रविवार, 31 मई 2009

ओस्लो में साहित्यिक गोष्ठी - शरद आलोक



ओस्लो में साहित्यिक गोष्ठी, प्रवासियों के नाम - शरद आलोक

आज ग्रोनलान, ओस्लो में एक साहित्यिक गोष्ठी संपन्न हुई जिसमें प्रवासी और नार्वेजीय लेखकों ने अपनी कहानियाँ और कवितायें नार्वेजीय भाषा में पढ़ी। अब प्रवासी लेखक अपनी रचनाओं को नार्वेजीय भाषा में भी पढ़ सकते हैं यह संदेश दुनिया में रहने वाले तमाम लेखकों के लिए प्रोत्साहित करने वाली बात है।

जिन लोगों ने अपनी रचनाएं पढ़ी उनके नाम थे इंगेर एलिसाबेथ हानसेन, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', थूरगाइर शेर्वेन, फैसल नवाज चौधरी, खालिद थ्थाल शाहेदा बेगम, गुलाम रसूल जायद, इंदरजीत पाल,

पालजमीर सयाल थे ।

कार्यक्रम का सञ्चालन अदबी सांगत के फैसल नवाज चौधरी ने किया।

ओस्लो में साहित्यिक गोष्ठी - शरद आलोक

नस्लवाद एक कोढ़, भारतीयों पर हमले, दुनिया चिंतित- 'शरद आलोक' -

नस्लवाद एक कोढ़, भारतीयों पर हमले, दुनिया चिंतित- 'शरद आलोक'
आस्ट्रेलिया में एक महीने में चार भारतीयों को नस्लवाद का इशिकर होना पड़ा। यह बहुत शर्मनाक बात है। इसे तुंरत रोका जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं, अमिताभ बच्चन और सभी समाचार पत्रों ने भारत में आलोचना की है। आस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय वहां राजनीति में हिस्सा लें बेशक वे छात्र हों या कम समय या एक-दो साल के लिए गए हों। राजनीति में भाग लेने से वे वहां की समस्याओं को हल करने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। आप सभी जो वहां रहते हैं वे भारतीय संगठन या मानवतावादी गतिविधियों के संगठनों में शामिल हो और सक्रिय हिस्सा लीजिये। उन राजनैतिक पार्टियों से जुड़िये जो नस्लभेद और भेदभाव के खिलाफ कार्य करती हों बेशक ये पार्टी छोटी क्यों न हो। लेबर पार्टी भी नस्लवाद के खिलाफ होती है। यह मत सोचिये कि मुझे क्या मतलब, मैं तो सुरक्षित हूँ! आप सभी को सार्वजानिक और सामूहिक रूप से सोचना होगा।
आए दिन दुनिया में नस्लवादी हमले होते हैं। जबकि दुनिया की कोई सरकार या देश नस्लवाद का हिमैती नहीं करते फ़िर भी ये हमले होते हैं। अनेक देशों में दहेज, अंतरजातीय प्रेम और विवाह को लेकर अक्सर शर्मनाक घटनाएँ होती हैं। लोग हिंसा का शिकार होते हैं। आतंकवाद एक बहुत बड़ी समस्या है।
हाथ पर हाथ रखकर कभी कुछ होना नहीं
काटना क्यों कहते हो नयी फसल जब तुम्हें बोना नहीं। यू के में भारतीय लोग राजनीति में भी सक्रिय हैं।
हम आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमलों कि निंदा करते हैं और आशा करते हैं कि ये हमले रुकेंगे और दोषियों को सजा दी जायेगी।
-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

आज जिसका जन्मदिन है, जन्मदिन पर शुभकामनाएं - शरद आलोक

सभी को जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं।

मधुर-मधुर स्मृतियों में मुड़कर
नहीं देख पाया हूँ रूककर
नहीं उठा पाया कोई सिक्का
गिरा हुआ जो भू पर
विश्वासों की नीवों पर कितने
पवित्र वात्सल्य करूणा बन आँसू
छलक गए हैं मुखपर
बच्चों के सानिध्य प्रेम का
अंजुरी में स्मृतियों के दोने
मुट्ठी में बालू सी यादें
आंखों को गंगाजल माना
खारा होकर खरा उतरता
आशीर्वाद सदा चमको जग बगिया में
हिम्मत हो या कठिन समस्या
ना ना न कह नाना कहाना
जीवन का हँसता मुस्काता
गुणवत्ता की माला पुहना
कभी जब रास्ता रोक खड़ा हो
उन पल को तुम दूर नमन कर
अपने पथ पर आगे बढ़ना
दुनिया में नीचे देखोगे
और पहुँचने को आतुर हो
हिमालय या पहाड़ खडा हो
हठी और श्रम से पवन मन
आशीर्वाद, नमन,
चिंतन खुशियों का आवाहन
दिन और बरस जियो सदा पर
पल-घंटों का मोल भी जानो।
ये हैं अपने पास अभी पर
उपयोग नहीं कर पाये यदि इसका
प्रतीक्षा में कोयल, मैना का गीत न देगा
समय गवाने का उपहार
इसी लिए कहता हूँ तुमसे
समय से सीखो करना प्यार
माता - पिता का मान बढाओ
कुछ तो बनकर दिखलाओ
जन्मदिन है खुशी मनाओ
मेरी भी चार खुशी ले जाओ।
श्रेया के मन में नवीन सी पंखुरियों की बेल खिले
रेणुओं के माथे का कद चार गुना हो
संसार चलेगा साथ उसी के
श्रद्धा, श्रम और समय साथ जो चल पायेगा।
- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

