मंगलवार, 25 जुलाई 2017

नेहरू और पटेल को अलग करके देखना इतिहास विरुद्ध होगा -Suresh Chandra Shukla (प्रसिद्द लेखक और चिंतक गिरिराज किशोर जी के फेसबुक से साभार।)

 नेहरू और पटेल को अलग करके देखना इतिहास विरुद्ध होगा 
 (प्रसिद्द लेखक और चिंतक गिरिराज किशोर जी के फेसबुक से साभार।)
शपथ-भाषण में राष्ट्रपति ने संकेत दिए हैं कि वे पार्टी लाइन से प्रभावित हैं। सबसे बड़ा संकेत है जवाहरलाल नेहरू का नाम न लेना। पार्टी नेहरू को पसंद नहीं करती। नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री थे। वे संघ के ख़िलाफ़ थे। लेकिन देश में औद्योगिक संस्कार के बीज बोने वाले नेहरू थे। आज जिस मेक इन इंडिया की बात ज़ोर शोर है उसका आगाज़ यू एस एस आर के साथ मिलकर नेहरू ने किया था। हैवी इन्डस्ट्री की स्थापना नेहरू ने की वैज्ञानिक संस्कार नेहरू की देन है. देश के वैक्षानिकों को उन्होंने जोड़ा। आई आई टी वे लाए। एकेडेमीज़ उन्होंने और मौलाना आज़ाद ने बनाई। अंतिरक्ष अनुसंधान की नींव उनके ज़माने में रखी गई। कोल्ड वार के दौरान नानएलायनमंट का दर्शन देकर देश को रूस और अमेरिका के समकक्ष लाने वाले नेहरू थे। पटेल उनके निकटतम सहयोगी थी। देश को एक जुट करने की सोच दोनों की थी। प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री में कोई अंतर नहीं था। यह सोचना कि पटेल अकेले विज़नरी थे यह कहीं न कहीं पूर्वग्रह की ओर संकेत करता है। यदि दस बीस साल बाद वर्तमान वित्त राजनीतिक वैमनस्य जेटली को नोट बंदी और जीएस टी का जनक बता कर वर्तमान प्रधानमंत्री को गिराने की कोशिश की गई तो वह ऐतिहासिक भूल होगी। प्रधानमंत्री के पास किसी भी योजना को वीटो करने का अधिकार होता है। ज़मीदारी उन्मूलन नेहरू के ज़माने में हुआ जो सबसे ज़्यादा कठिन था। नेहरू और पटेल को अलग करके देखना इतिहास विरुद्ध होगा। जितने खुलेपन से उस ज़माने के नेता एक दूसरे से सहमत असहमत हो सकते थे वह आज संभव नहीं। पटेल के बिना नेहरू असहाय थे और पटेल नेहरू के बिना। मुझे लगा बिना अतीत पर ध्यान दिए राष्ट्रपति जी ने दिया गया भाषण पढ़ दिया।

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