सोमवार, 24 मई 2021

भारत से: अपनी-अपनी जगह - सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक

अपनी-अपनी जगह 

     सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक speil.nett@gmail.com 

भारत से  निवेदन आंदोलनकारियों को बिना शर्त रिहा किया जाये ताकि संक्रमण न  हो ।  तीनों किसान बिल/कानून संसद तुरंत रद्द  करें।  किसान आन्दोलन  में मरे व्यक्तियों को शहीद का दर्जा दिया जाये?  पिछले सात सालों से चुनावी चन्दे को और खर्च को सार्वजनिक किया जाये।  जनता  में और राजनैतिक पार्टियों में बिना चर्चा कराये कोई बिल  नहीं लाया जाये।  बिल का मसौदा काफी समय पहले संसद को दिया जाए, उस पर बहस हो, संसद में बिना सभी दलों को चर्चा  का अवसर मिले। बाद में प्रस्ताव कलाकार पास कराया जाये।

राजनैतिक पार्टियों को चन्दा की पारदर्शिता कहाँ है? यह देशवासियों के सामने सार्वजनिक किया जाये की चन्दा कहा से आया है?   आवाज उठाने वालों को सजा दी जा रही है क्या यही भारतीय लोकतंत्र  है? संसद में बिल,  प्रस्ताव के  पूर्व जनता में  सार्वजनिक  किया जाना चाहिये. प्रस्ताव पर जनता, पार्टियों के अंदर और संसद में बहस क्यों नहीं कराई जाती?  

जन आन्दोलन में भाग लेने वालों को जो अब बीमार हैं, युवाओं और महिलाओं को जेल में डाल दिया गया है.  यदि उन्हें  संक्रमण हुआ तो वे  दोहरी  सजा  काटेंगे  और संक्रमण से वे मर भी सकते हैं ?

क्या संक्रमण के सवा  के सवा साल में (जनवरी 2020 से 24 मई 2021 तक)  संसद ने संक्रमण को लेकर कितनी बैठकें की हैं. कितनी बहस और चर्चा  हुई है. क्या हर माह सर्वदलीय बैठक और संक्रमण को लेकर कार्य कर रही सरकारी गैर सरकारी के साथ हर हफ्ते बैठक  हुई है. उसे सार्वजानिक  किया गया है?  

मेरा आप सभी पाठकों से देश के नागरिकों से पूछना है कि क्या आप दूसरों के लिए श्रमदान करते हैं? पार्किंग, अपने पार्क, तालाब, नदी, बाजार आदि कैसा हो, इस बारे में रोज आपने श्रमदान के रूप में कितने घंटे खर्च किये हैं? क्या सब कुछ ठीक चल रहा हैं? 

संसद में विपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता। सभी कानून और प्रस्ताव जो पास होते हैं उसकी जनता और राजनैतिक पार्टियों में चर्चा नहीं कराई जाती। जो कानून और प्रस्ताव संसद  और राज्य सभा में पास हुए उनको जनता और राजनैतिक पार्टियों को बहुत पहले क्यों नहीं बताया जाता ताकि उसपर सही और पारदर्शिता से चर्चा हो सके. सभी पक्ष को अपनी बात कहने का अवसर मिले और यदि किसी की बात तार्किक देश हिट और उस तबके की है उसे भी सम्मिलित किया जाए जी नहीं हुआ है इसलिए इस लेख की आवश्यकता पड़ी है।

संसद में जनता के आंदोलनों पर कितनी चर्चा हुई. यह चर्चा स्कूलों  और कॉलेजों में कराई गयी.संसद में मैंने चर्चा में कई बार अलोकतांत्रिक तरीके से बहस होते देखा है. एक उदाहरण है जिसे आप देख सकते हैं एक बहुत योग्य युवा सांसद हैं महुआ मोइत्रा, उनके पहले भाषण से लेकर आज तक जितने भाषण हुए हैं उन्हें लोग खड़े होकर विरोध करते हैं. संसद में सञ्चालन बहुत  कमजोर दिखता है. असल में लोकसभा अध्यक्ष उसे चुना जाना चाहिए जिसका बहुत ज्यादा अनुभव हो संसद का. 

सरकार ने संक्रमण के समय संक्रमण सम्बन्धी कितने जनता के लिए फैसले लिए हैं? किसान के तीन क़ानून पर पहले जनता,  किसान,राजनैतिक पार्टियों से न विचार-विमर्श किया गया और न ही संसद में बहस का मौक़ा दिया गया क्यों? क्या कोई साजिश तो  या कोई गुप्त एजेंडा तो नहीं है. पारदर्शिता  का अभाव, संसद में लोकतंत्र के अभाव में भारत की जनता को असहाय छोड़ दिया  है. करोरेटरों  के लिए अनेक निर्णय क्यों लिए गए. संक्रमण की दवा और वैक्सीन को सरकारी कंपनियों को सही समय पर कार्य दिया गया होता और वैक्सीन की रिसर्च और खरीद का एक  इंतजाम किया गया होता तो भारत में दस लाख लोग मरने से बच सकते थे. 

 संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा या दस लाख संख्या विदेश में वैज्ञानिकों और संक्रमण के लिए कार्य कर रहे लोगों की है जो  है.  आप टीवी की रिपोर्ट, जनता द्वारा दिया गया मीडिया और के  डाटा के आधार पर बहुत काम किया जा रहा है. चूँकि भारत में वयवस्था मरने वालों को छिपाने में लगी  है. 

 जिससे भारत का संक्रमण का शोध पिछड़ जाएगा और विदेशी शोध भारत के सम्बन्ध में क्या जा रहा है.

हर चीज की अपनी-अपनी जगह है. जैसे स्कूल और महाविद्यालयों में शिक्षा, बाजार में व्यापार और संसद और विधानसभा और ग्राम पंचायत में समस्याओं के लिए राजनीतिक डिबेट और सभी की भागीदारी।

भारत की सबसेबढ़ा राजनैतिक बहस, विचार-विमर्श का मंच है संसद। क्या आपने इसमें रूचि क्यों नहीं ली है?  जिस विषय पर संसद और विधानसभा में चर्चा होनी है उसकी सूचना और उसपर बहस विचार-विमर्श का अवसर जनता को, जनता के प्रेतनिधि जिनपर बात होनी है उनसे बात की गयी है? वह सहमत नहीं है तो फिर जबरदस्ती संसद में भी बिना बहस और विचार विमर्श के किसी कानून अध्वा प्रस्ताव पास करना चाहे संख्या के हिसाब से सही हो पर लोकतांत्रिक तो नहीं है. इसका जिम्मेदार कौन है.

यह प्रश्न मैंने उपर उठाये हैं, इसका उत्तर क्या होना चाहिए।  भेदभाव की राजनीति, मनमानी और पारदर्शिता को ख़तम करके हम देश का उसकी जनता का नुक्सान नहीं कर रहे हैं? इसे कैसे ठीक किया जाये।

क्या आपको यह उसी तरह दिख रहा है. क्या सभी अपने-अपने स्थान पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. यदि नहीं तो क्यों? आपको ही इसे तय करना है कि लोग अपने-अपने स्थान पर रहकर कार्य करें और हम उसका सहयोग दें।

हर घर को दो भागों में बाँट दिया गया है पक्ष और विपक्ष।  क्या यह बटवारा सही है और इसका निर्णय कहाँ करना चाहिए और ऐसा क्यों हो रहा है?  क्या बच्चों को राजनीति की शिक्षा और उसका स्तेमाल स्कूल और कॉलेजों में नहीं सीखना चाहिए। 

आप जिस मोहल्ले में रहते हैं, जिस कालोनी या सोसाइटी में रहते हैं वहां रहने वालों की समिति है जिसके आप सभी बराबर के सदस्य हैं. सफाई, बिजली, पानी, सामाजिक और राजनैतिक जागरूक हैं?

राजनीति ऐसा मंच यह विषय है उसके ज्ञान और उसकी प्रेक्टिस की शिक्षा हमको बचपन से सही तरीके से दी जा रही है?  उत्तर है नहीं। स्कूलों में छात्रसंघ के या छात्र संसद के चुनाव होते हैं इसका उत्तर भी है नहीं क्योंकि शाट प्रतिशत स्कूलों में चुनाव नहीं हो रहे हैं.  बालवाड़ी और स्कूलों में माता-पिता और अविभावक का चुनाव उनकी ट्रेनिंग और सूचना और आपसी बैठकों का अभाव क्यों है? स्कूल और महाविद्यालय बिना माता-पिता और अविभावकों के प्रतिनिधियों से तालमेल और विचार-विमर्श करके कार्य कर रहे हैं, इसका उत्तर भी मुझे नहीं में मिला है, जबकि कुछ स्थानों में इसका अपवाद हो सकता है.

स्कूल-कालेज में छात्र-छात्रा, शिक्षक, अविभावक और प्रबंधक चार मुख्य लोग हैं जो स्कूल कालेज के व्यवस्था और शिक्षा से जुड़े हैं. क्या इनमें तालमेल है? आपका ज्यादातर उत्तर होगा नहीं। 

आप स्वस्थ रहें.

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