शनिवार, 25 अगस्त 2012

नार्वे में सांस्कृतिक महोत्सव में भारतीय स्वाधीनता दिवस धूमधाम से संपन्न

नार्वे में सांस्कृतिक महोत्सव में भारतीय स्वाधीनता दिवस धूमधाम से संपन्न
15 अगस्त को वाइतवेत सेंटर में भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से आयोजित सांस्कृतिक महोत्सव में भारतीय स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया गया।  कविता, गीत, संगीत और नृत्य के इस मिले-जुले रंगारंग कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थूर्स्ताइन विन्गेर ने भारतीय स्वाधीनता में महात्मा गांधी के योगदान की सराहना करते हुए भारतीय प्रगति के उदाहरण देते हुए भारत की प्रशंसा की और सभी को इस दिन पर बधाई     दी। भारतीय दूतावास की तरफ से सीलेश कुमार ने बढ़ायी दी। संस्था के उपाध्यक्ष हराल्ड बूरवाल्द  ने  सभी का स्वागत करते हुए संस्था की स्थापना के बारे में विस्तार से बताया। अध्यक्ष सुरेशचंद्र शुक्ल ने बताया की हमारा उद्देश्य भारत और नार्वे के मध्य सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाना तो है ही साथ ही नार्वे में अन्य  संस्कृतियों के मध्य  भी सेतु का कार्य करना है। 
कार्यक्रम में कवता, संगीत और नृत्य प्रस्तुत किये गए। कार्यक्रम के अंत में सामूहिक नृत्य हुआ और भारतीय भोजन की सेवा दी गयी। इस कार्यक्रम में युवाओं और बच्चों का उत्साह देखते नहीं बनता था। 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

नार्वे में 15 अगस्त

 ओस्लो में 15 अगस्त  2012 को कार्यक्रम 
 ध्वजारोहण कार्यक्रम 
 प्रातः काल 08:30 बजे भारतीय राजदूत के  निवास, ओस्लो  पर  ध्वजारोहण कार्यक्रम 
 
15 अगस्त को शाम 6 बजे (18:00) के लिए  Invitasjon आमंत्रण
सभी आमंत्रित है
15 अगस्त भारतीय स्वाधीनता दिवस के पावन पर्व पर 
24.वाँ  सांस्कृतिक महोत्सव,  कविता, संगीत और नृत्य के साथ
स्थान: Chilensk Kulturhus, Veitvet Senter, Oslo
बुधवार 15  अगस्त को  शाम छ: बजे (Kl. 18:00)
आप सादर आमंत्रित हैं. आप अपने परिवार और मित्रों को साथ ला सकते हैं.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क कीजिये: टेलीफोन: 22 25 51 57
निवेदक:
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
   
Hei,
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
inviterer til
den 24. Internasjonale kulturfesten
med dikt, musikk og dans

Sted: Chilensk Kulturhus, Veitvet Senter, Oslo
Onsdag den 15. August 2012 kl. 18:00.
Det er årlig arrangement og vi skal feire den indiske nasjonaldagen samtidig.
Fri inngang.
Lett servering.
Vi sees!
Suresh Chandra Shukla
Mobil: 90 07 0318

