शनिवार, 24 अप्रैल 2010

नार्वे में विश्व पुस्तक दिवस - माया भारती


पुस्तकों की कोई जगह नहीं ले सकता-शरद आलोक
भारतीय - नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में वाइतवेत सेंटर ओस्लो में विश्व पुस्तक दिवस मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्थानीय सर्वोच्च नेता थूरस्ताइन विन्गेर ने कहा कि हमें गर्व है कि फोरम के माध्यम से सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' और उनके सहयोगी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय कार्यक्रम आयोजित करते हैं और स्वयं भी रचनात्मक सहयोग पत्रकारिता और लेखन के माध्यम से करते हैं जो बहुत सराहनीय है। इंट्रीग्रेशन और सद्भाव के कार्य के लिए यह जरूरी है जिसे ये भली भांति कर रहे हैं। हेनरिक इबसेन, ब्योर्नस्त्यारने ब्योर्नसन, विश्व पुस्तक दिवस, ८ मई नार्वे का स्वतंत्रता दिवस, ७ जून को यूनियन मुक्त दिवस आदि कार्यक्रम सहित अनेकों अच्छे उदहारण हैं ।
कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने विश्व पुस्तक दिवस पर बधाई देते हुए उन लोगों को याद किया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, शब्द अभिव्यक्ति के कारण दुनिया के कोने-कोने में बहुत यातनाएं सह रहे हैं और उनमें से बहुत से लोग जेलों में बंद हैं। उन्होंने सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की वकालत करते हुए पुस्तकों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पुस्तकों कि अपनी जगह ही उसकी जगह कोई नहीं ले सकता।
कार्यक्रम में जिन लोगों ने अपने उद्गार व्यक्त किये और कवितायें पढ़ी उनमें इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन , राज कुमार भट्टी, शाहेदा बेगम, सुखदेव सिद्धू, अनुराग विद्यार्थी, अलका और वासदेव भरत, बलबीर सिंह, प्रगट सिंह, माया भारती, इन्दरजीत पाल और आलमगीर वसीम थे।

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