सोमवार, 28 मई 2012


 चित्र में बाएं से रामगोपाल शुक्ल, रीता बहुगुणा जोशी और नार्वे से प्रकाशित हिन्दी पत्रिका स्पाइल-दर्पण 
के संपादक  सुरेशचंद्र शुक्ल 

कुछ महीने पहले की बात है जब मेरे छोटे चाचा श्री राम गोपाल और उत्तर प्रदेश की कांग्रेस अध्यक्ष 
रीता बहुगुणा जोशी लखनऊ में स्वर्गीय जयप्रकाश मिश्र के निवास पर मिले थे।  उनसे परिचय हुआ तथा अपनी नार्वे से प्रकाशित हिन्दी पत्रिका स्पाइल-दर्पण  भेंट की।    

रविवार, 20 मई 2012

स्लेम्मेस्ताद सनातन मंदिर में सोने की चूड़ी - सुरेशचन्द्र शुक्ल

स्लेम्मेस्ताद सनातन मंदिर में सोने की चूड़ी - सुरेशचन्द्र शुक्ल

19 मई, स्लेम्मेस्ताद पंडित जी ने  माइक पर सूचना दी कि एक सोने की चूड़ी जिसमें हीरे के नग  जड़े प्रतीत 
होते हैं वह मुझे मिली है जिस किसी की हो  उसे मुझसे प्राप्त करने की कृपा करें।  'खोयी सोने की चूड़ी  सोना पहन कर कौन आता है वर्ना कोई ऐसे कोई कैसे भूलता।'  टिप्पणी करना अपना हक़ समझने वाले एक दूसरे  व्यक्ति ने अपने दोनों हाथ मलते हुए कहा कि, पीतल -शीतल की चूड़ी रही होगी।  लंगर में खाने के लिए कतार   में बैठे लोगों का ध्यान इस चर्चा पर गया जो  रह-रहकर मुस्करा देते थे।  बिना देखे ही सोने की चूड़ी 
और जड़े हीरे पर टिप्पणी हो रही थी।  चर्चा में कोई विषय तो होना चाहिए।  पंडित जी ने एक अलग संस्मरण एक सोने के कुंडल का सुनाया. यह संस्मरण स्वीडेन का था जब वह वहां  पुजारी थे। उनको एक खोया कुंडल मिला जिसके बारे में उन्होंने सभी मंदिर के पदाधिकारियों और 
जो आता उसे पूछते की किसी का कुंडल/बाला तो नहीं खोया है?  एक सप्ताह बीतने के बाद उसे किसी ने नकली करार दे दिया। तो किसी ने कोई  अंदाजा लगाया तो किसीने कोई अंदाजा। ।  वह सोने का कुंडल  पंडित जी के कमरे में   एक गैर जरूरी  आम चीज की तरह 
कभी मेज पर तो कभी जमीन के कोने में और कभी खिड़की पर। इसी तरह तीन सप्ताह बीत गए तब एक महिला ने बताया की तीन सप्ताह पहले उसका एक कुंडल (बाला) खो गया था, जब पंडित जी ने उन्हें दिया 
तो वह बहुत प्रसन्न हुईं और बहुत सी दुआएं देकर चली गयीं।

कृष्णा का अठारहवां जन्मदिन 
नार्वे में अब अक्सर जन्मदिन मनाने के लिए लोगों ने मंदिर को चुनना शुरू किया है।  एक भारतीय युवती कृष्णा  कौशिक के जन्मदिन में हम भी अपने परिवार के साथ कुछ देर से पहुंचे।  यहाँ बहुत पहले अपने आराम्भिक वर्षों में हिन्दी के अध्यापक रहे अशोक शर्मा, मंदिर में सक्रिय रहे मंगत राय शर्मा,  और   वी एच पी में  सक्रिय रहे राज नरूला से मुलाकात हुई. श्री कौशिक 
परिवार को शुभकामनाएं दीं. मायाजी मेरे साथ आयी थीं। तथा   मेरी बेटी संगीता अपने परिवार के 
साथ आयी थी।  यहाँ मंदिर, हिन्दी लेखन और नार्वे से एकमात्र पत्रिका स्पाइल-दर्पण आदि कविता- 
कहानी पर चर्चा हुई।

गुरुवार, 17 मई 2012

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस 17 May पर बधाई

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस,  बधाई 




















आज प्रातः काल सात बजे सोकर उठा। आज नार्वे का राष्ट्रीय दिवस 17 मई है। अतःस्नानादि से निवृत्त होकर
वाइतवेत स्कूल गया और ध्वजारोरोहण कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ।  पहले भारत में भी भारत का स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त बहुत धूमधाम से मनाता था।  नार्वे में भी पंदह पंद्रह 
अगस्त धूम धाम से मनाता हूँ। जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह और भारतीय नार्वेजीय लेखक 
सेमिनार प्रमुख है।

