे और जगदीश गांधी जी ने स्वयं नार्वे के चीफ जस्टिस को  मानवाधिकार के लिए किये गए कार्यों के लिए सम्मानित किया.  वह नार्वे में  शिक्षाविदों, बहाई धर्मालंबियों, नेताओं से मिले. गांधी जी ने कहा कि भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, नार्वे द्वारा उन्हें पुरस्कृत किये जाने वाले पल उन्हें न भूलने वाले क्षणों में में सुमार करेंगे.