शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

शरद आलोक साहित्य गौरव सम्मान

शरद आलोक  का वक्तव्य साहित्य गौरव सम्मान प्राप्त करने पर 




नार्वे के लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' को राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य गौरव सम्मान से पुरस्कृत किया गया था, परन्तु  'शरद आलोक' सम्मान लेने नहीं आ सके थे, अतः ३० मार्च को विधान सभा के साहित्य संस्थान के सभागार में एक गोष्ठी में उनका वक्तव्य हुआ। उन्होंने कहा कि चूँकि वह लखनऊ में  पले और बड़े हुए इसलिए उस नगर और प्रदेश के लोगों ने सम्मानित किया वह ह्रदय छू लेने वाली बात है।  उन्होंने आगे कहा कि हमको अपनी भाषा हिंदी पर गर्व करना चाहिये और इस गलतफहमी से दूर रहना चाहिए कि अंग्रेजी बोलने वालों को नौकरी मिलती है।  उन्होंने कहा कि यदि तकनीकी शिक्षा हिन्दी में दी जाये और उसके शैक्षिक संस्थान और स्कूल अधिक संख्या में खोले जाएँ तो भारत में हम कुशल कारीगर (स्किल्ड और सेमी स्किल्ड) बड़ी तादात में बढ़ा सकते है। तब हम विश्व के सबसे बड़े हार्डवेयर उत्पादकों में सम्मिलित हो सकते हैं। चीन हमसे पांच गुना ज्यादा कंप्यूटर और हार्डवेयर का उत्पादन करता है क्योंकि वहां इसकी शिक्षा चीनी  भाषा  में होती है।  उन्होंने यह भी कहा कि जो युवा अंग्रेजी माध्यम से निजी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं वे नगर और प्रदेश के युवा और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों से कटे हैं क्योंकि उनके स्कूल, कालेज और संस्थान भी नगर और प्रदेश के सांस्कृतिक और राजनैतिक गतिविधियों से कटे हैं जो मेरी दृष्टि में दुर्भाग्य की बात है।  आपस में मिलना जुलना और नगर और प्रदेश की गतिविधियों में सभी के न जुड़ने के कारण कुछ लोग ही वहां के विकास में अपना योगदान दे सकेंगे और दूसरे  अछूते रह जायेंगे।  अफ्रीका में अंग्रेजी जानने वालों की संख्या बहुत है पर उनको नौकरियां मिलने में अंग्रेजी सहायक नहीं होती है। दक्षिण अफ्रीका इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। 

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