सत्रह मई
आइद्स्वोल यह नगर ऐतिहासिक  है। १७ मई १८१४ को इसी नगर आइद्स्वोल में नार्वे का संविधान बना था। इस संविधान के तहत यह घोषणा की गयी थी कि भविष्य में नार्वे एक अलग स्वतन्त्र राष्ट्र का अस्तित्व रखेगा।
आज अपने घर के पास वाइतवेत स्कूल जहाँ मेरी निकीता और अलक्सन्देर अरुण भी जाते हैं। कुछ चित्र प्रस्तुत है उनके स्कूल के जहाँ प्रातः राष्ट्रीय दिवस पर धवाजरोहन हुआ मार्चपास्ट निकाला और वाइतवेत मैट्रो स्टेशन पर से मैट्रो लेकर बीच नगर में राजा के प्रसाद के सामने मार्चपास्ट करने गया। जहाँ बच्चों, बैंड बाजों और ध्वजों को लेकर राज परिवार को सलामी देते हुए हुर्रा, हुर्रा शब्द का उच्चारण करते हुए राजमहल के सामने से निकालते हैं और बाद में आइसक्रीम और चाकलेट आदि खाते हैं मौज मनाते हैं बच्चे और बड़े।
मैंने परसों १७ मई पर एक कविता लिखी जिसे आज एक कार्यक्रम में पढ़ना है जो नार्वेजीय भाषा में लिखी है।

Flagheising på Veitvet skole i Oslo 
वाइतवेत,  ओस्लो में सत्रह मई पर धवजारोहण    
पड़ोस में वाइतवेत स्कूल में गया जहाँ मैं एक दशक से अधिक समय से लगातार जाता रहा हूँ।
वाईतवेत स्कूल, ओस्लो में मेरी बेटी बेटी संगीता की बेटी निकीता पढती है।
स्कूल से सम्बद्ध 
इसी स्कूल में मैं अविभावकों का अध्यक्ष/प्रतिनिधि  रहा हूँ और लगभग सात वर्षों तक स्कूल की
प्रबंध समिति में अर्बाइदर पार्टी (लेबर पार्टी) सोशलिस्ट पार्टी की और से  सदस्य रहा हूँ।
मैंने एक कविता नार्वेजीय भाषा में लिखी है उसे आप के साथ आगे चलकर साझा करूंगा।  आपने मेरे ब्लॉग में  इस स्कूल के चित्र देखे होंगे।
सत्रह मई की विशेषता और हमारी प्रतिबद्धता 
यह सत्रह मई बहुत ही विशेष है क्योकि अभी 22 जुलाई 2011 को नार्वे में एक क्रूर  नार्वेजीय आतंकवादी ने   प्रजातंत्र और  नार्वे के  राजनैतिक नेतृत्व पर हमला किया था।  उसके बाद यह पहली सत्रह मई है। बहुसांस्कृतिक समाज वाले नार्वे में मिलजुलकर रहने और साथ मिलकर हर समस्या का मुकाबला करने से हर समस्या का समाधान हो सकता है। हमको अपने हक़ अपने आप नहीं मिलते।  उसके लिए हमको कार्य भी करना होता है।
श्रमदान 
उसके लिए हम सभी को जागरूक होकर समाज और राष्ट्र के सभी कार्यों: आसपास,स्कूल और पार्कों की सफाई 
श्रमदान द्वारा.  पूरे परिवार के साथ सफाई में सहयोग. नार्वेवासियों से हमको बेहिचक श्रमदान करना
और समानता और सहयोग भावना सीखनी चाहिए।  चाहे पार्क और मार्ग निर्माण हो अथवा पास
पड़ोस की सफाई श्रमदान द्वारा मिलजुलकर किया जाता है।

समाज के विकास के लिए समानता और ईमानदारी जरूरी
समाज के लिए ईमानदारी से कार्य करना तथा सबसे जरूरी है कि अपने परिवार में स्वतंत्रता, समानता के
अधिकार को कायम करना वर्ना हम दूसरों के सामने भी असमानता को सहन करेंगे तथा बच्चों को भी वही दब्बू और दोहरे आचरण की शिक्षा देंगे। जैसे घर में घर के क़ानून यानी बड़ों
की तानाशाही और बहार समानता का व्यवहार । जीतो, यानी सभी को प्रजातान्त्रिक तरीके से जीतो.  मेरे दादा श्री मन्नालाल जी कहते थे की यदि आपको बाहर समाज में  नेता बनना है तो पहले घर में  नेता बनो और प्रजातान्त्रिक तरीके से सभी का दिल जीतो और बहुमत प्राप्त करो।
वह कहते थे कि सुधार  और भ्रष्टाचार घर से आरम्भ होता है यह विचार सभी पश्चिमी देशों के लोग का एक मत से मानते  ही नहीं उसका पालन भी करना है।
कुछ दिनों पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ अबुल कलाम  ने भी कहा था कि घर से ही भ्रष्टाचार के  निवारण की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। 

