शनिवार, 23 मई 2009

आज २३ मई को हेनरिक इबसेन का पुण्य दिन - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'


घोड़ा गाड़ी पर सवार शरद आलोक और गाडीवान नार्वेजीय युवती

हेनरिक इबसेन की मूर्ति इबसेन म्यूजियम के सामने
२३ मई १९०६ को हेनरिक इबसेन दुनिया से विदा हुए- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

आज २३ मई को हेनरिक इबसेन की पुण्य तिथि है। काफी समय तक बीमार रहने के बाद २३ मई १९०६ को दिन में ढाई बजे मृत्यु हो गयी थी। नार्वे के एक समाचारपत्र 'अफ़्तेनपुस्तेन ' ने उसी दिन उनके जीवनवृत्त को 'नेक्रोलूग 'छाप दिया था जो मृत्यु के बाद छपता है।
नार्वे में आज कोई खास कार्यक्रम इबसेन को लेकर नहीं है। परन्तु जब उनकी मृत्यु के १०० बरस हुए थे तब २००६ में तब उनके नाम से ओस्लो में एक मार्ग का उन्हीं के नाम से नामकरण हुआ था और उनके नाम से एक म्यूजियम का उद्घाटन अर्लिंग ला ने किया था तब मैं भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित था तब मैं ओस्लो नगर पार्लियामेंट का सदस्य भी था। उस दिन वर्षा हो रही थी। पुराणी तरह से इबसेन को याद करते हुए अनेक कार्यक्रम हुए थे। मुझे भी तब एक युवती की घोड़ा गाड़ी में राजा के महल का चक्कर लगाया था। ये यादगार दिन थे। इबसेन इस दुनिया में नहीं हैं। २२ अप्रैल २००९ को लखनऊ विश्वविद्द्यालय में मेरी पुस्तक 'रजनी' का लोकार्पण इबसेन की २ पुस्तकों 'गुड़िया का घर ' और 'मुर्गाबी' के हिन्दी अनुवाद के साथ हुआ था जिसका अनुवाद मैंने किया था। 'गुडिया का घर' के एक अंश का नाटकीय ढंग से पाठ किया था कृष्णा जी श्रीवास्तव ने जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया था।

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