रविवार, 15 सितंबर 2024

नार्वे में हिन्दी दिवस मनाया गया - सुरेशचन्द्र शुक्ल

 विदेशों में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो. निर्मला एस. मौर्य (पूर्व कुलपति, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर) ने कहा कि हिन्दी हमारी अस्मिता की पहचान है।  हिन्दी में सभी सभी वे गुण हैं जो राष्ट्र भाषा में होने चाहिए। हमारी नयी शिक्षा नीति आ गयी है। प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने आगे कहा कि जैसे ही नयी शिक्षा नीति आयी थी 2020 में,  कोविड  का समय था मैं जब वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में मैं जैसे ही कुलपति बनी , मैंने तुरंत नयी शिक्षा नीति लागू की, जिसका असर आसानी से देखा जा सकता है। 

 “विदेशों में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है विदेशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है। हिन्दी के पाठक बढ़ रहे हैं। विभिन्न प्रदेशों के भारतीय जब आपस में मिलते हैं तो वे हिन्दी में बात करते हैं। विदेशों में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है।”  यह विचार व्यक्त किए ओस्लो नार्वे में स्पाइल-दर्पण पत्रिका के संपादक एवं अग्रणी प्रवासी साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने अपने व्याख्यान में कहा। 
कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रमिला कौशिक ने वाणी वंदना से किया। 

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं प्रो. निर्मला एस. मौर्य, अध्यक्षता कर रहे थे प्रो. अर्जुन पाण्डेय तथा विशिष्ट अतिथि थे: डॉ. हरी सिंह पाल जी, डॉ. राकेश कुमार, प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’, प्रो. के. पंकज, और टेकू वासवानी जी।
 
डॉ. हरी सिंह पाल जी ने नागरी लिपि का महत्त्व बताया और आग्रह किया कि हम सभी को नागरी लिपि अपनानी चाहिए।
डॉ. राकेश कुमार जयपुर ने क्रेडेंट यू ट्यूब चैनल में साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों के साक्षात्कार लेते हैं डियर साहित्यकार के कार्यक्रम में और सिनेमा में हिन्दी के महत्वपूर्ण योगदान को अद्वितीय बताया तथा कहा कि  हिन्दी दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। 
उत्तराखंड विश्व विद्यालय के विभागाध्यक्ष हिंदी और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ हरिद्वार ने हिन्दी के सांस्कृतिक महत्व की व्याख्या करते हुए अपनी रचना सुनाई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पर्यावरणविद एवं अवधी रचनाकार डॉ. अर्जुन पाण्डेय जी ने कहा प्रवासी साहित्यकारों ने हिन्दी की बहुत सेवा की है।  उन्होंने अपनी नयी पुस्तक 'माटी का चन्दन' पुस्तक का अवलोकन कराया। डॉ. अर्जुन पाण्डेय जी ने सभी रचनाकारों को धन्यवाद देते हुए उनकी रचनाओं की व्याख्या की।

अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन 
 कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख थे: 
विदेश से: प्रो. हरनेक सिंह गिल लन्दन एवं गुरु शर्मा स्कॉटलैंड ब्रिटेन, नीरजा शुक्ला कनाडा, डॉ. राम बाबू गौतम अमेरिका, टेकू वासवानी मस्कट और सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ओस्लो नार्वे ने काव्य पाठ किया। 

भारत से:  डॉ. हरी सिंह पाल, बबिता यादव एवं प्रमिला कौशिक दिल्ली, डॉ. राकेश कुमार एवं नवल किशोर शर्मा जयपुर, डॉ. सुषमा सौम्या एवं डॉ. मंजू शुक्ला लखनऊ, डॉ. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ हरिद्वार, डॉ. दिव्या मिश्रा रीवा, डॉ. पूनम मिश्र सुलतानपुर, बलराम कुमार मणि त्रिपाठी कबीर नगर, जे. पी. चंदेल मुरादाबाद, डॉ. मोहन लाल जट चंडीगढ़, सुवर्णा जाधव पुणे, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद और डॉ. अर्जुन पाण्डेय अमेठी ने काव्य पाठ किया। 

डॉ. मंजू शुक्ला जी ने अपनी नयी पुस्तक का अवलोकन कराते  हुए सूचना दी कि उनकी पुस्तक का लोकार्पण 1 अक्टूबर को लखनऊ में होगा।

कार्यक्रम का आयोजन भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने किया था। 




सोमवार, 9 सितंबर 2024

सिनेमा के बाल गीतों पर डिजिटल गोष्ठी - डा. संजीव कुमार (वामा)

 सिनेमा के बाल गीतों का बालमन पर प्रभाव पर डिजिटल गोष्ठी

08.09.24 कल शाम इस विषय पर एक आनलाइन संगोष्ठी जूम मीट पर आयोजित हुई और इसमें भाग लेने का अवसर मुझे भी मिला।
भोपाल से लता अग्रवाल जी ने लोरी गीतों पर बहुत ही सुंदर बातें कही और वो तो पुराणों तक से लोरी ढूँढ लायी। उन्हें सुनकर मैं चमत्कृत हो गई। कितना गहन शोध किया था उन्होंने।
गाजियाबाद से रजनीकान्त शुक्ल ने साहिर लुधियानवी के बाल गीतों पर बात की। साहिर मेरे सबसे पसंदीदा शायर हैं और उन पर तो कितनी ही देर सुना जा सकता है। आह! समय का कम होना बहुत खला।
कार्यक्रम की संचालक विमला भंडारी जी ने भी प्रदीप और आनंद बख्शी साहब के गीतों पर बात की और कई बार वो भाव विह्वल भी हुई। ख़ासकर "ए मेरे वतन के लोगों" गीत का ज़िक्र करते हुए वो बहुत भावुक थीं।
अपनी बात क्या कहूँ! मैं वहाँ सबसे छोटी थी तो सबने बहुत स्नेह दिया। मैंने एनीमेशन फ़िल्मों पर उनके गीतों की बात की।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. संजीव कुमार ने बहुत से गीतों का ज़िक्र किया और कुछ गीत गाये भी। साथ ही फिल्मी बाल गीतों के संकलन को प्रकाशित करने का निर्णय लिया उन्होंने। उनका मत था कि गीतों और साहित्य के बीच लक्ष्मण रेखा नहीं खींची होनी चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में कई विद्वानों ने अपने विचार साझा किए। एक विचार जो साझा हुआ वो ये कि साहित्य को फ़िल्मी गीतों से दूरी नहीं बनानी चाहिए। ये भी प्रश्न उठा कि क्या गीत साहित्यिक नहीं होते हैं? सभी सुधीजन इतने उत्साहित थे कि ऐसे कई बिंदु कार्यक्रम में शामिल हो गये।

