बुधवार, 4 नवंबर 2015

A poem about Copenhegan (Denmark) by Suresh Chandra Shukla



नमस्कार!  A poem about Copenhegan (Denmark) by Suresh Chandra Shukla

Photo from Worls hindi Conference held in Bhopal in India in 2015.
चित्र में बाएं से लखनऊ के दाऊद जी गुप्ता, प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह, स्वयं मैं (सुरेशचन्द्र शुक्ल), महामहिम केशरी नाथ त्रिपाठी, एक लेखिका, प्रो  राम प्रसाद भट्ट और प्रो शोभा बाजपेयी ( के के वी डिग्री कालेज यानी कि लखनऊ  में बप्पा श्रीनारायण वोकेशनल डिग्री कालेज में अंगरेजी की विभागाध्यक्ष).    

यही है भैया कोपेनहेगन 
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


Photo from Worls hindi Conference held in Bhopal in India in 2015.
यहाँ जो चित्र दिया है वह विश्व हिन्दी सम्मलेन भोपाल का है.    

बेघर जहाँ मनाते उत्सव
चारो ओर हैं बंदरगाह
दूध की नदियाँ बही जहाँ
नाचे गायें सब परिवार।
धेनुमार्ग हैसच्चा आँगन!
यही है भैया कोपेनहेगन!!
पर्यटकों की धूम जहाँ है,
फुटपातों पर लगती फेरी!
फुर्सत में पी मदिरा प्याले,
तनावों से कर लेती दूरी!!
संकोचों के टूटे बंधन!
यही है भैया कोपेनहेगन!!

नाविक का संसार जहाँ है,
सागर जीवन मान जहाँ है
सब को कहने की आजादी,
हर एक का सम्मान जहाँ है,
जहाँ प्रेम ज्यों थाली-बैगन! 
यही है भैया कोपेनहेगन!!
कथा की मनहर  कथायें,
जिनपर करती गर्व हवायें!
उपेक्षित लेखक की  गाथायें,
अब सभी प्रशंसा गाथा गायें!!
जहाँ सबके एच सी अन्दर्सन!
यही है भैया कोपेनहेगन!!  

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