मंगलवार, 26 मई 2009

चाचा नेहरू की पुण्य तिथि २७ मई -शरद आलोक


भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की पुण्य तिथि पर
-सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

चाचा नेहरू की पुण्य तिथि २७ मई को है। उनका जन्म १४ नवम्बर १८८९ और मृत्यु २७ मई १९६४ को हुई थी। बच्चों से प्रेम करने वाले चाचा नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। शान्ति को पुजारी महात्मा गाँधी जी की नीतियों पर चलते हुए उन्होंने भारत के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें हजार बार नमन।
मैंने बचपन में एक कविता पढ़ी थी:
हे चाचा तुम दुखी न होना यह गुलाब आंधी होगा,
भारत का हर बच्चा - बच्चा नेहरू और गाँधी होगा।

शनिवार, 23 मई 2009

भारतीय सरकार में अनेक मंत्री मानवतावादी- शरद आलोक

भारतीय सरकार में अनेक मंत्री मानवतावादी- शरद आलोक
भारतीय संसद में यह संसद ऐतिहासिक है जब अनेक मंत्रियों ने अपनी शपथ मानवतावादी तरीके से ली है। आम तौर से ये सांसद या मंत्री अपनी शपथ किसी धर्म के अनुसार लेते हैं। पर जो लोग धर्म के आधार पर शपथ नहीं लेते उन्हें मानवतावादी कहा जाता है। जबकि बहुत से लोग उन्हें नास्तित्क कहते हैं क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि शपथ लेने का यह आधुनिक मानवतावादी तरीका नास्तिकता नहीं वरन सभी से एक सा व्यवहार करने का संदेश है और व्यक्ति कि अपनी स्वतंत्रता और मर्जी पर निर्भर करती है। जिन मंत्रियों ने मानवतावादी तरीके से शपथ ली उनके नाम हैं : एंटनी , चिदंबरम, शिंदे, रेड्डी , जोशी और मोइली
यह अच्छा है कि दूसरे देशों कि तरह भारत में भी विभिन्न मतों के मानने वाले अपने -अपने तरीके से पूजा कर्म करते हैं। भारतीय सांसदों , मंत्रियों और सभी राजनैतिक दलों को सफलता के लिए बधाई।

आज २३ मई को हेनरिक इबसेन का पुण्य दिन - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'


घोड़ा गाड़ी पर सवार शरद आलोक और गाडीवान नार्वेजीय युवती

हेनरिक इबसेन की मूर्ति इबसेन म्यूजियम के सामने
२३ मई १९०६ को हेनरिक इबसेन दुनिया से विदा हुए- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

आज २३ मई को हेनरिक इबसेन की पुण्य तिथि है। काफी समय तक बीमार रहने के बाद २३ मई १९०६ को दिन में ढाई बजे मृत्यु हो गयी थी। नार्वे के एक समाचारपत्र 'अफ़्तेनपुस्तेन ' ने उसी दिन उनके जीवनवृत्त को 'नेक्रोलूग 'छाप दिया था जो मृत्यु के बाद छपता है।
नार्वे में आज कोई खास कार्यक्रम इबसेन को लेकर नहीं है। परन्तु जब उनकी मृत्यु के १०० बरस हुए थे तब २००६ में तब उनके नाम से ओस्लो में एक मार्ग का उन्हीं के नाम से नामकरण हुआ था और उनके नाम से एक म्यूजियम का उद्घाटन अर्लिंग ला ने किया था तब मैं भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित था तब मैं ओस्लो नगर पार्लियामेंट का सदस्य भी था। उस दिन वर्षा हो रही थी। पुराणी तरह से इबसेन को याद करते हुए अनेक कार्यक्रम हुए थे। मुझे भी तब एक युवती की घोड़ा गाड़ी में राजा के महल का चक्कर लगाया था। ये यादगार दिन थे। इबसेन इस दुनिया में नहीं हैं। २२ अप्रैल २००९ को लखनऊ विश्वविद्द्यालय में मेरी पुस्तक 'रजनी' का लोकार्पण इबसेन की २ पुस्तकों 'गुड़िया का घर ' और 'मुर्गाबी' के हिन्दी अनुवाद के साथ हुआ था जिसका अनुवाद मैंने किया था। 'गुडिया का घर' के एक अंश का नाटकीय ढंग से पाठ किया था कृष्णा जी श्रीवास्तव ने जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया था।

