सोमवार, 24 जून 2024

संसद से गाँधी की मूर्ति हटी..ओ भारतवासी सांसद सावधान - सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

 संसद से गाँधी की मूर्ति हटी,

कम हुआ संसद का स्वाभिमान

ओ  भारतवासी  सांसद सावधान।
मिलकर बचाओ अपना संविधान।
संसद से गाँधी की मूर्ति हटी,
कम हुआ संसद का स्वाभिमान।

भगवा को अयोध्या नकार चुकी,
सफेद, लाल टोपी वालों के राम।
सड़कों, खलियानों, कारखानों में,
बिन थके श्रम करें श्रमिक किसान।

जो सरकार मॉबलिंचिंग में शामिल,
जड़ से हटायेंगे, जन-जन के राम।
मन्दिर से निकले सड़कों पर राम।
सड़क-संसद तक बचाते संविधान।

अतिपूँजीवादी! अब होश में आओ,
देश की सम्पत्ति अब वापस सौंपो।
इलेक्टोरोल बाण्ड ना काम आयेंगे,
सत्ता-दलाल न तुम्हें बचाने आयेंगे। 

करोड़ों बच्चों से स्कूल छीन लिया।
जनधन को मिलकर सब लूट चले,
धर्म के नाम पर सरकार नहीं चले,
लूट में तुम अंग्रेजों के बाप निकले।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’

24.06.24

गुरुवार, 13 जून 2024

सुरेशचंद्र शुक्ल' शरद आलोक' कृत 'जन मन के गांधी' की समीक्षा: डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी

 समीक्षा: डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी 

समय की आवाज है सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक' कृत काव्यसंग्रह 'जन मन के गांधी'

साहित्य समाज का दर्पण है,कवि जन मन की भावनाओं का चितेरा है। गांधी के इस देश मे जहां आजादी की लड़ाई मे महात्मा गांधी बैरिस्टर होकर मे जनता के बीच आम जन बन कर रहे,एक धोती मे जीवन काटा जनसमस्याओं से अवगत होते हुए.. सत्याग्रह किया। सत्ता के विरुद्ध आम जनता की भावनाओं के अनुरुप आवाज उठाते रहे। उसी देश मे वर्तमान समय मे सत्ता के सिंहासन पर बैठे हुए लोग.. दिन भर कपड़े बदलते हैं.. महंगे से महंगे वस्त्र पहनते है,लक्जरी गाड़ियो पर चलते है और किसानो, महिलाओं,बुद्धिजीवियौ पर कहर ढाते है। कवि ऐसे राजनीतिज्ञों को धिक्कारता हुआ.. आम जन की आवाज को उठाता है। गांधी की पीड़ा को दर्शाता है.. *जन मन के गांधी* नामक पुस्तक मे कवि शरद आलोक ने आम जन की भावनाओं को नई कविताओ मे ढाला है‌। पुस्तक मे कुल 77कविताये हैं,जो राजनैतिक व्यंग्य के रूप मे पुस्तक मे प्रतिष्ठित हैं।
नार्वे मे रहकर भी भारतीय मूल के इस कवि की सम्यक दृष्टि भारत के लोगो और सत्तासीनों पर टिकी हुई है। जनता की आवाज..ही *जन मन के गांधी* मे मुखर हुआ है‌। कवि ने शोषण के शिकार किसानों,श्रमिको वंचितो की त्रासदी को व्यक्त किया है। लेखक का मानना है कि लोकतंत्र मे संवेदनशीलता बहुत जरुरी है। जब तक हम आम लोगो की पीड़ा का अनुभव नहीं करेंगे,उसका समाधान नहीं ढूंढ़ सकेंगे। भूमिका मे स्वयं लिखते हैं..बच्चों की शिक्षाभोजन,छत,इलाज और सामाजिक सुरक्षा लोक तंत्र मे देश की जिम्मेदारी होती है। उनके अभिभावकों के प्रति भी एक जिम्मेदारी बनती है,जिसे नैतिकता और ईमानदारी से निभाया जाना चाहिए। लेखक का उद्देश्य पाठको को जागरुक करना है,सच से साक्षात्कार कराना है। गांधी का सपना ..सर्वधर्म समभाव,समानता,न्याय और समान भागीदारी आवश्यक है। संविधाश हमारा निर्देशक है। प्रारंभ मे ओस्लो के जन जीवन की चर्चा है जहां 'दिन को ओले मध्यरात्रि मे सूरज ..महज कुछ समय के लिए डूबता है फिर उदय होजाता है।