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस सत्रह मई राष्ट्रीय दिवस
नार्वे का राष्ट्रीय दिवस सत्रह मई राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।  विशेषकर यहाँ बच्चों के लिए विशेष महत्त्व होता है। कोई सैनिक परेड नहीं। न  ही  रह सैनिक शस्त्रों का प्रदर्शन। बस स्कूल अपने बच्चों के साथ चुने हुए स्कूल बैंड बाजे के साथ हिस्सा लेते हैं। इन बैंड बाजों में आम तौर पर स्थानीय बैंड या किसी संगठन का बैंड इनका साथ दे रहा होता है। एक दिन पहले 16 मई को यहाँ बच्चों की परेड निकलती है जिस मोहल्ले में स्कूल अथवा बालवाड़ी  (किंडर गार्डेन)  होता है  उसके बच्चे आसपास के संस्थानों और मोहल्ले  में फेरी लगते हैं।
17 मई के दिन प्रातःकाल 8:00 बजे स्कूल में ध्वजारोहण, राष्ट्रीय संगीत, बच्चों की अपील/सन्देश। कभी-कभी प्रधानाचार्य या आमंत्रित व्यक्ति का संछिप्त  भाषण या सन्देश कार्यक्रम का हिस्सा होता है।
नार्वे का राष्ट्रीय झंडा  भी तिरंगा होता है
 नार्वे का राष्ट्रीय झंडा  भी तिरंगा होता है।  बस नार्वे के तिरंगे   झंडे में लाल, सफ़ेद और नीला रंग होता है  जबकि भारतीय तिरंगे ध्वज का रंग केसरिया,  सफ़ेद और हरा होता है।
ओस्लो में साढ़े दस बजे से सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन और अन्य पास की जगहों से बच्चों की टोली अपने स्कूल के
बैनर,झंडे और बैंड के साथ परेड शुरू करती हैं या यूं कहें बिना अनुशासन की परेड शुरू होती है और वह कार्ल
युहान सड़क पर पार्लियामेंट और नेशनल थिएटर होते हुए  राजा के प्रसाद में होती हुई राजमहल
के सामने से गुजरती हुए होती है और राजपरिवार को सलामी देती है। राजमहल के सामने बहुत बड़ा हुजूम लगा होता है। लाखों लोग सड़क के किनारे जहाँ -जहाँ से बच्चे परेड करते गुजरते हैं वहां खड़े होकर हाथ में पकडे झंडे हिला-हिलाकर और हुर्रा, हुर्रा, हुर्रा शब्द का उच्चारण करते हैं।

 17 मई को नार्वे के हरेकृष्णा समुदाय पार्लियामेंट मेट्रो स्टेशन के बाहर कीर्तन करते हुए 

Conratulation-Gratulerer National day of Norway-17th may)


satrah mai

रविवार, 13 मई 2012

प्रदीप जी के साथ कुछ क्षण -

 चित्र में बांयें से श्रीमती शविंदर कौर और प्रदीप राय 

प्रदीप जी के साथ कुछ क्षण - सुरेशचंद्र शुक्ल 
प्रदीप राय जी ओस्लो में 12 दिसंबर 1982 को ओस्लो आये थे आज वह अपनी पत्नी शविन्दर कौर और पुत्र शिवजीत  (18 वर्ष) के साथ  वेस्टली मोहल्ले, ओस्लो में रह रहे हैं। आज जब इनके घर आ रहा था अपनी पत्नी माया भारती जी के साथ तो रास्ते  में मेरी मुलाकात पुराने परिचित और मौस  नगर में उर्दू की पत्रिका निकलने वाले मंसूर अहमद से हुई जिनका बेटा भी प्रदीप जी के मोहल्ले में रहता है. 
मंसूर अहमद ने उन दिनों, बहुत वर्ष पहले, उनहोंने  मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल  के पोते से मुलाकात कराई थी । मैंने भी उन्हें करीब से देखा और सुना। हाँ जी आपका अंदाजा सही है मैं 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा' के गीतकार मोहम्मद इकबाल के पोते की बात कर रहा हूँ जो जज थे। मजे की बात है कि  इकबाल जी के पोते और  यहाँ एक मौलवी साहब से  बहस हो गयी थी।   इकबाल जी के जज पोते का कहना था कि सभी नौजवानों को शिक्षा हर तरह की लेनी चाहिए  जिससे ज्ञान मिलता हो।  जबकि मौलवी साहेब केवल इस्लाम धर्म की  शिक्षा लेने को ही बात कर रहे थे. ज्ञान की शिक्षा आदमी को उदार बनता है जबकि मौलवी साहब केवल अपने धर्म की शिक्षा को सर्वश्रेष्ठ बताने में जुटे हुए थे। खैर यह बात पुराणी हो गयी और आयी गयी हो गयी है, बात प्रदीप जी और श्रीमती शविंदर  जी की बात  कर रहा था।

