बुधवार, 8 जुलाई 2009

क्या नार्वे में विश्व हिंदू परिषद् विवादों के घेरे में?

क्या विहिप ओस्लो में विवादों के घेरे में बुरी तरह घिरी जान पड़ती है?
विदेशों में रहने वाले प्रवासियों के लिए उनकी संस्थाएं बहुत आवश्यक होती हैं, अपनी संस्कृत, भाषा और देश से जुड़ने के लिए। पर बहुधा संस्थाओं में व्यक्ति के अपने आपसी मतभेद दूसरों पर लादना शायद सस्ती लोकप्रियता अथवा चर्चा में आने का कारण हो सकता है।
मेरे पास अनेक ई -पत्र द्वारा और आपसी मेलमिलाप में लोगों ने नार्वे की वी एच पी (विहिप) के सम्बन्ध में चिंता जाहिर की। एक संपादक के नाते मैंने इस संस्था तथा अन्य संस्थाओं के कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ हूँ जिसके समाचार भी प्रकाशित किए हैं ।
चुनाव में किया गया निर्णय सर्व मान्य होता है। किसी भी कार्य को करने के लिए उसे भली भांति करना चाहिये।
कुछ समय पहले कुछ बच्चों के माता पिता ने बताया कि जब उनके बच्चे विहिप में हिन्दी पढने गए तो वहां कार्यकर्त्ता युद्ध / लडाई की मुद्रा में दिखे।
गालियों का पाठ ही बच्चे सीख सके। एक बार बिना बताये विहिप का द्वार हिन्दी पढने वाले बच्चों को बंद मिले जिम्मेदार लोग गायब थे।
जो भी हो विहिप उन बच्चों की नजरों में तब तक खरी नहीं उतरेगी जब तक व्यस्क कार्यकर्त्ता ईमानदारी से कार्य नहीं करेंगे। लोगों को विशेष कर बच्चों के माता -पिता को लगता है कि विहिप बच्चों के लिए एक आदर्श संस्था नहीं हो सकती। समय बदलता है। हर समय एक सा नहीं रहता।
एक बात और राजनीति द्वारा प्रयास के बाद ही यह सुलभ हुआ कि संस्थाओं और समाज को सहायता मिले और उसके हितों कि रक्षा हो। यही कारण है कि युवाओं और महिलाओं को कार्यकारिणी में ४० प्रतिशत स्थान देने का प्रावधान है। राजनीति के बिना नार्वे में कोई संगठन नहीं चल सकता परन्तु संगठन का बिना भेदभाव के गैरराजनैतिक होना जरूरी है। डेमोक्रेसी एक बहुत जरूरी हिस्सा है संस्थाओं के लिए।
पाठक लोग बहुत जागरूक हैं । अपने-अपने दायरे में प्रवीण हैं।
यदि आप किसी भी रूप में अपने समाज अथवा नार्वेजीय समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो अपना मत का स्तेमाल जरूर कीजिये। और उन्ही पार्टियों को वोट दीजिये जो प्रवासी के लिए अच्छी हों। प्रवासियों के हितों कि रक्षा करें। यदि कोई यह समझता है कि वह अपने समाज का अच्छा प्रतिनिधि हो सकता है तो वह संस्थाओं के साथ-साथ सही राजनैतिक पार्टी से जुड़े ताकि वह अपने समाज कि संस्थाओं में प्रजातंत्र को मजबूत करे और दकियानूसी अथवा आपसी मनमुटाव से ऊपर उठ सके। राजनैतिक पार्टियाँ बहुत कुछ सिखाती हैं। कार्यस्थलों के संगठनों में भी सम्मिलित होकर भी आप संगठन के गुर सीख सकते हैं और मतभेद को सुलझाने में सर्वमान्य तरीके का स्तेमाल कर समन्वय और भाईचारा बढ़ा सकते हैं ।
-सुरेशचंद्र शुक्ल

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