जीवन में पुण्य कमायें - शरद आलोक
रो-धोकर बीत रहा है,
यह समय हाय हमारा।
बहुधा सुनते रहते हैं,
बेचैन यहाँ बेचारा॥
हर ओर चमक हरियाली,
नव हिम से ढकी हुई है।
सूरज की चाहत में सब,
खुशियाँ छिपी हुई हैं॥
भारत से आने वाले,
ग्रीष्म ऋतुओं को रोते।
जब मात्र भूमि जाते हैं,
वातानुकूल में सोते॥
दो संस्कृति मध्य झूलते,
आकाश उठा लेते हैं।
जितना भी धन होता,
उतने को हम रोते हैं॥
श्रमदान यहाँ करते हैं,
मिलजुलकर भार उठाते।
क्या कुलियों, रिक्शे वालों,
महरिन को गले लगाते?
जब भेदभाव है मन में,
अन्याय वहीं होता है।
जो पहरेदारी करता
फुटपातो पर सोता है।।
मंदिर मस्जिद जाते हैं
बेशक जाएं गुरुद्वारा ।
हर स्वदेश यात्रा में
धरती में कुछ बो आयें॥
हम मात्रभूमि गुरु दक्षिणा
देकर कर्त्तव्य निभाएं।
जीवन में पुन्य कमायें,
कोई अच्छा वृक्ष लगाएं॥
1 टिप्पणी:
जीवन में पुन्य कमायें,
कोई अच्छा वृक्ष लगाएं॥
-उम्दा संदेश!!
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