शनिवार, 21 मार्च 2020

डॉ.सुषम बेदी नहीं रहीं। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

डॉ.सुषम बेदी :1946 - 2020. हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी क्षति 
 अमेरिका में हिन्दी की बड़ी कथाकार मित्र सुषम बेदी नहीं रहीं। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। यह प्रवासी हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
मेरी अच्छी साहित्यिक मित्र और अमेरिका में रहकर साहित्यसृजन करने वाली श्रेष्ठ रचनाकार सुषम जी से मई 2019 में जब मैं अमेरिका गया था तब दो बार बातचीत हुई थी। बड़ी क्षति हुई सुषम बेदी के जाने से। उनके घर पर दो बार और कोलंबिया विश्व विद्यालय में अनेकों बार मिले। कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।
उन्हें उनकी कथाओं को भुला पाना आसान नहीं है।
स्पाइल- दर्पण में उनकी अनेक कहानियों को प्रकाशित किया है।

मुझे सुषम वेदी जी के साथ मिलकर सन 2003 में पहली कथा गोष्ठी का शुभारम्भ करने का सौभाग्य मिला था, जिसमें उनके मिलनसार पति, सीमा खुराना, किरण नन्दा, ललित अहलूवालिया और अनेक लोग सम्मिलित हुए थे.
पहली कथा गोष्ठी की रिपोर्ट और साक्षात्कार अमेरिका के पत्रों: इंडिया न्यूज, इण्डिया पोस्ट, इन्डिया वेस्ट, इण्डिया अब्रॉड और शेरे पंजाब, नार्वे की पत्रिका स्पाइल-दर्पण, पूर्णिमा वर्मन द्वारा सम्पादित नेट पत्रिका अभिव्यक्ति, नवनीत, वेब दुनिया आदि में छपी थी.









