शनिवार, 29 जनवरी 2011

३१ वर्ष बाद भारतीय दूतावास ओस्लो में -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


३१ वर्ष बाद भारतीय दूतावास ओस्लो में बाएँ से सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक, अशोक कुमार, पी बालाचंद्रन, दिनेश कुमार नंदा, निकीता, संगीता और अलक्सन्देर शुक्ल सीमोनसेन
२६ जनवरी २०११, ३१ वर्ष बाद भारतीय दूतावास ओस्लो में


बाएँ से श्रीमती राय, निकीता और सुरेशचन्द्र शुक्ल स्पाइल-दर्पण पत्रिका को बीच में खड़े राजदूत बन्बित ए राय को भेंट करते हुए और दायें पी बालाचंद्रन


बाएँ से सुरेशचन्द्र शुक्ल, भारतीय राजदूत बन्बित ए रायऔर प्रथम सचिव पी बालाचंद्रन
जब मैं ३१ वर्ष पहले नार्वे आया था तब २६ जनवरी १९८० का दिन था। ओस्लो में बहुत सर्दी थी। तब -२२ तापमान था। पर २६ जनवरी २०११ को तापमान -७ था और श्री सुरजीत सिंह जी एक ऐसे अकेले व्यक्ति थे जो मुझे ३१ वर्ष पहले भी भारतीय दूतावास में मिले थे पर आज उनके साथ उनकी पुत्री लवलीन साथ थी। २६ जनवरी १९८० को लवलीन उनके साथ नहीं थी। उस समय मेरे बड़े भाई डॉ राजेंद्र प्रसाद शुक्ल शम्भू चतुर्वेदी, साहेब सिंह देवगन, त्रिलोचन सिंह भी साथ थे। आज २६ जनवरी २०११ को मैं अपनी बेटी संगीता, उनके दो बच्चों निकीता और अलक्सन्देर और मेरी पत्नी माया भारती मेरे साथ थीं। मेरे लखनऊ के मित्र अनुराग विद्यार्थी, डॉनीम, प्रगट सिंह और डिम्पल भी साथ थे।
समय के तीन दशक बीत गए। भारत और नार्वे के मध्य साहित्यिक यात्राएँ करते हुए और भारतीय हिंदी पत्रकारिता को जीवित रखे और उसे जीते हुए ये वर्ष गुजरे। पहले १९८० से १९८५ तक परिचय, १९८६ से १९८९ तक SAIH-prespektiv में, सन १९८९ से ओस्लो-पूर्व Oslo-øst में, सन १९९९ से अकेर्स अवीस ग्रुरुद डालेन और हिंदी कि स्पाइल-दर्पण में १९८८ से संपादन कर रहा हूँ।
आज भारत में अपने भाई रमेशचंद्र शुक्ल से बातचीत करके बहुत अच्छा लगा। पुराने दिन याद आने लगे। अभी ३० दिसंबर से ६ जनवरी २०११ तक उनके साथ रहा था।
लखनऊ विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश विधान सभा में दिनेश कुमार अवस्थी के साथ साहित्यिक गोष्टी यादगार बनकर रह गयी है जहाँ मैं क्रमशः ३० दिसंबर और ३ जनवरी को गया था।

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