आज मेरे आँगन में - शरद आलोक
चिड़िया फुदक पास आने लगी,
फिर से साहस दिलाने लगीं,
किन सोचों में डूबे हो तुम,
सूने में चहचहाने लगीं।
अब दाना चुगना भूल गयी
अब चहक-चहक बोली वे
आप जितना जोर रोओगे
सभी आपको रुलायेंगे
आपदा को तो रुलाना है,
जीवन को चलते जाना है
निराश होगे, दुःख आयेंगे
उनसे निपटते जाना है।
चिड़िया मेंरे मेंरे आँगन में
आज फिर से गुनगुनाई है,
गैरों की सगाई में
अपनों से विदाई है।
उलझनों को शब्द देना, करवटों को उलाहना
सामने हमारे जो उनको नकारना
दूर के ढोल से सपने सुहाने लगें,
पहले आमंत्रण फिर बुलाकर नकारना
कैसी हमदर्दी, ये कैसी संवेदना?
नयन बन्द होते, उड़ जाती चिड़िया।
भीतर अंगारे हैं, ऊपर ठंडी राख है,
विचारों के गोलों को निष्क्रिय करना तुम,
अंतर्मन को संयम, ही आत्म विश्वास है।
आज मेंरे आँगन में लोरियां सुनाये कौन?
चिड़िया न होती बेमौसम गाये कौन?
अपने ह्रदय को टीस सहने देते हो
आंसुओं से सींचते तो सावन में रोते क्यों?
मन का नगीना है, सजाओ या संवारो तुम
मन की खान में रतन अनमोल हैं
पास में गंगा है, गोते खुद लगाना है
तैरना या डूबना निर्णय तुम्हारा है।
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