सोमवार, 3 जून 2024

4 जून 2024 को एक और विभाजन - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 भारतीय चुनाव पर मेरी आखिरी कविता:

4 जून 2024 को एक और विभाजन
- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
1947 को देश का हुआ था विभाजन
भौगोलिक और सांप्रदायिक विभाजन।
भावनात्मक आधार पर जो बचा खुचा था
वह बटवारा क्या 4 जून 24 को हो रहा है
उसके नायक हैं
भैंस, मंगलसूत्र और मुजरा कहने वाले।
ये नया बटवारा है:
ये आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक।
यह बटवारा है देश में रहते हुए
नागरिकों का बटवारा।
यह बहुत ख़तरनाक है।
अमेरिका में ट्रम्प को सजा सुनाई जा रही है।
यह सजा 20 साल तक हो सकती है।
भारत में क्या होगा,
यह सोंचकर काँप जाता हूँ।
ऐसा लगता है मानो
इस देश को किसी बड़ी अनहोनी के लिए
तैयार किया जा रहा है।
लोकतंत्र को बचाने का सवाल और चिंता
जनता में मुखर है
4 जून के फ़ैसले में कितनी चिन्तायें हैं:
धाँधली, अतिरिक्त मतदान, ई वी एम
और शक के घेरे में है
अविश्वसनीय चुनाव आयोग?
जनता का फैसला आया
जनता जीत गई तो
क्या शक्ति (पावर) का बदलाव
आसानी से होगा।
यही सोच कर जनता 3 जून को
सो गई और रात में नींद के बीच में
जागकर करवट बदल रही है।
क्या 4 जून को सरकार बदल रही है?
अंधभक्तों के हाथों में निकली
उन्माद की तलवारें क्या म्यान में चली जायेंगी?
लोकतंत्र बच जायेगा।
चुनाव में मतदान के कर्तव्य के बाद
उसकी रक्षा का कर्तव्य सर चढ़कर बोलेगा।
सत्ता बदल जाएगी,
जनता की सरकार आ जाएगी।
03.06.24

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