सोमवार, 7 जून 2021

कारवां निकल गया, अपनों की तलाश में - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 

 कारवां निकल गया

अपनों की तलाश में

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

कारवां निकल गया, अपनों की तलाश में,

खोजकर थक गया, यादों की मिठास में. 

नीरज की कामना, शरद आलोक बांचना।

शिशु हाथ में झुनझुना, बजा रही संवेदना।

 

कैसी है संकल्पना, आकाश में तैरना।

पर्वतों में घूमना, घाटियों में विचाना। 

पृकृति भूल से भरी, सौंदर्य की रसभरी।

लगा जैसे  छुइमुई, तितली सी रंगभरी।। 

गुलकन्द सी पान में, जबान बेजुबान में. 


बड़ा वही फला पका, महान था झुका रहा. 

देवघर में फूल सा,  मस्तक पर सजा रहा.

माँ  बस टोकती रही,  आँधियों से रोकती। 

रोकी कामना सभी, तोड़ी दब भावना सभी. 

 

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 


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