गुरुवार, 16 जनवरी 2014

दिल्ली में स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती संपन्न - suresh chandra shukla

दिल्ली में स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती संपन्न 





























Rapport fra Speils jubileum (25 år) på Hindi Bhavan i New Delhi den 5. jan.  2014.
स्पाइल की रजत जयन्ती 5  जनवरी 2014 को हिंदी भवन नयी दिल्ली में धूमधाम के साथ संम्पन्न हुयी।
कार्यक्रम का शुभारम्भ स्पाइल (दर्पण) के अमेरिका और दिल्ली के प्रतिनिधि डॉ सत्येन्द्र कुमार सेठी के परिचयात्मक सम्बोधन से हुआ जो कार्यक्रम का संचालन भी कर रहे थे.  
सबसे पहले सभी उपस्थित विद्वानों का स्वागत पुस्पगुछ और माल्यार्पण से हुआ जिनमें  मुख्य अतिथि डॉ अशोक चक्रधर, प्रो हरमहेन्द्र सिंह बेदी, प्रो एस शेषारत्नम, प्रो उबैदुर रहमान हाशमी, डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल, साहित्यिक-वैचारिक पत्रिका अक्षर पर्व की सम्पादिका सर्वमित्रा सुरजन, राष्ट्रीय दैनिक देशबंधु के समूह संपादक, राजीव रंजन श्रीवास्तव, राष्ट्र किंकर के सम्पादक और लघु पत्रों के संघ के महामंत्री विनोद बब्बर, देशबंधु के राजनैतिक सम्पादक शेष नारायण सिंह, अमर उजाला के उप वरिष्ठ सम्पादक हरी प्रकाश शुक्ल,  अंजुरी के सम्पादक बी के शर्मा,  यथासम्भव के सम्पादक जीतेन्द्र कुमार सिंह, साहित्य  संस्थान के निदेशक फ़तेह चन्द, हस्तक्षेप के सम्पादक अमलेन्दु उपाध्याय,  विशाखापत्तनम विश्व विद्यालय की प्रो एस शेषरत्नम, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की पूर्व उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार विद्या विन्दु सिंह,  उमेश चतुर्वेदी वरिष्ठ  पत्रकार एवं लेखक,  जे एन यू विश्व विद्यालय के रशियन भाषा के प्रो हेमंत पाण्डेय,  डॉ सुरेन्द्र कुमार सेठी,  डॉ हरनेक सिंह गिल,  जयप्रकाश शुक्ल और सत्येन्द्र कुमार सेठी मुख्य थे.
स्पाइल (दर्पण) के  सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने नार्वे में हिंदी पत्रकारिता पर प्रकाश डालते हुए उन परेशानियों की तरफ इशारा किया जब उनके पास उचित मेज और टाइप राइटर के अभाव में तथा हिंदी के लिए उचित वातावरण न होने के बावजूद कैसे पहले नार्वे की पहली पत्रिका 'परिचय' में 1980 से 1985 तक फिर सन 1988 से स्पाइल (दर्पण) की शुरुआत की. और इन  25 वर्षों में रजत जयन्ती तक पहुँचने तक क्या-क्या पापड बेलने पड़े और अब आगामी 25 वर्षों में पत्रिका कैसे चलाई जाये इस पर विचार विमर्श शुरू कर दिया है. 
सभी विद्वानों ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए विदेशों में हिंदी पत्रकारिता को विस्तार देने के लिए पत्रिका और सम्पादक को बधाई दी. शरद आलोक ने इसके लिए सभी पाठकों, विदेशों में हिंदी के शिक्षकों, अविभावकों को जो अपने बच्चों को हिंदी पढते हैं को धन्यवाद देते हुए ओस्लो स्थित भारतीय दूतावास और नार्वेजीय सरकार और सांस्कृतिक मंत्रालय को धन्यवाद दिया जो पत्रिका और सम्पादक को समय-समय पर सहयोग देते हैं. उन्होंने आगे कहा कि विदेशों में हिंदी का भविष्य उज्जवल है क्योंकि यहाँ स्थानीय हिंदी पत्रिका के पाठक बढ़ रहे हैं और विदेशों में बसे लोगों के लिए हिंदी रोजगार की भाषा बन रही है. इसके लिए उन्होंने विदेशों में भारतीय मोल के राजनीति में सक्रीय लोगों की भूमिका की तारीफ करते हुए कहा कि हमको अधिक से अधिक राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए ताकि हम अपनी भाषा और संस्कृति को स्वीकृति दिला सकें और अपनी भी पहचान कायम करें। 
इस अवसर पर विद्वानों को प्रतीक चिन्ह दिए गए और पत्रिका का लोकार्पण किया गया. 

कार्यक्रम का समापन विनोद बब्बर जी ने बड़ी ख़ूबसूरती से किया।
अन्य शुभकामनाओं देने वालों में लोक सभा टी वी के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, आकाशवाणी राष्ट्रीय प्रसारण के डायरेक्टर और संगीतकार-गायक  राधेश्याम, डॉ श्याम सिंह शशि, डॉ हरी सिंह पाल,  गोविन्द व्यास ने हिंदी भवन के बाहर ही शुभकामनाएं दीं.   

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