कोलंबिया विश्वविद्यालय में बाएं से सुषम बेदी जी अपनी पुस्तकें दिखाती हुई. बीच में लखनऊ की उनकी सहयोगी शिक्षिका और मैं (सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक').
आज हमारे बीच प्रवासी भारतीय की सुप्रसिद्ध लेखिका नहीं रही । मैं विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं । सुषम बेदी समकालीन प्रवासी कहानी साहित्य लेखन में जाना माना नाम हैं । सुषमबेदी का जन्म सन 1946 में पंजाब के फिरोजपुर नामक शहर में हुआ । अपने एम.ए.पी.एच.डी. तक की शिक्षा प्राप्त की हैं । आपने पंजाब विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की हैं । और वही आपने एक प्राध्यापिका के रूप में कुछ वर्षो तक अध्यापन कार्य भी किया हैं । आज संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में रहनेवाली डॉ. सुषम बेदी कोलंबिया विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं । सुषम बेदी हिंदी की प्रख्यात प्रवासी हिंदी महिला रचनाकारों में से एक हैं, जिन्हों ने प्रवासी हिंदी कथा साहित्य के मुख्यधारा के कहानी लेखकों में अपनी एक अहम जगह बना ली हैं । सुषम बेदी प्रवासी हिंदी की एक यशस्वी कहानी लेखिका हैं । प्रवासी हिंदी के समकालीन कहानी साहित्य में सुषम बेदी का उल्लेखनीय स्थान हैं । उनकी पहली कहानी 1978 में प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘कहानी’ में प्रकाशित हुई । उनकी रचनाओं में भारतीय और पश्चिमी संस्कृति के बीच झुलते प्रवासी भारतीयों की मानसिक आंदोलन का सुन्दर चित्रण हुआ हैं ।
आपका पहला कहानी-संग्रह ‘चिड़िया और चील’ हैं । इसका प्रकाशन सन 1995 में हुआ । इसके बाद आपका ‘सड़क की लय’ शीर्षक नामक दूसरा कहानी संग्रह सन 2007 में प्रकाशित हुआ हैं । ‘अवसान’, ‘मिसेज सक्सेना’, ‘विभक्त’, जमी बर्फ ‘अजेलिया के रंगीन फूल’, ‘काला लिबास’,’गुनहगार’, ‘गुरु भाई’ , ‘चेरी फूलों वाले दिन’, ‘पार्क में’, ‘संगीत पार्टी’, ‘गुनहगार’, ‘तलाश’ आदि आपकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं । आपकी बहु चर्चित कहानी ‘चिड़िया और चील’ हैं । इस कहानी में माता-पिता अपनी बेटी को प्यार से चिड़िया कहकर पुकारते हैं । देखते देखते चिड़िया बड़ी हो गयी हैं । और मुक्त जीवन जीने की आकांक्षा करने लगी एक तरफ मूल्यों को लेकर परेशान माता-पिता, दूसरी तरफ स्वतंत्र विचारों और आधुनिक वातावरण में पली उनकी बेटी दो पीढ़ियों की टकराहट को लेखिका ने बखूबी प्रस्तुत किया हैं । एक तरफ माँ-बाप अपनी बेटी को डॉक्टर बनाना चाहते हैं, दूसरी तरफ उनकी बेटी अपने अनुसार जीवन जीना चाहती हैं । कभी कभी माँ-बाप अपने सपने बच्चों पर थोप देते हैं, यहाँ भी कुछ ऐसा ही था । मुक्त वातावरण में पली चिड़िया अब घोसलें से आजाद हो उड़ना चाहती हैं । उसे यह विश्वास हो गया था कि ‘ज्यादातर माँ-बाप बातें प्रजातंत्र की करते हैं, पर होते तानाशाह हैं । (चिड़िया और चील- सुषम बेदी- पृ.42) एक दिन चिड़िया ने बोर्डिग की माँग की । उसका मानना था कि माँ-बाप के साथ रहकर बच्चे कभी स्वतंत्र विकास नहीं हो पाता । वह माँ-बाप के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही, कुछ दिन अपने सहपाठी के साथ रहने के बाद अब उससे नोंक-झोंक होने लगी । आर्थिक अभाव ग्रसित जीवन से चिड़िया तंग आ गयी । और एक दिन अपना सामान लेकर पुन: माता-पिता के पास गयी वह सुविधाओं को भोगने के लिए माँ-बाप के पास आयी थी । वरन उसके जीवन में माँ-बाप का कोई स्थान नहीं था । एक दिन चिड़िया ने अपनी मम्मी से कहा कि वह एक फिल्म बनाना चाहती हैं । ... पैसा लगाओगी मम्मी उसे आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी । और उन्हें अपने ही पालन-पोषण में कुछ कमी नजर आ रही थी, चिड़िया की बात सुनकर वह बोली । – ‘तेरे डेडी नाराज नहीं होंगे । ..कहते हैं उसे मन माँगा देकर बिगाड़ रही हो ।’ यह सुनते ही चिड़िया कड़की, ‘ठीक हैं रख लो संभालकर । ....चिता पर धरकर साथ ले जाना । ... जीते जी मुझे डिपराईव करके सुख मिलता हैं, तो लो । ... मैं भी तुम दोनों के मरने का इंतजार कर लूंगी । ...माँ-बाप भी पता नहीं किस बात का बदला लेते रहते हैं । .... ट्रस्ट को पैसा दे देंगे, अपनी औलाद को नहीं । ...पैदा करने का यह मतलब तो नहीं कि सारी उम्र उन्हें दबोचकर कोख में ही रख लिया जाए । ....(चिडिया और चील –सुषम बेदी पृ.47) माता-पिता अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपना पूरा जीवन ही क्यों न समर्पित कर दे, फिर भी आधुनिक वातावरण में पले बच्चें कभी उन्हें समझ नहीं पाते । चिड़िया उड़ गयी थी और मम्मी अभी भी उसके लौटने का इंतजार कर रही थी ।”
प्रवासी हिंदी कहानी लेखिकाओं में “सुषम बेदी सबसे अधिक चर्चित लेखिका रूप में प्रसिद्ध हैं । उनकी अनेक कहानियों में नारीवाद को चित्रित किया गया हैं । अमेरिका में प्रवासी बनी हिंदी लेखिका सुषमा बेदी ने अपनी ‘गुनहगार’ शीर्षक कहानी में प्रवासी बुजुर्ग नारी के ऐसे ही संकट को स्वर दिया हैं ।

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