गरीबों का भरण-पोषण करना चाहिये - शरद आलोक
नार्वे में पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी एक शाखा ओस्लो में खोलने का मन बनाया है। बैंक का इस अवसर पर एक उदघाटन समारोह संपन्न हुआ होटल प्लाजा में। मिलीजुली प्रतिक्रिया थी आए हुए मेहमानों के मध्य।
भारत के बैंक अभी सुरक्षित हैं सरकार की नीति के कारण। यह जरूर है की जनता चिट फंड और शेयर अथवा कंपनी के फिक्स डिपॉजिट में अपने मेहनत की कड़ी कमाई को थोड़े लाभ के लालच में
जमा करके बहुत बार पैसा गवां भी देती है। बहुत से चित फंड और शेयर बेचने वाली कम्पनियाँ
अपने अच्छे नेटवर्क और सरकार से जनता के नाम धन लेती हैं छूट प्राप्त करती हैं या अन्य रियायत लेकर मनमाना लाभ ले रही हैं। पहले शेयर बेचते हैं फ़िर शेयर में घाटा । कई कम्पनियाँ सरकार से कहती हैं की बिजली घर बनायेंगे। रोजगार देंगे आदि-आदि। सरकार से परमिट और एकाधिकार की कोशिश कर मनमाना पैसा कमाना एक मात्र धर्म होता है व्यापार में। सस्ते दाम में जमीन लेने के बाद भी जनता के लिए प्रयोग किए बिना उसे अपने लाभ में दिखाना कुछ कंपनी का कार्य रह गया है।
आदर्श मदिरा की तरह है
कम पियो तो आनंद
अधिक पियो
तो बदहजमी
मेरी इन पंक्तियों की तरह आज की संस्कृत में आदर्श की इस परिभाषा की पकड़ बनती जा रही है ।
वास्तव में होना चाहिए गरीबों का पालनपोषण . जो व्यवस्था में सूराख हैं उन्हें भरना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। सूराख भरने के लिए उभरे हुए टीले को तोड़ कर पूर्ति करनी पड़ेगी ।
कुछ वर्षों पहले मुझे अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन जी से ओस्लो के होल्मेन्कोलेन होटल में मुलाकात हुई थी। उन दिनों उनकी बात समाचार पत्र में छपी थी की विकासशील देशों को गरीबी कम करने के लिए वितरण में असमानता को कम करना होगा।
आम तौर पर अमीरों के बच्चों को हीरो बना दिखाया जाता ही की अमुक आमिर का बेटा धनी है । पूछिये की उसने न तो कोई काम किया और न अविष्कार और न ही कोई अनोखी समाजसेवा फ़िर वाहवाही किस बातकी ।
स्वयम अर्थशास्त्र में रूचि लेने वाला होने के कारण कुछ विचार आपके साथ बाँट रहा हूँ। चूँकि लेखनी का साथ तो चोली - दामन जैसा होने के कारण बात आया गया होने के पहले आपके साथ बाँट लेता हूँ।
अंकों का अविष्कार भारत में मनुष्यों द्वारा किया गया। अर्थशास्त्र का कार्य अंकों के बिना सम्भव नहीं है।
तात्पर्य यह की आदमी ने अंक बनाये तो वह ही उसका सही उपयोग करना भी जाने।
उस किसी चीज में पैसा नहीं लगाएं जहाँ उत्पादन नहीं होता हो।
पोस्ट आफिस में लगाया जाए तथा काम करने वाले , मेहनत मजदूरी करने वाले लोग मिलकर स्वयं लघु उद्द्योग पार्ट टाइम समय में लगायें।
उपभोक्ता सहकारिता समिति बनाकर जगह-जगह जनरल स्टोर खोलने से सामन सस्ता और लाभ खरीदारों को मिलेगा जो इन स्टोरों के एक अंश के मालिक होंगे। बड़ी- बड़ी कम्पनियाँ कभी भी बिना लाभ लिए आपका भला नहीं करने वाली।
यदि दुकान में आपकी साझेदारी है तो झोपडी में भी हो या किसी के घर में भी हो खरीदने में गर्व होना चाहिए। आज गरीब और विकसित देशों को इस विचार के क्रियान्वयन की जरूरत है।
हाथ में हांथ रख कर
कभी कुछ होना नहीं
काटना क्यों चाहते हो
नयी फसल , जब तुम्हें बोना नहीं।
आज बस इतना ही
धन्यवाद।
ओस्लो , नार्वे
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