प्रदीप जी और उनका परिवार उदार है इन्होने बहुत से भारतीयों की सहायता की है।  इनकी बेटी उपमा जिन्होने  भारतीय - नार्वेजीय  सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के सांस्कृतिक कार्यक्रम का सञ्चालन भी किया था जिन्होंने  विवाह के बाद अपना नाम बदल लिया है और उपमा जी अब  रिया राय शाह से जानी जाती हैं। इनकी शादी  गुजरात प्रान्त के प्रतिष्ठित परिवार के युवक मितुल शाह से हुई है जो आजकल लिएर, द्रामिन, नार्वे में रहते हैं. 
आज जब शिवजीत ने अपना वीडियो दिखाया जिसमें उन्होंने एक छोटे हवाई जहाज से अपने इंस्ट्रक्टर के साथ  चेकोस्लोवाकिया में पैराशूट (हवाई छतरी ) के संग  कूदे  थे। देखकर बहुत रोमांचक लगा। कितना रोमांचक और
खतरे से खाली नहींरही होगी उनकी यह कूद जब दो सौ किलोमीटर की रफ़्तार से गिरते थे जब तक हवाई छतरी नहीं खुलती थी।
 यह अब नए ज़माने का खेल है जिसे करने का मेरा भी मन करता है ताकि मैं भी जवानों में अपनी गिनती करा सकूँ। कहा जाता है जवानी सोंच से होती है। आप कैसा मसूस करते हैं उसपर निर्भर करता है।

मीडिया के महत्वपूर्ण रचनाकार हरी सिंह पाल (कल्पांत के लिए)

मीडिया के महत्वपूर्ण रचनाकार हरी सिंह पाल


सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'



मेरी पहली मुलाकात हरी सिंह पाल जी से दूरदर्शन और आकाशवाणी, दिल्ली में हुई थी. आकाशवाणी दिल्ली से मेरा ढाई दशकों से अधिक का नाता रहा है वह भी वहाँ कवितायें पढ़ने और साक्षात्कार देने के कारण. दिल्ली आकाशवाणी और दूरदर्शन में साहित्यकारों की ऐसी बिरादरी मौजूद है जो अपने आप में विशिष्ट ही नहीं वरन अपने क्षेत्रों में माहिर भी है. यदि मैं दिल्ली दूरदर्शन में जाता तो आकाशवाणी में भी जाता था. एक समय ऐसा था कि जब दूरदर्शन से अधिक आकाशवाणी में प्रोत्साहन मिलता था इसी कारण मेरे पाँव वहीं रुक जाते थे.

कुछ लोगों से मिलकर आपको एक सुखद अनुभूति होती है और आपके इरादे और बुलंद होते हैं इस पर आपके साथ अपनी स्वरचित एक कविता साझा करता हूँ.

यदि आपने कभी अपना साक्षात्कार कभी रेडियो, टी वी अथवा मंच पर दिया हो या आपने अपनी रचनाएं वहां पढ़ी हों तो आपका केवल मंच पर साक्षात्कार लेने वाले से ही संवाद नहीं होता वरन आपका संवाद अन्य लोगों से भी होता है और यह मौन संवाद आपसे कुछ-न कुछ कह जाता है. इस पर मैंने एक कविता लिखी है वह प्रिय मित्र हरी सिंह पाल को समर्पित कर रहा हूँ जिन्होंने सैकड़ों कलाकारों और लेखकों का साक्षात्कार कराते हुए स्वयं भी अनुभव किया होगा और उनके सहकर्मियों ने भी.



’’पंक्तियों के मध्य भी पढ़ते हैं हम!



मूक इरादों ने मुझे भाप लिया मेरा इरादा

टटोल लिया मेरा मन

चाहकर भी नहीं लिया उनका नाम.

धूप बन कब वह आयी!

छाया बन कौन आया?

स्टूडियो में साक्षात्कार देते - रिकार्डिंग कराते

भूले-बिसरे क्षणों में जब स्मरण करता,

स्टूडियो की दीवार के पार और कैमरे के पीछे वे

कितनी बार चाहकर क्यों नहीं नजदीक आये

पर जो हमको, सबके सामने लाये

यही है व्यावसायिक धरती और उससे जुड़ा रिश्ता!

एक ही मुलाकात में टूटता है..!

जो दूसरे साक्षात्कार में

पुनः जुड़ जाता है,

अपने पुराने सम्बन्धों को खोजता हुआ.

सृजन में जुट जाता है रचनाकार-कलाकार.

कभी सोचा है?

वह सम्प्रेषण सा दिखने वाला मौन चितेरा

जो बोल नहीं पाता,

सुन्दर गूंगे-बधिर के ह्रदय में बसे अमर प्रेम

दृष्टिहीन के अंतर में महसूस करने वाली अंतरिम गहराई,

मुझे समझ आयी, बहुत देर हो गयी थी,

जैसे रेल के एक स्टेशन पर लगी हो प्यास,

प्रतीक्षा करते - करते कब मिली

प्यास बुझाने वाली पनिहारिन,

कितने स्टेशनों बाद मिला पानी!



जिन्हें तुम देख रहे हो,

वह तुम्हें देख नहीं पाते,

जो तुम्हारी प्यास बुझाते हैं,

वह अपनी प्यास नहीं बुझा पाते,

जो तुम्हें चाय पिलाते हैं चाय की दुकानों में लाचार!

कितनी बार पिलाई है तुमने उन्हें चाय,

कभी पूछा है उनसे कि उन्होंने कब पी थी आख़िरी चाय?



अभिव्यक्ति के तरीके है अपने

पृकृति ने दिए हैं सबको सपने

कोई सपनों को देखता है तो कोई महसूस करता है.’’

