बुधवार, 2 जुलाई 2008

लोकप्रिय संपादक, सृजनशील कवि मित्र कन्हैया लाल नंदन को ७५वा जन्मदिन मुबारक

भइया कन्हैया लाल नंदन को बहुत -बहुत शुभकामनाएं - शरद आलोक
जब भी कहीं कविसम्मेलन, पत्रकार सम्मेलन और लेखक सम्मलेन हो और वहां सबके प्रिय कन्हैया लाल नंदन जी उपस्थित हों तो वह अपने संचालन से समां बाँध देतो हैं। जब भी हिन्दी की पत्रकारिता की बात हो और कन्हैया लाल नंदन का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।
मेरी सबसे पहली मुलाकात नंदन जी से १९८६ में दिल्ली में उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिका दिनमान के कार्यालय में हुई थी। तभी मैंने नार्वे से पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त की थी। वह वर्ष मेरा पत्रिकारिता का स्वर्णिम वर्ष था। तीन महीने मैंने साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी में अवैतनिक हिन्दी पत्रिकारिता का अभ्यास किया था। मेरे अनेक लेख और कहानियाँ तथा कवितायें इन दोनों पत्रिकाओं में छपी थी और जिससे हिन्दी जगत से मेरा विस्तृत साक्षात्कार हुआ था। इन्हीं दिनों वामा की संपादक और आजकल हिंदुस्तान व कदाम्बिनी की सम्पादक मृणाल पाण्डेय से हुआ थातब उन्होंने मेरा पत्र भी वामा में छापा था। इसी वर्ष अज्ञेय जी ने मुझे चाय पिलाई थी और इसी वर्ष मेरे मित्र विजयवीर के बड़े भाई और हिन्दी के मशहूर लेखक रघुवीर सहाय से भेंट हुई थी।
इसके पहले हिमांशु जोशी १९८२ में, स्वर्गीय रामलाल, कुरातुल आइन हैदर, अमृता प्रीतम, सत्य भूषण वर्मा, सुरेन्द्र कुमार सेठी और राजेंद्र अवस्थी १९८५ में नार्वे में हमारे मेहमान बने थे। नार्वे आने वालों की लम्बी सूची है।
आगे चलकर नंदन जी से हमारा मिलना तीन बार लन्दन में हुआ । दो बार विशाल कविसम्मेलन में हुआ जिसका आयोजन लन्दन में स्थित हमारे हाईकमीशन ने आयोजित किया था। सिंघवी जी वहां हाई कमिश्नर थे।
महानायक अमिताभ बच्चन भी एक कविसम्मेलन में उपस्थित थे। मेरी मित्रता भी यहाँ पर गोपालदास नीरज और मजरूह सुल्तानपुरी जी से हुई थी। मजरुह जी से उनके जीवित रहने तक मित्रता चलती रही। नीरज जी से अभी दो सप्ताह पूर्व बातचीत हुई।
नंदन जी एक उदार और विवेकी साहित्यकार होने के नाते एक अच्छे शुभचिंतक भी हैं। जब छठे विश्व हिन्दी सम्मलेन का उद्घाटन सत्र था और मेरे द्वारा कुछ प्रश्न पूछे जाने पर नंदन जी ने मुझे नेक सलाह दी थी ताकि अपनी साख बनी रहे और बात भी हो जाए।
अनेक महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं के सफल संपादन के साथ-साथ नंदन जी ने अनेक स्मारिकाओं का भी सफल संपादन भी किया है। प्रवासी साहित्यकारों की रचनाओं को खुले ह्रदय से गगनांचल पत्रिका में स्थान देकर एक ऐतिहासिक कार्य किया है नंदन जी ने।
"महक उठे फूलों से कहना
नंदन दूर -दूर देशों में
अपने मित्रों के हृदयों में
नयनों के नीरों में
बहा करता है।
यह नंदन ही भारत का रत्न
मित्रों का मित्र
कविता में दिनकर, पन्त और धूमिल सा
रस बरसाता , मस्त संत सा
अंधकार में दीप जलाता ।"
इन पंक्तियों के साथ मैं कन्हैया लाल नंदन जी को शतआयु होने की कामना करता हूँ और
हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनाएं देता हूँ।
-शरद आलोक




1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

कन्हैया लाल नंदन जी को हमारी भी बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं.