जन्म देने वाली मां हमेशा के लिए विदा- शरद आलोक
२५ मार्च को, रात ९ बजकर ५० मिनट पर मेरी मां जिन्होंने मुझे लखनऊ में जन्म दिया वह सदा के लिए मुझे छोड़कर हमेशा के लिए चली गयीं।
यह कैसा है दैविक नियम जो आया है जायेगा?
मृत्यु मूल्यवान है?
मृत्यु अच्छी है क्या?
मृत्यु शान्ति है क्या?
अनेक सवाल मेरा रास्ता रोककर खड़े हो गए हैं।
मेरी मां किशोरी देवी नहीं रहीं जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के कठारा रोड पोस्ट के अंतर्गत बकौली गावं में हुआ था।
कह गयीं अलविदा।
आत्मा को शान्ति मिले या न मिले मेरी यादों में, अपने संघर्ष की कथाओं में मेरी रचनाओं में वह सदैव आती-जाती रहेंगी।
मानो पृकृति में पतझड़ का मौसम आया और पूरा समूचा जंगल के पेडों से पत्ते झरने लगे हैं। मौसम बदल गया है। जन्मदाता पेड़ से तो पत्ते अलग होते सभी ने देखा है। पर जन्मदाता के जाते मानो पूरा पेड़ हिल गया। बेशक वह अपने बीजों से नए पौधे लगना नहीं भूलीं। मेरी मां के जाने के बाद हम तीन भाई और एक बहन भविष्य में ढलने वाले पेड़ होंगे।
भाषा परावर्तित होती है व्योहार से। मूल्यों को व्यक्त करने के लिए चाहिए भाषा। जीवन के चहुओर समस्त व्यवधान, शोर शराबा सभी कुछ कितना शांत हो जाता है। जैसे मेरी मां का शरीर शांत होते हुए हुआ होगा।
चाहे गरीबों के लिए जल के लिए नगरपालिका के नल की समस्या हो या पडोसी को सहानुभूति चाहिए हो मेरी मां ने एक हद तक पूरा किया।
एक मां जो बचपन में मेरे मित्रों: राजेश्वरी चौधरी, लक्ष्मी मिलिंग के बर्तन घर से अलग कर देती थीं वही आगे चलकर मेरे मित्रों को खाना परोसती थी। जातपात से सना बचपन प्रगतिशील हो गया था मां किशोरी देवी का ।
यही बदलाव पूरे भारत में लाना है। मेरी मां की सहेली हिंदू, मुस्लिम- गरीब , अमीर सभी थे पर उन्हें सदा गरीबों का भी ख्याल रहता था।
जय प्रकाश ने तो मां के जीवन के अंत तक, अन्तिम समय तक, अपने भाई- बहन शैल, पत्नी आराधना के साथ सेवा की, साथ दिया। अपनी सगी माँ की तरह दादी मां को जीवन जीते देखा और उनकी मृत्यु को भी पास से देखा। वह बड़े भाई जिनके लिए सप्ताह में कभी उनके साइकिल यात्रा करते समय दो दिन व्रत रहती थीं वह भाई भी मां की मृत्यु को पास से देख सके। समीप रहे। अभी नर्सों और परसों की ही बात है मां से फोन पर बात हुई थी। वह कुछ ही शब्द बोल सकी थीं। उन्होंने सुना पर जवाब नहीं दे पायीं थीं। क्या हम उनकी यादों को उनकी जन्मस्थली से जोड़ पायेंगे? यह तो समय ही बताएगा।
मेरा और मेरी मां का कहना था की सम्मान देंगे तो सम्मान लेंगे। मेरी मां के जीवन का संघर्ष
आज मेरी शक्ति भी है। आदमी जंगल में केवल पेड़ ही पेड़ नहीं देखता है। सच्चाई की पीड़ा बेहतर है, असत्य के उत्पीडन से। एक तरफ़ मृत्यु नुकसान है। दूसरी तरफ़ जीवन का दूसरा छोर।
ह्रदय की भाषा सूरदास भी पढ़ सकते हैं जिनकी आंखों में रोशनी नहीं है। विवाह के बाद मेरी निरक्षर माँ को साक्षर बनाया मेरे पिताजी श्री बृजमोहन लाल शुक्ल ने जिन्होंने माँ को तथा संगीत तक की शिक्षा घर पर ही दिलाई थी। पिताजी तो बहुत पहले ही दुनिया से विदा हो गए थे। परन्तु माँ के साथ उनकी स्मृति आना पतझड़ में पेड़ से बिखरी पत्तियों की तरह उन दोनों की यादें भी हैं। यदि शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखना है तो आत्मा के साथ उसकी शुरुआत होती है। अपने लिए माता -पिता को अपनी आत्मा समझता रहा जबकि हम उसके अंश भर होते हैं। पिता ने विश्राम के लिए बहुत पहले यात्रा आरम्भ कर दी थी। माँ ने यह यात्रा कल शुरू की इस दुनिया से अपनी विदाई के साथ। उनको विदाई देने के लिए मेरे हंगरी में रह रहे बेटे अनुपम ने इच्छा व्यक्त की की वह माँ के अन्तिम संस्कार में शामिल होकर उन्हें देखना चाहता है! उसे सांत्वना देकर अपनी स्मृतियाँ संजोने लगा।
कानपुर की माँ अपनी जन्मभूमि देहात के दर्शन करना चाहती थीं २६ मार्च को कानपुर से बहती हुई गंगा में मिल जायेंगी।
आप दिल्ली के निगमबोध शमशान घाट पर गए होंगे तो आपने मेरी ये पंक्तियाँ पढ़ी होंगी:
"जीवन और मृत्यु दो विरोधी तत्त्व हैं जीवन अर्थ है मृत्यु सत्य है।- शरद आलोक"
Oslo
"जीवन और मृत्यु दो विरोधी तत्त्व हैं जीवन अर्थ है मृत्यु सत्य है।- शरद आलोक"
Oslo
13 टिप्पणियां:
ईश्वर आपकी मां की आत्मा को शांति दे ... आपने जो बताया ... उसके अनुसार वह पुण्यात्मा थी ... उन्हें मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि ।
आपकी माता जी को हार्दिक श्रद्धांजलि। उनके आदर्श अनुकरणीय हैं। जिस बदलाव को आपने पूरे भारत में लाने की आशा की है, शिक्षा के साथ हमारे देश में वह आयेगा, इसकी हमें आशा और आवश्यकता भी है।
हमारी सम्वेदनाएँ!!
आपकी माता जी को श्रद्धान्जली!!
ईश्वर उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करे व आपको इस दु:ख को सहन करने की शक्ति दे।
god give you courage to bear the loss
माँ जब नहीं होती तब ही उसकी महत्ता पता चलती है . ईश्वर आपको यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करे .और आपकी माता जी की आत्मा को शांति प्रदान करे
शरद आलोक जी
मां का जाना सिर्फ महसूसा जा सकता है
व्यक्त नहीं किया जा सकता
करो कितना ही बाकी उससे अधिक रह जाता है
मां शब्द अकेला ही
सारी कायनात से विस्तृत है
समाई है सारी दुनिया इसी में
अपने भावों में, विचारों में, अनुभव में
हममें, तुममें, इसमें, उसमें
ऐसा कोई नहीं
जिसने अनुभव न किया हो
मां का प्यार
इस पर चाहे हम जितना भी लिखें
सब कम ही होगा
पर चाहे कितना ही कम लिख पाएं
पर मां का प्यार कभी कम न होगा
ऐसा कोई नहीं है
जिसे मां के रहने का गम न होगा
पर विश्वास रखें
मां की याद, मां का विश्वास
जो देता रहा है बल
वही आगे भी संबल देगा।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति बक्शे
mera meri sass ma ke saath bahut achchha saath tha. Unka haath hamare aur parivar ke saath raha jiske liye main ma ka aajivan rini rahoongi. Iswar se prarthna hai ki unki aatma ko shanti de aur kal 28.03.09 ko dasvin ke din is patra ke madhyam se sammilit ho rahi hoon. Ma ki yaad unki doosron ki seva ki shikhsa bhun naheen pa rahi hoon
-maya bharti
Norway
ईश्वर आपकी मां की आत्मा को शांति दे .
ईश्वर आपकी मां की आत्मा को शांति दे
अब सिर्फ देह नहीं रही माँ। पहले भी सिर्फ देह वह थी ही कब? वह सु-संस्कार है। वह जाती कहीं नहीं, विस्तार पा लेती है पितरों जितना। पहले उसकी हथेलियाँ, उसकी नजरें छूती थीं हमें; अब उसके आशीष हम पर बरसते रहेंगे सुहानी धूप और शीतल चाँदनी बनकर। माँ जब नहीं थी वहाँ, बादल बरसाते थे पानी; अब वे अमृत बरसाएँगे। हरे-भरे रखेंगे हमारे खेतों-बागों-बगीचों को। भरा-पूरा रखेंगे खलिहानों को। माँ गई कहीं नहीं, विस्तार पा गई है पितरों जितना।
नमन..
आपकी मां ने अपने जीवन का लक्ष्य पा लिया है। हम लोग भी सब हर रोज हर पल अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने जो आपको संस्कार दिये हैं आप उन्हें पोषित करें ओर उनको अगली पीढ़ी में बांटने की निरन्तरता बनाएं। आप भले ही अनेक काम करते हों पर उनके लिए प्रतिदिन एक नेक काम करें। मैं पी के शर्मा ' पवन चंदन ' भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मेरे द्वारा अपने जीवन में किये गये एक नेक काम का फल उनकी आत्मा को संतुष्टि प्रदान करे।
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