एक बार ऐसा भी हुआ कि मुझसे अपनी कहानी रेडियो के लिए देने के लिए एक निदेशक साहित्यकार ने कहा और कार्य कुछ आगे बढ़ता पर पर मेरी ढील के कारण कार्य आगे नहीं बढ़ सका. इन सब कार्यों में अक्सर हरी सिंह पाल जी और उनके सहयोगियों से मिलकर हौंसला बढ़ता था.

दूरदर्शन में अहमद साहेब, विलायत जाफरी, बी एम शाह की तरह ही अनेक निदेशकों और अधिकारियों स्नेहभाजन बना रहा जिसमें आर बी विश्वकर्मा जी, डॉ. रेखा व्यास, गीतकार लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, डॉ. कृष्ण नारायण पाण्डेय, सरिता भाटिया आदि का नाम अभी स्मरण में आ रहा है. वैसे बहुत से नाम हैं जिन्हें याद किया जा सकता है.

ऐसे कई नाम हैं जिन्हें याद किया जा सकता है. ऐसी कई घटनाएं और मुलाकातें हैं जो भुलाई नहीं जा सकतीं. उनमें उच्च अधिकारी से लेकर संपादक, इंजीनियर, कारीगर, मेकअप कलाकार भी सम्मिलित हैं. साक्षात्कार के समय यदि बातचीत साक्षात्कार लेने वाले से होती थे तब मुझे ध्यान है के मेकअप कलाकार और कैमरामैन और रिकार्डिंग करने वाले इंजीनियर और कारीगर से भी मौन ही बातचीत हो जाती थी, जिसे हम कह सकते हैं पंक्तियों के मध्य भी बहुत कुछ होता है जिसका वर्णन नहीं होता पर उनकी भूमिका अहम् होती है.

मीडिया से जुड़े हम दोनों के मित्र और रोमाओं, सामजिक विज्ञान और अंबेडकर पर महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन करने वाले और भारत सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्रालय में पूर्व महानिदेशक श्याम सिंह शशि जी भी श्री हरी सिंह पाल जी के प्रशंशक हैं. हरी सिंह पाल में एक ख़ास बात है कि वह दकियानूसी ख्यालों से दूर रहते हैं और बहुत प्रायोगिक हैं, साथ ही मिलनसार हैं, उनसे मिलकर आप कभी यह महसूस नहीं करेंगे की आप अपना समय गवां रहे हैं.

नार्वे से प्रकाशित होने वाली पत्रिका स्पाइल-दर्पण के जब पंद्रह और बीस बरस पूरे हुए तब आप और विश्वकर्मा जी ने हमारी दिल्ली में हुई गोष्ठी को रिकार्ड कराकर प्रसारित किया था.



एक गोष्ठी के मुख्य अतिथि थे श्याम सिंह शशि जी और दूसरा कार्यक्रम डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी जी के घर पर हुआ था. भारतीय प्रवासीयों को दोहरी नागरिकता दिलाने में, ओवरसीज भारतीय नागरिक कार्ड दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ब्रिटेन में भारतीय राजदूत रहते हुए यूरोप में ९ वर्षों तक सांस्कृतिक और साहित्यिक सेतु बनाने वाले कभी न भुलाए जाने वाले स्वर्गीय डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी और कमला सिंघवी जी का भी मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला और दिल्ली में भी उन्होंने याद रखा और मेरी पत्रिका के पंद्रह बरस पोर होने पर अपने घर जो पार्टी और साक्षात्कार दिया वह यादगार समय था. उस समय डॉ. सत्येन्द्र कुमार सेठी, विक्रम सिंह और सुनील जोगी मेरे साथ थे.



हरी सिंह पाल यदि आकाशवाणी में न होते तो वह अपने निजी साहित्य सृजन में बहुत अधिक योगदान दे सकते थे पर उन्हें आकाशवाणी में योगदान के लिए भी हमेशा याद किया जायेगा हालाँकि वह प्रचार से थोड़ा-थोड़ा दूर ही रहते है.

उन्होंने फोन पर बताया कि वह शिमला से अब दिल्ली आ गये हैं आशा है कि वह हमेशा की तरह पुनः साहित्य सृजन में मीडिया द्वारा अपने और दूसरे साहित्यकारों के साहित्य को उजागर करते रहेंगे.

ज्ञात हुआ कि कल्पांत पत्रिका उनपर विशेषांक निकल रही है. यह हरी सिंह पाल के जीवन के अनेक पहलुओं और उनके मीडिया और साहित्यिक योगदान और उनके निजी व्यक्तित्व को जानने में सफल होगी यही कामना करता हूँ.

स्वयं हम विदेश में बसे संपादकों ने अपनी पत्रिकाओं में भारत के अनेक रचनाकारों और कलाकारों पर विषद सामग्री प्रकाशित की है और इससे एक साहित्यकार पर विषद जानकारी मिलती है और पाठकों के मन में उस लेखक के अनेक पहलुओं का पता चलता है. आशा है हरी सिंह पाल जी को जो जानते हैं वे भी और जो नहीं जानते हैं वे भी उन्हें ’कल्पांत’ के इस अंक को पढ़कर जान जायेंगे. कल्पांत परिवार को इसके लिए हमारी शुभकामनायें.

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

संपादक, स्पाइल-दर्पण, ओस्लो, नार्वे

संस्थापक, वैश्विका-साप्ताहिक, भारत

अध्यक्ष, इंडो-नार्विजन इन्फार्मेशन एण्ड कल्चरल फोरम, नार्वे

अध्यक्ष, हिन्दी लेखन मंच, नार्वे

सदस्य, इंटर नेशनल फेडरेशन आफ जर्नलिस्ट

ई-पता: suresh@shukla.no और speil.nett@gmail.com

http://sureshshukla.blogspot.com/

पता Address: Suresh Chandra Shukla

Post Box 31, Veitvet

0518 – Oslo, Norway

सोमवार, 7 मई 2012

नार्वे में रवींद्र नाथ टैगोर जयन्ती मनाई गयी Bilde fra forfatterkafe den 7. mai på Chilensk kulturhus på Veitvetsenter i Oslo.


नार्वे में रवींद्र नाथ टैगोर जयन्ती और मुक्ति दिवस मनाया गया।
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में वाइतवेत सेंटर ओस्लो में नार्वे का मुक्ति दिवस ( 8 मई ) और 
रवीन्द्र  नाथ टैगोर का जन्मदिन (7 मई) धूमधाम से मनाया गया।   ओस्लो विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर असीम दत्तोराय    ने रवींद्र नाथ टैगोर के जीवन पर प्रकाश डाला. दत्तोराय जी ने बताया कि रवींद्रनाथ टैगोर ने महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि दी थी जबकि महात्मा गांधी जी ने टैगोर को गुरुदेव की उपाधि दी थी।इगोर जी   उपाधि दी।  रवीन्द्रनाथ  टैगोर एक महान लेखक, पेंटर और एक अच्छे शिक्षाविद थे। उनके और  के  वैज्ञानिक आर्न्स्ताइन के मध्य कई मुलाकातें हुई थीं।  
दत्तोराय  का पुश्गुच्छ देकर  स्वागत किया साग बाकेन ने. जबकि भारतीय दूतावास से आये सिलेश कुमार का स्वागत किया  नार्वेजीय कवियित्री इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन  ने किया. 
अंत में काव्यगोष्ठी संपन्न हुई जिसमें  इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, इंदरजीत पाल, चरण सिंह सांगा, सुखदेव सिद्धू और सुरेशचन्द्र शुक्ल ,'शरद आलोक' ने किया.
 
Bilde fra forfatterkafe den 7. mai på Chilensk kulturhus på Veitvetsenter i Oslo.
ऊपर के चित्र में टैगोर के जन्मदिन का केक काटते हुए बाएं से 
इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, सिलेस कुमार, पीछे खड़े सुरेशचंद्र शुक्ल और प्रोफ़ेसर असीम दत्तोराय 
नीचे के चित्र में बाएं से भरत, राजकुमार भट्टी, प्रगट सिंह, प्रो असीम दात्तोराय, जीत सिंह, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, मोहिंदर सिंह, साग बाकेन और सुरेशचन्द्र शुक्ल  

शनिवार, 5 मई 2012

Oslo, 05.05.12 ओस्लो में मौसम का बदलना आम बात है।

 ओस्लो में मौसम का बदलना आम बात है।
आज 5 मई को सुबह बरफ गिरते देखकर बहुत हैरानी नहीं हुई. अब जब नार्वे में सुबह के नौ बज रहे हैं, अभी भी बरफ धीमी रफ़्तार से गिर रही है। 15 अप्रैल से विधिवत गर्मी की  ऋतू  का आगमन हो  जाता है. पहली और दूसरी मई को ओस्लो पूरे दिन में धूप निकली रही. पर शीतल हवा के झोके आते-जाते रहे,पर नार्वे में रहने वालों के लिए ये धूप भरा दिन बहुत खुशी का दिन होता
 है। यहाँ मौसम के बारे में सभी जागरूक होते है।  अपनी छुट्टियों से लेकर शनिवार और रविवार को साप्ताहिक अवकाश तक की व्यवस्था में  मौसम का ध्यान रखकर ही अधिकाँश लोग अपने कार्यक्रम तय करते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर जैसे काम पर जाना, यात्रा करना या किसी उत्सव अथवा बैठक  में सम्मिलित होना होता है तो मौसम आड़े हाथ नहीं आता है।

मुझे स्मरण है मेरी भांजी सरिता ने मुझे बताया था कि उसने एक 'बच्चों की फुलवारी' / बालवाडी (शिशुओं और बच्चों के स्कूल)
 शुरू करने के पहले देखभाल के लिए आरम्भ कर रही है और अभी उनके पास  एक बच्चा है और दो शिक्षिका या केयरटेकर हैं।  यह कार्य उन्होंने वातानुकूलित जगह पर शुरू किया है।
भारत में व्यावसायिक  स्तर पर भी अनेकों जगह प्रायोगिक शिक्षा नहीं दी जाती है।  जगह-जगह बच्चों की देखभाल के लिए बालबाडी आदि हैं. बच्चों के माता -पिता को बहुत सी जानकारियाँ नहीं होती हैं। और यदि कहीं उन्हें सही और उपयुक्त जानकारी मिलती भी है तो उसेअपनाने में  हिचकते हैं। शायद इसका कारण आत्म विशवास  की कमी और आस पड़ोस में व्याप्त पूर्वाग्रह या असमंजस में रहने की स्थिति होना हो सकता है. इसी   लिए बहुत से स्कूल मनमाना पैसा  शुल्क  के रूप में लेकर भी आधा-अधुरा ज्ञान  ज्ञान ही बच्चों को देते हैं।

