मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

भारतीय चुनाव में धोखे वाला राष्ट्रवाद मानवता का विरोधी और खतरनाक - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, 09.04.19

धोखे वाला राष्ट्रवाद मानवता का विरोधी और खतरनाक 
राष्ट्रवाद किसी पार्टी का एजेंडा नहीं होता यह व्यक्तिगत होता है. भारतीय चुनाव में आज चर्चा में आये राष्ट्रवाद 
में देशप्रेम और मानवता कोसों दूर है, इससे भारतीय चुनावी-लोकतंत्र की छवि विदेशों में ख़राब हो रही है.
चुनाव जीतने के लिए बहुत से झूठे आँकड़े और धोखे वाले  राष्ट्रवाद को दिखाकर भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री बाद में अँगूठा दिखाने की पूरी तैयारी में है, यह सुनने को मिल रहा है.  
राष्ट्रवाद में सरकारी और देश की संपत्ति निजी मित्र पूंजी पतियों को नहीं बेची या दी जाती है. 
बाकायदा देश और सरकारी संपत्ति को सहकारिता पर आधारित कंपनियां बनाने में मदद देना चाहिये और उसमें जनता का निवेश कराकर देश की संपत्ति को प्राइवेट नहीं बेचना और देना चाहिए।
मेरी नजर में जो आज राष्ट्रवाद दिखाया जा रहा है वह क्षद्म (धोखे वाला) राष्ट्रवाद है. 
हाँ इस राष्ट्रवाद में हिटलर की तरह जिद वाला और किसी की सलाह न लेने वाला और मनमानी करने वाला राष्ट्रवाद है जहाँ विपक्ष और आलोचना करने वालों को परेशान किया जा रहा है, देश के लिए घातक ही नहीं वरन देश की संपत्ति को आने वाले समय में विदेश के हाथों बेचने की साजिश है. 
जो राष्ट्रवाद की वाद कर रहे हैं उन्होंने सबसे बड़े पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ाने में मदद की है. नौकरियाँ चली गयीं हैं. इतना ही नहीं अपने राजनैतिक दलों को गालियों जैसी भाषा वाले लोग कभी राष्ट्रवादी नहीं बन सकते केवल दूसरे को कोसने वाले बन सकते हैं. 
हिटलर का राष्ट्रवाद खतरनाक था भारत का वर्तमान राष्ट्रवाद वैसा खतरा बन सकता है, पर उसमें देर लगेगी क्योकि भारत में बहुत से लोग बेशक देर-सबेर पर गले से पानी ऊपर आये इससे पहले चुनाव से फिर आंदोलन से अपने देश और भारत की छवि के लिए इस धोखे वाले राष्ट्रवाद को पनपने नहीं देंगे। 
ऐसी मुझे पूरी आशा और विशवास है यह महात्मा गांधी जी का देश है और सुभाष का देश है जहाँ राष्ट्र के लिए जान दी जाती थी और आजादी के लिए लोग जेल जाते थे. आज के भारतीय धोखे वाले राष्ट्रवाद में विरोधियों और विपक्षियों को जेल में डालने की धमकी और सरकारी संस्थाओं का प्रयोग कराने में किया जा रहा है. 
प्रजातंत्र में सभी को अभिव्यकित का हक़ है पर गाली देने और असभ्य टिप्पणी करने का हक़ नहीं है. हमारे देश के शीर्षस्थ नेता प्रधानमंत्री विद्यार्थियों को देशवासियों को क्या सिखा रहे हैं? 
अगर हिम्मत है तो प्रधानमंत्री पद से स्तीफा देकर चुनाव के मैदान में आयें तब उन्हें आंटे-दाल चावल का भाव पता चलेगा।  
     - सुरेश चन्द्र शुक्ल, 'शरद आलोक' , ओस्लो, नार्वे। Suresh Chandra Shukla

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