रविवार, 17 मई 2009

धूमधाम से मना नार्वे का राष्ट्रीय दिवस



धूमधाम से मना नार्वे का राष्ट्रीय दिवस - शरद आलोक
पूरा नार्वे झूम उठा सत्रह मई पर। ओस्लो में कार्ल युहान मार्ग सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन से लेकर राजमहल और वापस सिटी हाल के सामने समुद्र तट पर आकेर ब्रिग्गे पर उत्साह और हजारों -लाखों की भीड़ देखते नहीं बनती थी।
कुछ चित्र संलग्न हैं ओस्लो के।

नार्वे के राष्ट्रीय पर्व १७ मई पर शुभकामनाएं - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'






नार्वे के राष्ट्रीय पर्व १७ मई पर शुभकामनाएं - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'


१७ मई १९०५ को नार्वे में संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं। आज नार्वे के स्कूलों में बच्चे अपने राष्ट्रीय पर्व पर एकत्र होते हैं जहाँ ध्वजारोहण, देशगीत, राष्ट्रगीत gआते बजाते हैं तथा स्कूल के बैंड के साथ मार्चपास्ट करते हैं। ओस्लो में बहुत से स्कूलों द्वारा मार्चपास्ट करते हुए राजमहल के सामने से गुजरते हैं। राजा को सलामी देते हैं और झंडा झुकाते हुए हुर्रा, हुर्रा, हुर्रा बोलते हैं। राजा अपने परिवार के साथ खड़े होकर अपना हैट उतारकर हाथ हिलाकर अभिवादन स्वीकार करके वापस अभिवादन करता है।


आज प्रातकाल ९ बजे अपने घर के पास स्थित स्कूल में मैं धवाजरोहन समारोह में शामिल हुआ। इसी स्कूल में मैं प्रबंधक समिति का राजनैतिक सदस्य भी हूँ।


पूरा वातावरण आनंदमय था। चारो तरफ़ बच्चे, युवा और बुजुर्ग उत्साह के साथ एकत्र हुए थे।


नार्वे का तिरंगा: लाल, सफ़ेद और नीला रंग के साथ लहरा रहा था। जनतंत्र और स्वतंत्रता स्वयं नहीं मिल जाते उसके लिए कुछ करना परता है।


लगातार प्रयास और योगदान देना जरूरी होता है स्वतंत्रता और समानता की रक्षा के लिए। हर पल जागते रहना होता है। अन्याय के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाने की जरूरत होती है।

शनिवार, 9 मई 2009

नार्वे में यूरोपीय स्वतंत्रता दिवस ८ मई हिन्दी कविता के साथ मनाया गया



८ मई को ओस्लो में यूरोपीय स्वाधीनता दिवस धूमधाम से मनाया गया - माया भारती

८ मई २००९ को वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में यूरोपीय स्वाधीनता दिवस 'भारतीय - नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक मंच' के तत्वाधान में और सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' की अध्यक्षता में धूमधाम से मनाया गया जिसमें मुख्य अतिथि थे थूरसताइन विन्गेर। गोष्ठी में अपने पिता के संस्मरण सुनाये राय भट्टी ने , संगीता सिमोंसेन, इंगेर मारिए, तथा अन्य लोगों ने अपने अपने विचार रखे और कवितायें सुनाईं

३० अप्रैल १९४५ को हिटलर ने आत्महत्या कर ली थी और कार्ल दोनित्ज़ ने २ मई को सैनिक कमान सँभालने के बाद सेना को वापस आने का और हथियार डालने का आदेश दिया। यह आजादी शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई। ७ मई को नार्वे में जनरल फ्रांज ने आदेश का पालन करते हुए सत्ता नार्वे को सौंप दी। 2२०० बजे रात को नार्वेजीय रेडियो ने स्वतंत्रता की घोषणा की। ८ मई १९४५ को पूरे नार्वे में लोगों ने आजादी का पर्व मनाया।
८ मई को नार्वे में भी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। ८ मई १९४५ को नार्वे और यूरोप के कई देशों से क्रूर नाजी शासक हिटलर का शासन समाप्त हो गया था।
माया भारती ने आगंतुको को धन्यवाद दिया तथा अलका भरत ने विन्गेर को पुष्प भेंट किए जबकि संगीता को पुष्प भेंट किए इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन ने ।