बच्चे को दो घंटे  दिन में मौसम के हिसाब से रखना जरूरी।  
आम तौर पर  हर बच्चे को जिस देश में भी रहता हो और मौसम क्यों न मुश्किल हो, उसे वहां की स्थिति में ढालना जरूरी है।  स्कूलों और बालवाडी केलिए तो अति आवश्यक है।  स्कूल के अन्दर  चाहे जैसा साधन (कूलर, खुली खिड़की या एयर कंडीशन) हो पर  बच्चे को चाहे पानी बरसे या ठण्ड पड़े या गर्मी हो उसे बाहर  खेलने भेजना चाहिए। तभी उसका सही विकास होगा और उसे अपने देश के हिसाब से मौसम की आदत पड़ेगी।  पर यह ध्यान रहे की बच्चे के पास उचित कपडे और संस्थाओं और माता-पिता बच्चों के सवास्थ के लिए बहुत जागरूक हों।
मेरी हिम्मत नहीं हुई अपनी भांजी को अच्छी राय देने की।

अच्छी राय बिना पूछे नहीं देनी चाहिए?
मेरे एक अच्छे मित्र हैं। उन्होंने मुझे राय दी की मुझे किसी को भी अच्छी राय बिना पूछे नहीं देनी चाहिए।  किसी का कार्य बिना उचित परिश्रम और कम प्रयास से चल रहा हो तो वह आलसी बन जाता है तथा राय देने वाले शुभचिंतक को स्वयं भोला-     व्यक्त करता है और अपने को बहुत बहुत उस्ताद।  मुझे इसकी  भली भांति जानकारी है खासकर अपने अनुभवों को लेकर।  पर फिर भी मन करता है की ज्ञान यदि थोडा बहुत मेरे पास दूसरों से आता है, इसके अलावा बहुत सी जानकारी इंटरनेट, पुस्तकों और विद्वानों की पुस्तकों में है उसे अपने लोगों में बांटनी चाहिए।
मेरे मन में सदा विचार आता है यदि मुझे बहुत अच्छी - अच्छी जानकारियाँ अपने राजनैतिक, सामजिक सेमिनारों में जाकर और स्वयं यहाँ का हिस्सा होकर मिलती है तो क्यों न मैं उन सभी के साथ साझा
करूँ वह ज्ञान और सूचनाएं  जिनके पास पहुँच कम हो वैसे सभी तक बात पहुंचे यह भी विचार रहता है।
एयरकंडीशन में रहकर यदि तरक्की की जा सकती तो सभी वातानुकूल घरों के बच्चे पढाई में अच्छे होते, और  वातानुकूल कमरों में रहकर कोई भी अच्छा लेखक, कलाकार और खिलाड़ी कैसे हो सकता है जबतक उसे सभी तरह के वातावरण में रहने की आदत न हो, यह हमें लचीला भी बनाती है जो बहुत जरूरी है।
मुझे याद है जब मैं युवा था  और छात्रनेता था तब पास पड़ोस के लोग मुझे अहमियत नहीं देते थे पर अधिकारी वर्ग, मीडिया: जैसे रेडियो, अखबार  और बहुत पढ़ा लिखा वर्ग मेरी बातों पर ध्यान देता था वरन हमसे सहानुभूति भी रखता था क्योंकि मैं अपने व्यस्त समय से कुछ समय निकलकर समाज सेवा में खर्च करता था। जब मैं बहुत लोगों से पूछता तो उसमें से अधिकाँश लोगों का रवैया टालने वाला और ध्यान न देने वाला होता था।   जको लोग मेरा विरोध करते थे वे थे स्थानीय नेता और एम् एल इ जो अपने को बहुत बड़ा टॉप समझाते थे न की जनता के सेवक।बुजुर्गों में यदि किसी के विचार मुझे सबसे अच्छे लागते थे तो वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लगते थे। उनमें उस समय भी जोश, हिम्मत और आशा होती थी।  जिसमें मैं  दुर्गा भाभी जो उस समय लखनऊ  मांटेसरी स्कूल की प्रिंसपल/ प्रबंधक थीं।  शचीन्द्र नाथ बक्शी, रामकृष्ण खत्री और गंगाधर गुप्ता अधिक आयु के बावजूद मुझसे मित्रवत व्यवहार करते थे।
 अपने मोहल्ले के कार्यक्रमों में मैं इन्हीं लोगों को सम्माननीय अतिथियों के रूप में बुलाता था। जिसमें मंत्री चरण सिंह और जगदीश गांधी एम् एल ए भी हमारे कार्यक्रमों में आये थे।

मंगलवार, 1 मई 2012

कर (टैक्स) से देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा मजबूत होती है - थूरब्योर्न जागलांद