एक बात है,कवि की लेखनी हर मुद्दो पर अनवरत चली है,महज एक साल कै भीतर मात्र नौ माह मे लिखी ये कवितायें क्रांति का विगुल फूंकती दिखाई देती हैं। कवि कहता है.." देश मे 80करोड़ लोग
योग नहीं करते।
योग के बारे मे नहीं सोचते।
सुबह से रात तक
मजदूरी और उसकी तलाश करते हैं।"
लेखक को पीड़ा होती है... जब वह महिला खिलाडियो की यौन उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाने पर उन पर ही कहर ढाई जाती है। वह कहता है-
"भारत मे जाति और धार्मिक हिंसा की आवाज
यौन उत्पीड़न महिला पहलवानो की आवाज
दलित मुस्लिम अल्पसंख्यक और पत्र कारो पर
सरकारी जुल्म भारत मे चढ़ कर बोल रहा।"

कवि धार्मिक उन्माद बढ़ाने और शासन के द्वारा कानून हाथ मे लिए जाने को निंदनीय बताया है-
"जब से धार्मिक उन्माद बढ़ा है,
शासन ने कानून हाथ मे लिया है।
न्यायपालिका की अवहेलना पर
सरकार को जब सजा नहीं होती,
सत्ता बेलगाम होजाती है।
और तब जनहित कार्यो से नहीं,
बल्कि पुलिस,ईडी,सीबीआई के दुरुपयोग
उत्पीड़न सै जनता को डराती है"
- विभाजन कारी बुलडोजर

कवि को प्रधान मंत्री द्वारा विपक्षी सांसदो की खिल्लिया उड़ाना बुरा लगता है,उनकी आवाज की अनदेखी नही की जानी चाहिए-
"देश की नांव में
छेद पर छेद होरहे।
संसद मे प्रधानमंत्री
विपक्षियों का अपमान कर रहे।
सांसद ताली बजाकर
खिल्ली उड़ा रहै।"
- नेता डुबा रहे

लोकतंत्र के चारो स्तंभ स्वतंत्र और निष्पक्ष हों तो लोकतंत्र सुरक्षित रह पाता है,ऐसा कवि का मानना है-
"न्याय पालिका,चुनाव आयोग
और मीडिया झुका हुख है।
इसीलिए लोकतंत्र का मानो
गला घुटा हुआ है।"- अर्द्धसत्य
लेखक का मानना है कि सत्याग्रह ही देश को बचा सकता है-
"केवल सत्याग्रह ही देश को बचायेगा।
हर क्षेत्र मे संगठित हो लड़ेंगे।"
-हवा के खिलाफ गांधी
मणिपुर मे नारी के नग्न कर घुमाये जाने और अहिंसक प्रदर्शन कारियो की गिरफ्तारी पर कवि तड़प उठता है-
" मणिपुर जल रहा है लोकतंत्र बचाओ।
मणिपुर मे मानवाधिकार शांति लाओ।
कानून का राज्य चूर चूर हुआ है।
सरकार का विश्वास दूर हुआ है।"
-मणिपुर जल रहा ,लोकतंत्र बचाओ
बरैली और लखनऊ की स्मृतियां कवि के हृदय मे जगह बना लेती है- 'बरेली मे भीगी सारी गली' 'लखनऊ मे सुबह' ऐसी ही रचनाएं हैं।
"जिससे स्वच्छ पानी
स्नेह भी मिला भरपूर है‌।
हमारे प्यारे लखनऊ की
मेहमान नवाजी मशहूर है।"
- लखनऊ मे सुबह
कोरोना काल की स्मृतियां कवि को कुरेदती हैं,जिन झुग्गी झोपड़ियो का अतिक्रमण सरकार ने हटाया,वही अंतिम क्रिया कराने मे काम आए-
"जिसको किया बेघर
वही काम आई‌
अतिक्रमण भवन के मालिक को
रिक्शे पर लाद कर श्मशान पर
उसकी चिता को आग लगाकर
दी अंतिम विदाई।"
-'कोरोना काल मे अतिक्रमण'
कवि को किसान आंदोलन,महिला पहलवानो के आरोप की अनसूनी करना,मणिपुर के शर्मनाक कांड पर चुपी साध लेने वाले प्रधान मंत्री अनफिट लगते हैं,वे तानाशाही की तरफ बढ़ते नजर आते हैं। यथा-
"यह पहले अनफिट पीएम है।
क्या आगे भी अनफिट आएंगे?
जिनका देश विदेश मे नाम घटा
लोकतंत्र मे तानाशाह बन जाएंगे।"
- 'अनफिट प्रधानमंत्री'
कवि जनमन के गांधी का एक बार फिर आह्वान करता है-
"गांधी सुबाष फिर आओ तुम
सड़को पर देश बचाओ तुम।
सत्य अहिंसा के बल पर
लोकतंत्र बहाल कराओ तुम।"
- 'जनमन के गांधी हो,शांतिदूत बनजाओ तुम'
- इलेक्टोरल बांड के नाम पर धन उगाही.. भ्रष्टाचार की कोटि मे है। कवि सीधे चोट करता है-
"- चंदे के बदले धंधे की पोल खुल गई।
गारंटी वाले चेहरे पर हवाई उड़ रही।
भ्रष्टाचार मे प्रधानमंत्री बेनकाब होगए,
भ्रष्टाचार मे उन्हें जेल कहीं जाना न पड़े?"
-'भ्रष्टाचार मे कही जेल न जाना पड़े'
लोकतंत्र की रक्षा के लिए कवि चिंतित होकर देश वासियो से आह्वान करता है-
"देश के लोगो ! देश बिकने न दो,
लोकतंत्र बचाओ इसे मिटने न दो।
ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार बन गई!
देश को गुलाम फिर से होने न दो।"
- 'देश के लोगो देश बिकने न दो
- कवि शरद आलोक की दृष्टि रचनात्मक दिशा मे भी है',पहला प्यार वतन से करो' शीर्षक कविता मे उन्होंने इस बात का संकेत किया है।
-
इस प्रकार कवि शरद आलोक ने "कल पर मत छोड़ो" कविता के आह्वान के साथ लोकतंत्र की रक्षा के लिए,समस्त देश वासियो से जुट जाने की अपील की है। इस तरह जनमन के गांधी काव्यसंग्रह मे कवि की व्यापक दृष्टि नजर आई है। प्रवासी भारतीयो को भी जगाने के साथ इन्होंने देशवासियो से सतत जनजागरण का संदेश दिया है