नॉर्वे से शरद आलोक जी का उत्साह संक्रामक है
नॉर्वे से सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' जी ने पूरे उत्साह से अपनी अगली भारत यात्रा में एक बैठक बना कर कुछ बाल गीतों पर टेली फ़िल्म बनाने की योजना भी बना डाली। उनका उत्साह संक्रामक है।
कुल मिलाकर, गोष्ठी बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक रही। मुझे इसका हिस्सा बनाने के लिए बहुत आभार विमला जी। (वामा)

- हेमा बिष्ट

सुरेश चन्द्र शुक्ल की कथा ‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ पर परिचर्चा

 नार्वे से डिजिटल मंच पर सुरेश चन्द्र शुक्ल की कथा ‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ पर परिचर्चा एवं अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तेज स्वरूप त्रिवेदी संगीत नाटक अकादमी दिल्ली, विशिष्ट अतिथि डॉ. राकेश कुमार जयपुर एवं प्रो. के. पंकज पूर्व विभागाध्यक्ष पूर्णिया विश्वविद्यालय थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. नमिता आर्य पुणे ने किया।
‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ कहानी पर परिचर्चा में
डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी, शशि पाराशर, डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड और डॉ. राकेश कुमार आदि ने कहा कि
‘अपनी-अपनी हिस्सेदारी’ एक सशक्त व्यंग्य कथा है जो पुस्तक विमोचन और उत्सवों में दिखावे पर चुटीले प्रहार करती है। कथा मनोरंजक है जो पाठकों और श्रोताओं को गुदगुदाती है।
कार्यक्रम में लघुकथाओं और कविताओं का पाठ देश-विदेश के रचनाकारों ने किया जिसमें
विदेश से: रचना पाठ करने वाले डॉ. ऋतु ननन पांडेय नीदरलैंड, डॉ. शिप्रा शिल्पी जर्मनी, नीरजा शुक्ला कनाडा एवं सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ नार्वे ने काव्य पाठ किया।
भारत से: शशि पाराशर एवं डॉ. रजनीकान्त शुक्ल दिल्ली, हरे राम बाजपेयी इंदौर, डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड, प्रो. के पंकज पूर्णिया, प्रो. नमिता आर्य पुणे, डॉ. राकेश कुमार एवं नवल किशोर जयपुर, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद, डॉ. करुणा पांडेय लखनऊ ने काव्य पाठ किया।
अंत में हरेराम बाजपेयी ने सभी को गणेश चतुर्थी की बधाई दी और ऐसे आयोजन को महत्वपूर्ण बताया।
कार्यक्रम का आयोजन किया था भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने।
- संगीता शुक्ला, ओस्लो, नार्वे से

सोमवार, 2 सितंबर 2024

कुहासा छट रहा है - सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘ शरद आलोक’

 कुहासा छट रहा है 

 सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘ शरद आलोक’

कुहासा छट रहा है 
रोशनी बढ़ रही है
 
जंगल की आग में 
सब कुछ जल गया है।
घोंसले जल गए हैं,
चूजे जल गए हैं।
 
मणिपुर में तबाही 
सैकड़ों चर्च जला दिए हैं।
खंडहरों में राख में 
कुछ चिंगारियां बच गयी हैं।

देश है जिसके हवाले,
वह बिक गया है।
लोकतंत्र से उसका 
भरोसा उठ गया है।

फासीवादी ताकतें 
सत्ता में आ गयी हैं।
जहाँ -तहाँ देखो  
मॉब लिंचिंग हो रही है।

जिन्हें जेल में होना चाहिए 
वह सत्ता चला रहे हैं।
घर के दीपकों से 
अपना घर जला रहे हैं।

सुनसान जलते जंगल में 
कुछ इंसान बच गए हैं। 
ईमान जल रहा है, 
उसको बुझा रहे हैं।

गाजा में नरसंहार?
अस्पताल जल रहे है।
बच्चों के स्कूल जल रहे,
शरणार्थी शिविर जल रहे हैं। 

इजराइल में सेना क्यों 
अपना घर जला रही है?
पलिस्तीनी को कहते भाई,
उन्हीं को मिटा रही हैं।

युद्ध-जुल्म से जिनकी 
दुकानें चल रही हैं।
खतरनाक शस्त्रों की,
मिसाइलें चल रही हैं।

युद्ध में दोनों ओर से,
गोलियाँ चल रही हैं।
गाँधी की सोच वालों की 
शांति वार्तायें चल रही हैं।

मानवता बड़ा मजहब,
मानवता जहाँ है घायल।
मानवता बड़ा मजहब, 
शांति की बड़ी कायल।

मणिपुर से कश्मीर तक 
शांति के लिए दीपक जला रहे हैं।
कुहासा कभी छटेगा? 
शांति बहाल होगी।
02.09.24