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

आज रक्षाबंधन का दिन है।

रक्षाबंधन में पूर्णिमा चाँद बहुत भला लगता है पर जब दिखाई दे तब  
ओस्लो में कल मैंने माया को पूरा चाँद दिखाया था, जिसे आज बदली और बरसात होने के कारण आसमान में चाँद देखना असंभव है।  आज रक्षाबंधन का दिन है। उत्तर भारत में ही नहीं वरन पूरे विश्व में जहां-जहां भी भारतीय बसे हैं वे रक्षाबंधन पर्व मनाते हैं। ईमेल से कई पत्रों में रक्षाबंधन की शुभकामनाएं प्राप्त हुई तो भारत की यादें ताजी हो गयीं। अपनी बड़ी बहन श्रीमती आशा तिवारी जी से रक्षाबंधन के अवसर पर आशीर्वाद प्राप्त किया किया।
पिछले वर्ष रक्षाबंधन के दिन यहाँ ओस्लो में मेरे घर पर डॉ. विद्याविन्दु सिंह और लखनऊ विश्विद्यालय में हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष और कवियित्री कैलाश देवी सिंह जी ने राखी बांधी थी।  माया ने शान्तिनिकेतन में हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष रामेश्वर मिश्र को राखी बांधी थी।  राखी के धागे कितना पवित्र रिश्ता जोड़ देते हैं। आज ईमेल के माध्यम से रक्षाबंधन पर्व पर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हुआ।
पहले रक्षाबंधन सुरक्षा, त्याग, औ र  बलिदान की प्रतिमूर्ति हुआ करता था, आज भाई-बहन का रिश्ता निभाने की मर्यादा  मानने वालों पर निर्भर होती है। कोई गैर होकर भी भाई-बहन का फर्ज निभाकर रक्षाबंधन की लाज रखते हैं, कोई केवल धन को महत्त्व देता है जो बहन के लिए त्याग और बलिदान नहीं कर पाता ।  सभी की अपनी अपनी मान्यताएं और सीमायें हैं जिनमें वे सभी बंधे हैं।
'भाई-बहन का रूठना
प्यार से उन्हें मनाना
एक कोख में पले और बड़े हुए भी भुला देते हैं फर्ज
दूर के सुहावने बोल से खींचे चले जाते हैं।
अहसासों के रिश्ते जब मिश्री घोलने लगते हैं तो
वह अपने, सिर्फ अपने हो जाते हैं।'
ये पंक्तियाँ मुझे स्वर्गीय रामश्रय त्रिवेदी की पुत्री यानि हमारी जननो जिज्जी तथा  पिताजी के गाँव की बिटानिया  बुआ  जो दोनों ही अपने सगों से पहले हमारे घर रक्षा बंधन और भैयादूज के दिन आती थीं। जन्नो   जिज्जी (जान्हवी)  हमको तथा बिटानिया बुआ पिताजी को तिलक लगाकर धागे बांधती थी।  मिठाई लाती थीं.

 स्वतन्त्र विचारों में परिवर्तन 
जीवन के अर्थ  समय के साथ बदलने लगा है।  जहाँ पश्चिम में स्वतन्त्र सोच का विशेष महत्त्व है वहीं अभी भी बहुत से लोग यहाँ रहकर भी दूसरों की सोच के पराधीन हैं. अपने परिवार पर तो सभी लोग खर्च कर सकते होंगे। पर वह व्यक्ति कंजूस नहीं है जो दूसरों पर दिल खोलकर खर्च करता है।

मैंने अपने नार्वेजीय भाषा में छपे कवितासंग्रह 'फ्रेम्मदे फ्युग्लेर' (अनजान पंछी) में एक बुजुर्गों पर लिखी एक कविता में लिखा था-
'बुजुर्गों आप अपना धन अपने लिए
अपने इलाज के लिए
अपनी बैसाखियों के लिए प्रयोग करें,
अपनी संतान के लिए 'ज्याजाद एकत्र न करें।'
यह एक लम्बी कविता है। जब इसे पढता हूँ बुजुर्गों की आँखें नम हो जाती हैं. इस कविता में उनका एकाकीपन, उनकी असमर्थता और आदर्श उन्हें कचोटता  है। पर कुछ कर नहीं सकते।
एक कहावत है-
'पूत सपूत तो क्यों धन संचै
पूत कुपूत तो क्यों धन संचै।'
साहित्य समाज का दर्पण होता है और कविता उसकी अभिव्यक्ति का एक माध्यम है।
नार्वे में घोंगा के कीमत 
इस बार नार्वे में गर्मी का मौसम बरसात में बदल गया है।  लोग धूप  को तरस गए हैं।  बरसात के कारण घोंगाओं की भरमार हो गयी है. कुछ स्थानों पर इनसे बहुत नुकसान  पहुँच रहा है।  एक नगर में तो नगरपालिका ने एक किलो घोंगा एकत्र करने की कीमत दो सौ नार्वेजीय क्रोनर रखे हैं।  लोगों से इसमें सहयोग देने की अपील की है।
(ओस्लो, 02-08-12) 