रविवार, 9 जून 2024

तीसरी बार अनफिट प्रधान - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 तीसरी बार अनफिट प्रधान

 - सुरेश चन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक'

लोकतंत्र के मन्दिर की,
जिसने कम की आन बान।
लोकतंत्र की यही शान,
तीसरी बार अनफिट प्रधान।

ईमानदारी से कोसों है दूर,
गरीब-असहाय जनता मजबूर।
भ्रष्ट आचरण गन्दी जबान,
है बेईमान अनफिट प्रधान।

संविधान की शपथ लेकर,
लोकतंत्र का करें अपमान।
अन्याय से जनता परेशान
तीसरी बार अनफिट प्रधान।

देश का भविष्य क्या होगा,
लगाना मुश्किल है अनुमान।
मुजरा कर सरकार चलाना
होगा कितना यह आसान। 

09.06.24

सोमवार, 3 जून 2024

4 जून 2024 को एक और विभाजन - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 भारतीय चुनाव पर मेरी आखिरी कविता:

4 जून 2024 को एक और विभाजन
- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
1947 को देश का हुआ था विभाजन
भौगोलिक और सांप्रदायिक विभाजन।
भावनात्मक आधार पर जो बचा खुचा था
वह बटवारा क्या 4 जून 24 को हो रहा है
उसके नायक हैं
भैंस, मंगलसूत्र और मुजरा कहने वाले।
ये नया बटवारा है:
ये आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक।
यह बटवारा है देश में रहते हुए
नागरिकों का बटवारा।
यह बहुत ख़तरनाक है।
अमेरिका में ट्रम्प को सजा सुनाई जा रही है।
यह सजा 20 साल तक हो सकती है।
भारत में क्या होगा,
यह सोंचकर काँप जाता हूँ।
ऐसा लगता है मानो
इस देश को किसी बड़ी अनहोनी के लिए
तैयार किया जा रहा है।
लोकतंत्र को बचाने का सवाल और चिंता
जनता में मुखर है
4 जून के फ़ैसले में कितनी चिन्तायें हैं:
धाँधली, अतिरिक्त मतदान, ई वी एम
और शक के घेरे में है
अविश्वसनीय चुनाव आयोग?
जनता का फैसला आया
जनता जीत गई तो
क्या शक्ति (पावर) का बदलाव
आसानी से होगा।
यही सोच कर जनता 3 जून को
सो गई और रात में नींद के बीच में
जागकर करवट बदल रही है।
क्या 4 जून को सरकार बदल रही है?
अंधभक्तों के हाथों में निकली
उन्माद की तलवारें क्या म्यान में चली जायेंगी?
लोकतंत्र बच जायेगा।
चुनाव में मतदान के कर्तव्य के बाद
उसकी रक्षा का कर्तव्य सर चढ़कर बोलेगा।
सत्ता बदल जाएगी,
जनता की सरकार आ जाएगी।
03.06.24