गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

23 सितम्बर २०११ को नार्वे में जगदीश गाँधी को संस्कृति पुरस्कार

शिक्षाविद और समाजसेवी जगदीश गाँधी को संस्कृति पुरस्कार -शरद आलोक  
चित्र में बाएं से डॉ जगदीश गांधी Dr. jagdish Gandhi स्थानीय मेयर थूरस्ताइन  विन्गेर Torstein Winger से पदक प्राप्त करते हुए और दायें खड़े हैं संस्था के अध्यक्ष सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla
नार्वे में जगदीश गांधी जी को संस्कृति पुरस्कार प्रदान किया गया. यह संस्कृति पुरस्कार २३ सितम्बर को डॉ  जगदीश गांधी जी को भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा दो महान नोबेल पुरस्कार विजेताओं  विद्वानों : साहित्य में (नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारत के ) गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर और (शांति में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले) नार्वे के फ्रित्योफ़ नानसेन की १५० वें  जन्म वर्ष (डेढ़ शती) के अवसर ओस्लो में स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर ने प्रदान किया.  प्रमाणपत्र श्रीमती नंदा एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव दिनेश कुमार नंदा जी ने.  कार्यक्रम  की  अध्यक्षता  संस्था के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  ने की.
फोरम के अध्यक्ष सुरेस्चंद्र शुक्ल ने कहा कि जगदीश गांधी जी से वह सन् १९७४ के बाद आज मिले हैं. जगदीश गांधी जी का संघर्षमय जीवन किसी भी युवा के लिए प्रेरणाश्रोत है बशर्ते वह अपने कठोर मेहनत और दृढ इरादे से कार्य करे. शुक्ल जी ने अपने पुराने दिनों कि याद करते हुए कहा कि श्रीमती भारती गाँधी जी से मेरी पहली मुलाकात सन १९७१ में हुई थी.आदरणीय दीदी भारती गाँधी जी ने मेरी मुलाकात डॉ. जगदीश गाँधी से कराई थी. जगदीश गांधी लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य और सिटी मोंटेसरी स्कूल लखनऊ और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक हैं. सन १९७१ में जब वह पुरानी श्रमिक बस्ती, ऐशबाग लखनऊ में युवक सेवा संगठन द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं. और उन्होंने कला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया था. फिर सन १९७२ से १९७४ तक डॉ जगदीश गांधी जी से संपर्क बना रहा.


जगदीश गांधी एक कर्मयोगी हैं और वह युवापीढी के लिए प्रेरणा हैं. उनका जीवन संघर्ष किसी को भी ऊँचाइयों तक ले जा सकता है. बशर्ते वह व्यक्ति अपने संघर्ष और सेवा भाव में पूरी निष्ठां और दृढता से जुड़ा रहे. शरद आलोक ने आगे भावुक होते हुए कहा, मुझे ऐसा लगा कि सन १९७४ से कोई महान बिछड़ा भाई मिल गया हो. ऐसे महान व्यक्तित्व को बार-बार शीश झुकाने को मन करता है.  उन्होंने अन्त में धन्यवाद देते हुए कहा कि यदि समय ने अवसर दिया तो वह जगदीश गांधी जी के आत्मकथ्य अपनी पत्रिकाओं में प्रकाशित करेंगे.

शांति के लिए सर्वांगीण शिक्षा जरूरी - जगदीश गाँधी

जगदीश गांधी ने बच्चों की शिक्षा पर एक बहुत सारगर्भित व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि बचपन में ही बच्चे के जीवन कि नीव पड़ती है तब उसका सर्वांगीण विकास किया जाना चाहिए. डॉ जगदीश गांधी जी ने अपने व्याख्यानों में सिटी मोंटेसरी स्कूल, उसके विकास और उसकी समाज के प्रति भूमिका पर भी प्रकाश डाला. वह नार्वे में विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर आये थे और जगदीश गांधी जी ने स्वयं नार्वे के चीफ जस्टिस को  मानवाधिकार के लिए किये गए कार्यों के लिए सम्मानित किया.  वह नार्वे में  शिक्षाविदों, बहाई धर्मालंबियों, नेताओं से मिले. गांधी जी ने कहा कि भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, नार्वे द्वारा उन्हें पुरस्कृत किये जाने वाले पल उन्हें न भूलने वाले क्षणों में में सुमार करेंगे.

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