बुधवार, 1 अगस्त 2012

आज संगीता की शादी की वर्षगाँठ।

आज 1 अगस्त है। आज संगीता की शादी की वर्षगाँठ। बहुत-बहुत बधायी।   हम लोगों ने इस अवसर पर केक काटकर इसकी शुरुआत की, जो यहाँ पश्चिम की रीति है. संगीता और दामाद रोई थेरये  को संयुक्त रूप से फूलों के गुलदस्ते  भेंट किये गए गये।
14 वर्षों पूर्व ओस्लो, नार्वे में 1 अगस्त 1998 को मेरी बेटी संगीता का विवाह हुआ था। मेरी माताजी भारत से शादी में सम्मिलित होने  आयीं थी।  वह बहुत खुश थीं। मेरे बड़े भतीजे जय प्रकाश को भी आना था उसके टिकट और वीजा के लिए अग्रिम कार्यवाही भी हो गयी थी पर वह पता नहीं क्यों नहीं आया। मेरे मित्र डॉ सत्येन्द्र सेठी कहते हैं कि जय प्रकाश ने
एक बहुत बड़ा अवसर खोया।   विदेशों में रहने वाले लोग अपने सबसे चहेते व्यक्ति को अपनी शादी-जन्मदिन आदि में भारत से बुलाते हैं।   कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति स्वयं सही निर्णय ले नहीं पाता .  जय प्रकाश क्यों नहीं राजी हुआ आज तक उस बात का मुझे पता नहीं चल पाया।   खैर शादी से परिवार के सभी लोग प्रसन्न थे। मुझे स्मरण है की मेरे पिताजी लखनऊ में जब संगीता बहुत छोटी थी उसे बहुत चाहते थे। वैसे   कहा भी गया है कि मूल से अधिक ब्याज प्यारा होता है।
जब संगीता की शादी हुई थे तब  भारत में भी परिवार में इस अवसर पर केक काटकर और लड्डू बाँटकर ख़ुशी मनाई गयी थी।
आजकल ओस्लो में फ़ुटबाल का अंतर्राष्ट्रीय कप 'नार्वे कप'  की चहल -पहल है. वैसे तो लन्दन में ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेल हो रहे हैं।  आज छोटे  बेटे अर्जुन का फ़ुटबाल मैच था. सभी उसका मैच देखने गए थे एकेबर्ग, ओस्लो में।
समय कितनी तेजी से बीत रहा है।जब हम पुरानी घटनाओं को याद करते हैं तब बीते हुए समय का अहसास अधिक
होता है।
समय पंख लगाकर संग उड़ा रहा है. हम उड़े चले जा रहे हैं, किसी को साथ लेकर और किसी को छोड़ते हुये. मुझे स्मरण है मेरे एक मित्र कृष्ण कुमार अवस्थी जी, जो तेलीबाग लखनऊ में रहते हैं, वह कुछ वर्ष पहले अपनी धर्म पत्नी और अपने कुछ डेनमार्क के मित्रों के साथ मेरे ओस्लो निवास पर आये थे। तब उन्होंने  शंख बजाया था उसकी गूँज आज भी मुझे याद है।  जिस तरह शंख की गूँज कुछ समय तक अपना अस्तित्व का बोध कराती है ठीक उसी तरह  हमारा जीवन इस संसार में रहकर लुप्त हो जाता है।
आज एक घटना ने मेरा मन कुछ दुखी किया जब टीवी पर देखा सूना कि पूना में चार जगह बम विस्फोट हुआ है। अभी दो तीन दिन के बिजली संकट  (ब्लैक आउट) से  उबरे ही थे कि  दूसरे संकट दस्तक देते हैं। चलो जान-माल का नुकसान नहीं हुआ।