कर (टैक्स) से देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा मजबूत होती है - थूरब्योर्न जागलांद


यान ब्योलर को स्पाइल पत्रिका भेंट करते हुए  संपादक
                                                                                         बाएँ से यान ब्योलर,  थूरब्योर्न जागलांद और अन्य
पहली मई को विशाल कार्यक्रम

पहली मई के अवसर पर आज ओस्लो में यंग्स थोर्वे पर एक विशाल सभा आयोजित हुई और बाद में एक विशाल जूलुस बनकर नगर में घूमकर वापस वहीं पर समाप्त हुआ. श्रमिकों ने अपनी मांगों, सन्देश तथा अपने संगठनों के बैनर, पोस्टरों तथा बैंड बाजों के साथ अपनी शानदार भागीडारी की. बाद में अनेक स्थानों पर कार्यक्रम संपन्न हुए.

आज ओस्लो में सूर्य देवता मेहरबान थे. सूरज निकला था उसकी गर्माहट से सभी सराबोर थे. नार्वे में सूरज कम निकलता है ज्यादातर बदली और जाड़े का मौसम रहता है.

आज साम्फुन्स हाल, ओस्लो, नार्वे में पहली मई अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर विशाल कार्यक्रम संपन्न हुआ. कार्यक्रम में नार्वेजीय अरबाईदर (श्रमिक) पार्टी के पूर्व नेता और प्रधानमंत्री थूरब्योर्न जागलांद ने अपना व्याख्यान दिया जिसका सभा में उपस्थित लोगों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया. थूरब्योर्न जागलांद आजकल यूरोपीय संगठन के सचिव और नार्वेजीय नोबेल समिति के अध्यक्ष हैं. कार्यक्रम का सञ्चालन ओस्लो अरबाईदर पार्टी के अध्यक्ष यान ब्योलर ने किया. थूरब्योर्न जागलांद कहा किसी भी देश की व्यवस्था वहाँ कामगारों (काम करने वालों) पर निर्भर होती है जो टैक्स देते हैं. उस टैक्स से देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा मजबूत होती है. जिन देशों में टैक्स नहीं दिया जाता वहाँ की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं हो सकती. यूनान में आर्थिक संकट एक उदाहरण है. उन्होंने कुछ रोचक संस्मरण और प्रसंग सुनाये.

यहाँ स्पाइल के संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ने उन्हें पत्रिका भेंट की, उन्हें बधाई दी और अपनी राजनैतिक भागीदारी की सूचना दी.

ओस्लो में पहली मई Libe Rieber-Mohn fikk Speil av redaktøren, Suresh Chandra Shukla på Årvollgård i Oslo

Feiring av 1. mai i Årvollgård i Oslo
Libe Rieber-Mohn, vara ordfører i Oslo holdte foredrag om 1. mai. Redaktør av Speil overrakk henne tidsskrift Speil. 

ओस्लो में पहली मई (१ मई 2012 )


आज पहली मई है. इसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत में पहली बार पहली मई १९२३ को लेबर किसान पार्टी ने मनाई थी.

आज ओस्लो में मौसम अच्छा था. पहले भारत में फोन पर फिल्माचार्य आनन्द शर्मा और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कृष्णा जी श्रीवास्तव को इस अवसर (पहली मई ) पर शुभकामनायें दी. वैश्विका के संपादक संजू मिश्र ने कल ३० अप्रैल को शाम को बताया था कि लखनऊ विश्वविद्यालय में इटली से अवकाश प्राप्त हिन्दी विद्वान डॉ. श्याम मनोहर पाण्डेय जी का व्याख्यान था.

आज माया भारती के साथ चाय पीकर पैदल चार तीन किलोमीटर चलकर ओरवोल हाता, ओस्लो में नार्वे की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी 'अरबाईदर (श्रमिक) पार्टी' द्वारा 'सामूहिक नाश्ते' पर सम्मिलित हुआ जहाँ पर श्रमिक गीत गाये और ओस्लो की दीप्ती मेयर रीबेर मोह्न ने अपना राजनैतिक भाषण दिया जिसमें पहली मई पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पहली मई पुरानी है पर उसकी शिक्षा और ज्ञान नया है. नार्वे में सभी को सामान अवसर मिलने चाहिए चाहे वह किसी वर्ग, वर्ण, धर्म और देश का हो. यही हमारा ज्ञान है और इसी पर हम कार्य कर रहे हैं.

हम सभी को कार्य करना चाहिए कि हमारे नौजवानों को काम मिले. वह अपना घर खरीद सकें. आजकल नार्वे में 'अरबाईदर (श्रमिक) पार्टी' की सरकार है जिसने तीन लाख युवाओं को रोजगार दिया है. जबकि यूरोप के दूसरे देशों में जैसे यूनान में युवाओं को यह अवसर नहीं प्राप्त है. यह अपने आप नहीं होता है. इसके लिए आपको अगले वर्ष होने वाले पार्लियामेंट चुनाव में दोबारा 'अरबाईदर (श्रमिक) पार्टी' को जिताना होगा.

(आगे पढ़िए शाम तक)