शनिवार, 13 जुलाई 2013

हिन्दी फिल्म के स्तम्भ के मुख्य स्तम्भ प्राण अब नहीं रहे - शरद आलोक (लेखक और फिल्मकार)

हिन्दी फिल्म के मुख्य स्तम्भ कलाकार प्राण अब नहीं रहे - शरद आलोक (लेखक और फिल्मकार)


 नार्वे से स्वसम्पादित पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' के पिछले अंक में हमने हिन्दी फिल्म के मुख्य स्तम्भ, पहले और आख़िरी महानायक- खलनायक 'प्राण' के बारे में लिखा था. उन्होंने हिन्दी फिल्म में अभिनय की नयी उंचाइयाँ छुईं।  अनेक दशकों तक हिन्दी फिल्मों के में खलनायक और चरित्र अभिनेता के रूप में अपना सिक्का चलाया। 
उनका कल १२ जुलाई २०१३ लीलावती अस्पताल, मुंबई  में देहांत हो गया. प्राण का जन्म १२ फरवरी १९२० को पुरानी  दिल्ली में हुआ था. उनका विवाह शुक्ल अहलुवालिया से १९४५ में हुआ था. उनके पीछे अब उनके दो पुत्र: अरविन्द और सुनील तथा पुत्री पिंकी तथा पांच पोते और उनके परिवार हैं.
प्राण ने कपूर खानदान की चार पीढी के साथ  काम किया।
उनके भाई का परिवार अभी भी कपूरथला, पंजाब में रहता है जहाँ प्राण अक्सर जाकर रहा करते थे.   डेनमार्क में सन लाईट रेडियो का सञ्चालन करने वाले देशबंधु भी कपूरथला पंजाब से हैं, उन्होंने बताया की प्राण को पान खाने का बहुत शौक था.  
मनोज कुमार और दिलीप कुमार उनके अच्छे दोस्त थे जिनके साथ उन्होंने अनेक सफल फिल्मों में काम किया।
अमिताभ बच्चन को उन्होंने प्रकाश मेहरा से परिचित कराया और उन्हें फिल्म जंजीर में काम दिलाया।
अशोक कुमार के साथ उन्होंने २७ फ़िल्में की। उन्होंने ३५० फिल्मों में काम किया। सी एन एन टी वी ने उन्हें २०१० में एशिया के २५ फिल्म  कलाकारों में चुना।  उन्हें भारत का पद्मविभूषण सम्मान मिल चुका । उन्हें देर से ही सही दादा साहेब फाल्के पुरस्कार इसी वर्ष २०१३ में मिल चुका है जिसे
केन्द्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने उनके घर जाकर प्रदान किया।  
 प्राण की मुंबई में अपनी फ़ुटबाल टीम थी। 
वह सिगार पीने के शौक़ीन थे और उनके पास सिगार का एक अच्छा संग्रह था। 
हमारी प्राण को काव्यांजलि प्रस्तुत है:
प्राण के जाने का दुःख हुआ है,
श्रद्धा सुमन अर्पित किया है.
इतिहास भूल न पायेगा उनको,
हिन्दी फिल्म का नायक महा है. 

कला के अनेक उपमान देकर,
जिसके दिल में  सागर छिपा है
असमानता की खाई पाटकर
फिल्म को अम्बर दिया है। 

ओस्लो, नार्वे १३ जुलाई २०१३

कोई टिप्पणी नहीं: