मंगलवार, 25 मई 2021

25 मई 2021, श्रृंगवेरपुर घाट पर-

 

खोदकर कब्रों को
शवों को हटा रहे हैं.

आक्सीजन की कमी से
जब लोग मर रहे थे.
तब हमारे आका,
मानो तब शतरंज खेल रहे थे.
जब जिन्दा थे ये इंसान
मुर्दे होने से पहले,
सहायता के बदले उन्हें 
आइना दिखा रहे थे।

प्रयागराज नाम बदला,
पर बदल न सका आचरण?
अब खोदकर कब्रों से शवों की,
अब वे निशानी मिटा रहे हैं।

श्रृंगवेरपुर घाट पर जब  60-100
शव रोज दफनाए जा रहे थे।
कोरोना का पीक था
इलाज का तब गाँव में 
नामोंनिशान नहीं था। 
सहायता नहीं मिली थी,
प्रशासन डरा-छिपा हुआ था.
ग्रामवासियों को  जीवन
व्यर्थ सा लगा था।

25 मई 2021 जब इंसानियत मिट गयी थी
प्रयागराज में  शमशान पर गजब हो गया था.
एक दिन पहले तक एक किलोमीटर तक
अपने परिजनों को को दफनाया जहाँ-जहाँ था.
बांस-बल्ली निशानी गाड़कर जो गए थे.
आज (25.05.21) दो बुलडोजर ले प्रशासन ने
नामोंनिशां मिटा दिए थे.
जब परिजनों ने आज आकर देखा
उनके होश उड़ गए थे.

जब रोकना था, तब कहाँ था प्रशासन।
अंतिम संस्कार से वंचित जहाँ मृतक हों.
उस देश के हम वासी, शासन छल रहा है.
अव्यवस्था के कारण, हर तरफ उठा धुँआँ है.

फेसबुक पर हमने
जब गाथा सुनी किसी से
न रो सका तब मैं
हंस ही सका हूँ.
विदेश में रहकर देश की
छवि धूमिल होने से कैसे मैं सँवारूँ.

मरने के बाद भी,
जहाँ शान्ति न मिले शवों को,
वह कभी प्रयागराज का शमशान,
कभी काशी का शमशान-कब्रगाह है.

प्रशासन को खुली छूट
सत्ताधीश से मिलकर
जिन्दा को जेल में और
शवों को हटा रहे हैं
जैसे धरती के ये हैं मालिक
अनजाने में अपनी हस्ती जला रहे हैं.
 
 - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

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