शनिवार, 2 मई 2015

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस सभी के लिए है - Suresh Chandra Shukla

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस पहली मई (२०१५)  
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 


















ओस्लो में नेपाली युवा रेडक्रास के माध्यम से भूकम्प पीड़ितों के लिए धन संग्रह करते हुए 
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस विश्वकर्मा दिवस की तरह सभी के लिए है 
कल अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया गया. मैंने बहुत  से लोगों को इस अवसर पर बधाई दी और प्राप्त की.
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस विश्वकर्मा दिवस की तरह सभी के लिए है. 
लाल रंगों के झंडे श्रमिक का रंग है. यह लाल रंग उत्तरीय /स्कैंडिनेवियाई देशों ('नार्वे, स्वीडेन, डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड')  में क्रिसमस का भी रंग है परंपरा के कारण  न कि धर्म के कारण।  लाल रंग युवा महिलाओं का भी रंग है उत्सवों पर पहन जाने के लिए. भारत में शादी विवाह में भी लाल साड़ी और पूजा के समय तिलक किया जाने वाला रंग भी हल्दी और चूना  के मिश्रण से  भी रंग लाल होता है. गेरुए रंग को भी लाल रंग के रूप में प्रयोग करने का प्रावधान गेरू आदि है. 
गाँवों में और आदिवासियों के घर की  दीवारें भी गेरुए रंग से बने चित्रकारी से भरपूर होती हैं. इसीलिये कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा लाल रंग सभी का रंग है. इसलिए यहाँ श्रमिक दिवस पर श्रमिक संगठनों के झंडे केवल लाल रंग के होते हैं. 
बाएं से सुरेशचन्द्र शुक्ल, ग्रीस देश की सांसद और नार्वे की लेबर पार्टी के नेता  ओस्लो में पहली मई दिवस पर 
 सभी श्रमिक है, वी आई पी कल्चर ने हमें बाँट दिया है    
हर कोई जो काम करके धन कमाता है वह श्रमिक है चाहे कार्यालय में काम करे, जज और वकील का काम करे, नर्स, आया और चिकित्सक का कार्य करे, अध्यापक और चपरासी का कार्य करें  वे सभी श्रमिक हैं.   
भारत में श्रमिक दिवस को बहुत से लोग केवल चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों और दलितों का ही दिवस मानते हैं, यह जानकार बहुत दुःख हुआ. श्रमिक दिवस सभी का होता है. बहुत खास दिन होता है. यदि सही रूप में श्रमिक दिवस भारत में मनाया जाता और सभी की प्रतिभागिता होती तो इससे जागरण, देश की आधारभूत समस्याओं को सही और सुनियोजित ढंग से सामने लाया जा सकता था.  बामपंथी दलों और श्रमिक संगठनों द्वारा यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस भारत में और आर्थिक रूप से  विकासशील और अविकसित देशों में मनाया जाता है, जिसके लिए ये आदरणीय और आदर के पात्र हैं. पर जो बामपंथी विचारधारा से केवल जोड़कर देखना भी ठीक नहीं। इसमें सभी की भागीदारी और समान आदर और समानता का प्रश्न बहुत जरूरी है. इस दिन जो मांगे उठाई जाती हैं और जिन मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है वह सबके लिए होती है देश और समाज को दिशा निर्देश मिलता है और उसपर सभी का ध्यान जाता है. अतः जनता और सरकार के मध्य समसामयिक, प्रायोगिक जानकारियों के आधार पर समस्याओं का निधन किया जाता है. श्रमिक संगठनों के मजबूत होने से देश मजबूत होता है. सभी क्षेत्रों में कामगारों और  परिवारों की स्थिति और उनके आर्थिक और सामजिक तरक्की के लिए यह दिन महत्वपूर्ण होता है जिसमें बैनरों और श्रमिक जन-प्रतिनिधियों के भाषणों तथा संदेशों के द्वारा राजनैतिक समझ और समाधान के लिए गाइडलाइन देता है.
इस दिन नार्वे में विशेषकर जहाँ ओस्लो में रहता हूँ वहां नेता, जनता और मालिक साथ बैठकर नाश्ता करते हैं. श्रमिक गीत गाते हैं. बैंड बाजे बजाते हैं. साथ-साथ मार्च करते हैं और जो मार्च में सम्मिलित नहीं होते वह बाहर कार्यक्रमों को देखने जुलुस को देखने भरी मात्र में एकत्र होते हैं. चूँकि इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है तो अस्पताल, रेल जहाज, आवश्यक कामों के अलावा अवकाश रहता है और जो इस दिन काम करता है उसे पहली मई का दोगुना वेतन मिलता है. बच्चे और युवा के लिए दिन भी खास होता है अपने माता-पिता के साथ सम्मिलित होने का जो इस पहली मई कसे सीख लेकर अपने देश में और बेहतर समाज और श्रम आंदोलन को शांतिपूर्ण और उत्सव के तरीके से मजबूत करते हैं.


स्थानीय अस्पताल को पुनः खोलने की मांग करते श्रमिक-मार्च  के बैनर 

मोदी जी की राह आसान हो जाती 
यदि भारत में श्रमिक दिवस के दिन नार्वे या पश्चिम यूरोपीय देशों की तरह श्रमिक दिवस सार्वजनिक रूप से बिना वी आई पी कल्चर के मनाया जाता तो श्रमिकों की रोजमर्रा की जरूरतों और समस्याओं और मांगों का पता चलता बिना किसी एक राजनैतिक दल या विचारधारा का प्रभुत्व न होकर सभी की सहभागिता और उनमें सभी की सहमति होती तो सही सन्देश जाता और प्रधानमंत्री मोदी जी को इसे पूरा करने के लिए सभी का सहयोग लेने का दबाव बनाया जा सकता था और समस्याओं के हल के लिए सहमति बनाने में आसानी होती।  

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