मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

दिवा स्वप्न - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla

दिवा स्वप्न  - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


दिन में मैं स्वप्न देखने लगा,
अच्छा है स्वप्न पर प्रतिबन्ध नहीं है 
गाँधी - लोहिया और जयप्रकाश ने एक साथ 
मेरा द्वार खटखटाया?
कौम के जिन्दा होने पर सवाल उठाया। 

हम देश की रक्षा कैसे करेंगे 
जब अपने सुरक्षा और रक्षा उद्योगों को 
बिकने से नहीं बचा पा रहे?
गाँव के सभी बच्चों को स्कूल तो दूर 
एक स्लेट, बत्ती और  ब्लैकबोर्ड (श्यामपट) नहीं दे पाये?

क्या गारंटी है? 
बिना जनता से पूछे  बेची गयी सरकारी संपत्ति 
सरकार  बदलने पर 
इनका दोबारा राष्ट्रीयकरण नहीं हो सकता?
कालीदास  की तरह हमने डाल काट कर देखा है?
जिस डाल  पर मैं स्वयं बैठा था 
उसे काट रहा था?
धारा के विरुद्ध जनता को ललकार रहा था. 
बाजी जीतकर भी मैं हार गया था.

मैंने पूरे गाँव पर कब्जा कर लिया था,
शक्ति के बल पर 
बिना चुनाव प्रधान बन गया था. 
पर उसका क्या करें कि 
मेरा पूरा गाँव जल चुका था. 
मेरे साथ जश्न मनाने वाला और 
दिया जलाने वाला नहीं था?

आपातकाल में जो जेल में बन्द थे,
रिहा होने पर मिले थे उन्हें सम्मान पत्र।
जेल जाने और संघर्ष से क्यों हम डर  रहे हैं?
जेल से रिहा होते फिर से मिलेंगे तामपत्र!

Oslo, 27.10.21

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